घाटियों से लौटती प्रति ध्वनि की तरह कथाएं / जयप्रकाश चौकसे

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घाटियों से लौटती प्रति ध्वनि की तरह कथाएं
प्रकाशन तिथि :29 सितम्बर 2016


अनुभवी रंगकर्मी फिरोज खान ने एक अभिनव प्रयोग यह किया है कि के. आसिफ की 'मुगले आज़म' से प्रेरित एक नाटक तैयार किया है, जो पहली बार इक्कीस अक्टूबर को मुंबई में प्रस्तुत किया जाएगा। उन्होंने मूल फिल्म के गीत भी अपने नाटक में शामिल किए हैं और कुछ संवाद भी जस के तस ही रखे हैं। अंग्रेजी भाषा में बनी 'माय फेयर लेडी' और 'साउंड ऑफ म्यूजिक' भी एक ऑपेरा पर आधारित फिल्में थीं। 'साउंड ऑफ म्यूजिक' से प्रेरित हिन्दुस्तानी फिल्म गुलज़ार की बनाई 'परिचय' थी और इसका गीत संगीत भी 'साउंड ऑफ म्यूजिक' से ही प्रेरित था। रंगकर्मी फिरोज खान लंबे अरसे से शशि कपूर और पृथ्वी थियेटर से भी जुड़े रहे हैं। सितारा रहे फिरोज खान से अलग व्यक्ति हैं रंगकर्मी फिरोज खान। एक और संयोग यह है कि 'मुगले आजम' में शापुरजी पालनजी ने पूंजी निवेश किया था और वे ही इस नाटक के भी पूंजी निवेशक हैं। ज्ञातव्य है कि पालनजी एक विश्वविख्यात इमारतें बनाने वाली अत्यंत प्राचीन कम्पनी है, जिसने दुबई और लंदन में भी इमारतों का निर्माण किया है। शापुरजी पालनजी की रुचि फिल्मों में नहीं, वरन रंगमंच में थी और वे पृथ्वीराज कपूर से बहुत प्रभावित थे। पृथ्वीराज कपूर की सिफारिश पर ही उन्होंने के. आसिफ की 'मुगले आजम' में धन लगाया और दिलीप कुमार के साफ-सुथरे व्यवहार तथा सुसंस्कृत व्यक्ति होने के कारण 'गंगा-जमुना' में भी धन लगाया। शापुरजी पालनजी के हृदय में पृथ्वीराज कपूर के लिए इतना आदर रहा कि शशि कपूर के कर्ज के भार से दबने पर उन्होंने पृथ्वी थियेटर्स के सामने उनकी खरीदी जमीन पर एक बहुमंजिला इमारत अपने धन से निर्मित की और शशि कपूर के सारे कर्ज अदायगी के बाद जो मंजिलें बची थीं, वे ही अपने लिए लीं। इसी इमारत का ऊपरी माला शशि कपूर का निवास स्थान है।

यह संयोग भी देखिए कि इसी इमारत के पड़ोस में कैफी आज़मी की इमारत भी है और किसी दौर में शशि कपूर और शबाना आज़मी का प्रेम प्रसंग भी सुर्खियों में रहा है। आज भी शशि कपूर व्हील चेयर में पृथ्वी थियेटर लाए जाते हैं और कैम्पस में लगे उसी वृक्ष के नीचे बैठते हैं, जहां कभी वे और शबाना आज़मी बैठकर तारों की दुनिया के बारे में बातें करते थे और वृक्ष की डालियों से छनकर रोशनी उनके माथों पर नज़्मों की तरह चस्पा हो जाती थीं।

शापुरजी और पालनजी सगे भाइयों ने पुश्तों पहले निर्णय किया था कि शापुरजी अपने पुत्र का नाम पालनजी रखेंगे और पालनजी शापुरजी रखेंगे। इन पारसी भाइयों को मनुष्य परखने की विलक्षण क्षमता थी। इंदौर के उत्तम झंवर ने ब्रोकर की तरह कॅरिअर शुरू किया था और शापुरजी पालनजी ने उनकी मेहनत देखकर अपनी कुछ जमीन उन्हें दी थी कि इमारत बनाकर और बेचकर वे जमीन की कीमत अदा करें। इस शुभारंभ से ही उत्तम झंवर ने अपनी कम्पनी 'मौर्या' की स्थापना की। शापुरजी-पालनजी की वर्सोवा मुख्य मार्ग पर एक इमारत थी, जो उन्होंने के. आसिफ को अपना फिल्म दफ्तर बनाने के लिए दी थी और इसी इमारत की ऊपरी मंजिल पर साहिर लुधियानवी रहते थे। यह जगह भी शापुरजी-पालनजी ने उत्तम झंवर को दी, जहां वे एक नई इमारत बना रहे हैं। इमारत बनाने के पहले की गई सफाई में उत्तम झंवर को 'मुगले आज़म' की कुछ प्रचार सामग्री भी मिली, जो उन्होंने पालनजी के दफ्तर में जमा की। ज्ञातव्य है कि बोनी कपूर के पिता सुरिंदर कपूर 'मुगले आज़म' के निर्माण के समय के. आसिफ के सहायक निर्देशक रहे हैं। कहीं फिल्मों में भव्यता के लिए आग्रह बोनी कपूर को इसी स्त्रोत से तो नहीं मिला या उनके पिता के कभी राजकपूर के पड़ोसी होने का प्रभाव है?

ज्ञातव्य है कि इम्तियाज इली 'ताज' ने 1922 में लाहौर में सलीम अनारकली की प्रेम गाथा लिखी, जिसमें ऐतिहासिक तथ्य मात्र दस प्रतिशत है और नब्बे प्रतिशत कल्पना है। सभी प्रेम किवदंतियां इसी तरह लोकप्रिय हुई हैं। यह सब तथ्य व कल्पना के संगम हैं और निचली सतह पर बहती अदृश्य सरस्वती भी प्रतीक है कि ज्ञान की धारा इसी तरह बहती रही है। इतिहास, साहित्य व दर्शन में भी अदृश्य से रहे लोगों का योगदान बहुत है। भारत की आज़ादी के संघर्ष में लाठियां खाने वाले, रक्त बहान वाले अनेक लोग गुमनाम हैं।

पंडित जवाहरलाल नेहरू गांधीजी की समाधि पर फूल चढ़ाने जाते, तो इन अनजान व गुमशुदा लोगों की स्मृति में भी फूल अर्पित करते थे तथा इसी परम्परा का निर्वाह इंदिरा गांधी ने भी किया। आज तो जवाहरलाल नेहरू के काम और विचारों को अनदेखा करने के योजनाबद्ध प्रयास हो रहे हैं। इतिहास से खिलवाड़ को भी आज देश-प्रेम कहा जा रहा है। कुछ इबारतें मिटाए नहीं मिटती चाहे सरकारी डस्टर कितना भी मजबूत क्यों न हो।

इंदौर में जन्मे दीपक सालगिया ही शापुरजी पालनजी के फिल्म विभाग के शिखर अधिकारी हैं। लेख के लिए पत्रकार मालिनी नायक और दीपिका गहलोत का आभारी हूं।