घर बेघर / सूरजप्रकाश
1. लंदन से महेश आया हुआ है। यारी रोड का अपना मकान खाली कराने के लिए। दो बरस पहले जब वह हमेशा के लिए लंदन बसने के इरादे से बंबई से गया था वो एक भरोसेमंद एजेंट की मार्फत एक बरस के लिए अपना मकान एक मलयाली को दे कर गया था। तय हुआ था कि वह ठीक एक साल बाद मकान खाली कर देगा। और भी कुछ वायदे किये थे उसने, मसलन वह महेश की सारी डाक एस्टेट एजेंट के पास पहुँचाता रहेगा जो उसे किसी न किसी जरिये से लंदन भिजवाने का इंतजाम करने वाला था। सारे बिल अदा करेगा और सोसाइटी चार्जेज वक्त पर अदा करेगा। लेकिन उसने कोई भी वायदा पूरा नहीं किया था। न डाक भिजवायी थी, न टेलिफोन बिल अदा किये थे, न ही सोसायटी चार्जेज समय पर दिये थे। और तो और, बीच-बीच में बिल अदा न किये जाने के कारण दो तीन बार बिजली भी कट चुकी थी।
उससे यह भी तय हुआ था कि वह मकान का किराया नियमित रूप से महेश की तरफ से एजेंट को देता रहेगा, लेकिन किराया भी उसने छ: सात महीने का ही जमा कराया था।
महेश बता रहा है कि उसने किरायेदार को कई पत्र लिखे, संदेश भिजवाये लेकिन किसी भी तरह से वह पकड़ में नहीं आया।
कई बार फोन करने पर एक आध बार जब वह पकड़ में आया भी तो गिड़गिड़ाने लगा कि छ: महीने की मोहलत और दे दो। छह महीने पूरे होते ही वह मकान खाली कर देगा। सारे पेमेंट भी कर देगा और किसी भी तरह की शिकायत का मौका नहीं देगा।
लंदन में बैठे हुए महेश के पास इसके अलावा और कोई उपाय भी नहीं था क्योंकि इस बीच उसका एजेंट भी अपनी दुकान बंद करके वहाँ से गायब हो चुका था और किरायेदार से कम से कम सात महीने का किराया भी ले जा चुका था। ये वही एजेंट था जो महेश के लंदन जाते समय आधी रात को अपनी वैन ले कर आया था और उसका सारा सामान लाद कर एयरपोर्ट ले गया था। महेश को विदा करते समय वह महेश के गले लग कर फूट-फूट कर रो रहा था और टेसुए बहा रहा था कि आप जैसा खरा और जिंदादिल इंसान मैंने जिंदगी में नहीं देखा। और यही एजेंट अपना बोरिया-बिस्तर समेट कर चंपत हो चुका था।
महेश बता रहा है कि लंदन से चलने से पहले उसने किरायेदार को दसियों बार फोन करके अपने आने की सूचना दे दी थी कि वह सिर्फ मकान खाली कराने के मकसद से ही आ रहा है और उसका यहाँ और कोई काम नहीं है। इसलिए वह जैसे भी हो, मकान खाली रखे ताकि उसे यहाँ बेकार में रूकना न पड़े। किरायेदार के ही कहने पर महेश ने यहाँ आने की तारीख दो बार बदली। जब भी महेश ने उसे बताया कि मैं आ रहा हूँ, किरायेदार ने कोई न कोई बहाना बना कर थोड़ा समय और माँगा। एक बार दो महीने का और एक बार एक महीने का। दो बार किरायेदार के कारण और एक बार खुद की छुट्टी मंजूर न होने के कारण महेश का आना तीन बार टला और आखिर वह आ ही गया है।
महेश के यहाँ पहुँचते ही हम दोनों ने सुबह-सुबह ही किरायेदार के घर पर हमला बोल दिया है। यही वक्त है जब उसे घर पर घेरा जा सकता है। हम दोनों को सुबह छ: बजे ही अपने दरवाजे पर देख कर पहले तो किरायेदार हैरान हुआ, फिर किसी तरह संभल कर बोला - अच्छा हुआ, आप आ गये। मैंने अपने लिए दूसरे मकान का इंतजाम कर लिया है, कल बारह बजे मुझे चाबी मिल जायेगी। कल शाम तक आपका मकान आपको खाली मिल जायेगा। इससे आगे उसने संवाद की गुंजाइश ही नहीं छोड़ी।
महेश घर में कदम रखते ही परेशान हो गया है। किरायेदार ने घर बहुत ही बुरी हालत में रख छोड़ा है। हम दोनों ही हैरान हो गये हैं कि क्या ये महेश का वही घर है जिसे वह इतनी सफाई से और इतने जतन से साफ-सुथरा रखता था। लग ही नहीं रहा है कि इस घर में कोई दो साल से लगातार रह रहा है। चारों तरफ मकड़ी के जाले लगे हुए हैं। कागजों के ढेर, कचरा और ढेरों फटे पुराने जूते ड्राइंगरूम की शोभा बढ़ा रहे हैं। रसोई का तो और भी बुरा हाल है। जैसे वहाँ दो साल से कचरा ही न बुहारा गया हो। एक अजीब-सी बदबू पूरे घर में फैली हुई है। जैसे अरसे से कई चूहे मरे पड़े हों घर में और उन्हें बाहर निकाला ही न गया हो।
उसने एक और बदमाशी की है उसने कि ड्राइंगरूम में ही दीवार पर एक बहुत बड़ा-सा लकड़ी का मंदिर ठोक दिया है। महेश जब यहाँ रहता था तो उसने कभी ड्राइंगरूम में एक कील तक नहीं ठोंकी थी और अब।
इस समय उससे कुछ कहने का मतलब ही नहीं है। बस एक दिन की ही तो बात है। हम खाली हाथ वापिस लौट आये हैं।
