चढ़ौतरी का रहस्य / कुबेर
अभी-अभी हमारे गाँव में भागवत-कथायज्ञ संपन्न हुआ है। कम से कम मेरीजानकारी में तो ऐसा आयोजन यहाँ पहले नहीं हुआ है।
गाँव के बुजुर्ग बताते हैं कि चालीस-पैंतालीस साल पहले झाड़ू गौंटिया केपिताजी अंतू गौंटिया ने अपने पिताजी के वार्षिक श्राद्ध के अवसर पर ऐसाही आयोजन करवाया था। उस यज्ञ से संबंधित बातें आज भी हमारे गाँव औरआस-पास के गाँवों में किंवदंती के रूप में कही-सुनी जाती हैं। गाँव मेंडेरहा बाबा के पास उस यज्ञ से संबंधित किस्से-कहानियों का भंडार है। उसयज्ञ की कहानियाँ बताते हुए जैसे वे पुनः उसी काल म लौट जाते हैं। भक्तिभाव का अतिरेक होने के कारण वे भावविभोर हो जाते हैं। उस यज्ञ का पूरादृश्य उनकीे नजरों के आगे जैसे जी उठते हैं। उनके अनुसार, बैसाख का महीनाथा, ग्रीष्म की तपन अपनी जवानी पर थी। ऊपर, आसमान से लू बरस रहा था, औरनीचे जमीन तवे के समान तप रही थी। तब बाजार में न तो बड़े पैमाने परशामियाने ही उपलब्ध थे और न ही कूलर आदि की सुविधा थी। वक्ता और श्रोताओंको इस मुसीबत से बचाना एक बड़ी चुनौती थी। और इसीलिये, बहुत सोच-विचार केबाद उस आयोजन के लिये सर्वसम्मति से आम-बगीचे का चयन किया गया था।
गाँव से कोस भर की दूरी पर कलकल करती हुई यहाँ की जीवनदायिनी नदी शिवनाथबहती है। गरमी के दिनों में धारा सूख जाती है, परंतु थोड़ी-थोड़ी दूरी परस्थित दहरों में सुंदर काजर के समान निर्मल जल भरे होते हैं जिससे न केवलआदमी ही, समस्त पशु-पक्षी भी अपनी प्यास बुझाते हैं। नदिया के दोनोंकिनारों पर नजरों से ओझल होते तक कछार भूमि का सिलसिला है, और इसी कछारमें आबाद हैं आम, अमरूद और जामुन जैसे फलदार वृक्षों के बगीचे। कई एकड़कछार-भूमि में भोलापुर वालों के भी बगीचे आबाद हैं। जेठ की तपती दुपहरीमें भी, जब लू के थपेड़े चलते हैं, यहाँ सुंदर ठंडी-ठंडी हवा चलती है। उससमय प्रकृति के इस कूलर के सामने आज के जमाने के सारे कूलर और ए. सी.बेकार थी। इसी बगीचे में व्यास-गद्दी लगाई गई थी।
इस बगीचे के आसपास आधा दर्जन गाँव बसे हुए हैं। सभी गाँवों के सारेमहिला, पुरूष और बच्चे, कथा सुनने के लिए आये हुए मेहमानों के साथ, कथासुनने के लिए उमड़ पड़ते थे। इन गाँवों में कोई ऐसा घर-परिवार नहीं रहाहोगा जिनके यहाँ एक भी मेहमान न आया रहा होगा। साधू-सन्यासियों कागाँव-बस्ती से क्या लेना-देना। दस-बारह दिनों तक दर्जनों साधू-सन्यासियोंकी धूनी बगीचेे में ही लगती थी। बगीचे में दस-बारह दिनों तक दिन-रात मेलेका माहौल बना हुआ था।
