घासीराम मास्साब / पल्लवी त्रिवेदी

Gadya Kosh से
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आज नल आने का दिन है.... मोहल्ले में एक दिन छोड़कर नल आते हैं।नल आने का दिन घासीराम मास्साब की कसरत का दिन भी होता है। पूरी टंकी भरने के लिए डेढ़ सौ बाल्टी भरकर ऊपर दूसरी मंजिल पर लाना कोई जिम जाने से कम है क्या? हाँ...ये अलग बात है की इस कसरत से घासीराम मास्साब के दाहिने हाथ की मसल तो सौलिड बन गयी पर बांया हाथ बेचारा मरघिल्ला सा ही है। सो अब मास्साब फुल बांह की बुश्शर्ट ही पहनते हैं।

पांच बजे से बाल्टी चढानी शुरू की...अब जाके साढ़े छै बजे टंकी भरी।  इस नल के चक्कर में मास्साब मंजन कुल्ला भी न कर पाए....ऊपर से मास्टरनी की चें चें... । मास्साब को कितने दिन हो गए पानी भरते भरते पर आज तक सीढियों पर पानी गिराए बिना बाल्टी ऊपर चढाना न सीख पाए।  मास्टरनी पढ़ाने वाली मास्टरनी नहीं हैं , वो तो मास्टर जी की अर्धांगिनी होने से जो सात सुरों में से एक " नी " चिपक गया है ,उसी के कारण मास्टरनी बन गयी हैं और उस सुर का खूब उपयोग कर रही हैं ...। उनके सारे आलाप वीर रस के होते हैं और उन आलापों पर मास्साब की प्रतिक्रिया करुण रस की होती है। मास्टरनी को भोर की बेला में भड़कने में महारत हासिल है।गजराज की चिंघाड़ मास्टरनी के मुकाबले कातर प्रतीत होती है। सूरज की किरणें, ओस की बूँदें, तितली, वगेरह वगेरह..  सुबह को आनंददायक बनाने वाले सारे आइटम मिलकर भी मास्टरनी की सुबह को कभी सुहानी न बना पाए। मास्टरनी के चिडचिडे स्वभाव से खुशियों को धराशायी होते दो पल नहीं लगते।

खैर..मास्साब को सात बजे स्कूल जाना है सो मास्टरनी की चें चें पें पें को दर किनार करते हुए जल्दी जल्दी मंजन किया और चाय गटक कर निकल पड़े स्कूल की ओर। खटर पटर करती काली जेंट्स साइकल पर भूरी शर्ट और काले पेंट में मास्साब सही में जंच रहे हैं। मास्साब हमेशा भूरे और काले रंग ही धारण करते हैं,....कभी भूरा पेंट तो कभी भूरी शर्ट। कभी काली शर्ट ,कभी काला पेंट। इसलिए नहीं कि मास्साब को ये रंग पसंद हैं....बल्कि इसलिए क्योंकि ये रंग गंदे कम दिखते हैं। धूल मिटटी इन पर चढ़कर इन्ही के रंग में रंग जाती है सो एक हफ्ते का काम चल जाता है। स्कूल पहुँचते ही मास्साब जल्दी जल्दी लपके मैदान की ओर जहां प्रार्थना प्रारंभ हो चुकी है...मास्साब ने अपने गंजे सर के आजू बाजू के बाल संवारे और हैड मास्टर के बगल में खड़े हो गए....हैड मास्टर ने घूरा कि "लेट काहे आये हो?" मास्साब ने समझ कर दीन हीन सा मुंह बनाया और हाथ से बाल्टी पकड़ने का इशारा किया । हैड मास्टर ने मुंह बिचका दिया कि "ठीक ठीक है।" घासीराम मास्साब पूरे वोल्यूम में प्रार्थना गा रहे हैं...." हे शारदे माँ....हे शारदे माँ " हैड मास्टर ने पुनः घूरा कि "गला जरा कम फाडो।" मास्साब ने टप्प से मुंह बंद कर लिया। सिर्फ होंठ हिलते रहे। प्रार्थना ख़तम हुई....बच्चे लाइन बनाकर कक्षाओं की ओर चल पड़े। दस कदम तक लाइन चली फिर चिल्ल पों करते झुंड ही झुंड नजर आने लगे। अब किसी मास्टर के बाप के बस की नहीं है कि इन होनहारों की लाइन दुबारा बनवा दे।

