घर / अन्तरा करवड़े
दूसरे¸ तीसरे और चौथे माले पर रहने वाली मिसेस शर्मा¸ मिसेस गुप्ता और मिसेस तिवारी। टीनों ही कुछ समय के लिये अपने बेटे बहुओं के पास रहने के लिये आई थी सो उनकी दोपहर की महफिलें जमा करती थी।
मिसेस शर्मा कहती चली¸ "मेरी बहू भी क्या लड़की है? काम से लौटते हुए पकी हुई चपातियाँ और साफ की हुई सब्जी ले आती है। घर आकर पन्द्रह मिनट में खाना तैयार। आग लगे ऐसी रसोई को। हम लोगों ने तो हमेशा से घर का पका खाना ह खाया हे। बुरा तो लगता है लेकिन क्या करें!"
"आपको कम से कम घर का पका कुछ तो मिलता है मिसेस शर्मा !" मिसेस गुप्ता ने कहा।
" हमारी बहूरानी तो ऑफिस से आते हुए दो - दो ट्यूशन्स करती आती है और साथ ही टिफिन बी ले आती है। दाल में भिगो भिगो कर रोटियाँ हलक से नीचे उतारनी पड़ती है। बुरा तो लगता है लेकिन क्या करें?"
अब कायदे से मिसेस तिवारी को अपना अनुभव बाँटना चाहिये था परंतु वे शून्य में तकती बैठी थी। आखिर मिसेस शर्मा ने टोका¸ "क्यों मिसेस तिवारी! आपकी बहू तो घर पर ही होती है। आपकी तो अच्छी कटती होगी।"
भारी आवाज में मिसेस तिवारी बोली¸ "मेरी बहू तो मेरे आते ही पूरा घर और मेरा बेटा ही मेरे भरोसे छोड़ अपने मायके चली जाती है... अच्छी कटती है मेरी।"
और वे उठकर चलने लगी। घर में बड़ा अँधेरा था।