अपने पिता की आत्मा की मुक्ति के लिए अंतू गौटिया ने कोई कोर-कसर बाकीनहीं छोड़ा था। सबकी सलाह मानी। साधू-सन्यासियों की मन लगाकर सेवा किया।श्रद्धालु श्रोताओं की हर सुख-सुविधा का ध्यान रखा। कथा परायण के लिएकाशी के जाने-माने पंडित को बुलाया गया था। अमृत-कथा के एक-एक शब्द लोगोंतक पहुँचे इसके लिए नांदगाँव से बैटरी पर चलने वाले भोपू मंगाये गए थे।रात में उजाला करने के लिए दर्जनों पेट्रोमेक्स जलाई जाती थी। श्रद्धालुश्रोताओं के लिए भण्डारा खोला गया था। भण्डारे का चूल्हा नौ दिनों तकलगातार जलता हा। लोगों को और क्या चाहिए, प्रवचन के समय प्रवचन सुनना औरबांकी समय सत्संग करना, वहीं रहना और वहीं खाना और खाली समय में अंतूगौटिया की जी भर कर तारीफ करना। कहते - “अंतू गंउटिया के सात पुरखा तरगे भइया ,संग म हमू मन अउ ये बगीचा के हजारों बेंदरा-भालू , चिरइ-चिरगुनमन घला तर गें।”
डेरहा बाबा आगे बताते हैं कि प्रवचनकर्ता को उस यज्ञ के चढौतरी में चारकोल्लर (बैलगाड़ी) धान, दो कोपरा भर के नगदी, दर्जन भर दूध देने वालीगायें मिली थी। पंडित जी महराज बड़े खुश हुए थे। अंतू गौटिया को जी भर करआशीष दिया था। उनके पिता जी की आत्मा की मुक्ति के लिए ढेर सारीप्रार्थनाएँ की थी।
इस वर्ष इसी अंतू गौटिया के इकलौते वारिस झाड़ू गौटिया ने वैसा ही यज्ञरचाकर पुरानी यादों को ताजा कर दिया है। इसके भी किस्से कम नहीं हैं।
साल भर पहले अंतू गौटिया परलोक गमन कर गए थे। इस साल उन्हीं की बरसी हुईथी और उन्हीं की आत्मा की मुक्ति के लिए यज्ञ का विधान किया गया था।
चालीस वर्ष कम नहीं होते हैं। जमाना बदल गया है। लोगों की सोच बदल गई है।परिस्थितियाँ बदल गई है। झाड़ू गौटिया गाँव में कम ही रहते हैं। बेटे-बहुअपने-अपने परिवार के साथ शहर में रहते हैं। एक बेटा डाॅक्टर है तो दूसरासरकारी अधिकारी है। झाड़ू गौटिया भी अपने काम में व्यस्त रहते हैं। इसइलाके के बड़े नेताओं में से वे एक हैं, हमेशा उनका एक पैर रायपुर मेंरहता है तो दूसरा दिल्ली में। गाँव में रहना अब उनके लिय सजा से कम नहींहै।गौंटिया बगीचा का, जहाँ चालीस साल पहले अंतू गौंटिया ने भगवत ज्ञान यज्ञकरवाया था, अब नामोंनिशान नहीं है। सारे फलदार वृक्ष कट चुके हैं और अबआबाद हो गए हैं वहाँ ईंट भट्ठे, जिनके दर्जनों चिमनियों से चैबीसों घंटेनिकलते रहते हैं काले-कले धुएँ। इस धुएँ के करण बचेखुचे पेड़ अब अंतिमसांसे ले रहे हैं। ईंट ढुलाई करने वाले ट्रक और ट्रेक्टरों के टायरों सेबगीचे की ओर जाने वाले धरसे की जगह अब धूल से भरी कच्ची सड़क बन गई हैजिस पर चलना मुश्किल हो गया है। वाहनों की शोरगुल और उड़ने वाले धूल सेलोगों का जीना हराम हो गया है। बगीचे में रहने वाले सारे बंदर अब गाँवमें बसेरा किए हुए हैं और खपरैलों का दुश्मन बने हुए हैं।