आहा ..क्या सुहाना दृश्य है कक्षा का । घासीराम मास्साब कुर्सी पर बिराज चुके हैं। छात्र छात्राएं भी आकर टाट पट्टियों पर अपना स्थान ग्रहण कर चुके हैं। ब्लैक बोर्ड पर कल आखिरी कक्षा लेने वाले मास्टरजी का कार्टून अभी तक बना हुआ है ।कार्टून के नीचे ही कलाकार का नाम भी उकेरा हुआ है।संभवतः कलाकार संटी, डस्टर , स्केल आदि दंड के साधनों के भय से बहुत ऊपर उठ चुका है। घासीराम मास्साब की नज़र अभी ब्लैकबोर्ड पर नहीं गयी है और जो दशा मास्साब की दिखाई पड़ रही है उससे यह पक्का हो गया है कि वे इस पीरियड में इस ब्लैकबोर्ड को देखने में रूचि भी नहीं रखते हैं।मास्साब ने जम्हाई लेते हुए बच्चों को पंद्रह मिनिट का समय दिया है ताकि सब अपनी अपनी जगह पर बैठ जाएँ। सुबह सुबह की कर्री मेहनत के बाद मास्साब को नींद के झोंके आने लग पड़े हैं। सरकारी स्कूल के अनंत फायदों में से एक फायदा यह भी दिखाई देता है मास्साब को। कभी भी खाया जा सकता है , कभी भी सोया जा सकता है , घर से खराब घड़ी लाकर उसे मनोयोग से सुधारा जा सकता है , गाहे बगाहे प्रिंसिपल की नज़र बचाकर पैर भी दबवाए जा सकते हैं , बच्चों के टिफिन पर बेहिचक हाथ साफ़ किया जा सकता है और बाकी ऐसे सारे कार्य जिनमे घर में टाइम खोटी करना पड़ता है , यहाँ किये जा सकते हैं। वो तो शौचालय सुविधा अभी तक सरकार नहीं दे पायी है वरना निवृत्ति भी यहीं होती।

