घटना, लघुकथा नहीं हैः हिमांशु / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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नेतराम भारती द्वारा रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ का साक्षात्कार

1- प्रश्न : मेरा पहला प्रश्न है लघुकथा आपकी नज़र में क्या है ? लघुकथा को लेकर बहुत सारी बातें , जितने स्कूल उतने पाठ्यक्रम वाली स्थिति है। यदि नव लघुकथाकारों के लिए सरल शब्दों में बताने को कहा जाए, तो आप कैसे परिभाषित करेंगे?

काम्बोज: विषयवस्तु, प्रस्तुति सबमें एक- एक शब्द का संयम, संश्लिष्ट अभिव्यक्ति लघुकथा है। वैसे किसी परिभाषा में लघुकथा नहीं बँधती।

2-प्रश्न : आज बहुतायत में लघुकथा सर्जन हो रहा है। बावजूद इसके, नए लघुकथाकार मित्र इसकी यात्रा, इसके उद्भव, इसके पड़ावों से अनभिज्ञ ही हैं। आपने प्रारंभ से अब तक लघुकथा की इस यात्रा को न केवल करीब से देखा ही, बल्कि उसे दिलोजान से जिया भी है । कैसे आँकते हैं आप इस यात्रा को?

काम्बोज: हर विधा में, हर काल- खण्ड में सब तरह के लेखक हुए हैं। विधा की यात्रा का केवल ज्ञान ही पर्याप्त नहीं, उसके व्यावहारिक रूप से अवगत होना आवश्यक है। विभिन्न सम्मेलनों( बरेली, पटना के अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन, विभिन्न शहरों में आयोजित ‘अन्तराजी मिन्नी कहाणी समागम’, अन्य संस्थाओं के सम्मेलन),सरकारी और गैरसरकारी संस्थानों द्व्रारा निकाले गए विशेषांक, बरेली के 1989 सम्मेलन के विमर्श के ‘आयोजन’ पुस्तक रूप में दो संस्करण, विषय केन्द्रित संकलन, भारत के साथ- साथ विदेशों में रेडियो और टीवी तक पर लघुकथा पर गम्भीर विमर्श आदि बहुत से पड़ाव आए। लघुकथा डॉट कॉम ने पिछले 23 साल में लघुकथा को वैश्विक स्तर पर जोड़ा। लघुकथा कलश और मिन्नी त्रैमासिक पत्रिकाएँ आज भी लघुकथा को प्रोन्नत कर रही हैं। अधिकतम लेखकों ने इस विमर्श को समर्पण भाव और गम्भीरता से लिया है। विभिन्न पाठ्यक्रमों में लघुकथा विगत तीस वर्षों से अपनी उपस्थिति बनाए हुए है। इस प्रश्न के उत्तर के लिए स्वतन्त्र लेख की आवश्यकता है।

3-प्रश्न : अब जो प्रश्न मैं आपसे पूछ रहा हूँ, वह इसलिए भी आवश्यक और प्रासंगिक हो जाता है; क्योंकि आजकल कई प्रकार के लेखक हमें लघुकथा के क्षेत्र में देखने को मिल रहे हैं । जैसे- कुछ, अपने ज्ञान मात्र, अपने पांडित्य- प्रदर्शन के लिए लिखते हैं, कतिपय समूह- विशेष को खुश करने के लिए लिखते हैं या पुरस्कार- लालसा के लिए लिख रहे हैं। वहीं, कुछ ऐसे भी लघुकथाकार हैं, जो लघुकथा - लेखन को सरल विधा मान बैठे हैं, जिसके कारण उनकी रचनाओं में न कोई शिल्प होता है और न ही कोई गांभीर्य । तो ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि साहित्य सर्जन का उद्देश्य क्या है ?

