घुमक्कड़ी न भूलें / कैथलीन रूनी / अनुराधा सिंह

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(कविता का शहरी आवारागर्दी से समृद्ध इतिहास)

“दिन शहर में बदल गया / और शहर मस्तिष्क में।” जेसिका ग्रीनबौम कुछ इस तरह से अपनी एक वाक्य की कविता ‘मैं तुम्हें न्यूयॉर्क शहर की सब खिड़कियों से अधिक प्रेम करती हूँ” शुरू करती हैं। अक्सर, जब हम किसी ऐसे भूदृश्य के विषय में सोचते हैं जहाँ कवि घूमते फिरते और अपना मन लगाते हों तो हमें शहर नहीं गाँव याद आते हैं। सर्जनात्मकता को उद्दीप्त करने के लिए देहाती शगल के तौर पर किये जाने वाले भ्रमण की संकल्पना बहुधा महान रोमांटिक कवियों के बहुप्रचलित ग्राम्य भ्रमण से आयी है : जैसे विलियम वर्ड्सवर्थ का एक बादल की तरह अकेले भटकते फिरना और सैमुएल टेलर कोलरिज की लगातार एक सप्ताह तक कुम्ब्रियन माउनटेन में चलने वाली एकाकी यायावरी। लेकिन ग्रीनबौम की कविता न केवल स्वयं इसका हिस्सा बन जाती है बल्कि शहरी घुमक्कड़ी से समृद्ध कविता को परिभाषित करने में सहायक भी सिद्ध हुई है।

शहर की सड़कों पर बिना किसी मानचित्र या जीपीएस की सहायता के निरुद्देश्य भटकने की तुलना एक काव्य संकलन के पन्ने पलटने के अनुभव से की जा सकती है। वैसे ही जैसे आप किसी सड़क या पृष्ठ पर एक मोड़ लेते हैं, जैसे संरचनाओं और आकृतियों के प्रति आकृष्ट होते हैं, जैसे कुछ दुकानों या कविताओं को दूसरों के लिए नज़रअंदाज़ करते हैं। माइकल द सेर्ता अपनी १९८४ की पुस्तक ‘द प्रैक्टिस ऑफ़ एवरी डे लाइफ’ के एक खंड ‘वाकिंग इन द सिटी’ में कहते हैं, ‘घूमने में भी एक प्रकार की आलंकारिक वाकपटुता है, मुहावरों और साहित्यिक अलंकारों को घुमा देने की कला किसी मार्ग की रचना करने के समान है’। फ्रैंक ओ हारा दिशाहीन घुमक्कड़ी के आनंददायक चित्रण के लिए सुविख्यात हैं भले ही वह साहित्यिक घुमक्कड़ी हो या पैरों पर चल कर की गयी। उनकी ‘मेडीटेशंस इन एन इमरजेंसी’ इस बात का बहुत ठोस उत्तर प्रस्तुत करती है कि क्यों कुछ कवि गाँव देहात में घूमने के बजाय शहरी घुमक्कड़ी को तरजीह देते हैं और प्रकृति की बजाय संस्कृति के माध्यम से खोज बीन करना पसंद करते हैं। वे कहते हैं, “मैंने अपने आपको कभी देहाती जीवन की प्रशस्ति या किसी चरागाह में घटित अपने निर्दोष अतीत की पथभ्रष्ट करतूतों की स्मृतियों से अवरुद्ध नहीं किया। अपनी मनपसंद हरियाली का आनंद उठाने के लिए न्यूयार्क शहर को छोड़ कर जाने की आवश्यकता भी नहीं – क्योंकि मैं तो घास की उस तीख़ी धार की सुन्दरता का आनंद भी तब तक नहीं उठा सकता जब तक कि मुझे पता न चल जाये कि उसके एन बगल में लोगों के गुजरने की एक पगडंडी, रिकॉर्ड स्टोर या ऐसा ही कोई और संकेत उपस्थित है जिससे लोगों में जीवन के प्रति रूचि और उत्साह का पता चलता है।“

