चंद्रकांता संतति / खंड 3 / भाग 12 / बयान 5

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सन्तति के छठवें भाग के पांचवें बयान में हम लिख आए हैं कि कमलिनी ने जब कमला को मायारानी की कैद से छुड़ाया तो उसे ताकीद कर दी कि तू सीधे रोहतासगढ़ चली जा और किशोरी की खोज में इधर-उधर घूमना छोड़कर बराबर उसी किले में बैठी रह। कमला ने यह बात स्वीकार कर ली और वीरेन्द्रसिंह के चुनारगढ़ चले जाने के बाद भी कमला ने रोहतासगढ़ को नहीं छोड़ा, ईश्वर पर भरोसा करके उसी किले में बैठी रही।

यद्यपि उस किले का जनाना हिस्सा बिल्कुल सूना हो गया था, मगर जब से कमला ने उसमें अपना डेरा जमाया, तब से बीस-पच्चीस औरतें, जो कमला की खातिर के लिए राजा वीरेन्द्रसिंह की आज्ञानुसार लौंडियों के तौर पर रख दी गई थीं, वहां दिखाई देने लगी थीं। जब राजा वीरेन्द्रसिंह यहां से चुनारगढ़ की तरफ रवाना होने लगे, तब उन्होंने भी कमला को ताकीद कर दी कि तू अपनी ऐयारी को काम में लाने के लिए इधर-उधर दौड़ना छोड़ के बराबर इसी किले में बैठी रहियो और यदि चारों तरफ की खबर लिए बिना तेरा जी न माने तो हमारे जासूसों को, जो ज्योतिषिजी की मातहती में हैं, जहां जी चाहे भेजा कीजियो। इसी तरह ज्योतिषीजी को भी ताकीद कर दी थी कि कमला की खातिरदारी में किसी तरह की कमी न होने पावे तथा यह जिस समय जो कुछ चाहे उसका इन्तजाम कर दिया करना और इसमें भी कोई शक नहीं कि पंडित जगन्नाथ ज्योतिषी ने कमला की बड़ी खातिर की। कमला बड़े आराम से यहां रहने लगी और जासूसों के जरिये से जहां तक हो सकता था, चारों तरफ की खबर भी लेती रही।

आज बहुत दिनों के बाद कमला के चेहरे पर हंसी दिखाई दे रही है। आज वह बहुत खुश है, बल्कि यों कहना चाहिए कि आज उसकी खुशी का अन्दाजा करना बहुत ही कठिन है, क्योंकि पंडित जगन्नाथ ज्योतिषी ने तेजसिंह के हाथ की लिखी चिट्ठी कमला के हाथ में दी और जब कमला ने उसे खोलकर पढ़ा तो यह लिखा हुआ पाया –

“मेरे प्यारे दोस्त ज्योतिषीजी,

आज हम लोगों के लिए बड़ी खुशी का दिन है, इसलिए कि हम ऐयार लोग किशोरी, कामिनी, कमलिनी, लाडिली और तारा को एक साथ लिए हुए रोहतासगढ़ की तरफ आ रहे हैं, अस्तु जहां तक हो सके पालकियों और सवारियों के अतिरिक्त कुछ फौजी सवारों को भी साथ लेकर तुम स्वयं 'डहना' पहाड़ी के नीचे हम लोगों से मिलो।

तुम्हारा दोस्त –

तेजसिंह।”

इस चिट्ठी के पढ़ते ही कमला हद से ज्यादा खुश हो गई और उसकी आंखों से गर्म-गर्म आंसुओं की बूंदें गिरने लगीं, गला भर आया और कुछ देर तक बोलने या कुछ पूछने की सामर्थ्य न रही। इसके बाद अपने को सम्हालकर उसने कहा –

कमला - यह चिट्ठी आपको कब मिली आप अभी तक गए क्यों नहीं?

ज्योतिषी - यह चिट्ठी मुझे अभी मिली है। मैं तेजसिंहजी के लिखे बमूजिब इन्तजाम करने का हुक्म देकर तुम्हारे पास खबर करने के लिए आया हूं और अभी चला आऊंगा।

कमला - आपने बहुत अच्छा किया, मैं भी उनसे मिलने के लिए ऐसे समय अवश्य चलूंगी, मगर मेरे लिए भी पालकी का बन्दोबस्त कर दीजिए, क्योंकि ऐसे समय में दूसरे ढंग पर वहां जाने से मालिक की इज्जत में बट्टा लगेगा।