" गोपाल...." मास्साब ने आवाज लगायी। गोपाल कक्षा का मॉनिटर है...आवाज़ सुनते ही हाजिरी का रजिस्टर लेकर खडा हो गया और मास्साब की तरफ से हाजिरी लेने लग गया। हाजिरी लेने भर से गोपाल अपने आप को आधा मास्टर समझता है....और घासीराम मास्साब का आधा काम कम हो जाता है। दोनों प्राणी खुश..। हाजिरी के बाद मास्साब ने घडी देखी। साला अभी भी आधा घंटा बाकी है। मास्साब बार बार सहायक वाचन की किताब खोलते हैं फिर बंद कर देते हैं....इत्ता आलस आ रहा है कि मन ही नहीं कर रहा पढाने का। एक एक पल युगों समान नज़र आ रहा है । जम्हाई पे जम्हाई... अंत में निद्रा देवी के आगे घुटने टेक दिए मास्साब ने और तब मास्साब आगे बैठे बच्चे से कहते हैं...."चलो पढना शुरू करो जोर जोर से और जैसे ही दस लाइनें पढ़ लो अपने पीछे वाले को दे देना...मुझे कहना न पड़े।"लो जी ....मास्साब ने ऑटो मोड में डाल दिया कक्षा को। अब झंझट ख़तम...आधा घंटे तक बच्चे ही बक बक करते रहेंगे। मास्साब ने चश्मा पहन लिया...एक आध झपकी आ भी गयी तो अब सारा इंतजाम हो चुका है। आगे बैठे खुशीराम ने पढना शुरू किया " एक थी चुरकी...एक थी मुरकी...."। ख़ुशी राम पढ़ रहा है। उसके पीछे बैठा गोपाल अपनी बारी के इंतज़ार में ठुड्डी पर हाथ धरे बैठा है। बाकी क्लास क्या करे....? कमला सरिता की चोटी खोलकर फिर से गूँथ रही है। शकुन रजनी के बालों से जुंए बीन रही है।गणेश ने अपना टिफिन निकालकर खाना शुरू कर दिया है। आम के अचार की महक सारी क्लास में फ़ैल गयी है। लीला सामने बैठी संगीता के स्वेटर के रुएँ धीरे धीरे खींचकर अपनी कॉपी में रखती जा रही है। विभिन्न रंगों के स्वेटरों को रुआं विहीन कर देने के उपरान्त उसकी एक गुड़िया बनाने की योजना है।कलुआ बोर हो रहा है सो सबसे पीछे बैठे बैठे टाट पट्टी को ही चीथे जा रहा है। कलुआ ने बोर हो हो के टाट पट्टी आधी कर दी है क्लास के पीछे कोने में टाट पट्टी की सुतलियों का ढेर लगा है। ढेर भी बड़े काम की चीज़ है....उस पर मजे से बैठा स्कूल का पालतू कुत्ता कचरू चुरकी मुरकी की कहानी सुन रहा है...संभवतः वही एकमात्र श्रोता है जो पढने वाले की मेहनत को सफल बना रहा है। प्रताप बुद्धू सरीखा मास्स्साब को एकटक देखे जा रहा है....जाने पी.एच. डी. ही कर मारेगा क्या? उसकी आँख मास्साब पर से नहीं हटती है। अचानक वो बगल वाले बजरंग से कहता है..." देखना अब सर लुढ़केगा मास्साब का"। बजरंग जैसे ही मास्साब को देखता है...दन्न से मास्साब का सर कंधे पर लुढ़क जाता है।सारी कक्षा जोर से हंसती है। मास्साब चौक कर जाग गए हैं और गुस्से में हैं..." ए प्रताप तू ज्यादा पुटुर पुटुर मत किया कर।पढने लिखने में नानी मरती है तेरी....चल खडा हो जा " प्रताप बिना देर किये खडा हो गया है। बजरंग उसके पैर में चिकोटी काटता है। मास्साब अभी जागे हुए हैं और क्रोधित भी हैं.....एक चाक का टुकडा उठाकर मारते हैं बजरंग के सर पर। बजरंग के सर पर चाक पट्ट से पड़ी। अगर मास्साब चाकें बच्चों के सर पर पटापट न मारें तो स्कूल में चाक का स्टॉक जीवन भर न ख़त्म हो।

अब मास्साब अपनी सारी चाक ख़तम करेंगे....उन्होंने कई टुकड़े करके रख लिए हैं। जगन पढ़ रहा है...." चुरकी ने मुरकी से कहा....."

अबे , अभी तक ख़तम नहीं हुई तेरी चुरकी मुरकी।"

हो गयी...मास्साब तीसरी बार चल रही है।" जगन खी खी कर हंस दिया।

मास्साब की चौक तैयार थी.....निशाना साधकर फेंकी जगन पर....जगन ने सर दायीं तरफ झुका लिया।चौक जाकर पड़ी उषा की नाक पर।उषा तिलमिला गयी....यूं भी सबसे लडाकू लड़की ठहरी क्लास की । ' हों हों ' करके रोना शुरू कर दिया। अब मास्साब घबराए। सिटपिटाते हुए बिटिया बिटिया करते उषा के पास पहुंचे। " मैं आपकी शिकायत अपने पापा से करुँगी....देख लेना।

