चन्दर की सरकार / दीर्घ नारायण
चन्दर की पार्टी चुनाव जीत गयी है। अब तो उसकी और उसके कुटुम्बजनों की किस्मत बदल जाएगी। चन्दर यानि चन्द्र प्रकाश, पार्टी मुख्यालय का चपरासी। पार्टी की जीत के लिए उसने क्या कम मन्नतें मांगी है। जब से चुनाव की घोषणा हुई है, दफ्तर छोड़ते-छोड़ते दस-साढ़े दस बज जाते थे, फिर भी बिना नागा किये हररोज घर पहुँचने से पहले माता के मन्दिर में माथा टेका है उसने; रेल्वे गुमटी के पीछे एक सौ एक सीढ़ी ऊपर बैठी माता, तब भी ऊपर चढ़कर घंटा बजाने के बाद ही घर जाकर सो पाता था वह। पार्टी मुख्यालय में दस साल से अगन्तुकों को जल ग्रहण करवा रहा है वह। सरकारी नौकरी भले ही न हो चन्दर की, पर राष्ट्रीय दल के प्रान्तीय मुख्यालय में एक पुराने चपरासी का भी अपना दर्जा होता है। अब उसके साहेब यानी अध्यक्ष साहब की सरकार बनेगी; उसका अनुभव कहता है यह एक ऐसी सरकार होगी जो पाँच साल में प्रदेश का कायापलट कर देगी। पार्टी के कार्यक्रमो, विचार-गोष्ठियों, खास करके पार्टी के कोर–ग्रुप की चुनावी-मैराथन बैठकों को उसने नजदीक से देखा है, पार्टी के प्लान को सुना है, समझा है। पार्टी की यह जीत अप्रत्याशित नहीं है। पिछली सरकार जनता से कट सी गयी थी, प्रदेश की समस्याओें से दूर खड़ी थी। जनता तो दो साल पहले से ही मूड बनाने लगी थी – इस निकम्मी सरकार को उखाड़ फेंकना है, ‘उस’ पार्टी को सत्ता में लाना है। चूँकि चुनाव ही असली मौका होता है धोबिया पछाड़ देने का, इसलिए दो साल से जनता ने खतरनाक चुप्पी ओढ़ रखी थी, मुँह तो जैसे सिल रखे थे। सो जातीय समीकरण वाले इस
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प्रदेश में जीत-हार का पूर्वानुमान लगाना, सर्वे करना, इक्जिट पोल प्रसारित करना आसान न था। जाहिर है पार्टी की भारी जीत यानि दो तिहाई से मात्र पाँच सीटें कम, आज मतगणना सम्पन्न होने के बाद प्रदेश भर में अप्रत्याशित लग रही है; आखिर जातीय समीकरणों के जंगल में से एक स्पष्ट रास्ता, वो भी इतना चौड़ा और साफ-सुथरा कैसे निकल सकता है भला! सचमुच जनता ने सारे समीकरणों को धता बताकर विकास के पथ पर चलने का फैसला दिया है। राजनीतिक शास्त्र में लोकतंत्र की परिभाषा रचने वालों की आत्मा आज स्वर्ग में भी गदगद हो रहे होंगे, कि बुलेट पर बैलेट भारी है। दोपहर बारह बजे तक सारे परिणाम आ गये थे। क्लीन स्विप का नजारा दिखते ही देश-प्रदेश-विदेश के मीडिया दल प्रदेश की राजधानी में जमने लगे हैं, अपने भारी भरकम प्रसारण संयंत्रों व टेलीप्रिंटिेग यंत्रों के साथ। चुनाव परिणाम भले ही अप्रत्याशित न रहा हो, मीडिया का इतना बड़ा जमावड़ा जरूर अप्रत्याशित है। भारी जीत इसकी वजह तो है ही, असली वजह है आज शाम सात बजे विजयी पार्टी की केन्द्रिय कार्यकारिणी की बैठक। इसे प्रदेश की जनता की नई भाग्य-रेखा खींचने वाली बैठक कहा जा रहा है । शाम की बैठक में सरकार द्वारा पांच साल तक किये जानेवाले कार्यों के एजेन्डे तय