ज्योतिषीजी - बेशक ऐसा ही है, मैं पहले ही से सोच चुका था कि तुम हमारे साथ चले बिना न रहोगी, इसलिए तुम्हारे वास्ते भी इन्तजाम कर चुका हूं। पालकी ड्यौढी पर आ चुकी होगी, बस तैयार हो जाओ, देर मत करो।

कमला झटपट तैयार हो गई और ज्योतिषीजी ने भी तेजसिंह के लिखे बमूजिब सब तैयारी बात की बात में कर ली। घण्टे भर ही के बाद रोहतासगढ़ पहाड़ के नीचे पांच सौ सवार चांदी-सोने के काम की पालकियों को बीच में लिए हुए 'डहना' पहाड़ी की तरफ जाते हुए दिखाई दिए और पहर भर के बाद वहां जा पहुंचे, जहां तेजसिंह, किशोरी इत्यादि को एक गुफा के अन्दर बैठाकर ऐयारों तथा बलभद्रसिंह को साथ लिए ज्योतिषीजी का इन्तजार कर रहे थे। तेजसिंह तथा ऐयार लोग खुशी-खुशी ज्योतिषीजी से मिले। कमला की पालकी उस गुफा के पास पहुंचाई गई जिसमें किशोरी और कमलिनी इत्यादि थीं और कहार सब वहां से अलग कर दिए गए।

वह गुफा जिसमें कमलिनी और किशोरी इत्यादि थीं, ऐसी तंग न थी कि उनको किसी तरह की तकलीफ होती, बल्कि वह एक आड़ की जगह में और बहुत ही लम्बी-चौड़ी थी और उसमें चांदना बखूबी पहुंच रहा था। तारासिंह की जुबानी जब किशोरी ने यह सुना कि कमला भी आई है तो उससे मिलने के लिए बेचैन हो गई और जब तक वह पालकी के अन्दर से निकले तब तक किशोरी स्वयं खोह के बाहर निकल आई। कमला ने किशोरी को देखा तो बड़े जोर और मुहब्बत से लपककर किशोरी के गले से लिपट गई और किशोरी ने भी बड़े प्रेम से उसे दबा लिया तथा दोनों की आंखों से आंसुओं की बूंदें टपाटप गिरने लगीं। कमलिनी ने दोनों को अलग किया और कमला को अपने गले से लगा लिया। इसके बाद कामिनी, लाडिली और तारा भी बारी-बारी कमला से मिलीं। उस समय सभी के चेहरे खुशी से दमक रहे थे और सभी के दिल की कली खिली जाती थी। किशोरी, कामिनी, तारा और लाडिली को मालूम हो चुका था कमला, भूतनाथ की लड़की है और वे सब भूतनाथ से बहुत रंज थीं। मगर कमला की तरफ से किसी का दिल मैला न था, बल्कि कमला को देखने के साथ ही उन पांचों के दिल में ऐसी मुहब्बत पैदा हो गई, जैसी सच्चे प्रेमियों के दिल में हुआ करती है। मगर अफसोस कि अभी तक कमला को इस बात की खबर नहीं हुई कि भूतनाथ उसका बाप है और उसने बड़े-बड़े कसूर किए हैं।

किशोरी, कमलिनी और कमला इत्यादि की मुहब्बत भरी बातचीत कदापि पूरी न होती, यदि तेजसिंह वहां पहुंचकर यह न कहते कि “अब तुम लोगों को यहां से बहुत जल्दी चल देना चाहिए जिससे सूर्यास्त के पहले ही रोहतासगढ़ पहुंच जाएं।” पालकियां गुफा के आगे रखी गईं। कमलिनी, किशोरी, कामिनी, कमला, लाडिली और तारा उन पर सवार हुईं। कहारों को आकर पालकी उठाने का हुक्म दिया गया और खुशी-खुशी सब कोई रोहतासगढ़ की तरफ रवाना हुए।

सूर्य अस्त होने के पहले ही सवारी रोहतासगढ़ किले के अन्दर दाखिल हो गई। किले का जनाना भाग आज फिर रौनक हो गया। मगर महल में पैर रखते ही एक दफे किशोरी का कलेजा दहल उठा, क्योंकि इस समय उसने पुनः अपने को उसी मकान में पाया जिसमें कुछ दिन पहले बेबसी की अवस्था में रहकर तरह-तरह की तकलीफें उठा चुकी थी और इसके साथ-ही-साथ उसको लाली और कुन्दन की बातें याद आ गईं। केवल किशोरी ही को नहीं, बल्कि लाडिली को भी वह जमाना याद आ गया क्योंकि यही लाडिली लाली बनकर उन दिनों इस महल में रहती थी जिन दिनों किशोरी यहां मुसीबत के दिन काट रही थी। लाडिली तो किशोरी को पहचानती थी, मगर किशोरी को इस बात का गुमान न था कि वह लाली वास्तव में यही लाडिली थी, जो आज हमारे महल में दाखिल है।