मनहर महराज इस गाँव और गौंटिया खानदान का खानदानी पुरोहित है। इनके पिताजी माधो महराज का बड़ा मान-सम्मान था। अंतू गौंटिया के समय बगीचे में काशीवाले पंडित का भागवत ज्ञान यज्ञ इन्हीं की पुरोहिती में संपन्न हुआ था।बिदाई के समय काशी वाले पंडित जी ने इन्हे अपना शिष्य बनाया था। यज्ञ मेंबरन का काम माधो महराज ने ही किया था, अतः चढ़ौतरी में से उन्हें उनकेहिस्से के रूप में खूब सारा सामान और रूपया भी मिला था। माधो महराज अबनहीं रहे। पुरोहिती का काम अब उनका इकलौता पुत्र मनहर महराज करता है।बगीचे में संपन्न होने वाले भागवत ज्ञान यज्ञ के समय मनहर महराज कीअवस्था छोटी थी, फिर भी कुछ धुँधली यादें उनके भी दिमाग में बसी हुई हैं।अब इस साल जब अंतू गौंटिया की बरसी होने वाली है, मनहर महराज की इच्छा हैकि अंतू गौटिया की आत्मा की मुक्ति के लिये एक बार फिर वैसा ही भागवतज्ञान यज्ञ का आयोजन होे। धरम-करम के ऐसे कामों से ही तो नाम चलता है।
छः-सात महीना पहले से ही मनहर महराज छाड़ू गौटिया को समझाइश देते आ रहेहैं - “गंउटिया, आप मन के पिताजी ह बड़ धरमी चोला रिहिस हे। पूजा-पाठ अउदान-धरम बर कोई कमी नइ करय। अपन पुरखा मन ल तारे बर कतका बड़ जग रचायरिहिस हे। एक ठन कहानी बन गे हे। गाँव-गाँव म आज घला लोगन ये कहानी लकहिथें अउ नाम लेथें। वइसने पुण्य कमाय के, नाम कमाय के अब आपके बारी हे।दिन लकठावत जात हे।”
झाड़ू गौंटिया ठहरा नेता, नेतागिरी से फुरसत मिले तब न सोचे धरम-करम कीबात। व्यवहारिक व्यक्ति हैं, हर काम नफा-नुकसान देखकर करते हैं। जिस काममें धेले भर का भी फायदा न हो, उस काम के लिये वे एक पैसा भी खर्च नहींकरते। रह गई आत्मा और मोक्ष की बात; उनका विश्वास है कि ऐसा कुछ नहींहोता। होता होगा भी तो अपनी बला से, ऐसी बातों में भला कोई अपना मगजक्यों खपाए, जिसके होने और न होने से पंडितों के सिवा और किसी को कोईफायदा न हो़ता हो। झाड़ू गौटिया तो केवल वही काम करता है जिससे नेतागिरीमें उनका रुतबा बढ़े और जेब में चार पैसे आएँ। बेटों और नाती-पोतों पर तोअधुनिकता का रंग चढ़ा हुआ है। उनकी नजरों में धर्मिक अनुष्ठानों पर खर्चकरना निरा बेवकूफी है।
पर कहा गया है - ’समय होत बलवान’। ठीक उसी समय आम चुनाव होने वाला था।झाड़ू गौंटिया टिकिट की जुगाड़ में लगे हुए थे। उसके राजनीतिक बुद्धि मेंएक आइडिया आया - ’बरसी के महीना भर बाद चुनाव होने वाला है। जनता कोलुभाने का इससे बड़ा मौका और कहाँ हाथ लगने वाला है। भागवत ज्ञान यज्ञ केनाम पर जितना अधिक प्रचार हो, जितनी अधिक जनता इकट्ठी हो, उतना ही बढ़ियाहै। पार्टी वालों को भी झाड़ू गौंटिया की लोकप्रियता का अंदाजा हो जायेगा,फिर तो टिकिट पक्की समझो। जीत गया तो छोटा-मोटा मंत्री बनना तय ही मानो।’