मेरेको कित्ती लग गयी।" उषा को बड़े दिनों बाद मौका मिला था मास्टर से उलझने का। वैसे भी क्लास के बच्चों के लड़ लड़के वह उकता गयी थी। मास्साब पूरे जतन से उषा को मनाने में जुट गए हैं...अभी उषा के पिताजी आयेंगे। पूरा स्कूल सर पर उठा लेंगे।उषा का लडाकू स्वभाव उसके पिता से ही उसमे ट्रांसफर हुआ है। मास्साब को पसीना आ गया उषा को मनाते मनाते पर उषा सुबक सुबक के ढेर करे दे रही है।मास्साब उषा के आंसू पोछ रहे थे ... वहाँ तक तो ठीक है पर अब नाक भी पोंछनी पड़ रही है। उषा भी रो रो के अब बोर हुई। आंसुओं की आखिरी खेप जैसे ही पूरी हुई...उषा के मुंह से निकला " एक तो अगले हफ्ते तिमाही परीक्षा है ..उसकी तैयारी भी नहीं कर पायी थी ऊपर से आपने मेरी नाक में दे दी।अब मैं क्या करुँगी?"

मास्साब बिना एक भी क्षण की देरी किये बोले " अरे...बिटिया तू क्यों चिंता करती है परीक्षाओं की।मैं सब देख लूँगा तू तो मजे से रह।"

उषा रानी अन्दर से भारी प्रसन्न हुईं पर प्रत्यक्ष में ऐसा मुंह बनाया मानो मास्साब पे एहसान पेल रही हों पढाई न करके। चलो अंततः उषा प्रकरण समाप्त होता है। उषा का रुदन शांत करवा के मास्साब पसीना पोंछ ही रहे थे कि अचानक फिर से रोने की जोरदार आवाज़ कक्षा में गूंजी। मास्साब के तो प्राण सूख गए। घबरा के पीछे मुडे तो जान में जान आई....अब की बार उषा नहीं थी। प्रेमलता की माँ उसकी छोटी बहन को उसके पास छोड़ने आई थी। "ले संभाल इसे..." लगभग घिसटती हुई धूल भरी,जोर जोर से रोती , नाक के फुग्गे फुलाती चार साल की मरियल सी लड़की प्रेमलता से आकर चेंट गयी। ज्यादा रोये तो इसे ये बेर खिला देना.... " कहते हुए माँ ने आठ-दस बेर प्रेमलता के बस्ते के ऊपर रख दिए हैं।

बेर की खटास पूरे कमरे में फ़ैल गयी ।बहन तो बेर क्या खाती। दस बेर पंद्रह बच्चों में बंट गए। मास्साब फिर से कुर्सी पर बैठकर घडी देखने लग गए हैं। अब वो प्रतीक्षित क्षण आ गया है जिसका बच्चों और मास्साब दोनों को इंतज़ार था। आखिर घंटी बज गयी....एक पीरियड ख़तम हुआ। बच्चे एक दूसरे के ऊपर चौक और कागज़ वगेरह फेंक फेंक कर ऊधम करने में लग गए हैं।मास्साब दूसरा पीरियड लेने के पहले अध्यापक कक्ष में जाकर थोडा सुस्ता रहे हैं।पढ़ा पढ़ाकर मास्साब का सिर दुःख गया है। इसी प्रकार मास्साब ने हर कक्षा में कड़ी मेहनत से पढ़ाकर दिन निकाल दिया है।और इसी प्रकार हर मास्टर ने इस कक्षा में पढ़ा पढ़कर भी दिन निकाल दिया है । तो एक दिन और सुख से निकल गया ।ब्लैकबोर्ड पर बना शिक्षक का कार्टून यथावत है । शासकीय शाला से विद्या बैरंग वापस लौट गयी । ज्ञान स्कूल की बाउंड्री फांदकर अन्दर प्रवेश नहीं कर पाया , स्कूल के गेट उसके लिए पूर्व से ही बंद थे । स्कूल के बाहर की दीवार पर लगे शिक्षा विभाग के होर्डिंग पर कुत्ता मूत्र विसर्जन कर रहा था , वही होर्डिंग जिस पर " शिक्षा हमारा अधिकार " नारा लिखा हुआ था।