और आज सात दिन बीत जाने के बाद भी हम महेश का मकान खाली नहीं करवा पाये हैं। हर बार एक नया बहाना। हर बार थोड़ी और मोहलत के लिए गिड़गिड़ाना और नये सिरे से वायदे करना ही चलता रहा है इस दौरान।
जब हम अगले दिन वहाँ गये तो पता चला, किरायेदार घर पर नहीं है, रात को देर से आयेगा। घर को देखते हुए ऐसा कोई संकेत नहीं मिल रहा था कि घर खाली करने की कोई तैयारी ही की गयी होगी। जबकि किरायेदार के मुताबिक तो हमें इस वक्त खाली घर की चाबी लेने आना था।
हम अगले दिन सुबह-सुबह ही जा धमके हैं वहाँ। एक बार फिर निराशा हाथ लगी है। पता चला है कि रात को जनाब घर वापिस ही नहीं आये। आउटडोर शूटिंग के सिलसिले में बाहर गये हुए हैं। आज शाम तक आने की उम्मीद है।
दरवाजा एक खूबसूरत और जवान लड़की ने खोला है। उसके पीछे एक और लड़का खड़ा है जिसके बारे में लड़की ने ही बताया है कि वह अंकल का ड्राइवर है। लड़की का परिचय पूछने पर उसने बताया है कि वह गोपालन की भतीजी है और यहाँ कुछ दिनों के लिए एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में आयी हुई है। ये बात हमारे गले से नीचे नहीं उतर रहीं क्योंकि एक तो वह लड़की किसी भी नज़रिये से मलयाली नहीं लग रही और नीचे आने पर हमें वाचमैन ने भी यही बताया कि ये लड़की तो अकसर यहाँ आती रहती है। एक और बात हमें परेशान करने लगी है कि बेशक किरायेदार ने महेश को बताया था कि वह मॉडल कोऑर्डिनेटर है लेकिन वॉचमैन और सोसायटी के दूसरे लोगों ने जो कुछ बताया है उसके अनुसार वहाँ रात-बेरात जिस तरह की लड़कियों का आना-जाना है, उनमें से ज्यादातर मॉडल तो क्या, सड़क किनारे खड़ी नज़र आने वाली पतुरिया से ज्यादा नहीं लगती। जैसा कोऑर्डिनेटर, वैसी ही मॉडल।
फिलहाल ये हमारा मुद्दा नहीं है कि किरायेदार क्या करता और क्या कराता है। फिलहाल हमारी चिंता महेश का मकान वापिस पा लेने की है जो हमारे सामने होते हुए भी वापिस नहीं मिल रहा।
लड़की ने जब दरवाजा खोला था तो हम सीधे अंदर तक चले आये थे। महेश का खून वैसे ही खौल रहा था। आज उसे आये चार दिन हो गये थे और किरायेदार था कि लुका-छिपी का खेल खेल रहा था। लड़की हमें इस तरह अंदर आते देख कर घबरा गयी लेकिन जब महेश ने उसे बताया कि वह मकान मालिक है और पिछले चार दिन से गोपालन के पीछे चक्कर काट काट कर परेशान हो गया है वो लड़की ने जैसे सरंडर ही कर दिया - आप चाहें तो अभी के अभी मकान खाली करा सकते हैं। मैं अपना सामान ले कर होटल चली जाऊँगी लेकिन क्या ये बेहतर नहीं होगा कि जहाँ आपने इतने दिन इंतज़ार किया, एक दिन और सही। लड़की ने जिस तरह से पूरी बात की और सहयोग देने का आश्वासन दिया, हम चाह कर भी उसे खड़े-खड़े बाहर नहीं निकाल पाये। वैसे भी किरायेदार की गैर हाजिरी में मकान खाली कराना न केवल गलत था बल्कि इससे अनधिकृत और जबरन प्रवेश का मामला भी बन सकता था। भले ही वह बेईमान था लेकिन था तो किरायेदार ही।
अलबत्ता, हमने इतना जोखिम जरूर लिया कि वॉचमैन की मदद से ड्राइंगरूम में से मंदिर उखड़वा दिया है। मंदिर के पीछे इतने काक्रोच निकले कि वह लड़की तो डर ही गयी। हमारा मूड तो खराब हुआ ही।
हम रात के वक्त के फिर वहाँ गये हैं और इस बार चार-पांच आदमी गये हैं और ये तय करके गये हैं कि कैसे भी आज मकान खाली करा ही लेना है। लेकिन वहाँ एक और ही सदमा हमारा इंतजार कर रहा है। घर पर केवल ड्राइवर है। वह लड़की वहाँ से शिफ्ट कर चुकी है। ड्राइवर ने जो कुछ बताया है उसे सुन कर हमें हँसी भी आ रही है और खून भी खौल रहा है। अगर ड्राइवर पर भरोसा किया जाये तो गोपालन शाम की फ्लाइट से केरल में अपने गाँव गया है, शादी करने। हमें गुस्सा इस बात पर आ रहा है कि गोपालन एक बार फिर गच्चा दे गया और हँसी इस बात पर आ रही है कि बदमाश के पास रहने के लिए छत नहीं है, जो है उसे खाली कराने के लिए हम कब से उसे तलाशते फिर रहे हैं और जनाब पचपन साल की उम्र में फिर से ब्याह रचाने गाँव गये हुए हैं।