झाड़ू गौंटिया के मन में लड्डू फूटने लगे। यह बात बेटों-बहुओं और पोतों कोसमझाया गया। सबने बाप के सूझबूझ और दूरदर्शिता की तारीफ की। कहा - “वाह,डैडी वाह! आप तो सचमुच जीनियस हैं। एक तीर से क्या दो निशाना साधे हैं।राजनीति तो कोई आप से सीखे।”
अब तो बरसी में केवल महीने भर का समय बचा है, तैयारी में और देरी करनाउचित नहीं होगा। खबर भेजकर गाँव से मनहर महराज को बुलाया गया। तैयारी सेसंबंधित सारी बातों पर गहन चर्चा की हुई। मनहर महराज को हिदायत दी गई -”केवल अपने गाँव वालों को ही नहीं, आस-पास के भी गाँव वालों की भी इसमेंसक्रिय सहभागिता जरूरी है। प्रचार-प्रसार में कोई कोर-कसर नहीं रहनाचाहिये, धर्म का मामला है। बाप की आत्मा की मुक्ति का सवाल है। खर्चे कीकोई चिंता नहीं, आयोजन शानदार होना चाहिये।”
उसी दिन गाँव जाकर झाड़ू गौंटिया ने गाँव वालों के साथ मीटिंग किया। बैठकमें पंच-सरपंच को बुलया गया, महिला स्वसहायता की महिलाओं को बुलाया गया,नवयुवक दल वालों को बुलाया गया, भजनहा मंडली के कलाकारों को बुलाया गया;साम-दाम, की नीति अपनाई गई और सब को साध लिया गया। समझाया गया कि आनेवाला काम केवल झाड़ू गौंटिया का काम नहीं है। नाम होगा तो अकेले झाड़ूगौंटिया का ही नाम नहीं होगा, गाँव का भी नाम होगा। धरम का काम है, पुण्यअर्जित करने का मौका हाथ लगा है।
सब एकजुट हुए। अलग-अलग काम के लिये अलग-अलग समितियाँ बनाई गई और सबकोयथायोग्य काम सौंपा गया।कथावाचन के लिये बिंदावन से बहुत बड़े कथावाचक को आंत्रित किया गया।क्विंटल भर पेंफलेट और निमंत्रण कार्ड छपवाया गया, पोस्टर छपवाए गए।विधानसभा के अंतर्गत आने वाले सभी गाँवों के सभी परिवारों को निमंत्रणकार्ड भेजा गया।
अखबारों में रोज ही विज्ञापन छपने लगे। विज्ञापन होता था भागवत ज्ञानयज्ञ का लेकिन फोटो छपा होता छाड़ू गौंटिया का, पार्टी के बड़े नेताओं केसाथ, अभिवादन की मुद्रा में दोनों हाथ जोड़े, बड़े ही मनमोहक मुद्रा में।गौंटिया के पाँच एकड़ के बियारा को समतल करके गोबर से लीपा गया, शामियानालगाया गया, भव्य मंच बनाया गया और मंच के आगे श्रोताओं के बैठने के लियेपुआल बिछाये गये। विशिष्ट जनों के बैठने लिए विशेष व्यवस्था किया गया।शामियाने सहित पूरे गाँव को तोरन-पताकों से सजाया गया, बिजली के झालर औरलाउडस्पीकर लगाए गए। श्रद्धालु-श्रोताओं को गर्मी से बचाने के लिएकूलर-पंखे लगाए गए और भण्डारा खोला गया।नीयत तिथि में कथा-प्रसंग की शुरुआत हुई। हजारों की भीड़ जुटने लगी।बियारा से लगे हुए बाड़े में पार्टी कार्यालय भी खोला गया। रोज कोई न कोईनेता या मंत्री अपने लाव-लश्कर के साथ आने लगे। प्रवचन के समय प्रवचनहोता और मध्यान्तर में नेताओं की सभा होती।