"चलो...एक दिन की तनखा पक गयी.... "कहते हुए छुट्टी के बाद मास्साब घर पहुँच गए हैं। घर पर सब्जी का थैला बेताबी से मास्साब का इंतज़ार कर रहा है। मास्साब को घर पर गुस्सा होने या खीजने की सुविधा प्राप्त नहीं है।लगभग रिरियाते हुए मास्टरनी से बोले " अरे...जरा सांस तो ले लेने दो। थोडा फ्रेश तो हो लूं।" मास्टरनी गुर्राई  " सब्जी लाने में तुम्हारी सांस रुक जायेगी क्या? और..ये फ्रेश व्रेश तुम स्कूल से ही होकर क्यों नहीं आते हो? अब देर न करो और जाओ...." मास्साब आदेश के पालन में चल पड़े सब्जी लाने। सब्जी लाकर रखी....। मास्टरनी द्वारा बताये गए अन्य घरेलू कार्यों को भी कुशलता से पूर्ण करने के बाद स्कूल के बच्चे ट्यूशन पढने आ गए।यही एक घंटा ऐसा था जब मास्साब को घर के कामों से मुक्ति मिलती थी...अरे इसलिए नहीं कि मास्साब पढ़ने में व्यस्त हो जाते थे। बल्कि चंदू, प्रकाश, मनोहर ,दीन दयाल आदि बच्चे मास्साब के हिस्से का कार्य ख़ुशी ख़ुशी कर देते थे। उन्हें कौन सा पढने में भारी रस आता था। घर की छत धोकर, मास्साब की लड़कियों के लिए बाज़ार से मैचिंग की बिंदी चूड़ी लाकर, मास्टरनी का धनिया साफ़ करके ही उन्हें परीक्षा में संतोष प्रद नंबर मिल जाते हैं। अच्छे नंबरों के लिए किताबों में सर खपाने की कोई ज़रुरत नहीं पड़ती।  

शाम के वक्त मास्टरनी भजन मण्डली के सक्रिय सदस्य के रूप में मंदिर जाती हैं...जहां नियमित रूप से अच्छे स्वास्थ्य हेतु निंदा रस का सेवन किया जाता है। मास्टरनी इस मोहल्ले के मामलों में ईश्वर से ज्यादा अन्तर्यामी हैं। किस की छोरी किसके छोरे के साथ शहर के दूसरे छोर में स्थित पार्क में क्या कर रही होगी , वे मंदिर में बैठे बैठे बता देने में सक्षम हैं।

इस खाली समय का उपयोग मास्साब आराम फरमाने में करते हैं। इसी एक घंटे में मास्साब टी.वी. पर समाचार देख लेते हैं। मास्टरनी के आने के बाद सीरियलों का अंतहीन सिलसिला शुरू हो जाता है। आज मास्साब रात की नींद भी अच्छी प्रकार से लेंगे क्योंकि कल नल नहीं आएगा। मास्साब के चार बच्चे हैं...जिनमे सबसे छोटा पिंटू चार साल का है और पूरे समय मास्साब की गोद में लटका रहता है।बाकी बड़े बड़े हैं... उन्हें मास्साब की कोई ज़रुरत नहीं है ।

खैर मास्साब की जिंदगी का कोई भी दिन उठाएंगे तो बिना किसी परिवर्तन के बिल्कुल यही दिनचर्या देखने को मिलेगी। फर्क केवल इतना है कि जिस दिन नल नहीं आएगा मास्साब को सुबह में एक घंटा और सोने को मिलेगा। मास्साब को अपनी जिंदगी से कोई  शिकायत नहीं , कोई इच्छाएं नहीं , कोई अपेक्षाएं नहीं और कोई मत अभिमत भी नहीं।

मास्साब मानव से मशीन में कब तब्दील हो गए , ये वे स्वयं नहीं जानते।

लोग कहते हैं मास्साब बहुत गऊ आदमी हैं। मैं भी हाँ में हाँ मिलाना कहती हूँ मगर कह बैठती हूँ कि 'नहीं...ये मास्साब बहुत खतरनाक आदमी है' क्योंकि एन टाइम पे मुझे पाश की कविता स्मरण हो आती है।

"सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना

तड़प का न होना

सब कुछ सहन कर जाना

घर से निकलना काम पर

और काम से लौटकर घर आना

सबसे ख़तरनाक होता है

हमारे सपनों का मर जाना"