बहुत मुश्किल से ड्राइवर गोपालन के गाँव का फोन नम्बर तलाश कर पाया है। उसे तो वह भी न मिलता। एक तरह से हमने ही उसके गाँव का नम्बर तलाशा। हुआ ये कि वहाँ हमें पड़े ढेरों कागजों में एसटीडी बूथ से की गयी एसटीडी कॉलों की कई रसीदें मिलीं। उनमें से सबसे ज्यादा बार जिस नम्बर पर फोन किये गये थे, उन रसीदों पर दिये गये एसटीडी कोड के जरिये ही नम्बर का अंदाजा लगा पाये। इसी नम्बर के जरिये हमने उसके गाँव के नाम का पता लगाया और फिर ड्राइवर से भी गाँव का नाम कन्फर्म किया, संयोग से वहाँ कुछ पत्र हमें रखे मिल गये जिन पर गाँव का नाम लिखा हुआ था। आखिर जायेगा कहाँ बच्चू। शादी करने गया हो या अपने धंधे के लिए नयी मॉडल तलाशने, आखिर वापिस तो यहीं आयेगा। कब तक बचता बचाता फिरेगा।
संयोग से गोपालन घर पर मिल गया है और महेश ने इस बात की परवाह किये बिना कि गाँव में शादी कराने गया हुआ है, फोन पर ही उसकी जो लानत-मलामत की है, गोपालन जिंदगी भर याद रखेगा। लगभग पंद्रह मिनट तक महेश उसे फोन पर ही धोता रहा और जब उसे ये धमकी दी गयी कि आज ही उसका सारा सामान उसकी गैर-मौजूदगी में सड़क पर डाल दिया जायेगा पुलिस केस बनता है तो बने, तो उसने एक बार फिर गिड़गिड़ा कर सिर्फ तीन दिन की मोहलत माँगी है और कहा है कि वह कैसे भी करके आते ही घर खाली कर देगा।
महेश मकान को ले कर बहुत परेशान हो रहा है। वह जानता है कि किरायेदार उसके लंदन में होने का पूरा फायदा उठा रहा है। गोपालन को पता है कि महेश हमेशा के लिए तो छुट्टी ले कर उसके पीछे चक्कर काटने से रहा इसलिए वह लगातार कोशिश करके सामने आने से ही बच रहा है।
हम पुलिस चौकी गये हैं कि इस बारे में क्या वहाँ से कोई मदद मिल सकती है तो पुलिस ने साफ जवाब दे दिया है कि वे इस तरह के मामलों में कुछ नहीं कर सकते। जब महेश ने उन्हें गोपालन के हस्ताक्षर वाला बिना तारीख का मकान खाली करके देने वाला कागज दिखाया तो पुलिस का यही कहना है कि आप बेशक जोर-जबरदस्ती से मकान खाली करवा लीजिये, वे बीच में नहीं आयेंगे।
महेश ने लंदन जाने से पहले यहीं और इसी इलाके में कम से कम पंद्रह बरस गुजारे हैं और वह यहाँ के कायदे कानूनों से और काम करने के तौर तरीकों से अच्छी तरह से वाकिफ है फिर भी लगातार सबको गालियाँ दे रहा है कि ये सब लंदन में होता तो ये हो जाता और वो हो जाता। फिलहाल स्थिति यही है कि वह तीन बार अपने वापिस जाने की तारीख आगे खसका चुका है। वहाँ उसके काम का हर्जा हो रहा है वो अलग। लेकिन किया भी क्या जाये। इस देश में मकान किराये पर देने वालों की यही नियति होती है। अपना मकान वापिस पाने के लिए क्या-क्या पापड़ नहीं बेलने पड़ते।
2.
इस बीच हम लगातार महेश के इस्टेट एजेंट की तलाश करते फिर रहे हैं। कोई बताता है कि वह मीरा रोड की तरफ चला गया है तो कोई बताता है कि अब उसने ये काम ही छोड़ दिया है और चिंचपोकली के पास कम्प्यूटर सेंटर खोल कर वहाँ नया धंधा कर रहा है। जितने मुँह उतनी ही बातें और सारी की सारी भ्रामक। हम कई जगह भटकते रहे उसकी तलाश में लेकिन वह किसी के भी बताये पते पर नहीं मिला।
आखिर गोपालन वापिस लौट आया है। हम जानते हैं कि ये गलत है कि वह आज ही गाँव से शादी करके आया है और अपने साथ नयी ब्याहता दुल्हन ले कर आया है और हम इस तरह से सुबह सुबह ही तकादा करने वालों की तरह जा धमकें। आखिर उसकी शादी हुई है और हम उसे ठीक ठीक तरीके से बधाई देने जाएँ लेकिन महेश का कहना है कि इस तरह जाने से वह मानसिक रूप से दबाव में आयेगा। यही बात हमारे पक्ष में जायेगी। और हम सचमुच उसे बधाई देने के बजाये उसे घर खाली करने के लिए धमकाने चले आये हैं।
लेकिन मानना पड़ेगा गोपालन को भी। इस बार भी उसके पास एक और रेडिमेड बहाना है कि जिस आदमी के घर उसे शिफ्ट करना है उसका जीजा मर गया है। कम से कम चौथे दिन के संस्कार तक के लिए इसे मोहलत दी जाये। उसके चेहरे पर एक शिकन तक नहीं है कि वह एक हफ्ते से हमें इस तरह लटकाये हुए हैं। महेश चाह कर भी इस बीच अपनी अकेली और विधवा माँ से मिलने मुरादाबाद नहीं जा पाया है। इस तरफ से कुछ तय हो तो ही वह कुछ और करने की सोचे।
महेश का सिर एकदम गर्म हो गया है। वह कुछ सुनने के लिए तैयार नहीं है। बात ठीक भी है। ये आदमी महेश को कब से बेवकूफ बना रहा है और लगातार तनाव में रखे हुए हैं। खुद उसे अपनी जिम्मेदारी का ज़रा सा भी ख्याल नहीं है। अगर किसी ने मेहरबानी करके आपको किराये पर मकान दे दिया तो उसका ये मतलब तो नहीं कि आप उसे मकान खाली कराने के लिए रूला डालें। गोपालन यही कर रहा है पिछले कई दिनों से।