काम्बोज: लेखक तो लेखक ही है। अब जिसका जो स्वभाव है, उससे कोई मुक्त नहीं हो सकता। साधु, संन्यासी, नेता, अभिनेता, लेखक, समाजसेवी कोई भी हो। लघुकथा के लिए निरन्तर गम्भीर प्रयास की आवश्यकता है। कचरा पाटने वाले हर विधा में हैं। आत्ममुग्ध लेखक भी हर क्षेत्र में हैं। निष्ठावान् ही लम्बे समय तक चल सकते हैं।

4-प्रश्न : एक तरफ तो कहा जाता है कि साहित्य पाठक की भाषा का भी परिष्कार करता है उसके शब्द भंडार में बढ़ोतरी करता है, वहीं दूसरी तरफ साहित्य में भाषा को सहज - सरल रखने की भी वकालत की जाती है । साहित्य में विशेषकर लघुकथा में क्लिष्ट शब्दों, बिम्बों, प्रतीकों की अनिवार्यता- अधिकता होने से लघुकथा से उसके पाठक - वर्ग का मोहभंग होने का खतरा तो नहीं है? मैं लघुकथा के पाठक की बुद्धि क्षमता पर प्रश्न नहीं उठा रहा हूँ । मैं बस जानना चाहता हूँ कि आप लघुकथा में भाषा के किस प्रयोग के पक्षधर हैं ?

काम्बोज: किसी विधा में सृजन हो, सबसे पहले क्या आता है? विषयवस्तु की भावानुभूति या अभिव्यक्ति? विषयवस्तु के अनुसार ही भाषा निर्धारित होती है। हिन्दी का विस्तार कई राज्यों में है। क्षेत्र विशेष के शब्द ( जो वहाँ के लिए सरल और सामान्य हैं, तथा अनपढ़ के लिए भी सुग्राह्य हैं) दूसरों की समझ में नहीं आएँगे। पाठक को समझ बढ़ानी पड़ेगी। भाषा सम्प्रेषण के लिए है। पाण्डित्य - प्रदर्शन जिसको करना हो, करे, ऐसे लोगों की रचनाएँ अल्पायु होती हैं। बिम्बों और प्रतीकों का गहन अध्ययन करने के लिए साहित्य शास्त्र का अध्ययन आवश्यक है। प्रयोग भी तभी सफल होता है, जब वह विषयवस्तु और भाषा को निखारने में सहायक हो। कमज़ोर रचना के लिए कोई प्रयोग टॉनिक का काम नहीं कर सकता ।

5-प्रश्न : आप जैसे विद्वान् मनीषी लघुकथा के लिए 'लघुता में प्रभुता’ की बात करते हैं। आजकल देखने में आ रहा है कि लघुकथा की शब्द सीमा को लेकर पूर्व की भाँति सीमांकन नहीं है, बल्कि एक लचीलापन देखने में आ रहा है। अब आकार की अपेक्षा कथ्य की संप्रेषणीयता पर अधिक बल है । कह सकते हैं कि जिस प्रकार एक नाटक में उसका रंगमंच निहित होता है, उसी प्रकार एक लघुकथा में भी उसके कथ्य, उसके शिल्प में उसकी शब्द सीमा निहित रहती है। मैं छोटी बनाम लंबी लघुकथाओं की बात कर रहा हूँ। आप इसे किस रूप में देखते हैं?

काम्बोज: क्या व्यक्ति के क़द की कोई सुनिश्चित माप है? एक व्यक्ति कितने किलोग्राम का होना चाहिए? एक खूबसूरत रोटी का आकार क्या होना चाहिए? आकार की बात करना वैसा ही है, जैसे कोई 8 नम्बर का जूता लेकर उसके अनुरूप पाँव की खोज करने के लिए निकल पड़े।

6-प्रश्न : कई बार लघुकथा पर सतही और घटना- प्रधान होने के आरोप लगते रहे हैं, इससे कैसे बचा जाए ?