होंगे, प्रदेश की प्रमुख समस्याओं पर मंथनोपरान्त पार्टी की प्राथमिकताएँ तय होंगी। केन्द्र में सत्ता में आने के बाद पार्टी अब प्रदेश में भी सत्ता की बागड़ोर संभालने जा रही है, सो प्रदेश भर में पार्टी कार्यकर्ताओं का उत्साह बेकाबू होने को बेताब है। लोकतंत्र में स्थायित्व और विकास की अटूट शृंखला के लिए देश और प्रदेश में ‘एक ही पार्टी की सत्तासिध्दान्त’ को बल मिला है इस जीत से। रातनीतिशास्त्र की पुस्तकों में भले ही
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इस सिध्दान्त की परिभाषा अभी तक न गढ़ी गई हो, इस पर एक नया चेप्टर सीधे पाठ्यक्रम में सम्मिलित होना अप्रत्याशित नहीं होगा। मीडिया वाले जमीन पर औंधे लेटे चुनावी समीकरणों के पीठ पर से तेजी से चलते हुए, हैरतअंगेज चुनावी दंगल के कंधे पर पैर धरते हुए सीधे प्रदेश की जनता की समस्याओं के स्टेज पर आ धमके हैं - प्रदेश की ज्वलंत समस्याओं को बारी-बारी से सामने लाते हुए, पार्टी के घोषणापत्र और समस्याओं के बीच चोली-दामन का रिश्ता उदघाटित करते हुए , खासकर शाम की समीक्षा बैठक में समस्या- समाधान के संभावनाओं पर विशेष फोकस डालते हुए। सभी चैनल वालों ने ‘समस्या विशेष’ के नाम से कार्यक्रमों की झड़ी लगा दी है। अलग- अलग चैनलों ने प्रदेश में अपने पसंदीदा समस्याओं को गोद-सा ले लिया है, गोद लिये हुए समस्या विशेष का पोस्टमार्टम आरम्भ कर दिया है। सड़क-बाढ़-पानी-बिजली-आवास-शिक्षा-स्वास्थ्य-खेती-किसानी- अपराध-स्त्री शोषण-बाल-मजदूरी- भ्रष्टाचार-अनाचार-कदाचार- लालफीताशाही....और भी बहुतेरे.....‘प्रदेश एक समस्या हजार’ का नारा जीवंत हो उठा है चैनलों में। टीवी स्क्रीन पर अपने गाँव–अपने शहर—अपने प्रदेश की समस्याओं को विविध-वर्णी फॉरमेट में देखकर लोग-बाग रोमांचित हो उठे हैं, गद्-गद् होकर चर्चा को परिचर्चा में ढ़ाल रहे हैं। कल सुबह के अखबारों की छटा तो और भी निराली होगी—पहला पेज चुनाव परिणाम, दूसरा-तीसरा पेज विधान सभावार ‘जीत-हार’ तो बाकी पेज समस्या-समाधान के सहज–सरल से लेकर अजब-गजब सुझावों से पटा हुआ। चैनल वालों की चर्चा का रुझान धीरे-धीरे शाम की समीक्षा बैठक पर केन्द्रित होती जा रही है, आखिर केन्द्रिय कार्यकारिणी
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की इसी बैठक में सरकार की प्राथमिकता, कार्य-योजना और कार्य की दिशा तय जो होनी है। .......पिछड़े प्रदेश में पूर्ण बहुमत वाली सरकार! जन-जन की उम्मीदें उछाल मार रही है पूरे प्रदेश में, प्रदेश की आर्थिक स्थिती डावांडोल रही है, प्रति व्यक्ति जीडीपी की दर राष्ट्रीय औसत से नीचे है। तो कुल मिलाकर प्रदेश को कंगाली के कगार से और जनता को गरीबी के दलदल से निकालना इस सरकार के लिए सबसे बडी चुनौति होगी और उसी अनुकूल प्राथमिकताएँ भी तय होगी आज की कार्यकारिणी की बैठक में.....