महेश ने उसे आखिरी चेतावनी दे दी है - मैं आपको कल शाम तक का समय दे रहा हूँ और ये आखिरी वार्निंग है। अगर इसके बाद भी आप मकान खाली नहीं करते तो मैं बाहर से ताला लगा दूँगा। मैं ये भी नहीं देखूँगा कि आप घर के अंदर हैं या आपकी बीबी बाथरूम में बंद रह गयी है।
हम ये धमकी दे कर आ तो गये हैं लेकिन नहीं जानते कि कल क्या होनेवाला है।
इस बीच गोपालन ने दो तीन फीलर्स भिजवाये हैं कि किसी तरह से उसे थोड़ा-सा समय और मिल जाये लेकिन महेश ने किसी भी संदेश देने वाले से बात करने से ही मना कर दिया है। हम जानते हैं कि हर बार गोपालन ने मोहलत माँगी है और हर बार वह मुकर गया है।
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और गोपालन ने इस बार भी मकान खाली नहीं किया है। सोसायटी के कहने पर महेश ने दरवाजे पर ताला तो नहीं लगाया है लेकिन गोपालन को और कोई मौका न देने का फैसला कर लिया है।
हम बहुत परेशान हो चुके हैं। वह हमारे धैर्य की इतनी परीक्षाएँ ले चुका है कि अब तो पानी कब का गले से ऊपर आ चुका है। हम परेशान हाल यूँ ही बाज़ार में घूम रहे हैं कि सामने एक इस्टेट एजेंट का बोर्ड नज़र आया है। हम दोनों बिना किसी खास मकसद के भीतर चले गये हैं कि शायद यहाँ से कोई मदद मिल जाये।
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- आइये साहब जी। भीतर एसी ऑफिस में बैठा आदमी हमारा स्वागत करता है।
महेश बताता है उसे - नमस्कार! जी मेरा नाम महेश है और मैं लंदन से आया हूँ।
- कहिये, आपकी क्या सेवा की जाये जी।
- जी बात दरअसल यह है कि मैं एक अजीब सी मुसीबत में फँस गया हूँ और आपकी दुकान का बोर्ड देख कर सिर्फ इस उम्मीद में भीतर आ गया हूँ कि शायद आप मेरी मदद कर सके।
- ये वो जी आपकी पूरी बात सुनने के बाद ही पता चल पायेगा साहब जी कि हम आपके किस काम आ सकते हैं।
ये आदमी जिस तरह से बात कर रहा है, अपने धंधे का पूरा घाघ मालूम होता है।
महेश उसे बता रहा है - दरअसल बात ये है कि मेरा एक घर था, मेरा मतलब है कि मेरा एक घर है यारी रोड पर। मैं लगभग दो साल पहले लंदन बसने के इरादेसे यहाँ से गया था तो चार बंगला के एक इस्टेट एजेंट की मार्फत अपना फ्लैट किराये पर दे गया था। वही लीव एँड लाइसेंस वाला चक्कर।
- ठीक, तो आगे
- आगे हुआ ये जी कि जब मैंने ग्यारह महीने बाद फ्लैट खाली कराने के लिए किरायेदार को लंदन से खत भेजने शुरू किये तो उसने एक का भी जवाब नहीं दिया और न ही किराया ही मेरे खाते में जमा ही कराया न एजेंट को ही दिया।
- ठीक
- जब मैंने उसे लंदन से फोन किये तो उसने गिड़गिड़ाना शुरू कर दिया कि वह कुछ तकलीफों में हैं और उसे छ: महीनों के लिए और रहने की मोहलत दे दी जाये। अब मैं लंदन में बैठ कर मोहलत देने के अलावा कर भी क्या सकता था। जब मैंने उससे पिछले किराये की बात की तो उसने बताया कि वह किराया चंद्रकांत भाई को लगातार देता रहा है, पचास हजार उसने एडवांस के दिये थे।
- ठीक
- वो जी मैंने तब चंद्रकांत भाई को फोन किया तो उसका फोन एक बार भी नहीं मिला। बाद में मेरे दोस्तों ने बताया कि इस पते और फोन नम्बर पर कोई इस्टेट एजेंट नहीं है। तब मैंने लंदन से अपने किरायेदार को कई बार फोन करके बताया कि मैं फलां तारीख को बंबई मकान खाली कराने आ रहा हूँ तो हर बार उसने यही कहा कि आपके आने से दो दिन पहले मैं मकान खाली कर दूँगा और आपके आते ही आपको चाबी थमा दूँगा।
- फिर
- फिर जी, आज मुझे बंबई आये हुए आठ दिन हो गये हैं। वह मकान खाली करने को तैयार ही नहीं है। मैंने कई जगह पूछ के देख लिया कि शायद कहीं से बदमाश चंद्रकांत भाई का पता चल जाये लेकिन वह कहीं नहीं मिल रहा है।
- ठीक
- अब मुसीबत ये है कि मैं तीन बार अपनी टिकट कैंसिल करवा चुका हूँ, उधर लंदन में मेरे काम का हर्जा हो रहा है और ये कम्बख्त किरायेदार मकान खाली करने को तैयार ही नहीं है।
- क्या कहता है।
- पहले तो वह मेरे आने वाले दिन बड़े प्यार से मिला और कहने लगा, परसों सुबह आप चाबी लेने आ जाएँ। घर आपको खाली मिलेगा। जब मैं दो दिन बाद पहुँचा तो दो दिन वो घर ही नहीं आया। फिर पता चला जनाब केरल निकल गये हैं अपने होम टाउन शादी करने।
- आपको कैसे पता चला?
