घरबीती-परबीती / सत्यनारायण सोनी

Gadya Kosh से
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आओ थोड़ी ताळ बतळावां। कीं घरबीती, कीं परबीती। कीं थे बोलो, कीं म्हे। पण थे तो मून धार्यां बैठ्या हो। बोलणो तो म्हानै ई पड़सी। थारा कान जागता रैÓसी, जित्तै म्हारा होठ हालता रैÓसी। तो सुणो, आगलै अदीतवार म्हारै भायलां अेक कहाणी-गोष्ठी राखी है अर म्हनै कहाणी-पढण सारू नूंत्यो है। पैलड़ी सगळी कहाणियां तो लारली गोष्ठियां में सुणा चुक्यो हूं। लारलै अेक बरस सूं कोई नवी को लिख सक्यो नीं। अेकर तो सोच्यो, हाथ पाधरा करद्यूं। यार, म्हैं तो कोनी कहाणीकार। पण पछै सोच्यो, आ कैयां तो हेठी हुसी, अेक किताब न्यारी छप्योड़ी है। नटां तो कोनी। चलो पितावां। घणा ई तरळा तोड़ंू- कोई थीम चेतै आवै, कोई पात्र पकड़ में आवै। सोचा-समझी में स्कूल रो वगत हुय ज्यावै। अबार छोडां ईं सोचा-समझी नै। कठै ई मोड़ो हुयग्यो तो प्रिंसीपल-सा आपरो थोबड़ो सुजांवता ई बार को लगावै नीं। मन ई मन किरड़ीजबो करै अर कैरा-कैरा देखबो करै जका न्यारा। अचाणचक हियै च्यानणो-सो होयो, ओ पात्र तो जबरो हाथ लाग्यो। ईं पर तो उपन्यास लिख्यो जा सकै। ...पण मन पर मति हावी हुयी, नां रे भाया, समंदर में रैयÓर तांतडै सूं बैर को घालणो नीं। हां जी-हां जी कैवणो अर सदा सुखी रैवणो। अर अै ल्यो, अै कुण बोल्या? सुणो... पाणी ठंडो हुग्यो, बालटी भरी पड़ी है न्हाणघर में, घंटा हुगी। मोड़ो होवण लागर्यो है, फेर भाजोभाज में टुकड़ा ई ढंगसर को जीमस्यो नीं।ÓÓ जोड़ायत रा बोल फूट्या है। साची कैवै बापड़ी। रोज-रोज इयां ई सोचतां-सोचतां मोड़ो कर बैठूं अर पछै भाजोभाज। न्हाऊं, गाभा पैरूं अर पछै चूल्है कनै आ बैठूं। गरमागरम फुलका सिकै चूल्है पर, पण म्हारै भीतर तो कहाणी रा पात्र बड़ै-निकळै। कोई पात्र इत्तो लांठो कै म्हपरोट नीं सकूं अर कोई इत्तो हळको कै म्हानै दाय नीं आवै। कोई पात्र म्हारी कहाणी रै सांचै नीं ढळै अर म्हारो काळजो फड़कै चढ ज्यावै, आ कहाणी तो म्हारै सारू भारथ हुगी। फजीती हुसी। थे दखी, आठ-पौर चोइस घड़ी ठा नीं क्यां में गम्या रैवो। कीं साथै बोलो नीं, चालो नीं। टाबरां रो ख्याल करो नीं। थानै कीं पूछां तो ऊथळो द्यो नीं। कोई हां नीं, हम्बै नीं। म्हे तो इयां ई जूण खराब करी, साची!ÓÓ जोड़ायत थाळी में सब्जी-रोटी साथै आपरी पीड़ ई परोस दीनी। और के पड़ोसियां सागै बोलूं? थूं तो इयां ई दोÓरी होयबो करै।