आगन्तुक कक्ष के बड़े स्क्रीन पर से चन्दर की नजरें हट नहीं रही है। हटेगी कैसे, माता ने इसी दिन का सुख पाने का वरदान जो दिया है। वह सबसे बड़ा गवाह है, पार्टी ने पिछले पाँच सालों में कितने पापड़ बेले हैं सत्ता तक पहुँचने के लिए, जनता की सेवा करने के लिए। पिछले पाँच सालो में पार्टी ने जी तोड़ मेहनत किया है, खास करके पिछली सरकार की नाकामियों को सप्ताह-दर-सप्ताह नंगा करके। पार्टी अध्यक्ष खुद, महासचिव, प्रवक्ता और सभी बड़े नेता गाँव-गाँव शहर-शहर जाकर जनता का विश्वास जीता है; धोखे से नहीं जीता है, सच्चाई से जीता है, दिल की आवाज से जीता है। फरेब से नहीं जीता है, जनता का सेवक बनकर सत्ता संभालने का विश्वास दिलाया है। जिस मंच से भी साहब ने जनता को सम्बोधित किया है, जनता उनकी मुरीद हो जाती थी; होती कैसे नहीं, साहेब के एक-एक शब्द एक-एक वचन-वायदे दिल की गहराई से अन्तरात्मा से जो निकलती है, मानिये ईश्वरीय पुकार—भाईयों एवं बहनों,आप हमें एक बार मौका दीजिए, मैं वचन देता हूँ पाँच साल में जनता की नई तकदीर लिख दूँगा, तंत्र में फैली सारी
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बुराइयों पर ऐसा स्प्रे करूँगा कि एक महीने में नामोनिशान नहीं बचेगा....सचमुच चन्दर भाग्यवान है, उनकी सरकार बनेगी, उसके दिन बहुरेंगे। न्यूज देखते-देखते चन्दर की आँखे सजल हो चली है; उसे आज फिर अपने गाँव, गाँव के लोग, बड़े भाई के कस्बे, उनके परिजन, चाचा के शहर और कुटुम्बजन याद आ रहे हैं, याद आ रही है उनकी दशा- दुर्दशा.....गाँव में उसके पिता के पाँच बीघा खेत, साल में पाँच महीने खेतों में जल-समन्दर, एक अदद बांध की आस में दो पीढ़ी गुजर गई, जुलाय-अगस्त- सितम्बर किस्त-दर-किस्त बाढ़–बर्बादी, हाड़-तोड़ मेहनत के बाद ब-मुश्किल रबी की फसल उग पाती है जनवरी से अप्रेल के बीच। सत्तर साल का बुजुर्ग बाप अभी भी डटा है गाँव में, दिन फिरने की आस में। हे माते आपने हमारे गाँव के भोले–भाले जीव-जनता की पुकार सुन ली, शत-शत नमन माते, अब बाढ़-नियंत्रक बांध का सपना साकार होगा। उसकी सजल आँखों में आंसू की बूँदे। आगन्तुक कक्ष से लपककर वाश-रुम में गया, मुँह में पानी के छीटें मारे, आगन्तुक कक्ष के बजाय विशिष्ट कक्ष में दाखिल हुआ। आज पानी पिलाने की जिम्मेदारी उसने दोनो नये छोकरों पर छोड़ रखी है; काफी पुराना और वरिष्ठतम चपरासी है वह पार्टी दफ़्तर का, आज के पावन-अवसर पर उसका भी हक बनता है, घुम-घुमकर उल्लास-उमंग का जायजा ले, सुखद वातावरण में मन के बोझदिल के दर्द को हल्का करे। अनुभवी और विश्वसनीय चपरासी के तौर पर पिछले दो-तीन सालों से बेधड़क कही भी आ-जा सकता है, आगन्तुक कक्ष से आगे विशिष्ट कक्ष और यहाँ तक कि कोर कक्ष में भी बे-रोकटोक दाखिल होने की हैसियत रखता है