- उस घर में, मेरा मतलब है मेरे घर में एक जवान लड़की और उस किरायेदार का ड्राइवर रह रहे थे। लड़की ने बताया कि आप बेशक घर खाली करा ले लेकिन अंकल दो दिन बाद वापिस आ रहे हैं सिर्फ दो दिन रूक जाएँ। मैं रूक गया तो ड्राइवर से पता चला कि वो तो शादी करने गया है। किसी तरह से हमने उससे केरल का नम्बर लेकर फोन किया और उसे याद दिलाया कि उसे इस तरह से बिना घर खाली किये नहीं जाना चाहिये था। उसने फिर वायदा किया कि वह तीसरे दिन कैसे भी करके वापिस आ कर घर खाली कर देगा।
- फिर
- अब वह वापिस आ गया है शादी करके और अब तक उसने रहने का कोई इंतजाम नहीं किया है।
- करता क्या है
- उस पर विश्वास किया जाये तो वह अपने आपको मॉडल कोऑर्डिनेटर बताता है।
- और आपको क्या लगता है कि वह क्या है
- मुझे तो जी वह लड़कियों का दलाल ही लगता है। बिल्डिंग वाले भी बताते हैं कि उस घर में रात-बेरात तरह तरह की लड़कियों का आना जाना था।
- उम्र कितनी होगी उसकी
- यही कोई पचपन के आस पास
- और आप बता रहे हैं कि वह कल ही शादी करके आया है।
- मुझे तो जी उसकी शादी भी ड्रामा ही लग रही है।
- बिल्डिंग की सोसायटी, मेरा मतलब सेक्रेटरी वगैरह को आपने विश्वास में लिया था क्या।
- वैसे तो सेक्रेटरी भला आदमी है और मेरी तरफ से पूरी कोशिश भी कर रहा है कि मेरा मकान मुझे वापिस मिल जाये लेकिन दिक्कत यही है कि जो भी उसे दो पैग पिला दे और फिश फ्राइ खिला दे, वह उसी की तरफ हो जाता है।
- और कोई बात
- देखिये मैं अपने मकान को लेकर पिछले कई दिनों से इतना परेशान हूँ कि क्या बताऊँ। कुछ समझ में नहीं आ रहा कि यहाँ कब तक मैं कैंप डाले पड़ा रहूँगा और उस बदतमीज किरायेदार की लंतरानियाँ सुनता रहूँगा। उस कम्बख्त ने छ: महीने से न बिजली का बिल जमा कराया है और न ही टेलिफोन बिल ही। और तो और उस साले ने, गाली देने को जी चाहता है, साल भर से मेरी डाक तक दबा कर रखी हुई थी। आज सुबह उसने मुझे कोई सौ चिठि्ठयों का बंडल पकड़ा दिया कि ये डाक है आपकी। दिल तो किया मेरा कि उसका वहीं खड़े खड़े गला घोंट दूँ।
3.
- देखिये महेशजी, तनाव में आने से तो बात और बिगड़ेगी। मैंने आपकी पूरी बात सुनी है। मुझे आपसे पूरी हमदर्दी है। जहाँ तक मैं समझ पाया हूँ आप हमारे पास दो उम्मीदें ले कर आये हैं। पहली कि किसी भी तरह से आपका मकान खाली कराने में आपकी मदद करूँ और हो सके तो आपके उस एजेंट को ढूँढने में आपकी मदद करूँ।
- सही फर्माया आपने। मैं हर तरफ से निराश हो कर आपके पास आया हूँ। पुलिस...
- देखिये ऐसे मामलों में पुलिस कोई मदद नहीं कर पाती, पुलिस ने यही कहा होगा न कि आप मकान किराये पर देते समय अगर उन्हें भी फार्मली खबर कर देते तो वे शायद कुछ मदद कर भी पाते।
- जी हाँ, यही कहा था।
- और यह भी कहा होगा कि आप अपने आप किरायेदार से कैसे भी निपटें, वे बीच में दखल नहीं देंगे।
- जी हाँ मुझे नहीं पता था कि यहाँ की पुलिस इतनी गैर जिम्मेदार है और इतनी बेरूखी से पेश आती है।
- अब क्या किया जाये। फिलहाल हम देखें कि आपकी कैसे मदद की जाये।
- जी
- देखिये, जहाँ तक चंद्रकांत की बात है, हमें भी पता चला है कि वह कई लोगों को धोखा दे कर भागा हुआ है। हमारा भी एकाध पार्टी का लेनदेन अटका हुआ है उसके साथ। खैर, फिलहाल बात आपके मकान खाली कराने की बात है तो उसका एक ही तरीका बचता है जो कई बार हमें भी अपनाना पड़ता है और वो है मसल पावर।
- जी मैं समझा नहीं।
- देखिये ये इस शहर की खासियत है कि यहाँ आपको एक से बढ़ कर एक टेढ़ा आदमी मिलेगा और दूसरी तरफ आपके जैसे शरीफ आदमी भी हैं जो अपना खुद का मकान वापिस पाने के लिए भटक रहे हैं। तो ऐसे में हमारी जो ये नेचर है ना, कुदरत, सही बेलेंस करती है, टेढ़े आदमियों को सीधा करने के लिए यहाँ कुछ मसल मैन भी हैं। वे लोग पैसे तो लेते हैं लेकिन सिर्फ टेढ़ी उँगली से ही घी निकालना जानते हैं। निकाल कर दिखा भी देते हैं। तो जनाब अगर आप चाहते हैं कि किसी ऐसी एजेंसी की सेवाएँ ली जाएँ तो आगे बात की जाये।
- आप क्या सजेस्ट करते हैं सर?
- देखिये महेशजी, वह आदमी आपके लंदन में होने का पूरा फायदा उठायेगा। उसे पता है, आप शरीफ आदमी है। यहाँ हमेशा के लिए नहीं ठहर सकते। न उसका सामान बाहर फिकवायेंगे। ज्यादा से ज्यादा ग्यारह महीने का लीव और लाइसेंस दोबारा करवा लेंगे, लेकिन वह आपको मकान तो तुरंत खाली करके देने के मूड में नहीं लगता। और फिर आप बता रहे हैं कि उसका धंधा भी कुछ इस तरह का है।
- ये देखिये, मैंने उसे फ्लैट देते समय ही लिखवा लिया था कि वह मुझे फ्लैट का खाली पोजेशन दे रहा है।
- लेकिन सर, आप कागज के बलबूते पर भी फ्लैट कहाँ खाली करवा पाये। वह जब तक हो सके टालेगा। एक एक दिन, एक एक घंटा। ताकि एक बार फिर आपके लौट जाने का टाइम आ जाये।
- तो इसका मतलब
- घबराइये नहीं, हम आपकी मदद करेंगे। फीस लगेगी २५,००० और २४ घंटे में मकान खाली कराने की गारंटी।
- रेट कुछ ज्यादा लग रहे हैं।
- आप जितनी टेंशन में हैं और अपना ब्लड प्रेशर बढ़ा रहे हैं, उसके मुकाबले कम। और फिर दस बारह आदमियों की टीम होती है, कहीं कुछ मारपीट हो जाये तो उस सबका इंतजाम करके चलता पड़ता है। इस बात का भी ख्याल रखना पड़ता है कि पुलिस केस न बने। तो समझें फाइनल?