ÓÓ म्हैं सफाई द्यूं। पण साच नै खुद रै हियै सूं तो नीं लकोय सकूं। बापड़ी आखै दिन खोरस्यो करै, पछै म्हां सूं बतळावण नै मन करै तो म्हारै तो कोई दूजी ई रील चालबो करै। बीं री कैयोड़ी अेक ई बात म्हारै चेतै को रैवै नीं। रोटी जीमतो-जीमतो ई म्हैं तो घर, स्कूल अर बास-गळी रा लोगां में सूं कोई सांतरै-सै पात्र री सोय करण लागूं। बारीबंटे अेक-अेक उणियारा म्हारी निजरां आवै, पण हियै नीं ढूकै। थोड़ो साग और घालद्यूं के?ÓÓ जोड़ायत देगची सूं साग री कुड़छी भर म्हारी थाळी पर करती पूछ्यो, पण म्हैं तो पात्रां री खोज-जातरा पर हो। सुण्यो न को दीख्यो। थानै पूछूं कै भींत नै?ÓÓ हूं?ÓÓ हूं क्यांगी, साग घालूं के?ÓÓ नां-नां, बस रैवण दे, मोड़ो हुवै।ÓÓ सगळै दिन के ठा कठै रैवो हो! टुकड़ा तो ढंगसिर जीम लिया करो।ÓÓ उणरै उणियारै नाराजगी रा अैनाण साफ दीसै हा। म्हैं उतर ज्यावूं उणरै उणियारै री नाराजगी अर फीकाई में। पलभर सारू ई सही, जीवूं उणरो जीवण। कांईं सुख देख्यो बापड़ी म्हारी गैल आयÓर! साची कोसै राजमती 'बीसलदेवरासÓ में विधाता नै... स्त्रीय जनम काइ दीधउ महेस!ÓÓ अेकर-सी म्हनै लागै जाणै म्हारै कहाणी रो जबरो-सो पात्र हाथ आयग्यो। सोचूं, इणरै मारफत म्हैं नारी जीवण री विडम्बना नै सांतरै ढंग सूं प्रगट कर सकूं। पण खुद नै खलनायक कियां थरपूं? ओ सवाल म्हारै आगै नाचण लागै। कुदरत इंसान नै दिल रै साथै दिमाग भी सूंप्यो है। सो स्याणप बापर ज्यावै। 'टन-टन, टन-टन, टन-टन!Ó स्कूल रै गैट में बड़तै नै दूसरी घंटी रा टंकारा सुणीज्या। म्हैं विचारां रै वियाण सूं उतर्यो। पढेसरी प्रार्थना सारू लैण में लागण लागर्या है। बाबूलाल चपड़ासी ले-धे घंटी बजायां जावै, 'टन-टन, टन-टन, टन-टन!Ó म्हैं दफ्तर में जायÓर रजिस्टर में हाजरी मांडूं। बारै आऊं। पण बाबूलाल तो बियां ई घंटी बजावै। म्हैं जाणग्यो, भाइड़ो विचारां में डूबग्यो अर थमणो ई भूलग्यो। मूंडै में किरचो पंपोळता अेक गुरुजी पैली बाबूलाल कानी अर पछै म्हारै कानी देखÓर मुळक्या। स्यात बै ई बाबूलाल री मनगत पिछाणग्या हा। घंटी तो बियां ई बाज्यां जावै, 'टन-टन, टन-टन, टन-टन!Ó म्हनै मजाक सूझी अर बीं रै कान कनै जाÓर जोर सूं बोल्यो, बाबूलाल!