घुमाई की घुमाई और बात की बात / दीनदयाल शर्मा
चार आदमी इकट्ठे होकर बातें करने का समय अब नहीं रहा। मोबाइल पर चाहे घण्टों बातें करें। अब तो सफर के दौरान भी एक दूजे से बात करने का समय नहीं रहा, लेकिन आज के जमाने में भी कुछ लोग ऐसे बचे हैं जो बातें करने से नहीं चूकते। पंजाबी में एक कहावत भी है कि 'नचणवाळे दी एडी नीं टिकदी!' बात करने वाले को जब भी कोई आदमी मिल जाए तो वे अपनी बात शुरू कर देते हैं। रामा-स्यामा के बाद नाम-गांव और काम-धाम पूछ कर वे अपनी बात पर आते हैं। बात भी इधर-उधर की नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर की। हमारे भी एक मित्र हैं। बड़े विद्वान हैं लेकिन बातों के रसिया हैं। वे भी राष्ट्रीय लेवल की बात ही करते हैं। 'मॉर्निंग वाक' के दौरान वे अक्सर मिल जाते हैं। इस टाइम जाने-अनजाने और भी कुछ घुमक्कड़ लोग होते हैं। बस ऐसे ही मौके को हमारे मित्र तलाशते हैं। घुमाई की घुमाई और बात की बात।
आज भी वे अपनी आदत के अनुसार बोले-'क्या देश में भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा? इस प्रश्न पर सबकी राय अलग-अलग थी। एक घुमक्कड़ बोला- 'होगा क्यों नहीं! दिल्ली के युवा मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल जी ने भ्रष्टाचार खत्म करने की शुरूआत भी तो कर दी है। तभी दूसरा घुमक्कड़ बोला- 'पूरे देश में भ्रष्टाचार को खत्म करना केजरीवाल जी के बस की बात नहीं है! तभी तीसरा घुमक्कड़ बोला-'सब जगह केजरीवाल कैसे पहुंंचेगा? हमें भी तो सोचना चाहिए। अब चुप्पी तोडऩी जरूरी है।' तभी सबकी ओर देखते हुए हमारे मित्र ने दूसरा प्रश्न दागा-'सरकारी स्कूलों में सुधार के लिए किस प्रकार का प्रयास किया जाना चाहिए?'
मैं बोला-'पहला प्रयास तो ये हो कि स्कूलों का औचक निरीक्षण किया जाए और दोषी को दण्ड।'
'औचक निरीक्षण के अलावा और कोई प्रयास?'
'स्कूलों में वातावरण निर्माण किया जाना चाहिए।'
'वातावरण निर्माण से क्या होगा?'
तभी दूसरा घुमक्कड़ फिर बोला-'वातावरण निर्माण कैसे होगा? इसके लिए नीयत होनी चाहिए। जब टीचर्स की नीयत ही नहीं होगी तो कुछ भी नहीं होगा।'
तीसरा घुमक्कड़ बोला- 'सरकारी स्कूलों में चालीस-चालीस, पचास-पचास हजार रुपये लेने वाले शिक्षक बैठे हैं लेकिन ये सच है कि टीचर्स की नीयत खराब है। तभी तो किसी भी टीचर के बच्चे किसी ने सरकारी स्कूल में पढ़ते हुए देखे हैं?'
तभी चौथा घुमक्कड़ बोला-'टीचर की बात छोड़ो। किसी भी कर्मचारी या फिर व्यापारी का बच्चा सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ता।'
मैं बोला-मैंने पढ़ाया था मेरे बेटे को दसवीं कक्षा में। उस समय बच्चे को कई शिक्षकों ने कहा भी था कि अरे! तेरे पापा ने यहां एडमिशन करवाया है? और जब उसका 67 रिजल्ट प्रतिशत आया तो वह रोने लगा। बेटा बोला था कि 'पापा, मेरे दोस्तों के तो 80 प्रतिशत से ऊपर रिजल्ट आया है। मैं 90-95 प्रतिशत तक का करके आया था लेकिन मेरा रिजल्ट सही नहीं आया है। मैं अब सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ूगा पापा।' फिर मैंने सारी स्थिति समझते हुए बेटे को वापस प्राइवेट स्कूल में दाखिला दिलवाया।
'बिल्कुल सही है। टीचर्स पढ़ाते कहां हैं? पढ़ाने के लिए उनके पास टाइम भी तो नहीं है। हां, एक बात तो है कि इनके टैलेण्ट पर कोई भी व्यक्ति प्रश्न चिन्ह नहीं लगा सकता। सब वैल एज्युकेटेड हैं। वो अलग बात है कि इनके जितनी मौज मस्ती है, उतनी मौज किसी के ही नहीं है। तनख्वाह भी ज्यादा और छुट्टियां ही छुट्टियां। और काम भी कुछ नहीं।' एक हंसौड़ घुमक्कड़ बोला।
'टीचर्स के कुछ भी काम नहीं है, यह आपसे किसने कहा?' काफी देर से चुपचाप घूम रहे एक और घुमक्कड़ ने सवाल किया।
'आप टीचर हो क्या?' हँसोड़ घुमक्कड़ ने हँसते हुए पूछा।
'टीचर नहीं हंू, मैं तो आम आदमी हंू। लेकिन आपको बता दंू कि टीचर की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। हमें टीचर का सहयोग करना चाहिए। टीचर की मौज-मस्ती और तनख्वाह से लोग जलते हैं। वे यह नहीं देखते कि टीचर कोई पुल या मशीन नहीं बनाता। टीचर मजदूर नहीं होता। टीचर की किसी से भी तुलना नहीं की जानी चाहिए। वह बच्चे को इन्सान बनाता है। टीचर एक आदर्श व्यक्ति का निर्माण करता है। यदि ओवर ब्रिज का गलत ढंग से निर्माण हो जाए तो उसे तोड़कर दुबारा बनाया है लेकिन......'
'हनुमानगढ़ जंक्शन वाले ओवर ब्रिज की बात कर रहे हो क्या?' साथ घूम रहे एक और घुमक्कड़ ने यह प्रश्न किया तो आम आदमी की गंभीर बात सबके ठहाकों में खो गई।