- आप तो मुझे इस्टेट एजेंट कम और साइक्रियाटिस्ट ज्यादा नज़र आ रहे हैं। अब जा कर इतने दिनों के बाद महेश के चेहरे पर हँसी आयी है। मुझे भी लगने लगा है कि ये आदमी काम करवा सकता है।
- आपकी जानकारी के लिए मैं रूड़की युनिवर्सिटी का बी ई हूँ और मैं इस लाइन में आने से पहले इंजीनियरिंग पढ़ाता रहा हूँ।
- तो इस लाइन में कैसे आ गये
- आप जैसे लोगों की सेवा करने के लिए। तो जनाब हम फाइनल समझें?
- ठीक है। तो यही सही। जहाँ मकान ने सवा लाख का घाटा दिया है वहाँ डैढ़ लाख का सही।
- तो कब? कितने बजे?
- तीन बजे ठीक रहेगा।
- ठीक है तीन बजे आपके पास राजू अपनी टीम ले कर पहुँच जायेगा। अपना पता और फोन नम्बर दे दीजिये। वैसे उसकी दुल्हन कहाँ है?
- क्यों, वहीं पर ही है।
- तो आप एक और काम कीजिये, अपनो किसी दोस्त की बीबी को भी बुलवा लीजिये, पूरे परिवार से घर खाली कराने के मामले में जरा संभल कर रहना पड़ता है। जस्ट फार सेफर साइड।
- हो जायेगा।
-पेमेंट अभी कर रहे हैं या राजू के हाथ भिजवा देंगे।
- पेमेंट की चिंता न करें। आप तक पहुँच जायेगी। तो मैं चलता हूँ। ओके।
- ओके।
और हम बाहर आ गये हैं।
महेश पूछ रहा है मुझसे - क्या ख्याल है ये आदमी काम करवा देगा।
- यार लग तो मुझे भी रहा है कि इस आदमी की बात में दम है और ये काम करवा भी देगा।
- चलो एक कोशिश और सही।
और हम लौट आये हैं महेश के मकान के नीचे। हमने पास ही रहने वाले एक दोस्त और उसकी बीवी को भी बुलवा लिया है।
इस समय बिल्डिंग के नीचे महेश, दो-तीन लड़के, हमारे दो तीन दोस्त, एक की बीवी वगैरह खड़े हैं। बिल्डिंग का बूढ़ा सा सेक्रेटरी और कुछ तमाशबीन भी आ जुटे हैं।
महेश सेक्रेटरी से पूछ रहा है - अब क्या कहता है पुरी साहब वो सेक्रेटरी - देखिये महेशजी, मैं अभी अभी उससे बात करके आया हूँ और वह अब कल सुबह तक की मोहलत माँग रहा है। अभी भी दोस्त के रिश्तेदार के मरने वाला किस्सा दोहरा रहा है कि इसीलिए चाबी नहीं ला पाया।
बीच में किसी ने टाँग अड़ायी है - मतलब ही नहीं है जी मोहलत देने की। साले ने बिल्डिंग में कब से गंद मचा रखा है।
अब दूसरे को भी हिम्मत आ गयी है। सबको लग रहा है आज जो ड्रामा यहाँ होगा, उसे देखे बिना कैसे चलेगा।
अब दूसरा बोल रहा है - मैंने भी उसे एक मकान दिखाया था, सिर्फ आठ हजार भाड़े पर और डिपाजिट भी सिर्फ बीस हजार। ये बंदा उसके लिए भी राजी नहीं।
- अरे जब मुफ्त में हनीमून मनाने के लिए इतना बड़ा फ्लैट मिला हुआ है तो वह क्यों जायेगा कहीं और।
- साले ने बिल्डिंग में रंडीखाना खोल रखा है। पता नहीं ये भी बीवी है या नहीं, बेचने के लिए लाया होगा। देखा नहीं कितनी छोटी है इससे और डरी हुई भी थी।
ये बातें हो ही रही हैं कि तभी मोटरसाइकिल पर एक हट्टा कट्टा छ: फुट तीन इंच का जवान आया है। पूछ रहा है
- यहाँ आप में से महेशजी कौन हैं?
महेश आगे बढ़ कर बता रहा है
- मैं ही हूँ जी
वह गर्मजोशी से हाथ मिलाता है
- मेरा नाम राजू है। कहाँ है वो आपका किरायेदार महेश?