ÓÓ बो चिमक्यो, मुळक्यो अर अेक जोरगो-सो डंको मारÓर घंटी नीचै छोड़ दी। बाबूलाल नै देखतां ई म्हनै म्हारै स्टाफ रा लोगां रै भुलक्कड़ सुभाव री घणी ई बातां चेतै आवण लागगी। अै जिका सामणै खड़्या टाबरां नै सावधान-विश्राम करावै है। अै है नेतरामजी। पीटीआईजी छुट्टी चालै अर आजकाल प्रार्थना रो भार आं पर ई है। घणकरी बारी विश्राम करा देवै तो पछै सावधान करावणो भूल ज्यावै अर सावधान करा देवै तो विश्राम। प्रार्थना री वगत राष्ट्रगीत अर राष्ट्रगीत री जिग्यां प्रार्थना रो अैलान तो आम बात है। परसूं म्हे दोवा दो ई बैठ्या हा बारै लॉन में। आधी छुट्टी रो वगत हो। म्हारै सागै सांगोपांग जचै, सो चाय पींवता-पींवता ई गळगळा-सा हुयÓर बोल्या, के बताऊं यार, कीं चेतै रैवै ई कोनी, न्हाण खातर पाणी री बालटी लेयनै न्हाणघर में जावणो हो, पण साÓरली साळ में पूगग्यो। घर रा हाँस्या अर मजाक बणगी म्हारी तो।ÓÓ अै जिका भूगोल रा प्राध्यापक है, चमनलालजी। 'फिलोसफीÓ भी पढेड़ा है। बारवीं रा क्लास-टीचर है। आठवैं घंटै में भी हाजरी बोलै। छुट्टी होयां पछै जद घरां जावै तो घणी ई बारी हाजरी-रजिस्टर भी कांख में दबÓर घरां चल्यो जावै। कदे-कदास जद मोड़ो हुंवतो हुवै तो स्कूटर लेयÓर आवै। सात-आठ दिन पैली री ई तो बात है। छुट्टी हुयां पछै म्हैं अर प्रिसीपलजी सगळां सूं पछै चाल्या तो देखां कै चमनलाल जी स्कूटर तो अठै ई भूलग्या। टाबर प्रार्थना बोलै, चाहे कांटो पर मुझे चलना हो, अग्नि में मुझे जलना हो, चाहे छोड़ के देश निकलना हो, रहे ध्यान तुम्हारे चरणों में।ÓÓ पण म्हारो ध्यान! म्हारो के, ध्यान तो टाबरां रो ई कांईं ठा कठै-कठै हो। पण अै जिका बाबूलाल रा सहकर्मी है नीं, आं री तो अेक बात बताऊं आपनै। सुणो- छुट्टी साढे च्यार हुवै, पण बैरी सवा च्यार ई घंटी बारकर दे गेड़ै पर गेड़ो। कढावणी रै बाÓरकर बिल्ली फिरै ज्यूं। पन्दरा मिनट में बीस बरियां तो घड़ी देखै। अेक-अेक री न्यारी-न्यारी खूबी है। कांईं-कांईं बताऊं! जाणद्यो। कई तो इस्या है, जिकर कर्यो नीं अर लत्ता लिया नीं। कहाणी तो कांईं ठा मंडसी का नां मंडसी, पण पाणां तो पैलां ई मंड जीसी। टाबर जै भारत माता री बोलै, पण म्हनै लागै जाणै जीतग्यो म्हैं। चेÓरै चेळको वापरग्यो। म्हैं तो अेक पात्र ढूढै हो, अठै तो अलेखूं रुळै है। म्हारै साम्हीं कहाणियां ई कहाणियां है। बस मांडणी है। प्रार्थना पूरी हुगी। टाबर क्लासां में जावै हा। म्हैं ई हाजरी-रजिस्टर उठाÓर क्लास कानी चालूं। प्रिंसीपलजी हेलो मारै। पाछो मुड़ंू। बां रै हाथ में स्टाफ रो हाजरी रजिस्टर हो। बोल्या, गुरु, कीं तो ध्यान राख्या करो।ÓÓ कांई हुग्यो जी?ÓÓ हुग्यो कांईं, ओ देखो थे, आज फेर थे पीटीआईजी आळै खानै में साइन मारग्या!ÓÓ

(2002)