चट्टे-बट्टे / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
एक बार नए-नए आए एक साहब ने एक फ़ाइल लाने के लिए कहा। इस पर कोई कार्यवाही न हो सकी थी। बड़े बाबू भी दफ़्तर में कुछ समय पहले आए थे। अभी फ़ाइलों का पूरा परिचय नहीं पा सके थे।
वे फ़ाइल को जितना बाहर खींचते, वह उतना ही भीतार चली जाती। साहब थे कि आफ़त मचाए हुए थे। बड़े बाबू प्सीने से नहा उठे। साहब भी आ धमके और ज़ोर आजमाइश करने लगे। सांस धौंकनी की तरह चलने लगी।
बूढ़ा दफ़्तरी यह सब खेल देख रहा था। उसने फ़ाइल की सूरत देखी। उसने दोनों की ओर दृष्टि उठाई-"दस का नोट निकालिए."
"दस का नोट! क्या मतलब?" बड़े बाबू चकराए।
"बाबू जी, नई दुल्हन को भी मुँह दिखाई देनी परती है। यह फ़ाइल दस साल से दबी पड़ी है। ऐसे नहीं निकलेगी। दस का नोत निकाल भी दीजिए।"
बड़े बाबू ने दस का नोत निकालकर बड़े बाबू के हाथ पर रखा।
दफ़्तरी ने पूर्व अनुभव का लाभ उठाते हुए दस का नोट उस फ़ाइल से छुआ दिया। फ़ाइल बड़ी आसानी से बरे बाबू के हाथ में आ गई।