श्रद्धालु-श्रोताओं की भीड़ देखकर कथावाचक महराज बड़े खुश थे, अच्छी-खासीचढौतरी मतलब साल भर की कमाई एक ही बार में जो होने होने वाली थी।
बरन के आसन पर काबिज मनहर महराज भी बड़े खुश थे। अंक गणित में कमजोर होनेके कारण भले ही वे आठवीं कक्षा से आगे की पढ़ाई नहीं कर पाया था पर यहाँउनकी अर्थ गणित एकदम ठीकठाक थी - ’नहीं-नहीं में भी लाख रूपय की चढ़ौतरीतो होगी ही। उनके हिस्से में कम से कम दस हजार तो जरूर आयेंगे ही। आनेवाली बरसात के पहले घर के छप्पर की मरम्मत निहायत जरूरी है। और भी बहुतोंकी देनदारी है, सबका निवारण हो जायेगा।’
झाड़ू गौंटिया के घर के एक हिस्से को ही कथावाचक पंडित जी महराज और उनकेसाथ आये हुए संतजनों और साजिंदों के रहने के लिए सजाया गया था। कथावाचकपंडित जी महराज बड़े ही सरल, मृदुभाषी, और मिलनसार व्यक्ति थे। यहाँ भी वेभक्तजनों से घिरे रहते थे। धर्मग्रंथों में वर्णित कई मिथकों और गूढ़कथाप्रसंगों के बारे में वे प्रश्न करते और पंडित जी महराज कई तरह सेउदाहरण दे-देकर उनकी शंकाओं का समाधान करते। सतसंग का सिलसिला रोज हीचलता।
झाड़ू गौंटिया और उनके समधी की जोड़ी राम-लखन की जोड़ी के नाम से प्रसिद्धहै। घाट-घाट का पानी पीने वाला समधी जी आजकल एकाएक धार्मिक हो गए हैं।आमंत्रण मिलते ही पुण्य लाभ लेने के लिए वे भी पधारे हुए हैं। वे भी इससतसंग मंडली में रोज उपस्थित रहते है। कथावाचक पंडित जी महराज की हर बातको बड़े ध्यान से सुनते हैं। समधी जी केवल सुनते ही नहीं हैं, गुनते भीहैं, पर पाँच दिन गुजर चुके हैं, अब तक उन्होंने कथावाचक पंडित जी महराजसे एक भी प्रश्न नहीं पूछे हंै। समधी जी महराज के व्यक्तित्व को देखकरकथावाचक पंडित जी महराज ने अनुमान लगाया होगा कि इनके साथ संतसंग करनेमें आनंद आयेगा। पर अब उनको आश्चर्य होने लगा है कि ये महाशय कुछ भीक्यों नहीं पूछते। आज उनसे रहा नहीं गया, पूछा - “भगत जी, आप तो रोज हीसतसंग में आते हैं, पूछते कुछ भी नहीं हैं।”
दुनिया को अपनी ही नजरों से देखने वाले घुटे हुए समधी जी कहा - “कुछूसंका होही ते जरूर पछूबोन देवता। अभी तो आप मन दू-चार दिन रहिहौच।”
बड़े ही आनंद-मंगल के साथ छः दिन गुजर गये। सातवें दिन से ही कथावाचकपंडित जी महराज ने बातों ही बातों में श्रोताओं को ताकीद करना शुरू करदिया, - “प्रिय भक्तों, अब तक आपने अमृत रूपी श्रीमद्भागवत कथा का पानकिया है। कल भगवान के श्री चरणों में श्रध्दा-सुमन अर्पित कर पुण्य कमानेका दिन है। ऐसा अवसर जीवन में बार-बार नहीं आता, याद रखियेगा।”
और फिर चड़ौतरी का दिन आ ही गया।