- लेकिन आपकी टीम राजू
- कौन सी टीम, अरे हम वन मैन आर्मी हैं। हमारे साथ सिर्फ माँ भवानी चलती है। दिखाइये कहाँ है वो चूहा, बस मुझे सिर्फ दो-तीन आदमी दे दीजिये सामान बाहर निकालने के लिए और मुझे बिलकुल भी भीड़ नहीं चाहिये। ओके।
सब लोग हैरानी से इस देवदूत सरीखे आदमी को देख रहे हैं और उसे लिए रास्ता छोड़ दिया है। हम भी हैरान है कि ये कैसा आदमी है जो अकेले के बलबूते पर घर खाली कराने चला है। आज तो न देखा न सुना। अगर घर खाली कराना इसके लिए इतना आसान है तो शहर में इसकी कितनी माँग रहती होगी।
वह हमारे साथ सीधे ही ऊपर चला आया है और उसी ने फ्लैट की घंटी बजायी है। दरवाजा गोपालन ने ही खोला है। इससे पहले कि वह कुछ कह सके, राजू ने दरवाजा पूरा खोल दिया है और सोफा बाहर की तरफ खिसकाना शुरू कर दिया है।
गोपालन को इसकी उम्मीद नहीं है कि ऐसा भी हो सकता है
- ये क्या करता है आप साब, आप कौन है, हम महेशजी से बात करेंगे। महेशजी इसे रोको। मैं आपसे बोला ना हमको कल सुब्बू तक का टाइम माँगता है। हम कल सुबे ही मकान खाली कर देंगी।
- वो तो आप पिछले चार महीने से बोल रहे हैं गोपालन जी, मैं थक गया हूँ आपके वायदे सुनते सुनते।
गोपालन गुस्से में राजू को रोकने की कोशिश कर रहा है।
- आप इस तरह से मेरे घर में घुस के मेरे सामान को हाथ नहीं लगा सकता। मैं तुमको बोला ना ये शरीफ आदमी का घर है। हमारा वाइफ क्या सोचेंगा, उसको अभी यहाँ आया एक दिन भी नहीं हुआ है और आप
हम सब तमाशबीन बने देख रहे हैं।
राजू ने उसे परे हटा दिया है
- ओये हट पीछे बड़ा आया शरीफ का चाचा। क्या कर लेगा तू ओये ओये। राजू एकदम गोपालन के सीने पर सवार होने लगा है और उसने अपनी कमीज की बाहें ऊपर कर ली हैं
- बोल। तब तेरी शराफत कहाँ गयी थी जब मकान दबा कर बैठ गया है।
गोपालन अब वाकई घबरा गया है और महेश की तरफ मुड़ा है
- महेशजी महेशजी इस आदमी को हटाओ, ये मुझे मार डालेगा। ये गुंडा मवाली
ये सुनते ही राजू ने उसका गला पकड़ लिया है
- ओये, मवाली किसे बोला ओये, किसे बोला तू मवाली, माँ भवानी की कसम। मैं तेरा खून पी जाऊँगा।
अब गोपालन को भी गुस्सा आ रहा है
- तुम तुम मेरे घर में घुस कर मुझे नहीं मार सकता। मैं मर जायेगा तो तुमको पुलिस पकड़ कर ले जाएँगी। मैं... मैं...
अब सेक्रेटरी वगैरह राजू को पकड़ कर पीछे कर रहे हैं कि कहीं वाकई कुछ हो न जाये लेकिन राजू पर जैसे खून सवार है। वह बार बार आगे आ रहा है।
दोनों में अभी भी गाली गलौज हो रहा है
- देख लूँगा। देख लूँगा कर रहे हैं दोनों।
गोपालन ने आखरी कोशिश की है
- महेशजी, यू गिव मी सम टाइम टू थिंक। जस्ट टेन मिनट्स। ऐ जैंटलमन रिक्वेस्ट। प्लीज। रिक्वेस्ट।
महेश - ठीक है। आपको हम दस मिनट दे रहे हैं। उसके बाद आपको कोई भी नहीं बचा पायेगा।
गोपालन मान गया है। शायद अपना आखरी दाँव चलना चाहता होगा। हम सब वहीं ड्राइंगरूम में ही घेरा डाल कर बैठ गये हैं। पता नहीं कौन सबके लिए कोल्ड ड्रिंक ले कर आ गया है। वैसे इसकी जरूरत भी थी। सभी का तो खून खौल रहा है।
गोपालन कह रहा है - ओ के। प्लीज। प्लीज
तभी हमारी निगाह सामने बेडरूम के दरवाजे के पीछे से सहमी हुई सी उसकी बीवी पर पड़ती है। उसके चेहरे पर भयातुर हिरणी जैसे भाव हैं। उसने अपने सीने से एक छोटा सा कुत्ता दबा रखा है। औरत बेहद डरी हुई है। वह जिस तरह से सारा नज़ारा देख रही है उससे मैं अचानक सकपका गया हूँ। मैंने अपनी पूरी जिंदगी में किसी औरत की आँखों में इतना डर नहीं देखा होगा। उफ् मैं उसकी तरफ देखने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाता।
मैं अपने हाथ की कोल्ड ड्रिंक की बोतल वहीं एक कोने में रख कर बाहर आ गया हूँ। मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था आँखों में इतने डर की।
हमारे साथ आयी कपूर की बीवी ने भी शायद उसकी आँखों में तैर रहे डर को पढ़ लिया है। उसने गोपालन की बीवी के पास जा कर उसके कंधे पर हाथ रखा है
- डोंट वरी। घबराओ नहीं, कुछ नहीं होगा। वह उसका कंधा थपथपा रही है। मुझे राहत मिली है कि मैं अकेला नहीं हूँ जिस तरह उन डरी हुई आँखों का संदेश पहुँचा है।
इस बीच गोपालन ने तीन चार जगह फोन किये हैं। कहीं मलयालम में तो कहीं टूटी फूटी हिन्दी अँग्रेजी और मलयालम मे बता रहा है कि उसे अभी घर खाली करना है। वह सब जगह से आखरी मदद माँग रहा है लेकिन उसके चेहरे से लगता नहीं कि कहीं से भी उसे सही जवाब मिला होगा। उसने फोन रख दिया है और सिर झुकाकर बैठ गया है और अपने बालों को पकड़ कर खींच रहा है। सब लोग इंतजार कर रहे हैं कि अब क्या होगा।
महेश ने उसके पास जा कर बहुत ही ठंडे और ठहरे हुए लहजे में कहा है
- अब आपके दस मिनट पूरे हो गये हैं मिस्टर गोपालन।
गोपालन कह रहा है
- प्लीज, ट्राइ टू अंडरस्टैंड।
- मिस्टर गोपालन आपके पास और कोई बात हो तो बताओ।
- आपका टाइम पूरा हो चुका है।
गोपालन - मुझे कल सुबह तक का टाइम चाहिये। मैं जिदर सामान...
- दैट इज नॉट माइ प्राब्लम। ओके
- आप सुनेगा नहीं तो हम बात कैसे करेंगे। जस्ट वन डे।
राजू बीच में टपक पड़ा है
- नहीं मिलेगा। और कुछ?
गोपालन - देखिये मिस्टर मैं महेशजी से बात कर रहा हूँ। मुझे बात करने दें आप। महेशजी आप आप इसे बोलो, हम हार्ट पेशेंट हैं। हमको कुछ हो गया तो हमारा...
