चतुर गाँव / सुकेश साहनी

Gadya Kosh से
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जैसे ही रमेश ने चतुर गाँव में प्रवेश किया, वहाँ के ग्रामवासियों ने उसे घेर लिया, वे सब चिल्लाकर उसे बताने लगे कि वे बहुत परेशान हैं, पूरे गाँव में पानी इतना खराब है कि जानवर तक उसे नहीं पी पाते, खारे पानी की वजह से सारी फसलें चौपट हो जाती हैं। रमेश ने उनकी बात ध्यान से सुनी फिर भी उसने इस बारे में खेतों में जाकर निरीक्षण कर लेना बेहतर समझा।

खेतों में चारों तरफ हरी-भरी फसल लहलहा रही थी, यहाँ तक कि खारे पानी में बिल्कुल न हो सकने वाली नाजुक सब्जियाँ भी वहाँ उगी हुई थीं। उसे बेहद हैरानी हुई. आखिर गाँव वालों ने उससे झूठ क्यों बोला! वह गाँव में वापस लौट आया। ग्रामवासी फिर उसके चारों ओर इकट्ठे हो गए. अबकी उनके होठों पर शरारत भरी मुस्कराहटें थीं।

"भैया! तुम लोगों ने मुझसे झूठ क्यों बोला कि गाँव में हर कहीं पानी खारा है?" रमेश ने उनसे पूछा।

"झूंठ कछु नाएँ कई, पानी तो खारो ही है!" उनमें से कोई बोला।

"मैंने खुद जाकर देखा कि..."

"तुमारों देखिवो ई ग़लत है!" वे सब एक स्वर में बोले।

"क्या मजाक है! ..." अबकी उसे गुस्सा आ गया, "तुम लोग झूठ बोलकर दूसरे गाँव वालों का हक छीनना चाहते हो। मैं अपनी रिपोर्ट में साफ लिख दूँगा कि यहाँ ट्यूबवैल एवं टंकी की कोई आवश्यकता नहीं है।"

वे सब जोर-जोर से हँसने लगे। फिर उनमें से एक युवक किसान खिल्ली उड़ाने के-से अंदाज में बोला, "तुमारी रपोट का कर पावेगी! विधायक जी, मन्त्री जी सबन्ने तो लिख दई है जा पूरे गाम को सब पानी खारौ है। टयूबैल टंकी यईं बनैगी, कोई नाय रोक सकता।"

अब उसने वहाँ और अधिक रुकना मुनासिब नहीं समझा। उनमें से कुछ बेहद बेेहयाई पर उतर आए थे। वह रोज कदमों से जीप की ओर बढ़ने लगा। अपने पीछे उसे उनमें से किसी की व्यंग्यात्मक आवाज सुनाई दी,

"बेचारे कूं पतोई नाएँ कि मन्त्री जी तो जाई गाम के हैं।"

जीप कच्चे रास्ते से लौट रही थी। उसे अपने पीछे चतुर गाँव के लोगों के हल्के कहकहे अभी तक सुनाई दे रहे थे। रास्ते में ही भोला गाँव पड़ता था। उसने देखा कि कच्चे रास्ते के दोनों ओर भोले गाँव के बहुत से किसान खड़े हैं। उसे देखकर कुछ युवक किसान तेजी से बीच रास्ते में आ गए और हाथ जोड़कर उसे रुक जाने का संकेत करने लगे। अपने को असहाय पाकर रमेश की तबीयत खिन्न थी। उसने जीप नहीं रुकवाईं। उनके बगल से गुजरते हुए उसे उनकी मिमियाती, गिड़गिड़ाती आवाजें सुनाई दीं।

थोड़ा रास्ता तय कर लेने के बाद उसने घूमकर देखा। भोले गाँव के किसान अभी भी आशा भरी नजरों से उसी को देखे जा रहे थे।