चक्कर / दीपक मशाल
गुप्ता जी के पड़ोस में रहने वाले परिहार सा'ब अपने घर में एक नया कमरा बनवा रहे थे। कमरा लगभग तैयार था, लेंटर पड़े हुए भी दो हफ्ते बीत चुके थे। एक दिन कमरे का मुआयना करते हुए अचानक उनके सर पर सूखे हुए लेंटर का एक बड़ा टुकड़ा गिर पड़ा। परिहार सा'ब बुरी तरह लहुलुहान हो गए। सर, कंधे और हाथ में काफी गंभीर चोटें आईं। तुरंत नजदीक के अस्पताल में भर्ती कराया गया।
एक हफ्ते इमरजेंसी में रहने के बाद कुछ दिन साधारण वार्ड में भी रहना पड़ा और आज ही घर वापस लौटे थे। पड़ोसी धर्म निभाते हुए ऑफिस से लौटने के बाद गुप्ता जी सपत्नीक बीमार का हालचाल लेने पहुंचे।
शरीर में जगह-जगह बंधी पट्टियों, सूजे चेहरे और पट्टियों से झिलमिलाते खून को देख कमज़ोर दिल की गुप्ता भाभी घबरा गईं और वहीं पर रोने लगीं। गुप्ता जी ने उन्हें सम्हाला और जल्दी ही घर वापस ले आये।
रात को गुप्ता जी की आँखों में नींद नहीं थी। काफी देर तक करवटें बदलने के बाद भी जब सो ना पाए तो आधी रात के बाद बाथरूम जाने के लिए उठी पत्नी से पूछ ही बैठे, “तुम उस परिहार को देख ऐसे क्यों रो पड़ी जैसे एक्सीडेंट उसका नहीं मेरा हुआ हो? मानो दर्द मेरा हो। आखिर चक्कर क्या है?"