घड़ी घंट वाला / सुरेन्द्र प्रसाद यादव
पछियारी टोला में एगो नवोदित बाबा रोॅ प्रार्दुभाव होलोॅ छै। आबे वें गेरूआ कपड़ा सें आपनोॅ शरीरोॅ केॅ ढकनें रखै छै, आरोॅ बड़ोॅ-बड़ोॅ दाढ़ी झोटों बढैनें छै। पैरोॅ में खड़ाउ लगाय केॅ चलै छै। चेहरा देखें में साधारण हँसमुख मुखड़ा वाला छै। आबेॅ हौ रास्ता बाटोॅ में केकरोॅ सें कुछ नै बोलै छै, आपनोॅ मस्ती में चलै छै।
सबेरे, दुपहरी, सात बजे शाम आरोॅ एक बजे रातोॅ में घड़ी घंटो पर हथोड़ा फेरै छै। पूरे गामोॅ में आवाज गूंजेॅ लागै छै, बांया हाथोॅ में घड़ी घंट आरोॅ दायां हाथेॅ में हथौड़ा संभालने रहै छै, आरोॅ समय-समय पर आवाजे बिखेरते रहि छै।
हिनकोॅ बगलो में गावोॅ रोॅ जेठ रैयत रोॅ मकान पावै छै। समय-कुसमय में आवाज होते रहि छैं है सब्भै केॅ बहुत खलेॅ लागै छै, ऐकरोॅ परिवार रोॅ औरत सब्भै कहै आवाज बड़ा खराब बुझाय छै, मतरकि बाबा केॅ धुन सबार होय गेलोॅ गामोॅ रोॅ सब्भै लागे चुप्पी साधी लेनें छै, कोय कुछनै बोलै छै, सब्भै केॅ अच्छे लागै छै, हम्में कड़ाई से कहिवै तेॅ गॉवोॅ रोॅ लोगें ओकरे पाट लेतै हम्में गामोॅ आरा बाबा रोॅ नजरोॅ में बातरो होय जैबोॅ ये लेली मसमारी केॅ रहै छी, झगड़ा आरोॅ झंझटों से परहेज करला में महफूज छी। घरोॅ रोॅ मुखिया नें औरत सब्भै केॅ समझाय केॅ चुप-चाप रहिलेॅ कहि छै।
दो वरस पहिनै बाबा नेॅ पत्नी केॅ मारी पीटी केॅ भगाय देनें छै, ऐकरा एकभी बाल-गोपाल नै होलोॅ छेलै। पत्नी हिनको बड़ी सुघड़ छेलै, भगैला रो ॅ बाद फेरू घुरी केॅ कहियोॅ नै ऐलै। पत्नी करोॅ क्रिया-कलापोॅ सें तंग आबी गेलोॅ छेलै। अंगिका में कहावत छै "कानै रोॅ मोॅन छौ तेॅ आँखोॅ में गड़लोॅ खुट्टी." वहे बात मदनी केॅ होय गेलोॅ छेलै। हेकरा कन स भागले में हमरा कल्याण छौ।
बाबा चावल आटा, दाल मील केरो बनलोॅ ग्रहण नै करै छै, बड़ी नेक नीति सें खाय पियै पर ध्यान दै छै। माय बूढ़ी होय गेलोॅ छै, मतरकि घर रोॅ निपाई-पोताई, झाडू, बुहाड़न सें उखड़ी समाठों रोॅ चावल, जांता सें गेहूँ पीसै आरो चना, अरहर रोॅ दाल निकालै छेलै। वहे चावल, आटा आरो दाल रो भात, रोटी, दाल बनवाय कै खाय छेलै। बाबा बड़ी परहेजी सें जीवन विताय रहिलोॅ छेलै, भूखनी माय छेलै, हौत कोल्हू रोॅ बैल बनी केॅ रहि गेलोॅ छेलै, दिनों भर कामों में भिड़लोॅ रहि छेलै। मदन बाबा ने है गामोॅ रोॅ नाम उजागर करि रहिलोॅ छेलै, आबेॅ तेॅ पूरे शरीरो में लकड़ी या गोयठा रोॅ राख लगाय केॅ रहि छै। आपनोॅ एक बैठकी अलग बनवैले छेलै, ओकरै में गंजा पीयै वाला रोॅ जमघट लागी जाय छेलै।