जोर्ज ओपन जो ओ हारा के लगभग समकालीन लेकिन कुछ अधिक मुखर दार्शनिक थे, के पुलित्ज़र पुरुस्कार से सम्मानित संकलन की शीर्षक कविता ‘ऑफ़ बीइंग ह्यूमन’ के चालीस क्रमांकित खण्ड हैं, और प्रत्येक खण्ड शहर और और उसके वातावरण की ही व्याख्या करता है। इस कविता में वे यह निष्कर्ष निकालते है कि एक शहर मनुष्य के जीवन की सबसे अन्तर्दृष्टिपूर्ण उपलब्धि हो सकता है। ओपन ने अपनी वह कविता १९६० के मध्य में पूरी की थी लेकिन उसका लहजा और सरोकार आज भी प्रासंगिक हैं, एक प्रकार से भविष्यबोधक। उन्होंने न केवल इस कविता को २०वीं शताब्दी की कालजयी रचना के रूप में प्रस्तुत किया, बल्कि २१वीं सदी के लिए एक मार्गदर्शक की भूमिका भी निबाही। ओपन खण्ड ६ में लिखते हैं —

हमें दबाया गया है

एक दूसरे पर दबाया गया है

और जो कुछ भी होगा

हमें तुरन्त बता दिया जाएगा

इसे 2016 के सन्दर्भ में देखें तो यह पद्यांश इस ग्रह के भीड़ भरे शहरों और इण्टरनेट व सोशल मीडिया की अति-उपलब्धता के विषय में भी प्रासंगिक है। पहला खण्ड इस प्रकार शुरू होता है — “कई चीज़ें हैं / हम उनके मध्य रहते हैं / और उन्हें देखना / खुद को जानने जैसा है।” 1973 में पॉल ज़्वाइग अपने ‘पार्टीज़न रिव्यु’ में लिखते हैं — “कविता अतिरिक्त उछालों और निपुण साहचर्य से आगे बढ़ती है“। यह कविता की ऐसी व्याख्या है जो एक लक्ष्यरहित, लेकिन तुष्टिदायक भ्रमण से गुण धर्म में समानता रखती है।

ओपन खंड 12 का आरम्भ, दार्शनिक और गणितज्ञ अल्फ्रेड नॉर्थ वाइटहैड के चिंतन से विरोधाभास रखती हुई एक उक्ति से करते है, “इस तरह की व्याख्या में यह परिकल्पित है कि एक अनुभवजन्य विषय वास्तविक संसार के प्रति संवेदनशील प्रतिक्रिया देने का अवसर होता है”, निश्चित रूप से इस तरह की संवेदनशील प्रतिक्रिया कई माध्यमों से प्राप्त की जा सकती है लेकिन कविता और घुमक्कड़ी उनमें से दो सबसे अधिक प्रभावशाली उपाय हैं।

यह आवश्यक नहीं कि इस तरह की अन्वेषणशील घुमक्कड़ी सदैव आनन्द प्राप्ति के लिए ही की जाए। मिसाल के तौर पर ओ हारा, या ट्रांसेंडेण्ट या ओपन; जैसों की कविताएं एक शहर और उसके बाशिंदों के जीवन का स्याह पक्ष भी प्रकाशित करती हैं। रॉबर्ट फ्रॉस्ट को देशीय कवि ही माना जाता रहा तथापि वे अपनी कविता ‘रात्रि का परिचित’ में वास्तविक व लाक्षणिक (आदर्श) दोनों रूपों में शहरी जीवन के अंधकारपूर्ण पक्ष को प्रस्तुत करते हैं —


मैं रात्रि से परिचित हूँ

बारिश में बाहर निकला- फिर बारिश में ही

शहर की सुदूरतम रौशनी से भी आगे निकल गया

फिर हेय दृष्टि से देखा शहर की म्लान गलियों को।


फ्रॉस्ट की ‘टेरज़ा रीमा’ उसके वक्ता की विषादयुक्त और अनिद्राजन्य सैर की लय को निरूपित करती है —