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वह। विशिष्ट कक्ष में दाखिल होते ही उसकी नजर पड़ गयी यहाँ-वहाँ बिखरे पड़े पार्टी के चुनावी घोषणा-पत्र पर। कर्मठ और समर्पित चपरासी रहा है वह पार्टी का, घोषणा-पत्र का आदर करना जानता है वह; उसके दिल से आवाज आयी, तिरंगे भाँति ही पार्टी घोषणा-पत्र का भी अनादर नहीं होना चाहिए। बिखरे पड़े घोषणा- पत्रों को टेबुल पर रखा उसने। उसकी नजर प्रथम पृष्ठ पर जम गयी- ‘‘जन-जन को जीने का अधिकार बेरोजगारों को रोजगार की दरकार’’। उसकी आँखे फिर से भर आयी, उसने घोषणा पत्र को सीने से लगाया- हे माते आपने हमारी सुन ली, मेरे दोनो बच्चे, इकलौती बहन की इकलौती बेटी और दोनों भाईयों के पाँचो बच्चें कहीं न कहीं रोजगार पा लेगा, कारोबार शुरू कर पायेगा। एक-एक पैसे बचाकर, एक पैंट सर्ट बरस-दो-बरस तक रगड़कर, पति- पत्नी पेट काटकर दोनो बच्चों को बी.ए. करा पाये हैं; पर दोनो पाँच साल से परीक्षा देते-देते गुस्सैल-से हो गये हैं। हे माते, तूने पार्टी की प्रार्थना सुन ली, अब हमारे दिन आयेंगे जनता के दिन बहुरेंगे। विशिष्ट कक्ष के थ्री–डी स्क्रीन पर खस्ताहाल सरकारी अस्पतालों–बिखरे पड़े बोतलों-दम तोड़ते मरीजों के डरावने फुटेज थ्री-डी में और भी डरावना बनकर अन्दर-बाहर हो रहे हैं। स्क्रीन के अन्दर से सन्न कर देने वाली रिपोर्टिंग… हजारों-लाखों जिन्दगियाँ कुर्बान हो चुकी है इस सरकार के निकम्मेपन पर; उम्मीद जग रही है अब सरकारी अस्पताल का मतलब मुर्दाघर घर नहीं, बल्कि साधारण से लेकर खतरनाक बीमारियों के इलाज का आशालय होगा.....जय माते-जय माते चन्दर के मन में भी आशा का संचार होने लगा है; अब उसके साले साहब की जिन्दगी बच जायेगी। पत्नी से छोटा भाई, प्यारा साला, कस्बे के चौक पर प्यारी सी चाय की दुकान, दो मेधावी बच्चे
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हाइस्कूल में, साधारण रहन-सहन के साथ घर-परिवार हँसी-खुशी से चल रहे थे। पर अचानक शनि की साढ़ेसाती ऐसी लगी कि, न जाने कहाँ से कैंसर आ टपका साले के कंठ में; राजधानी के सरकारी कैंसर इंस्टीच्युट में दो महीने की दौड़-धूप, केमो-टेमो-डेमो से लेकर रेडियो तक की देह-घिसाई, अभी भी जान अन्दर–बाहर; एक दयालु डाक्टर ने दो-टूक कहा-दिल्ली-मुम्बई के निजी अस्पताल से नीचे जान नहीं बचेगी। एक बीघा जमीन, एक मात्र पैतृक सम्पत्ति कैंसर के पेट में समा गयी। अब तो भगवान भरोसे घर के बरामदे में ऑ-ऑ- ओ-ओ करता रहता है, घर परिवार बाल-बच्चे अस्त-व्यस्त-पस्त....... हे माते, आपने हमारी सुन ली, अपनी पार्टी की सरकार होगी, असली सरकार-गरीबों की सरकार।! जल्द ही शहर के सरकारी अस्पताल में कैंसर का कारगर ईलाज होगा, साले साहब फिर से उठ खड़े होंगे, मशहूर ‘राजू चाय स्टॉल’ फिर से महक उठेगा। जय माते! विशिष्ट कक्ष में विशिष्ट जन दाखिल हुए, प्रदेश प्रवक्ता डा. भानू प्रताप; राजधानी में अपना चमकता हुआ बड़ा अस्पताल। बगल के जिले से बड़े अन्तर से नवनिर्वाचित विधायक, स्वास्थ मंत्री बनने की प्रबल संभावना। स्क्रीन पर धीरे-धीरे अवलोकित-विलोपित हो रहे बद्हाल सरकारी अस्पतालों एवं अधमरे लेटे मरीजों पर नजर पड़ते ही भड़क उठा चन्दर पर —कौन सा बकवास चैनल लगा दिया है, ये हरामजादे तो पार्टी-विरोधी रहा है शुरू से ही। उसने रिमोट दबाकर दूसरा चैनल लगा दिया है.... तो कुल जमा तीन यानि शिक्षकों की भीड़ शिक्षा नदारद! तो ये हाल है प्रदेश में सरकारी स्कूलों का। आखिर साधारण घरों के छात्र–गरीबों के बच्चे पढ़े तो क्या पढ़े-कहाँ पढ़े। अमीरों-खाते-पीते लोगों के बच्चे मनमाने फीस वाले प्राइवेट स्कूलों में
