चंदूलाल और गौहर की गोल्डन जुबली प्रेम-कथा / जयप्रकाश चौकसे
फिल्म के निर्माण के समय उनकी मित्रता नायिका गौहर से हुई, जो अत्यंत सुसंस्कृत महिला थी। उनमें अनेक गुण थे और वह सुंदर भी थीं। चंदूलाल शाह और गौहर को एक-दूसरे से प्रेम हो गया, जो पचास वर्ष तक चला।गत वर्ष सफलता से प्रदर्शित ‘बीए पास’ के फिल्मकार अजय बहल की दूसरी फिल्म का केंद्रीय पात्र एक शेयर बाजार का दलाल है। अपनी पहली फिल्म में निर्देशक ने दिल्ली शहर को एक पात्र की तरह प्रस्तुत किया। संभव है कि अपनी अगली फिल्म में वह मुंबई को दलाल स्ट्रीट के पात्र की तरह प्रस्तुत करें। दरअसल, यह बात मुझे स्मरण कराती है चंदूलाल शाह की, जिन्होंने अर्थशास्त्र में डिग्री लेने के बाद मुंबई के शेयर बाजार में अपना कारोबार शुरू किया था। यह समय था पहले विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद का, तब भारतीय सिनेमा अपनी किशोर अवस्था में प्रवेश कर रहा था। शेयर बाजार और सिनेमा व्यवसाय में यह समानता है कि दोनों में ही अनिश्चितता होती है। कोई कभी सफलता का दावा नहीं कर सकता। शेयर बाजार एक देश के अर्थतंत्र की जानकारी देता है और सिनेमा देश के सामाजिक मूड का द्योतक है और दोनों में एक लहर चलती है।
चंदूलाल शाह के बड़े भाई दयाराम शाह फिल्में बनाते थे और चंदूलाल तीन बजे दोपहर को शेयर बाजार बंद होने के बाद स्टूडियो जाते। कुछ ही महीनों में उन्होंने फिल्म निर्माण प्रक्रिया को समझ लिया था। एक बार भाई के बीमार पड़ने पर उन्होंने उनकी अधूरी फिल्म ‘विमला’ पूरी की। शेयर बाजार के शेर को सिनेमा का जो चस्का लगा, वह आमरण छूटा नहीं!
फिल्म के इतिहास में चंदूलाल शाह को इस बात का र्शेय जाता है कि उन्होंने धार्मिक आख्यानों से अलग नाटकीय सामाजिक कथाओं की राह दिखाई। उन्होंने ‘गण सुंदरी’ बनाई, जिसमें एक घरेलू पत्नी अपने गुमराह पति को सही राह पर लाने के लिए आधुनिक नारी का रूप धर लेती है। यही कथानक थोड़े परिवर्तन के साथ अनेक बार बनाया गया। यहां तक कि स्वयं चंदूलाल शाह ने ध्वनि के आगमन के बाद इसे दोबारा बनाया। इसी फिल्म के निर्माण के समय उनकी मित्रता नायिका गौहर से हुई, जो अत्यंत सुसंस्कृत महिला थी। उनमें अनेक गुण थे और वह सुंदर भी थीं। चंदूलाल शाह और गौहर को एक-दूसरे से प्रेम हो गया, जो पचास वर्ष तक चला। गोयाकि उन दोनों ने न केवल स्वर्ण-जयंती मनाने वाली फिल्में बनाई वरन् उनके प्रेम ने भी स्वर्ण जयंती मनाई। उनका प्रेम 1925 में पनपा और चंदूलाल शाह की मृत्यु 1975 में हुई। गौहर ने कभी उनका साथ नहीं छोड़ा। गौहर करीम भाई मामाजीवाला की पुत्री थीं और करीम भाई अर्देशर ईरानी के मित्र थे, जिन्होंने 1931 में भारत की पहली सवाक फिल्म ‘आलमआरा’ बनाई थी। उन्हीं के आग्रह पर गौहर ने अभिनय शुरू किया था।
चंदूलाल शाह ने गौहर के साथ ‘द टायपिस्ट गर्ल’ बनाई। फिल्म के नाम अंग्रेजी में होना आज का ही शोशा नहीं है। उस दौर में गौहर अभिनीत एक फिल्म का नाम था ‘फॉरच्यून एंड फूल्स’ और दूसरी का नाम था ‘फेयरी फ्राम र्शीलंका’। बहरहाल, चंदूलाल शाह और गौहर के मन में सिनेमा के लिए समान जुनून और जोश था। उन दिनों जामनगर के राजा रणजीत सिंह के भतीजे दिग्विजय सिंह ने अपने मित्र चंदूलाल की आर्थिक सहायता की और उन्होंने मुंबई के दादर क्षेत्र में रणजीत स्टूडियो की स्थापना की, जिसमें फिल्म निर्माण की सारी आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध थीं। चंदूलाल शाह और गौहर के मार्गदर्शन में प्रतिवर्ष बारह फिल्में बनने लगीं। रणजीत स्टूडियो में के.एल सहगल, मोतीलाल और राजकपूर की तरह अनेक सितारे तथा तकनीशियन माहवारी वेतन पर काम करते थे। उन दिनों एक अतिशयोक्ति कही जाती थी कि आसमान पर जितने तारे हैं, उतने सितारे रणजीत स्टूडियो में हैं। रणजीत स्टूडियो हॉलीवुड की तर्ज का संपूर्ण स्टूडियो था।
दूसरे महायुद्ध के समय भारत में काला बाजार और कालेधन का उदय हुआ तथा इसके साथ समाज में परिवर्तन हुआ। जीवन मूल्य भी बदले। पारंपरिक अर्थशास्त्र के जानकार चंदूलाल शाह इस काले धन और उससे जुड़े मूल्यों से सर्वथा अपरिचित थे। काला धन लिए आए नये निर्माताओं ने सितारों को मनमाना धन देना शुरू किया और स्टूडियो व्यवस्था भंग हो गई। रणजीत स्टूडियो में 600 कर्मचारी थे। सितारों के अभाव में फिल्में असफल होने लगीं और शेयर बाजार भी टूटा। इस दोहरी हानि के कारण शाह को स्टूडियो, बंगला, गाड़ियां सब बेचनी पड़ी और वे कंगाल हो गए।
इस संकट काल में मात्र गौहर उनके साथ खड़ी रहीं। उन्होंने अपने जेवर बेच दिए और चंदूलाल शाह की मदद की। ज्ञातव्य है कि उनका कभी विवाह नहीं हुआ था, परंतु प्रेम का संबंध इतना प्रबल था कि मृत्युपर्यन्त गौहर ने तन-मन-धन से चंदूलाल शाह की सेवा की। अमर प्रेम इसे कहते हैं। गौहर की मृत्यु 28 सितंबर 1985 को हुई।