राजू अब गुस्से में आ गया है
- मैं तेरे किसी नाटक में आने वाला नहीं। हटो जी, उतारो सामान। बहुत हो गया साले का ड्रामा।
गोपालन अब रूआँसा हो गया है
- हम ड्रामा करता है? हैं हैं हम ड्रामा करता है। आप क्या बोल रहा है कि हम ड्रामा करता है।
राजू ने उसकी नकल उतारी है
- हाँ ड्रामा करता है। और इतना कहते ही उसने सामान उठा कर दरवाजे के बाहर ले जाना शुरू कर दिया है।
हम सब तमाशबीनों की तरह खड़े देख रहे हैं। अब कोई भी बीच में नहीं आ रहा। सबको पता है, बीच बचाव कराने की घड़ी जा चुकी। इस बीच काफी चीजें बाहर ले जायी जा चुकी हैं। अब सबने मिल कर सामान निकालने में मदद करनी शुरू कर दी है। मैं अभी भी गोपालन की बीवी की सहमी सहमी आँखों पर के बारे में सोच रहा हूँ। मुझे लग रहा है उस बेचारी के साथ गलत हो रहा है। उसे तो बंबई आये चौबीस घंटे भी नहीं हुए। शादी भी दो तीन दिन पहले ही हुई होगी। पता नहीं क्या-क्या सपने ले कर आयी होगी और क्या-क्या सब्ज बाज दिखाये गये होंगे उसे। लेकिन सच्चाई तो वही है जो वह अपनी डरी डरी आँखों से देख रही है।
वह अब रसोई के दरवाजे पर आ गयी है। मैं कनखियों से देखता हूँ।
- उसकी आँखों से धारोधार आँसू बह रहे हैं
गोपालन कह रहा है
- वन मोर चांस प्लीज। जस्ट वन फोन प्लीज।
महेश ने इजाजत दे दी है
- ओके एक और फोन कर ले।
गोपालन एक और फोन कर रहा है। वह फोन पर गिड़गिड़ा रहा है। इस बीच राजू ओर दूसरे लड़कों ने रसोई में जा कर सामान समेटना शुरू कर दिया है।
गोपालन ने फोन नीचे रख दिया है और फिर सिर पकड़ कर बैठ गया है। वह अब अपने आप से बोल रहा है। वह अपने आप से बातें कर रहा है
- माय बैड लक। क्या क्या ड्रीम्स ले कर आया था। वाइफ को बोला तुम्हें अक्खा मुंबई घुमायेगा। एन्जाय करायेगा। अभी जर्नी का थकान भी नहीं उतरा और ये लोक मेरा सारा सामान सड़क पर डाल दिया है। इन्सानियत मर गया है। इन्सान का अब कोई भरोसा नहीं रहा। मैं कितना रिक्वस्ट किया लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। ये शहर डैड लोगों का शहर है। आदमी मर जाएँगा तो भी कोई पूछने के वास्ते नहीं आयेगा। हम अपनी लाइफ का क्रीम इस शहर को दिया। आज हमारा ये हालत है कि हमारा सारा सामान सड़क पर है। हमारा वाइफ क्या सोचता होयेंगा कि उनका इस शहर में एक भी फ्रेंड नहीं है। लोक हमारा कितना रिस्पेक्ट करता था। हम किस किस का मदत नहीं किया। आज जब हमको मदत का जरूरत है वो कोई नहीं हैं। कोई नहीं, ओह गॉड आइ एम अलोन। हेल्प मी गॉड। माइ लाइफ माई ड्रीम्स माई कैरियर गॉन। माइ गॉड। उसने अचानक रोना शुरू कर दिया है। तय है उसका कोई इंतजाम नहीं हो पाया है।
मैं एक किनारे खड़ा देख रहा हूँ कि इस बीच सारा सामान नीचे उतार दिया गया है। गोपालन अपनी वाइफ का हाथ पकड़ कर नीचे आ रहा है और धीरे धीरे चलते हुए सामान के ढेर पर बैठ गया है। उसकी वाइफ अभी भी बहुत डरी हुई है और सहमी हुई निगाह से चारों तरफ देख रही है।
मैं अपने आप से पूछता हूँ
- ये सब क्या हो रहा है। हम ने ये सब तो नहीं चाहा था। मैं सोच भी नहीं पा रहा कि इस सब में मेरी क्या भूमिका है। मैं नीचे आ गया हूँ और मुझे कुछ भी नहीं सूझ रहा। गोपालन की बीवी की आँखों में पसरे डर ने पता नहीं मुझ पर क्या असर कर दिया है। बाकी सब लोग अभी भी ऊपर ही हैं।
धीरे धीरे अँधेरा घिर रहा है। गोपालन सड़क पर रखे अपने सामान पर बैठा हुआ है। अचानक उसने अपना सीना दबाना शुरू कर दिया है। उसे शायद सीने में दर्द महसूस हो रहा है। उसने अपने ड्राइवर को इशारा किया है। वह दौड़ कर पास की दुकान से उसके लिए सोडा ले कर आया है। वह सीना दबाये सोडा पी रहा है। उसकी बीवी और ज्यादा डर गयी है। उसने कुत्ते को नीचे उतार दिया है और पति के पास आ कर उसके कंधे पर हाथ रख कर खड़ी हो गयी है।
मेरी निगाह ऊपर की तरफ जाती है। वहाँ बालकनी में खड़े राजू, महेश और उनके दोस्त खुशियाँ मनाते हुए बीयर पी रहे हैं।
मैं समझ नहीं पा रहा कि मुझे महेश का मकान खाली होने के लिए खुश होना चाहिये या गोपालन और उसकी नयी ब्याहता बीवी के इस तरह सड़क पर आ जाने के कारण उसके कंधे पर हाथ रख कर उससे सहानुभूति के दो बोल बोलने चाहिये।
उसकी बीवी अभी भी डरी सहमी खड़ी है।