उद्योग नगरी में कामकारोॅ के ड्यूटी पर जावै वाला आरोॅ ड्यूटी पर सें छुटै वाला, दोनों तरह रोॅ कामकारोॅ केॅ अगाह करै लेली सें भवो सें आवाज दै छैतेॅ, पूरे शहर आवाजोॅ सें गूंजेॅ लागै छै। वही तरह सें मदन वावा दिन-रातोॅ में कई बार हथौड़ा सेॅघड़ी घंट पर चोट मारै छै, है आवाजोॅ सें सब्भे लोग अकच होय जाय छेलै मतरकि आबेॅ है आवाजोॅ सें अभ्यस्त होय गेलै। पहले रात्रि में लोगोॅ रोॅ नींद हराम होय जाय छेलै। जबेॅ घड़ी-घंट बजाय छेलै तेॅ गांव के देव स्थान के नाम लै छै। ठाकुर बाबा, शीतला स्थान, काली स्थान, विशु राउत, तेवारी बाबा, वन वहियार के देवता रं नाम गिनै छेलै।
बगलोॅ रोॅ गामोॅ में ठाकुर रोॅ भगती देखै लेॅ जाय छेलै, भक्तोॅ रोॅ गतिविधि देखी केॅ, आवे मदन नें भक्ति लगाय रो सुरसार करै लै सोचेॅ लागलै। "आपने मनमिया मिट्ठू बनै लागलै" आरो माय सें मदन कहि छै आबे हम्मू घर पर गद्दी लगैवोॅ, बाबे हमरोॅ भगती आबे लागतोॅ आरो लोगोॅ रोॅ कष्ठि रो दुख तकलीफ बीमारी डायन रोॅ करलोॅ सब्भै रोॅ ठीक करि देवै। है पर मखनी कहि छै, तोरोॅ पर देवता आवै छौ या ना नाभै छौ, जे तोय भक्ति करवै। माय केॅ बातो पर मदन बाबा आग बबूला होय गेलै आरो कहिलकै तोहें भगत नै कहिवै तेॅ दूसरे आदमी केना केॅ कहतै। माँ केॅ मदन नें है बातोॅ पर डांट दियेॅ लागलै। माय डरोॅ सें कुछ नै बोललै।
मदन जी रोॅ भक्ति कुछ दिनों तक चललै। रविवार केॅ गद्दी लगावेॅ लागलै शाम केॅ कष्टि सब अरदसिया बनी केॅ आवे लागलै, भक्ति लगावे लागलै भूखनी घर बहार गादी वाला कमरा। झाडू बुहाड़न सें लै केॅ निपाई पोताई, गोरंटी माटी रोॅ घोलै बनाय केॅ पुराने कपड़ा रोॅ नेडुआ या पोतनो बनाय के दिवाली नीचे पोतै छेलै। भूखले हौ दिन भर काम करै छेलै। भक्ति रोॅ धार बड़ी तेजी से चललै, कुछ आदमी को फैयदा होवै, कुछ के नै होवै। धूपौड़ी आग धिधकाय छेलै, आरो बेतों से मारेॅ छेलै। बड़ी तेजी से गाद्दी लाग लै, मतरकि उतनें तेजी सें खतम भी होवे लागलै। भूखनी मने मन सोचै छै कि कष्टि धीरे-धीरे कमी जाय, होकरो वादों में समाप्त होय जाय, तेॅ हमरा काफी राहत मिले, दिनभर खटतेॅ-खटतेॅ तबाह हो जाय छी। गादी खत्म होय गेलै, आवे हमरा अरामे-अराम होय जैतोॅ। आवे भूखनी भीतर सें बहुत खुश होय छै।