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पढ़कर अच्छे अंक हासिल कर रहे हैं, जाहिर है कैरियर के हर क्षेत्र में ऐसे ही घरों के बच्चों का एकतरफा कब्जा होता जा रहा है और गरीब घरों के बच्चे की किस्मत में रह जाती है खेतो में-सड़को में-घरों में मजदूरी करना या फिर गलियों में फाकाकसी करना। स्पष्ट है अमीरों और गरीबों के बीच बढ़ रहे फासले को पाटना है तो दोनो के बच्चों को एकसाथ बैठाना होगा, एक साथ पढ़ाना होगा; तभी गरीब घरों के बच्चे भी आई.आई.टी.-मेडिकल-आई.ए.एस.-आई.पी.एस, पी.सी.एस. कर पायेंगे......अन्यथा सिर्फ कथा-कहावत जारी रहेगी कि—मनुष्य-मनुष्य में कोई भेद नहीं अमीर-गरीब सब एक समान, चाहे हो कोई मजदूर कोई बाबू, किसी में कोई भेद मत जान .......हे माते, जय हो जय हो। पार्टी की सरकार बना दी माते, जय हो। पार्टी की जय हो-पार्टी की जीत पर चन्दर फिर से पुलकित हो उठा है......उसके बच्चे को जितना पढ़ना था जैसे-तैसे पढ़ लिया आई.ए.एस. पी.सी.एस. करने का सपना पालना चाँद तोड़कर लाने जैसे होता, लेकिन अब तो छोटकी सुनयना के छोटे- छोटे बच्चों और साले साहब के बड़े बच्चों के भाग्य संवर जायेंगे। पार्टी की सरकार बन रही है, अब तो सरकारी स्कूलों में भी कॉन्वेन्ट स्कूल जैसी कमाल की पढ़ाई शुरू हो जाएगी। अरे हॉ, पार्टी घोषणा पत्र में भी तो गरीबों के लिए ‘गुणवत्तापूर्ण शिक्षा’ जैसा एक पेज तो है। तेजी से घोषणा पत्र के पन्ने फड़फड़ाये उसने; ये रहा तीसरे पेज पर ही- ‘‘सरकारी स्कूलों का करेंगेउध्दारजब बनेगी अपनी सरकारआई.ए.एस. बनेंगे गरीबों के बच्चे वायदे नहीं है हमारे कोरे कच्चे’’हे माते अब हमारे भांजा-भांजी भी कलक्टर–एस.पी. बन पायेंगे, जय हो माते। डा. भानू-प्रताप की मौजूदगी में भी चन्दर ने बुदबुदाते हुए देवी माता का वन्दन किया, जमीन की
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ओर आधे झुककर। "चैनल वालों का पेट तो कभी भरता ही नहीं; अभी सरकार बनी भी नहीं है कि पैसे के लिए प्रेसर-न्यूज़ झाड़ रहे हैं’’ भुनभुनाते हुए डा.भानू प्रताप रिमोट के बटन में अंगुली फिराने लगे, स्क्रीन पर नया न्यूज़ चैनल उग आया.....भयावह दृश्य किसी से छिपा नही है, प्रदेश भर में सड़कों का हाल बेहाल है, वार्षिक बजट पास होते ही पेश होती है बाढ़; किसी से छिपी नहीं है यहाँ के सड़कों की गुणवत्ता; कहते हैं प्रदेश भर में इंजीनियरों का संघ चोरी-छिपे वरुण देवता की पूजा करते है; ठीक-ठाक बाढ़ आने के लिए, ताकि एम.