“मैं पहरेदार की गश्त के दौरान उसके पास से गुज़रा

नज़रें चुरा लीं

कि मैं बच रहा था सफ़ाई देने से”

ऐसी पंक्तियाँ न केवल नगरीय जीवन में अपरिचित व्यक्तियों के संपर्क में उत्पन्न हुई अपरिहार्य तथा बहुधा असुखद परिस्थितियों का चित्रण करती हैं बल्कि शहर में घूमने वाले लोगों के बीच प्रचलित इस विरोधाभास को भी सिद्ध करती हैं कि : ‘एक व्यक्ति शहर के सबसे घने जनसंख्या केंद्र में भी अपने आपको पूरी तरह एकाकी महसूस कर सकता है।‘ ऐन सेक्सटन अपनी ‘45 मर्सी स्ट्रीट’ कविता में शहर में भ्रमण के उद्विग्न और व्याकुल पक्ष की पड़ताल करतीं हैं साथ ही वे भ्रमण के प्रवाह में बहने और स्वप्न देखने की अवस्था में समरूपता देखती हैं। वे कहती हैं —


‘मेरे सपने में

मैं पूरी बीकन पहाड़ी पर ऊपर नीचे घूम रही हूं

ढूंढते हुए सदयता नामक मार्ग को

पर वह कहीं नहीं है

बैकबे में जाकर भी ढूंढती हूं

लेकिन वह वहां भी नहीं है

वहाँ भी नहीं है।‘

शहरों में सड़कों पर बने हुए संकेत और चिन्ह स्वभाव से ऐसे निर्देशात्मक होने चाहिए कि कोई वहाँ खो न पाए, लेकिन ऊपर दी गई कविता में कवियत्री “एक मार्ग के संकेत” को ढूंढती रहती है। ऐसा वह अपने आन्तरिक सुलझाव के लिए भी कर रही है जो बहुधा घूमने से ही प्राप्त होता है। लेकिन यहां वह फिर से खो जाती है गुमशुदगी का अहसास और बदलाव के अवशेष उसे चारों तरफ से घेर लेते हैं। सेक्सटन लिखती हैं —

“45 मर्सी स्ट्रीट,

तुम कहां चले गए

मेरी परदादी के साथ

उनके व्हेल की हड्डियों से बने कंचुक में

घुटने टेक कर”

इन कविताओं में वह व्यक्त करती हैं कि कैसे समय का प्रवाह शहरों और उनके बाशिंदों के साथ हमेशा रहमदिली से पेश नहीं आता है

शहर की सड़कों पर चहलकदमी पर आधारित कविताएँ न केवल अंदरूनी चिंताओं और शोक की अभिव्यक्ति करती हैं बल्कि बाह्य अन्याय और असमानता के दुःख भी उजागर करती हैं। ‘लन्दन’ में विलियम ब्लेक अपने पाठकों को क्षतिग्रस्त शहर के कुरूप और निष्ठुर दौरे पर ले जाते हैं।

मैं राजाज्ञा द्वारा नियंत्रित सड़कों पर भटकता हूँ

शासन द्वारा नियंत्रित टेम्स नदी के समीप

हर चेहरे पर कई निशान देखता हूँ मैं

दुःख और दुर्बलता के निशान

वह घूमने वालों का ध्यान शहर के वंचितों की तरफ आकर्षित करते है। मजलूम चिमनी साफ़ करने वाला मजदूर, एक राष्ट्र के लालच पर जान दे देने को विवश सैनिक और आर्थिक कारणों से जबरन देह वृत्ति में धकेल दी गयी युवती। यद्यपि ‘लन्दन’ १७९४ में प्रकाशित हुए थी तथापि उनके द्वारा की गयी नगरीय अन्याय की विवेचना अब भी समीचीन और धारदार है।

