घरवापसी / महेश कुमार केशरी

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ईद आने में कुछ ही दिन बाक़ी थें l लगभाग सालभर पहले फरहाना , उस्मान , अकीदा और अकील अपने दादा - दादी से अलग होकर शहर में रहने का फ़ैसला करके चले आये थेंl शहर में जब वे आये तो गाँव भूलने लगेl और , भूलने लगे थें , अपने माँ-बाप बख्तियार मिंयाँ और जुबैदा बानो कोl

लेकिन , शहर आने के बादl उस्मान को एक बात बार -बार कचोटती l और वह बात थीl अकील कीl अकील बात - बात पर या खेल - खेल में अपने अम्मी - और अब्बू से कहताl मैं भी जब बड़ा हो जाऊँगाl तो मैं भी आप लोगों को छोड़कर बहुत दूर चला जाऊँगाl जैसे आप दादा-दादी को छोड़कर चले आये हैंl

हालाँकि , ये बात वह खेल- खेल में ही कहताl लेकिन , ये बात ज़हर भरे तीर की तरह उस्मान के सीने में चुभतीl

अकील ,अक्सर ये बातें खेल- खेल में कहताl कभी- कभी वह ये भी कहता कि वह उसके पड़ौस में ही रहने वाली नूरी के साथ शादी करेगाl और , उसके साथ हमेशा- हमेशा के लिये विदेश चला जायेगाl नूरी मेरी दुल्हन हैl मैं उससे ही शादी करूँगाl

अकील की उम्र अभी दस - बारह साल थीl उसकी बातों को वैसे तो गंभीरता से लेने की कोई ज़रूरत नहीं थीl लेकिन , ये बात उस्मान और फरहाना के दिल में फाँस की तरह धँस जातीl

अकील कहीं बाहर से खेलकर अभी आ रहा थाl उसने बैट और बाॅल किनारे अलमारी में रखाl और आते ही उसने एक अजीब-सा सवाल कर दियाl उस समय उस्मान अपने पैंट को उतारकर लुँगी पहनकर कुर्सी पर बैठे ही थे कि अकील बोला - "अब्बा, मुझे , दादाजी और दादी की बहुत याद आती हैl हम लोग उनसे मिलने क्यों नहीं जाते ? मैं , जब बड़ा हो जाऊँगा तो उनसे मिलने जाऊँगाl और , मुझे कहीं कोई नौकरी मिल गई l तो उन्हें मैं अपने साथ लेकर रहूँगाl मुझे , उनकी बहुत याद आती हैl आपको नहीं आती ? हम दादा -दादी से मिलने कब जायेंगें ? साल भर तो होने वाला है , हमें दादा - दादी से अलग होकर रहते हुएl दादी के हाथ की बिरयानी और खुरमे की बहुत याद आ रही है , अब्बूl आप दादी के साथ चलकर क्यों नहीं रहते ?"

उस्मान ने सालन पका रही फरहाना की तरफ़ नज़र फिराकर देखा l फरहाना उनकी बातें सुनकर उनकी ओर ही देख रही थीl

तभी ,होमवर्क कर रही अकीदा भी उस्मान से बोली - "हाँ , अब्बू चलो ना दादा - दादी से मिलने बहुत दिन हो गयेl मुझे भी उनकी बहुत याद आती हैl"

"हाँ , बेटा चलेंगेंl" उस्मान बोलाl

"अकील जब तुम बड़े हो जाओगे तो और , किसको- किसको साथ लेकर रहोगे ?" फरहाना ने ऐसे ही पूछ लियाl

अकील मासूमियत के साथ बोला - ", बस , अपने दादा- दादी को साथ लेकर रहूँगाl और किसी को नहींl"

"हमें अपने और नूरी के साथ लेकर नहीं रहोगे ?" फरहाना ने पूछाl

"नहीं , मैं केवल अपने दादा - दादी और नूरी के साथ रहूँगाl आपके साथ नहीं रहूँगाl आपको तो पता हैl दादी के पैरों में कितना दर्द रहता हैl वह ठीक से चल भी नहीं पातींl लेकिन , बिरयानी और खुरमें बहुत बढ़िया बनाती हैंl उनके साथ ही रहूँगाl मैं उनकी ख़ूब सेवा करूँगाl उनके पैर दबाऊँगाl तेल से उनके घुटने मालिश करूँगाl बाज़ार से दौड़कर सौदा- सुलफ ले आऊँगाl उनको कोई तकलीफ नहीं होने दूँगा , मैंl"

"बिरयानी और खुरमे तो मैं भी बनाती हूँl क्या मेरी बिरयानी और खुरमें तुम्हें पसंद नहीं हैंl और जब तुम इतना काम करोगे तो थक नहीं जाओगे ?"

"बिरयानी और खुरमे तो तुम भी बनाती होl लेकिन , दादी वाले खुरमे की बात ही निराली हैl वैसे खुरमें तो पूरी दुनिया में कोई नहीं बना सकताl जैसी मेरी दादी बनातीं हैंl और काम का क्या है ? जब मैं थक जाऊँगा तो फिर से आराम कर लूँगाl और , फिर से दादा - दादी के कामों में जुट जाऊँगाl"

"मुझे और अपने अब्बू को कहाँ रखोगे ?"