बी. में दर्ज किये गये सही-गलत मिजरमेंट बाढ़ में बह जाए.... जय माते! तुमने इंजीनियरों के मुँह में जोरदार तमाचा मारा है, अब पार्टी की सरकार होगी, कोई जेई-एई-फेई-टेई घटिया काम का पूरा पैसा नहीं निकाल पायेगा। आँखे बन्द करके याद करने लगा वह... उसके गाँव के लोग पाँच-सात साल तक चक्कर काटे थे जिला योजना समिति, जिला परिषद, कलक्टर दरबार, तब जाकर पूरे पलासी प्रखाड़ में सबसे अन्त में उसके गाँव तक प्रधानमंत्री सड़क बन पायी थी, कोई तीन साल पहले; क्या शक्ल-सूरत थी सड़क की, पैदल चलता आदमी भी लड़खड़ा जाय, विमला का गेहूँ लदा टैक्टर चलते ही दनादन गड्डे दर गड्डे बन रहे थे..... हे माते, आपने सुन ली, अब हर जगह मजबूत सड़क बनेगी, इंजीनियर लोगों के खबासू रोग की अब खैर नहीं। पार्टी के कार्यालय सचिव को कोर-कमेटी कक्ष की ओर चहलकदमी करते हुए देखा उसने, लपककर दरवाजा खोला, अन्दर दो-तीन अनजान चेहरे बैठे हुए हैं; शान्त–खुशमिजाज, शायद केन्द्रिय पदाधिकारीगण होंगे पार्टी के। चेयरपरसन की कुर्सी के सामने सिनेमा-स्क्रीन के एक चौथाई के बराबर बड़े पर्दे पर बेआवाज न्यूज़ रिपोर्टर दिख रहा है। चैनल के लोगो देखकर पहचान गया वह, अपनी पार्टी के पक्ष का खास न्यूज चैनल है। भोल्युम बढ़ाने का बटन दबाया कार्यालय-सचिव ने..... विश्लेषणोपरान्त निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है, प्रथम पाँच प्राथमिकताओं में पुलिस-तंत्र का सर्जिकल स्ट्राईक को शामिल करना होगा, वरना अपराधी पहले से भी बेलगाम होते जायेंगे, भय का वातावरण और भी ड़रावना होता जाएगा, फिर तो विकास में जनता की सहभागिता दूर की कौड़ी साबित होगी.....जय माते। चन्दर के अन्दर यादों के बियावान फिर से झिलमिला उठे....उसके चाचा हरिमोहन, ईमानदारी और चुनावी मशक्कत से शहर के नगरपालिका में वार्ड मेम्बर बना था; चेयरमेन के लूट-तंत्र के खिलाफ महीनों मोर्चा खोल रखा था, अचानक गिरफतारी का वारंट, वो भी दफा तीन सौ दो में। पूरा परिवार-कुटुम्ब सहित मिला था एस. पी. निशान्त तिवारी से; कितना भड़क उठा था कुत्ते का पिल्ला, चिल्लाकर कहा था कि शहर से साठ किलोमीटर दूर एक हरिजन की हत्या हुई है और उसके तार मोर्चा खोलने वाले मेम्बर से जुड़ रहे है; औरफिर अंगुली उसकी नाक तक लाते हुए कितना चेताया था - तुम लोगों ने अगर पैरवी किया तो तार का करंट तुम सभी तक पहॅुंच जाएगा, सबूत मिटाने के जुर्म में। घिग्घी बन्ध गयी थी उसकी, बिना पदचाप किये एस.पी. के चेम्बर से निकलना पड़ा था। चार साल बाद बेल हो पायी थी चाचा की, कितनी जलालत और जिल्लत झेलनी पड़ी थी पूरे परिवार को, आज भी उसकी आंच बुझ नहीं पायी हैं। उस घटना ने तो राजनीति में पैर धरने के उसके बृहद-परिवार के पंख हमेशा के कतर दिये थे। हे माते, आपने हमारी सुन ली, अपनी पार्टी की सरकार बन गयी है, अब पुलिसवाले बेलगाम होकर बेगुनाहों को बर्बाद नहीं कर पायेंगे, अब तो गलत लोगों पर गाज गिरेगी ही गिरेगी, कोई अपराधी-गुण्डा बचेगा नहीं; माते की जय हो! जय हो.....