काम्बोज: घटना, लघुकथा नहीं है। प्रत्येक घटना लघुकथा बन जाए, आवश्यक नहीं। पत्थर को तराशकर कुशल मूर्त्तिकार सुन्दर मूर्त्ति का सृजन करता है। वही पत्थर किसी अनाड़ी के हाथ में आएगा, तो वह उसका सिलबट्ट ही बना पाएगा। बहुत से लघुकथाकार आज भी घटना ही लिख रहे हैं, लघुकथा नहीं।

7-प्रश्न : लघुकथा में लेखकों की संख्या लगातार बढ़ रही है; परंतु उस अनुपात में समीक्षक- आलोचक दिखाई नहीं देते। आज लघुकथाकार ही समीक्षक का दायित्व भी निभा रहा है। ऐसे में, क्या किसी भी विधा के विस्तार के लिए, स्वस्थ विमर्श और कुशल विमर्शकारों का आगे न आना चिंता की बात नहीं है ?

काम्बोज: अच्छी रचनाओं का नोटिस लेने वाले लोग लघुकथा - जगत् में हैं। स्वस्थ विमर्श के लिए यदि कोई लघुकथाकार सामने आ रहा है, तो अच्छी बात है। जिसे लघुकथा और कहानी के अन्तर की जानकारी नहीं, वह किसी बड़ी अकादमी में या किसी विश्वविद्यालय की सृजन - पीठ में भी आसीन हो, तो उससे लघुकथा का भला होने वाला नहीं।


8-प्रश्न : यह भी बताइए कि लघुकथा में पौराणिक पात्रों या ऐतिहासिक पात्रों को विषय बनाते समय कौन - कौन सी सावधानियाँ बरतनी चाहिए ?

काम्बोज: पौराणिक और ऐतिहासिक पात्रों का नितान्त आवश्यकता होने पर मर्यादित और सकारात्मक रूप में ही उपयोग किया जाए। बिना ग्रन्थों को पढ़े, केवल नाम लेकर छलांग लगाना बचकाना कार्य है।

9-प्रश्न : गुटबंदी, खेमेबंदी की बातें आजकल कोई दबे स्वर में तो कोई मुखर होकर कर रहा है । क्या वास्तव में लघुकथा में खेमे तन गए हैं? निश्चित रूप से आप जैसे लघुकथा के संरक्षकों के लिए यह बहुत पीड़ाजनक है । आप इस पर क्या कहना चाहेंगे ?

काम्बोज: मैं किसी खेमेबाज़ के सम्पर्क में नहीं, अत: क्या बताऊँ? उत्कृष्ट सृजन को कोई भी कारक प्रभावित नहीं करता। रचनाकार किसी वर्ग का तात्कालिक लाभ ले सकता है। अन्तत: रचना ही रचनाकार को जीवित रखती है, गुट नहीं।

10-प्रश्न : लघुकथा आज एक विधा के तौर पर स्थापित हो चुकी है । बावजूद इसके अभी भी इसकी पहुँच, पाठकों में इसके प्रति अभिरुचि उतनी नहीं है, जितनी इस दौरान हो जानी चाहिए। पाठकों तक लघुकथा की अधिकाधिक पहुँच और उनमें इसके प्रति जुड़ाव और जिज्ञासा को बढ़ाने के लिए आप क्या सुझाव देना चाहेंगे?

काम्बोज: कहानी से भी अधिक पहुँच लघुकथा की है। निराश होने की आवश्यकता नहीं।

11-प्रश्न : मैं जानता हूँ, आप जैसे विद्वान और शुभचिंतक लघुकथा को वैश्विक स्तर पर फलता- फूलता हुआ देखना चाहते हैं, फिर भी लघुकथा के ऐसे कौन- से क्षेत्र हैं, जिन्हें देखकर आपको लगता है कि अभी इन पर और काम करने की आवश्यकता है?