आवे भक्ति सें छुटकारा मिललै, आवेॅ कष्टि सब्भै रोॅ कष्ट ठीक नै होय छै, है लेली से भक्ति खत्म होय गलै। तेजी सें चढ़लै, ओतनै तेजी से गिरी गेलै। छठ पर्वों में मदन सुबह-शाम घाटों पर घड़ी-घंट बजैने दुलकी मारी-मारी चलै छेलै, ओकरो पीछू-पीछू बच्चा-बड़का रोॅ भीड़ उमड़ी चलै छेलै, दोनों समय घाटोॅ पर जाय छेलै। घाटोॅ पर परवैतीन सेॅ दर्शक रोॅ कुछ क्षणों तक ध्यान आपनोॅ तरफ तक खींची लै छेलै। हिनका चारा तरफ घेरने रहि छेलै, घड़ी घंट दूसरै बजावै छेलै, आरो मदन आपने ताल पर थिरकतें रहि छेलै।
तिलासंक्रांति में पापहरणी स्नान करैनेॅ जाय छेलै। चौदह जनवरी केॅ सुवह वेला में घड़ी घंट बजैने, पापहरणी स्नान करैल जाय छेलै, पक्की सड़कोॅ पर दुलकी मारी-मारी चलै छेलै। ओकरो पीछू-पीछू झुण्डोॅ रोॅ झुण्ड चले लागै छेलै, पापहरणी पहुँचै छेलै पोखरी रोॅ चारो तरफ पहिलेॅ चक्कर लगाय छेलै, तबेॅ स्नान-ध्यान करै छेलै, ऐकरा चूड़ा-मूढ़ी लाय खाय वास्ते बहुत आदमी दिये लागै छेलै, ऐकरा साथोॅ में पांच सात आदमी रहै छेलै वहू सब्भै केॅ खाय ले मिली जाय छेलै।
पापहरणी सें बौसी मेला रोॅ तरफ झुण्डों में आवाज देनें, आधू बढ़लोॅ जाय छेलै, दो तीन किलोमीटर रोॅ दूरी तय करै छेलै। तबेॅ बौंसी मेला रोॅ चक्कर लगावै छेलै, बाबा मेला रोॅ छटा देखै छेलै आरोॅ आपनोॅ छटा मेला में देखाय छेलै। मीणा बाज़ार रोॅ अवलोकन करै छेलै, तबे तीन चार बजे मेला सें चली दै छेलै। राज पथ पकड़ै पैदल घड़ी घंट बजैते हुए चलै छेलै बहुत लोग ओकरा पीछू लागी जाय छेलै।
कभी-कभार गांव रोॅ मुख्य सड़कोॅ सें गुजरै पैर थिरकते, मुँह बिचकैते आरोॅ घंटी र आवाज देते चलै छेलै। गांव रोॅ नयी-नवेली पतोहू झड़ोखे या दरवाजे दलान पर चढ़ी केॅ अवलोकन करै छेलै, चाल ढ़ाल देखी क अपना में ननद सॉस पतोहू सब्भै हँसी ठिठोली खूब करै छेलै। मनो रोॅ भड़ास निकालै छेलै।
एन केन प्रकारोॅ सें मदन बाबा नें गामोॅ रोॅ नाम उजागर करी देलकै, कर कुटमैती में लोगे सब हिनको बातोॅ केॅ खंगालै छै, गामोॅ वाला सें हँसी-मजाक करि केॅ मजा लै छै। मदन बाबा जब तक रहतै, गामोॅ केॅ सुहावन बनैनें रखतोन, मनोरंजन रोॅ नुसरवा बनी गेलोॅ छै। कर कुटुम्ब आवै छै तेॅ दिन रातोॅ में पांच छो वार घड़ी घंटो रोॅ आवाज होय छै, धन्य छौं मदन बाबा "घड़ी घंट वाला"।