घूंघट के पट खोल तोहे पिया मिलेंगे / जयप्रकाश चौकसे

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घूंघट के पट खोल तोहे पिया मिलेंगे
प्रकाशन तिथि : 04 अगस्त 2014


राजकुमार हीरानी एवं आमिर खान की 19 दिसंबर को प्रदर्शित होने वाली फिल्म "पी.के.' का एक स्थिर चित्र प्रकाशित हुआ है जिसमें आमिर खान रेल की पटरी पर ट्रांजिस्टर से 'लज्जा' ढांके निर्वस्त्र खड़े हैं। इस पर विवाद प्रारंभ हो चुका है आैर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इसे सनसनीखेज मान रहा है। आने वाले समय में विवाद बढ़ता जाएगा। विज्ञापन विशेषज्ञ छतों पर खड़े रहकर चीख रहे हैं कि प्रचार की जंग आमिर खान ने जीत ली है क्योंकि इसकी आलोचना करने वाले ही सबसे पहले फिल्म का टिकिट खरीदेंगे। धर्म के जानकार भी खेल में शामिल हो चुके हैं। आज उनके बिना सारे खेल अधूरे हैं। राजकुमार हीरानी की अब तक प्रदर्शित तीनों फिल्में सोद्देश्य मनोरंजन की फिल्में है। वे एक उत्तरदायी फिल्मकार की तरह प्रस्तुत हुए हैं। आमिर खान विगत दशक में 'लगान', 'तारे जमीं पर', 'पीपली लाइव' 'धोबी घाट' बना चुके हैं आैर सभी फिल्मों में मनोरंजन के साथ सामाजिक सोद्देश्यता जुड़ी है। टेलीविजन पर भी उन्होंने अपनी जागरूकता का निर्वाह करते हुए 'सत्यमेव जयते' प्रस्तुत किया जिसके पहले सत्र में उठाए सारे सामाजिक मुद्दे वे ही है जिन्हें महात्मा गांधी उठा चुके हैं आैर सीजन दो की शूटिंग यशराज स्टूडियो में विगत माह से जारी है।

अत: राजकुमार हीरानी आैर आमिर खान का विगत रिकॉर्ड सामाजिक सोद्देश्यता से आेत प्रोत है आैर दोनों ही अत्यंत जिम्मेदार व्यक्ति हैं तथा सनसनी मचा देना उनके मिजाज में नहीं है। इस स्थिर चित्र से यह अनुमान भी लगाया जा सकता है कि फिल्म सत्य की तलाश की कथा है आैर सत्य को कभी आवरण की आवश्यकता नहीं हाेती। सत्य निर्वस्त्र ही होता है। याद कीजिए हमारे इतिहास के महानतम कवि कबीर के दोहे को। वह लगभग इस प्रकार है, "घूंघट के पट खोल, तोहे पिया मिलेंगे, झूठ वचन मत बोल, तोहे पिया मिलेंगे।' यहां 'पिया' ईश्वर है या कहें सत्य है आैर उस पर कोई आवरण नहीं पड़ा है। हमारी अपनी आंखों पर आवरण अर्थात घूंघट है, यह घूंघट झूठ का है, ऊंचे कुल में जन्म लेने के भाव का है, यह घूंघट हमारा अहंकार है, यह हमारी हेकड़ी का घूंघट है। अत: सारे घूंघट हटाते ही सत्य नजर जाता है। इस फिल्म के प्रारंभ में खबर थी कि यह समाज में फैले अंधविश्वास आैर कुरीतियों के खिलाफ बनाए जाने वाला चित्र है। सारांश है कि यह सत्य जानने के प्रयास की फिल्म है गोयाकि आडम्बर दिखावे के खिलाफ सरल सीधी सच्ची जीवन शैली का पक्ष में गढ़ा दस्तावेज है। विगत पंद्रह वर्षों से आमिर खान स्वयं को ही खोज रहे हैं आैर इसी प्रक्रिया के परिणाम स्वरूप कुछ फिल्में बनी हैं। 'सत्यमेव जयते' भी इसी वृहद विचार का एक हिस्सा है। कुछ लोग कह रहे हैं कि फिल्म के एक हिस्से में अन्य ग्रह से आए प्राणी का प्रसंग है। यह भी संभव है कि यह फिल्म-विकास के नाम पर प्रकृति को ठगा गया है आैर सामाजिक जीवन में दिखावा आैर बनावट गई है- इसे दिखाने का प्रयास है।

जनजातियों के सरल आैर प्रकृति के साथ जीने की विधा में सभी लगभग निर्वस्त्र रहते है। शानी के उपन्यास "सांप-सीटी' में जनजातियों के एक गांव में शहर के संसर्ग में आई एक स्त्री ब्लाउज पहनती है तो अन्य महिलाएं उसे निर्लज्ज कहती है। यह प्रगति चक्र को उल्टा चलाने की हिमायत नहीं है परंतु जीवन शैली में आए नकलीपन पर प्रगर किया दु:ख है। सीमेंट के बीहड़ों से बेहतर है जनजातियों की जीवन शैली। गौरतलब यह भी है कि आमिर खान के हाथ में एक ट्रांजिस्टर है आैर अगर अन्य ग्रह से आए व्यक्ति की बात है तो यह उसके संचार माध्यम है। एक अन्य दृष्टिकोण यह है कि 'ट्रांजिस्टर' के आगमन से समाज में परिवर्तन आए हैं। टेक्नोलॉजी का हर चरण समाज को बदलता है। क्या मोबाइल के आने के बाद परिवर्तन नहीं हुए? अगर ट्रांजिस्टर को हम खबर सुनने का यंत्र माने तो खबर के रचे भयावह मायाजाल की आेर हमारा ध्यान जाता है। याद कीजिए 'टू इन वन' के ग्रामीण अंचल पर पहुंचते ही लोकप्रिय फिल्मी धुनों पर भजनों को फिट करके हमने ग्रामीण अंचल की रुचियां ही बदल दी थी।

दशक पूर्व मार्लिन ब्रेंडो जैसे महान अभिनेता ने 'लास्ट टैंगों इन पेरिस' में स्वयं को निर्वस्त्र ही प्रस्तुत किया था। विगत कुछ वर्षों में 'स्टूडेंट ऑफ इयर' जैसी फिल्मों में नायक नायिकाओं से कम कपड़े पहने नजर आते हैं। इस एक स्थिर चित्र ने कितनी व्याख्याओं को जन्म दिया है आैर यह कोईकम बात नहीं है। इसे मात्र सनसनीखेज मानना उचित नहीं है। हमें राजकुमार हीरानी आमिर खान पर विश्वास करना चाहिए आैर फिल्म प्रदर्शन के बाद ही किसी नतीजे पर पहुंचना चाहिए।