घर की पूजा का सार्वजनिक महत्व / जयप्रकाश चौकसे

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घर की पूजा का सार्वजनिक महत्व
प्रकाशन तिथि : 23 अक्तूबर 2012


जयंतीभाई गढ़ा की विद्या बालन अभिनीत फिल्म 'कहानी' में कोलकाता की आंकी-बांकी गलियों में शूटिंग की गई थी, जिसमें दुर्गा पूजा के अंतिम दिन नायिका अपने पति के कातिल की हत्या करती है। गोयाकि मां दुर्गा की तरह एक असुर का नाश करती है। पूरी फिल्म में कोलकाता एक जीवंत पात्र की तरह प्रस्तुत है जिस तरह हॉलीवुड की 'सिटी ऑफ जॉय' में किया गया था। वुडी एलेन की फिल्मों में न्यूयॉर्क एक जीवंत पात्र की तरह प्रस्तुत होता है। उत्पल दत्त के नाटक 'आजकेर शाहजहां' से प्रेरित फिल्म 'द लास्ट लिअर' अंग्रेजी भाषा में एक बंगाली फिल्मकार ने बनाई थी और अमिताभ बच्चन उसमें नायक थे। आश्चर्य यह है कि कथा हेनरी डेंकर के उपन्यास 'द डायरेक्टर' से कुछ हद तक मिलती है, परंतु १९६४ में प्रकाशित यह किताब संभवत: उत्पल दत्त और फिल्मकार ने नहीं पढ़ी हो। बहरहाल, इस फिल्म में भी कोलकाता तथा दुर्गा पूजा का प्रस्तुतीकरण बढिय़ा हुआ है।

पूरे देश में उत्साह से मां दुर्गा की पूजा हो रही है। बांग्लादेश को स्वतंत्र कराने के बाद संसद भवन में अटलबिहारी वाजपेयी ने इंदिरा गांधी को मां दुर्गा का अवतार कहकर संबोधित किया था, जिस कारण उन्हें अपने दल को सफाई भी देनी पड़ी थी।

भारत में अवतारी नेता ही लहर पैदा करते रहे हैं और क्षेत्रवाद इत्यादि की शक्तियों के मुखर होने के दिनों में कोई अवतारी नेतृत्व ही देश को बांधे रख सकता है। इस देश में राजनीतिक सिद्धांत गौण रहते हैं और लोकप्रियता की लहर ही निर्णायक सिद्ध होती है। श्रीमती सोनिया गांधी ने स्वयं प्रधानमंत्री पद का त्याग करके मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया तो उनकी प्रशंसा हुई। हाल ही में अरविंद केजरीवाल ने उन्हें अवतारी नेता होने का अवसर दिया था, परंतु उन्होंने उसका इस्तेमाल नहीं किया। देश में दुर्गा की याद दिलाने वाले नेतृत्व की आवश्यकता है, परंतु सोनिया गांधी की ही तरह ममता बनर्जी भी अपने अवसरों को भुना नहीं पाईं और उनकी राजनीतिक तुनकमिजाजी से देश को नुकसान ही हुआ है, जबकि कोलकाता की होने के कारण उनके लिए शेर तैयार था, परंतु वे तो रेल से भी उतर गईं। इसी तरह मायावती ने दलित वर्ग एवं ब्राह्मण वर्ग के चुनावी समीकरण से उत्तरप्रदेश में बहुमत अर्जित किया था तथा वे स्वयं को राष्ट्रीय भूमिका के लिए तैयार कर सकती थीं, परंतु वे मूर्तियां लगाने में ही व्यस्त रहीं और अवतारी नेतृत्व का अवसर निकल गया। जयललिता के पास इस तरह का अवसर नहीं आया और दिल्ली उनके लिए हमेशा दूर ही रही है।

भाजपा की सुषमा महत्वाकांक्षी हैं, परंतु उनके अपने दल में अनेक समीकरण प्रतिदिन बन रहे हैं। अरविंद केजरीवाल तो नितिन गडकरी के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं दे पाए, परंतु अंग्रेजी दैनिक 'डीएनए' में श्रीनिवासन जैन ने सोमवार २२ अक्टूबर को लिखा कि उनकी कंपनी में 18 कंपनियों से अकूत धन आया है और कई कंपनियों के घोषित निवास पर गए पत्रकारों को ज्ञात हुआ कि वहां इस तरह का कोई कार्यालय ही नहीं है। यह एनडीटीवी के 'ट्रुथ बनाम हाइप' नामक कार्यक्रम की खोज है। इंदौर संस्करण के पृष्ठ पांच पर इसका खुलासा है।

दरअसल राजनीति के क्षेत्र में इस समय प्रतिभा का अकाल है। सच तो यह है कि संस्कारहीनता व नैतिक मूल्यों के लोप के कालखंड में अब समय आ गया है कि चमत्कारी व अवतारी नेतृत्व के भरम को तोड़कर हर घर की गृहिणियां दुर्गा पूजा से प्रेरणा लेकर अपने घर-परिवार मात्र की सफाई करके मूल्यों की स्थापना करें। आप भ्रष्टाचार से कमाए धन से खरीदी गई सुविधाओं का उपयोग ही न करें।

लातिन अमेरिका के कुछ देशों में महिलाओं ने एक आंदोलन यह किया था कि वे अपने रिश्वतखोर भाई से बात नहीं करती थीं और पति के शयनकक्ष में नहीं जाती थीं। अब राष्ट्रीयस्तर पर अवतार से बात नहीं बनेगी, हर घर में एक अवतार की आवश्यकता है। बात का आशय है कि घर से ही आंदोलन शुरू करें। चौराहों पर जाकर आंदोलन महज नारेबाजी में बदल जाता है। हर मनुष्य का आचरण घर में सड़क से अलग होता है और संसद में सड़क से अलग होता है और सिनेमाघर में कुछ और ही होता है।