काम्बोज: आज का नया लेखक बहुत जागरूक है। उसकी दृष्टि व्यापक है। वह नए विषयों का संधान भी कर रहा है और नई दृष्टि से सम्पृक्त होकर सृजन भी कर रहा है।

12-प्रश्न : एक और प्रश्न। यह शायद सभी लघुकथाकार मित्रों के जहन में घुमड़ता होगा कि आमतौर पर पत्र- पत्रिकाओं और लघुकथा आधारित प्रतियोगिताओं में एक शर्त होती है कि लघुकथा अप्रकाशित, मौलिक व अप्रसारित ही होनी चाहिए। इस आलोक में प्रश्न यह उठता है कि क्या एक बार रचना प्रकाशित हो जाने के बाद, अपनी उपयोगिता बड़े पाठक वर्ग, बड़े मंचों या अन्य पत्र- पत्रिकाओं या आलोचकों- समीक्षकों की प्रशंसा- आलोचना को प्राप्त करने का हक खो देती है? क्या उस लघुकथा का पुनः प्रयोग नहीं किया जा सकता है ? इस पर आप क्या कहेंगे ?

काम्बोज: लघुकथा - प्रतियोगिताओं में लघुकथा अप्रकाशित, मौलिक व अप्रसारित ही होनी चाहिए, यह शर्त सही है। हाँ, प्रतियोगिता के बाद कोई कहीं भी, कितनी ही बार छपे, अच्छा है। कुछ चालाक लेखक तो तीस साल पहले छपी रचना को भी अप्रकाशित बताकर पुरस्कार झटकने के लिए भेज देते हैं। रही बात प्रतियोगिता से इतर प्रकाशन की- अच्छी रचना हज़ार बार छपे, अधिकतम पाठकों तक पहुँचे।

13-प्रश्न : लघुकथा में अक्सर कालखंड को लेकर बातें चलती रहती हैं, कालखंड- दोष को लेकर विद्वानों में मतैक्य देखने में नहीं आता है। लघुकथा अध्येता को कभी इसकी शास्त्रीय व्याख्या सुनने को मिलती है, तो कभी सीधे- सीधे लघुकथा ही ख़ारिज कर दी जाती है। उसे इस दुविधा और भ्रम से निकालते हुए सरल शब्दों में बताएँ कि यह कालखंड- दोष क्या है और इससे कैसे बचा जा सकता है ?

काम्बोज: कालखंड के प्रत्यय का जिन्न बरसों पहले कुछ लोगों ने पैदा किया था, जो उसी समय मर भी गया था। उस मुर्दे को कब तक ढोएगी लघुकथा! अच्छी लघुकथा पाठक के हृदय में रहती है। किसी नासमझ के खारिज करने से किसी लघुकथा की लोकप्रियता कम नहीं होती।

14-प्रश्न : 'श्री 420’ का एक लोकप्रिय गीत है- 'प्यार हुआ, इकरार हुआ है, प्यार से फिर क्यूँ डरता है दिल।’ इसके अंतरे की एक पंक्ति 'रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’ पर संगीतकार जयकिशन ने आपत्ति की। उनका खयाल था कि दर्शक 'चार दिशाएँ’ तो समझ सकते हैं- 'दस दिशाएँ’ नहीं। लेकिन शैलेंद्र परिवर्तन के लिए तैयार नहीं हुए। उनका दृढ़ मंतव्य था कि दर्शकों की रुचि की आड़ में हमें उथलेपन को उन पर नहीं थोपना चाहिए। कलाकार का यह कर्तव्य भी है कि वह उपभोक्ता की रुचियों का परिष्कार करने का प्रयत्न करे। क्या एक लघुकथाकार के लिए भी यह बात सटीक नहीं बैठती ?

काम्बोज: 'दस दिशाएँ’ क्यों समझ में नहीं आती? एक बच्चा भी जानता है कि पतंग आकाश में ऊपर उड़ती है। खिलाड़ी भी जानता है कि पेनल्टी कॉर्नर क्या होता है? क्या ये दिशाएँ नहीं हैं? चन्द्रयान के चन्द्रमा पर उतरने के युग में दिशाओं की बातें!!