"तुम दोनों को मैं छोड़कर चला जाऊँगाl जैसे तुमने दादा - दादी को छोड़ दियाl"

"ये , इस ढँग की बातें तुम्हें कौन सिखाता है कि तुम अपने माँ-बाप के साथ ना रहकर अपने दादा - दादी के साथ रहोl क्या , बख्तियार और जुबैदा तुमसे मिलने स्कूल में आते हैंl या उनसे तुम्हारी फ़ोन पर बातें होती हैंl बताओ मुझेl"

"अम्मी बड़ों को उनके नाम से नहीं बुलातेl आपको पता होना चाहिए l ना तो दादा-दादी मुझसे मिलने स्कूल में आते हैंl ना ही मुझसे फ़ोन पर उनकी बातें होती हैl दर असल दादा - दादी और माँ- बाप के क़दमों में तो जन्नत होती हैl और माँ के पैरों में तो स्वर्ग होता हैl"

"अरे , वाह ! तुम तो दो तरह की बातें एक साथ कह रहे होl एक तरफ़ तो तुम कहते हो कि माँ- बाप के पैरों में जन्नत होती हैl वहीं दूसरी तरफ़ तुम ये कहते हो कि तुम अपने माँ- बाप के साथ रहना भी नहीं चाहतेl आख़िर , तुम चाहते क्या हो ? तुम्हारी बातें मेरी समझ में नहीं आती हैंl"

"जिस समय दादा- दादी को आप लोगों की सबसे ज़्यादा ज़रूरत हैl उस समय आप लोग यहाँ अलग रह रहें हैंl सोचिये उन बुजुर्गो को इस नाज़ुक समय में यानी की उनके बूढ़ापे में हमलोगों को कितनी ज़रूरत होगी l और हमलोग उनसे कोसों दूर शहर में रह रहें हैंl सोचिये , उन लोगों के दिलों पर क्या बीतती होगीl"

"मैं , ख़ुद उनसे अलग होकर यहाँ नहीं आई हूँ , बल्कि तेरे अब्बू मुझे यहाँ , लेकर आयें हैं l"

"नहीं , ये बिल्कुल झूठ हैl आप लड़- झगड़कर कर दादा- दादी से अलग रहने की ज़िद करके यहाँ आईं थींl"

रात के दो बज रहें थेंl पूरे घर में जैसे सोता-सा पड़ गया थाl लेकिन , उस्मान और फरहाना की आँखों से नींद कोसों दूर चली गई थीl पहलू बदलते हुए उस्मान ने फरहाना से कहा -"एक बात कहूँ ?"

"हूँ...l"

"मुझे तो बहुत डर लग रहा हैl"

"किस बात से ...?"

"उसी बात से जो बात आज अकील शाम को कह रहा थाl" उस्मान बोलाl

"अरे ! अकील अभी बच्चा हैl ऐसे ही कह रहा हैl ऐसा करेगा थोड़ी हीl"

"नहीं , वह जो देख रहा हैl वही तो सीख भी रहा हैl कल को अगर वह सचमुच में हमें छोड़कर चला गया तोl मैं , तो उसके बिना रह ही नहीं पाऊँगाl अकील तो मेरी जान है जानl"

"भला मैं कैसे रह पाऊँगी ? उसके बिनाl"

"तो सोचो , हमारे अम्मी - अब्बू हमारे बिना कैसे रहते होंगे ? आख़िर , हम भी तो उनकी जान ही हैंl"

"क्या , सचमुच ऐसा होगाl"

"हो भी सकता हैl नहीं भी हो सकताl"

"मैं , उसे कहीं जाने नहीं दूँगीl"

"कैसे नहीं जाने दोगी ? मेरे ,अम्मी - अब्बू भी तुम्हारे साथ मुझे यहाँ आने से कहाँ रोक पाये थें ?"

"फिर , कल को हम अकीदा को भी ब्याह देंगेंl फिर , हमारा ये घर भी तो सूना हो जायेगाl बच्चों के बिना घर तो भूतों का डेरा बन जाता हैl"

"बूढ़ों के बिना भी तो घर सूना - सूना लगता हैl"

"हूँ , फिर ...?"

"फिर , क्या हमें वापस अपने घर चलना चाहिए ?...अम्मी - अब्बू के पास ?"

"और , कोई रास्ता भी नहीं हैl"

अगले दिन ईद थीl सुबह फरहाना ने सामान पैक कियाl और बच्चों को जगायाl

भारी भरकम लगेज देखकर अकीदा ने पूछा - "अम्मी हम कहाँ जा रहें हैं ...?"

जब उस्मान और फरहाना ने कोई जबाब नहीं दिया तो अकील व्यग्र होकर बोला -"सचमुच में हम कहीं जा रहें हैं , क्या ...?"

फरहाना ने "हाँ" में सिर हिलायाl

"लेकिन , कहाँ ...?"

"वहीं , जहाँ तुम चाहते थेl"

"कहाँ दादा - दादी से मिलनेl"

"हाँ ...हमेशा के लियेl"

"नहीं...बिरयानी और खुरमे खानेl" उस्मान हँसते हुए बोलेl

अकीदा और अकील दोनों फरहाना से एक साथ लिपटकर बोले - "लव , यू माॅम , ...! आज एक साल बाद हम अपने दादा- दादी से मिलने जा रहें हैंl थैंक्यू माॅम ...!"