चढ़ौतरी देखकर कथावाचक पंडित जी महराज का मन खिन्न हो गया। कहाँ तो लाखरूपयों की आस लगाये बैठे थे, जबकि बमुश्किल चालीय हजार ही जुड़ सके। ऊपरसे अपना हिस्सा मंगने मनहर महराज छाती पर चढ़े हुए हैं। काफी देर तकमोलभाव होता रहा पर सौदा पट नहीं पाया। मनहर महराज ने अपना अंतिम निर्णयसुना दिया, कहा - “पाँच हजार ले एक पइसा कम नइ हो सकय महराज जी। चरबज्जीउठ-उठ के पुरान के बाचन करे हंव। जोत के रात-दिन रखवारी करे हंव।”
दोनों पंडितों में काफी कहासुनी हुई। नौबत कुस्ती की आ गई। अंत में झाड़ूगौटिया को ही अपनी ओर से कुछ ले देकर मामला सुलझाना पड़ा।
पंडितों को झगड़ते देख सारे सतसंगी खिसक गये थे, समधी जी कहाँ जाते? फिरमौका जो हाथ आया है। कथावाचक पंडित जी महराज सिर पकड़कर बैठे हुए थे। समधीजी भी पास ही बैठे हुए थे, मौका देखकर उन्होंने कथावाचक पंडित जी महराजसे अपने मन की शंका के बारे में आखिर पूछ ही लिया - “पंडित देवता, अभिचमोर मन म एक ठन संका पैेदा होइस हे। आर्डर देतेव ते पूछतेंव।”
कथावाचक पंडित जी महराज ने बनावटी हँसी हँस कर कहा - “पूछो भइ, ऐसा मौकारोज थोड़े ही आता है।”
समधी जी ने पूछा - “महराज! काली आप मन परबचन म कहत रेहेव, ’भगवान कोदीनबंधु कहते हैं क्योंकि वह गरीबों से प्रेम करता है। गरीब ही भगवान केसबसे निकट होता है। धन संपत्ति तो ईश्वर के मार्ग की बाधाएँ हैं।’ फेर आजआपमन विही धन बर काबर अतिका दुखी हव?”
सुन कर कथावाचक पंडित जी महराज अकबका गये। कहा - “हम तो आपको भक्त औरज्ञानी समझ रहे थे, पर तुम तो मूरख निकले। कहीं ऐसा भी प्रश्न पूछतेहैं।”
समधी जी ने हाथ जोड़कर कहा - “गलती हो गे महराज, छिमा करव। एक ठन प्रश्नअउ पूछत हंव, नराज झन होहू। काली आपे मन केहे हव कि सबले पहिली राजापरीक्षित ह श्रीमद्भागवत जग्य कराइस। सुकदेव मुनि ह ब्यास गद्दी म बइठ केकथा सुनाइस। राजा परीक्षित के मोक्ष होइस। अतकी बतातेव महराज, राजापरीक्षित ह वो जग्य म कतका धन, कतका रूपिया-पइसा चढ़ाय रिहिस। सुकदेव मुनिह कतका धन दौलत अपन घर लेगे रिहिस? बरन संग पइसा के बटवारा बर का वहू हअइसने झगरा होय रिहिस?”
पहले से ही दुखी और क्रोधित कथावाचक पंडित जी महराज समधी जी का प्रश्नसुनकर दुर्वासा हो गए, बमकते हुए उन्होंने कहा - “मूरख! पंडित का अपमानकरते हो। घोर नरक में जाओगे। पापी, दूर हो जा मेरी नजरों से। जानते नहीं,ब्राह्मण जब शिखा खोल लेता है तब वह चाणक्य बन जाता है, और क्रोध आने परदुर्वासा।”
समधी जी अपने जीवन में अब तक न कभी किसी से दबां है और न ही कभी किसी सेडरा है। कथावाचक पंडित जी महराज के इस रूप को देखकर वे हँस पड़े और नहलेपर दहला मारते हुए उन्होंने कहा - “आप का-का बन सकथव और अभी का बन गेहव, देखतेच् हंव महराज। आप चाहे कुछू बनव, मोला कुछू फरक नइ पड़य। हाँ,मोर संका के समाधान जरूर हो गे अउ चढौतरी के रहस ल घला जान गेंव।”