निक्की योवन्नी ‘वाकिंग डाउन पार्क’ में इस प्रकार की समालोचना का अधिक सामायिक स्वरुप प्रस्तुत करती हैं। पहले ही छंद में वे शहरी घुमंतुओं से सीधे मुख़ातिब होती हैं।

एम्स्टर्डम या कोलंबस में

पार्क की ओर चलते हुए

तुम क्या कभी यह सोचने के लिए ठहरते हो

कि पहले यह मार्ग कैसा दिखता था

क्या तुम कभी ठहरे सोचने के लिए

कि स्टॉक एक्सचेंज की तरफ जाती

भूमिगत रेल पर सवार होने से पहले

तुम कहाँ चल रहे थे दरअसल।

(हम स्टॉक एक्सचेंज नहीं/

खुद विनियमित स्टॉक हैं)

एक तरफ न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज जहाँ विक्रेता और खरीदार दोनों व्यापार के लिए पंजीकृत कंपनी के स्टॉक (पूँजी) के हिस्सों का विनिमय करते हैं। दूसरी तरफ अमेरिकी दास प्रथा के अंतर्गत मनुष्यों के स्टॉक (पशुधन) की खरीद फ़रोख्त की जाती है। अपनी इन अंतिम पंक्तियों की दीर्घ निरंतरता से वे दोनों का आव्हान करती है। कविता में ‘क्या तुमने कभी’ और ‘कभी’ की अनुप्रासीय आवृत्ति के बहाने वक्ता की आँखें बार बार शहर को निरखती हैं और तब अपना अंतिम प्रश्न पूछती हैं –

‘कभी सोचते हो कैसा लगेगा

यदि हमारी जड़ी बूटियाँ और अरबी के पत्ते

बढ़ते समय

और तोते बोलते समय

यही कोलाहल करें कि काला ही सुन्दर है, काला ही सुन्दर है’

और “कभी सोचते हो कि क्या संभव है /हमारे लिए/ खुश रह पाना।” योवन्नी इतिहास के अपमार्जन या विलोपन की कारगुजारी की पड़ताल करती हैं जो न केवल न्यूयॉर्क में बल्कि महानगरों में किया गया। और पाठकों को यह याद रखने के लिए आमंत्रित करती हैं कि आज शहरों में हमारे अफ्रीकी अमरीकी नागरिक जिस खेदजनक हालात का सामना कर रहे हैं दरअसल उसकी जड़ें अतीत की अलंघनीय अमानवीय और शोषक कुप्रथाओं में छिपी हैं। उनके घुमक्कड़ व्यक्तित्व द्वारा किया गया बारीक अवलोकन उन्हें शहर के काल्पनिक पुनः समवाय की अनुमति देता है। हम यह कल्पना करने के लिए प्रोत्साहित होते हैं कि कैसे यह शहर जहाँ हम रहते हैं किसी विचार या अवधारणा को प्रवर्तित करने में सफल या असफल होता है, कैसे कई अदृश्य ताकतें मिल कर उसे उसके वर्तमान स्वरूप में ढालती हैं और कैसे यह कोई अन्य आकार ग्रहण कर सकने के योग्य हो सकता है।

नगरीय भ्रमण और कविता के अन्तर्निहित सम्बन्धों को अनेकों कवियों ने पहचाना है लेकिन उसे व्यवस्थित तरीके से प्रस्तुत करने का काम पहली बार चार्ल्स बुडलेयर ने किया था। वे अपने गद्य और खासतौर पर ‘पेरिस स्प्लीन’ (मृत्योपरांत १८६९ में प्रकाशित) नामक संग्रह में संकलित कविताओं में स्वीकार करते हैं कि शहरी घुमंतुओं और कलाकारों के भीतर बारीक अवलोकन और उत्सुकता की प्रवृत्ति एक नियामक संवेग के रूप में पाई जानी चाहिए। अपने १८६३ के निबंध ‘द पेंटर ऑफ़ मॉडर्न लाइफ’, में बुडलेयर घुमक्कड़ी या शहर भर में किये जाने वाले उद्देश्यरहित भ्रमण के सिद्धांतों का उद्घाटन करते हैं। वे एक बराय नाम चित्रकार और दरअसल ठेठ घुमक्कड़ कोन्स्टैन्टिन गाइज़ के विषय में कहते हैं, “एम जी को समझने के लिए, जो पहली बात ध्यान रखनी चाहिए वह यह कि इस विलक्षण व्यक्तित्व का आरम्भ जिज्ञासा नामक बिंदु से होता है।’

