घायल शहर की एक बस्ती / मुद्राराक्षस
Gadya Kosh से
मैं जिस शहर (मेरठ) में पल कर बड़ा हुआ, वही शहर सांप्रदायिक दंगों की आग में झुलसता रहा है। शहर में बस्ती-बस्ती आग बरस रही है। मार काट मची है। लोग चीखते-चिल्लाते जान बचाकर भाग रहे हैं। वैसा खौफनाक मंजर बचपन में भी देखा और जवानी में भी। मेरठ शहर का चप्पा-चप्पा हिंदू मुस्लिम दंगों का चश्मदीद गवाह रहा है। इन्हीं दंगों में दलितों को यह अहसास भी होता रहा है कि वे न हिंदू हैं और न मुसलमान। उनके भीतर से सवाल दर सवाल उभरते रहे हैं। इन्हीं सवालों के उत्तर तलाशने की कोशिश ‘‘घायल शहर की एक बस्ती’’-लगभग डेढ़-दो दशक पूर्व यह कहानी लिखी थी, छपी बाद में।