घुळगांठ / पद्मजा शर्मा

Gadya Kosh से
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उस परिवार से हमारे सम्बन्ध बरसों पुराने थे। घनिष्ठता इतनी थी कि उनके बच्चे दोपहर के समय हमारे घर में होते तो यहीं खाना खा लेते। रात में देर हो रही होती तो हमारे बच्चे वहीं सो जाते। वृतिका और केतकी पहली कक्षा से एक ही स्कूल में थी। 11वीं में दोनों ने विषय भी एक ही चुना, विज्ञान। दोनों का सपना था चिकित्सक बनना। साथ खेलतीं, पढ़तीं, खातीं, सोतीं। केतकी की मम्मी यहाँ तक कहा करती थीं कि दोनेां को एक घर में ब्याहना पड़ेगा। ये एक दूसरी से दूर कैसे रहेंगी।

किस मोड़ पर आकर, क्यों उन्होंने एक झटके में ही रिश्ता तोड़ा, आज भी यह एक पहेली है।

रिश्तेदार, मित्र सब उनके इस व्यवहार से चकित थे। हमारे घर पास-पास थे पर दो वर्ष हो गए हमें एक दूसरे के घर गए हुए.

केतकी भी बदल गयी। वृतिका से मिलने से बचती रहती। जब भी वृतिका मिलने की बात करती वह कहती-बाहर जाना है। ट्यूशन है। नींद आ रही है। अभी पढऩे का मन नहीं है।

वृतिका रोती। मैं समझाती-किसी के भी इतना करीब कभी मत जाओ कि उसके दूर जाने पर हम टूट जाएँ। बिखर जाएँ और संभल ही न पायें।

मैं वृतिका के बहाने स्वयं को भी समझा रही थी।

वृतिका संवेदनशील लड़की है। कविता और डायरी लिखा करती है।

दोनों ने पी. एम. टी. की परीक्षा दी। वृतिका पास हो गयी मगर केतकी रह गयी। वृतिका अपनी सफलता पर उतनी खुश नहीं थी जितनी केतकी के असफल होने पर दुखी थी। तब वह चाह कर भी उसके पास जा नहीं पाई. इधर-उधर से सुनने में आया, केतकी की मम्मी कर रही थी वृतिका मेरी बेटी के जले पर नमक छिड़कने आएगी। वृत्तिका ने मेरी बेटी के साथ धोखा किया। जब मेरी बेटी सोती थी तब कई बार वृत्तिका चोरी-चोरी पढ़ती थी। वृत्तिका ने बताया हम तो कभी-कभी बारी-बारी सोते पढ़ते थे। खैर बात आई गई हुई.

मगर दो वर्ष बाद एक दिन वृत्तिका ने बताया कि आज वह केतकी के घर गयी थी। आंटी ने बहुत बुलाया तो मना न कर सकी। मैं भौंचक्की रह गयी। 'ये' रसोई घर की ओर आ गए. बेटे ने टीवी का वोल्यूम कम कर दिया।

मेरा आक्रोश फूट पड़ा-'वो बुलाएँ तो हम चले जाएँ। वह रोकें तो हम रुक जाएँ। हमारा कोई सम्मान ही नहीं। जब जी में आया तोड़ा, जब चाहा जोड़ा। उनका खून खून, हमारा खून पानी।'

'माँ उन्होंने तोड़ा। हम जोड़ रहे हैं।'

'जोडने से गांठें पड़ती हैं वृति।'

'बड़ी बात यह है माँ कि गाँठ घुळगांठ न हो जाये, जो टूटने को टूट जाती है पर सोरे सांस खुलती नहीं।'

रात वृतिका ने अपनी डायरी में लिखा-'मैं सम्बंधों के जाल में नहीं फंसना चाहती। मैं मुक्त होना चाहती हूँ। आसमान अनंत और मेरी उड़ान सीमाहीन। मुझे उडऩा है। मुझे खिलना है। धरती की गोद में हरियाली की तरह। खिलने दो। उडऩे दो। माँ, डाटो मत। कम से कम आप तो बाँटो मत।'