जिज्ञासु होने का अर्थ, कुछ सीखने या जानने के लिए उत्सुक होना हो सकता है। दूसरा अर्थ है विचित्र और असाधारण होना। बुडलेयर के साहित्यिक कृतित्व दोनों ही प्रकार की परिभाषाओं का उदहारण देते हैं शब्द व्युत्पत्तिशास्त्र के अनुसार, जिज्ञासा (curiosity) शब्द की व्युत्पत्ति लैटिन के curiosus से हुई है जिसके अर्थ हैं, ‘सावधान, परिश्रमी, उत्सुकता से पड़ताल करना’; आदि, यह cura या ‘परवाह’ से संबंधित भी है। दूसरे शब्दों में, स्वयं से बाहर निकल कर शहर पर ध्यान केन्द्रित करते समय अपने भीतर जो संवेग उत्पन्न होते हैं वे भी परवाह का ही एक रूप हैं।

पॉल वैलरी के अनुसार “कविता शब्दों के माध्यम से काव्यात्मक मनोदशा उत्पन्न करने का यंत्र है।” शहर में भ्रमण करने से वह मशीन तुरत फुरत चालू हो जाती है। सार रूप में, घूमना एक विशेष प्रकार की मनोदशा को उत्पन्न करना है; कविता करना - या एक कविता पढ़ना भी ऐसा ही है। अर्थात् आप अपने लिए उसकी पुनर्रचना कर रहे हैं जिसकी रचना कवि आपके लिए पहले ही कर चुका है।

शहर में भ्रमण और कविता का पाठ काल के प्रवाह को विचारपूर्वक और रुचिपूर्वक बाधित करने के तरीके हैं, और संभवतः अपने अनुभवों को तीव्रतर और एकाग्र करने के भी। दोनों ही दक्षता, अधिकतम लाभ प्राप्ति तथा उत्पादकता जैसे वैश्विक पूंजीवाद की गति से निर्धारित प्रचलित अनुमानों और कल्पनाओं को नज़रंदाज़ और खंडित करने के अवसरों का निर्माण करते हैं। कविता अपने प्रारूपीय स्तर पर ही अपूर्ण है; यह निर्देशों की सारणी, ज्ञापन या मज़मून नहीं है। टहलना कहीं पहुचने का त्वरित तरीका कभी नहीं हो सकता। लेकिन भ्रमण और कविता दोनों ही समय और स्थान के सघन और गहन अनुभवों को ग्रहण करने की क्षमता रखते हैं।

जेक्स रोबॉड अपनी कविता ‘अमंग मेनी पोयम्स’ में इस पूरी मीमांसा का सारतत्व खींच निकालते हैं। मैरी ऐन कॉज़ के द्वारा किये गए अनुवाद में लेखक याद करता है, “यह मेरे पैरों के द्वारा लिखी गयी कविता है/ मैं हमेशा अपनी कविताओं को / चलते समय मौन में और मस्तिष्क में रचता हूँ।” रोबॉड हमें नगरीय भ्रमण, लेखन, और पठन की अन्तर्सम्बद्ध काल्पनिक शक्ति को समझने के लिए जागरूक बनाते हैं। यह सोचने के लिए प्रोत्साहित करते हैं कि भविष्य में किस तरह के नगरों का निर्माण हो और किस तरह की कविताओं को पढ़ा और लिखा जाए।

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद: अनुराधा सिंह