महल में पैर रखने के साथ ही किशोरी को वे पुरानी बातें याद आ गईं और इस सबब से उसके खूबसूरत चेहरे पर थोड़ी देर के लिए उदासी छा गई, साथ ही पुरानी बातें याद आ जाने के कारण लाडिली की निगाह भी किशोरी के चेहरे पर जा पड़ी। वह उसकी अवस्था को देखकर समझ गई कि इस समय इसे पुरानी बातें भी याद आ गई हैं। उन्हीं बातों को खुद भी याद करके इस समय अपने को और किशोरी को मालिक की तरह या दूसरे ढंग से इस मकान में आए देख के और किशोरी के चेहरे पर ध्यान पड़ने से लाडिली को हंसी आ गई। उसने चाहा कि हंसी रोके परन्तु रोक न सकी और खिलखिलाकर हंस पड़ी जिससे किशोरी को कुछ ताज्जुब हुआ और उसने लाडिली से पूछा –

किशोरी - क्यों, तुम्हें हंसी किस बात पर आई?

किशोरी - ऐसा नहीं है, इसमें जरूर कोई भेद है, क्योंकि कई दिनों से हमारा तुम्हारा साथ है पर इस बीच में व्यर्थ हंसते हुए हमने तुम्हें कभी नहीं देखा। बताओ, सही बात क्या है?

लाडिली - तुम्हें विचित्र ढंग से घबड़ाकर चारों तरफ देखते हुए देखकर मुझे हंसी आ गई।

किशोरी - केवल यही बात नहीं है, जरूर कोई दूसरा सबब भी इसके साथ है।

कमलिनी - मैं समझ गई! बहिन, मुझसे पूछो, मैं बताऊंगी! बेशक लाडिली के हंसने का दूसरा सबब है जिसे वह शर्म के मारे नहीं कहना चाहती।

किशोरी - (कमलिनी की कलाई पकड़कर) अच्छा बहिन, तुम ही बताओ कि इसका क्या सबब है?

कमलिनी - इसके हंसने का सबब यही है कि जिन दिनों तुम इस मकान में बेबसी और मुसीबत के दिन काट रही थीं, उन दिनों यह लाडिली भी यहां रहती थी और इससे-तुमसे बहुत मेल-मिलाप था।

किशोरी - (ताज्जुब से) तुम भी हंसी करती हो! क्या मैं ऐसी बेवकूफ हूं जो महीनों तक इस महल में लाडिली के ही साथ रही और फिर भी उसे पहचान न सकूं!

कमलिनी - (हंसकर) यह तो मैं नहीं कहती हूं कि उन दिनों इस महल में लाडिली अपनी असली सूरत में थी! मेरा मतलब लाली से है, वास्तव में यह लाडिली उन दिनों लाली बनकर यहां रहती थी।

किशोरी - (ताज्जुब से घबड़ाकर और लाडिली को पकड़कर) हैं! क्या वास्तव में लाली तुम ही थीं?

लाडिली - इसके जवाब में 'हां' कहते मुझे शर्म मालूम होती है। अफसोस उन दिनों मेरी नीयत आज की तरह साफ न थी क्योंकि मैं दुष्टा मायारानी के आधीन थी। उसे मैं अपनी बड़ी बहिन समझती थी और उसी की आज्ञानुसार एक काम के लिए यहां आई थी।

किशोरी - ओफ ओह! तब तो आज बड़े-बड़े भेदों का पता लगेगा जिन्हें याद करके मेरा जी बेचैन हो जाता था और इस सबब से मैं और भी परेशान थी कि उन भेदों का असल मतलब कुछ मालूम न होता था, अब तो मैं बहुत कुछ तुमसे पूछूंगी और तुम्हें बताना पड़ेगा।

कमलिनी - हां-हां, तुम्हें सब-कुछ मालूम हो जायगा, मगर घबड़ाती क्यों हो, इस समय हम लोगों को केवल यही काम है कि ईश्वर को धन्यवाद दें जिसकी कृपा से हम लोग हजारों दुःख उठाकर ऐसी जगह आ पहुंचे हैं जहां हमारे दुश्मन रहते थे और जिसे अब हम अपना घर समझते हैं।

लाडिली - (किशोरी से) बेशक ऐसा ही है, केवल एक यही बात नहीं और भी कई अद्भुत बातें तुम्हें मालूम होंगी। जरा सब्र करो, सफर की हरारत मिटाओ और आराम करो, जल्दी क्यों करती हो!