15-प्रश्न : कृपया बताएँ कि लेखक के कृतित्व पर उसके व्यवसाय का कितना असर पड़ता है, जैसे उदाहरण के तौर पर कोई शिक्षा के क्षेत्र से हैं, प्राध्यापक हैं शिक्षण में तो, शिक्षण के साथ- साथ अधिगम और अधिगम के साथ- साथ आकलन - मूल्यांकन भी साथ- साथ ही चलता रहता है । मैं आपसे ही पूछता हूँ कि इससे लेखन में कितनी सहायता मिलती है मिलती भी है या नहीं ? प्रोफेशन लेखन में कितना सहायक सिद्ध होता है ?

काम्बोज: व्यवसाय से सहायता मिलती है, लेकिन यह आवश्यक नहीं कि वह जो लिखेगा, तो उसकी लघुकथा मास्टर पीस ही होगी। शिक्षा- जगत् की जितनी उत्कृष्ट रचनाएँ सुकेश साहनी जी ने रची हैं, उतनी वे भी नहीं लिख सके, जिन्होंने चार दशक शिक्षा- जगत् में खपाए हैं। यह व्यक्ति की रुचि पर भी निर्भर है।

16-प्रश्न :  असल में प्रयोग है क्या ? लोग प्रयोग के नाम पर प्रयोग तो कर रहे हैं, पर क्या वास्तव में वे प्रयोग हैं ? कहीं ऐसा तो नहीं कि अँधेरे में ही तीर चलाया जा रहा है । अगर ऐसा है, तो निशाना तो दूर की बात नुकसान होने की संभावना अधिक है । आप इसपर क्या कहना चाहेंगे? साहित्य में सार्थक प्रयोग किस प्रकार किया जाए?

काम्बोज: रचना का कथ्य लेखक के ज़ेहन में पहले होना चाहिए। उसके अनुरूप उसे स्वरूप प्रदान करना सहज अभिव्यक्ति है। ठोंक - पीटकर, प्रयासपूर्वक, रचना की डिमाण्ड न होने पर भी, उसे किसी पूर्वचिन्तित रूप में ढालना वैसा ही है, जैसे 8 नम्बर के लिए उपयुक्त पैर में 7 नम्बर का जूता पहनाना। मार- मारकर किसी को हक़ीम नहीं बनाया जा सकता।

17-प्रश्न : कुछ साहित्यकार लघुकथा को लेखक- विहीन विधा कहते हैं, परंतु लेखक तो किसी भी विधा के प्रत्येक शब्द- भाव में उपस्थित रहता ही है, फिर ऐसा कहना विधा के प्रति नकारात्मक भाव को पोषण देना नहीं है? इस पर आपका क्या विचार है ?

काम्बोज: मेरा मानना है कि लेखक अनावश्यक रूप से कथा में उपस्थित होकर अपना ज्ञान न बाँटे। लेखक तो उस रचना के एक- एक शब्द में समाया है, आत्मा बनकर।

18- प्रश्न : आजकल सभी बहुत जल्दी में हैं। ठहराव, कुछ क्षण रुककर सोचने- देखने,स्वयं को माँजने- पकाने का अवकाश किसी के पास नहीं है । सभी शीघ्र अति शीघ्र लेखक बन साहित्याकाश पर छा जाना चाहते हैं, जल्दी प्रसिद्धि पा लेना चाहते हैं, अध्ययन - स्वाध्याय से दूरी है। ऐसे में साहित्य का या उस लेखक का कुछ भला होगा इस पर प्रश्नचिह्न है । यह प्रश्न इसलिए भी है; क्योंकि आप पठनीयता और श्रवण पर ज़ोर देते हैं । आप इस पर क्या प्रतिक्रिया देना चाहेंगे?

काम्बोज: उद्देश्य महत्त्वपूर्ण है। जिन्हें ऊपर जाने की जल्दी है, उन्हें कौन रोकेगा? अच्छी रचना धैर्य और परिश्रम दोनों की माँग करती है। किसी भी अवसर पर छोड़े जाने वाले, बहुत शोर करने वाले पटाखे सुबह होने पर कूड़े में बदल जाते हैं।

19- प्रश्न : ऐसे कौन - से तत्त्व या महत्त्वपूर्ण घटक हैं, जो किसी भी विधा को दीर्घकाल तक जिंदा बनाए रखने के लिए जरूरी होते हैं? क्या आप ऐसे किन्हीं तत्त्वों के बारे में बताना पसंद करेंगे ?

काम्बोज: किसी यश - लिप्सा और चन्दा उगाहने की तिकड़म से बचते हुए समर्पण- भाव से सृजन करना ही विधा के लिए ऑक्सीजन है। आप भी जानते हैं कि बिना अभ्यास के एकदम ऊँचे पर्वत की चोटी पर चढ़ने से दम भी घुटने लगता है।

20- प्रश्न : सिद्ध लघुकथाकारों को पढ़ना, नए लघुकथाकारों के लिए आप कितना जरूरी समझते हैं, जरूरी है भी या नहीं ? क्योंकि कुछ विद्वान् कहते हैं कि यदि आप पुराने लेखकों को पढ़ते हैं, तो आप उनकी लेखन शैली से प्रभावित हो सकते हैं और आपके लेखन में उनकी शैली का प्रतिबिंब उभर सकता है, जो आपकी मौलिकता को प्रभावित कर सकती है । इस पर आपका दृष्टिकोण क्या हैं ?

काम्बोज: सभी लघुकथाकारों को हर नए- पुराने अच्छे लघुकथाकारों को पढ़ना चाहिए। लेखक के पास जब स्वयं की कोई दृष्टि और शैली नहीं होगी, तो वह पिछलग्गू बनकर कहाँ पहुँच पाएगा?

21- प्रश्न : समय के साथ - साथ व्यक्ति को, वस्तु को, विचार को और सोच को कुछ अपडेट तो कुछ अपग्रेड करना पड़ता है, क्योंकि, यदि वह अपडेट अथवा अपग्रेड नहीं करेगा, तो समय की चाल से कदमताल नहीं कर पाएगा। क्या लघुकथा को अपडेट या अपग्रेड करने की आवश्यकता है, यदि है, तो किस तरह ?

काम्बोज: बात लघुकथा की ही नहीं, सभी विधाओं की है। विधा निरन्तर उन्नत तभी हो सकती है, जब वह समाज और समय के अनुकूल अग्रसर हो, परिमार्जन करती रहे।

22- प्रश्न: जिस प्रकार हिंदी की पहली कहानी होने की दावेदार कई कहानियाँ रहीं जैसे- सैयद इंशाल्लाह खाँ की 'रानी केतकी की कहानी’ राजा शिवप्रसाद सितारेहिंद की 'राजा भोज का सपना’ किशोरीलाल गोस्वामी की 'इंदुमती’ माधवराव सप्रे की 'एक टोकरी भर मिट्टी’ आचार्य रामचंद्र शुक्ल की 'ग्यारह वर्ष का समय’ तथा बंग महिला की 'दुलाईवाली'। क्या लघुकथा में भी यही स्थिति है, यदि नहीं तो हिंदी की पहली लघुकथा का श्रेय आप किसे देते हैं और यह कब और कहाँ प्रकाशित हुई ? कृपया प्रकाश डालें ।

काम्बोज: आज के समय में इसका कोई महत्त्व नहीं। यह पिष्टपेषण के अतिरिक्त और कुछ नहीं।

23अंतिम प्रश्न: यदि आपसे यह पूछा जाए कि आने वाले दस सालों में लघुकथा को आप कहाँ देखते हैं, तो आपका उत्तर क्या होगा ?

काम्बोज: लघुकथा पिछले डेढ़ दशक में अपना अस्तित्व सुदृढ़ बना चुकी है। आने वाले दस साल इसे और अधिक ऊँचाई प्रदान करेंगे।