कोर कमेटी की बैठक शुरु होने में कुछ ही घंटे बाकी है। न्यूज़ चैनलों में समाचार वाचकों के शब्दों में दबाव बढ़ने लगा है। आगन्तुक कक्ष खचाखच भरा है। ‘समस्याएँ और समाधान’ पर चैनलों में विविध नाम से कार्यक्रमों का युध्द छिड़ सा गया है। चैनलवाले समस्याओं को जड़ से उखाड़ फेंकने का तिलिस्मी खाका तैयार कर रहे हैं। चन्दर की आँखों में आँसू की बूंदे बनने लगे हैं, खुशी के आँसू। आगन्तुक कक्ष में बैठे नेता-कार्यकर्ता हर्षोल्लास के शिखर की ओर बढ़े जा रहे हैं। कुल मिलाकर दैवीय वातावरण। चन्दर के शरीर में सिहरन सी दौड़ रही है, कहीं शपथ ग्रहण से पहले ही सारी समस्याओं का समाधान न हो जाय। .....जाहिर है, प्रदेश में समस्याओं की बाढ़ बढ़ती जा रही है; ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि नई सरकार किन-किन समस्याओं को प्राथमिकता के तौर पर समस्याओं के बाढ़ में से छानकर बाहर निकालेगी......आगन्तुक कक्ष के बड़े स्क्रीन पर चैनल नम्बर एक सौ एक द्वारा नई सरकार का मार्ग प्रशस्त करना जारी है.....नई सरकार की पाँच प्राथमिकताएँ, हॉ पाँच प्राथमिकताएँ! कयास लगाये जा सकते हैं कि पहली प्राथमिता हो सकती है बिजली, जैसा कि प्रदेश की बहुसंख्यक आबादी अभी भी अन्धकार–युग में जी रही है। दूसरी प्राथमिकता हो सकती है सड़क क्योंकि सुदूरवर्ती क्षेत्रों तक सम्पर्क मार्ग नहीं है और मौजूदा मार्गों की कमर टूटी पड़ी है। तीसरी होगी शिक्षा, जगजाहिर है प्रदेश के करोड़ों निरक्षर बच्चे देश के कोने-कोने में मजदूरी करके अपनी देह गला रहे हैं। चौथी हो सकती है भ्रष्टाचार- उन्मूलन, उन्मूलन संभव नहीं हो तो जोरदार नियंत्रण ही सही क्योंकि भ्रष्टाचार का दीमक गरीब जनता के पतले पॉकेट को आसानी से चाटती जा रही है। पेयजल पाँचवी प्राथमिकता हो सकती है जैसाकि ऐसा कोई शहर-कस्बा नहीं है जहाँ शुध्द पेयजल की निर्बाध आपूर्ति हो रही हो.....चन्दर का सारा उत्साह बैठा जा रहा है, उसकी और उसके गाँव की जानलेवा समस्या प्रदेश भर की जनता की भी आम समस्या है; आखिर बाढ़ की समस्या प्रथम पाँच समस्याओं में क्यों नहीं शामिल हो रही है। हे माते, हमारे बाप-दादा बाढ़-पानी में डूबते- थकते गुजर गये, क्या हमारी आनेवाली पीढ़ी भी तैरते रहेंगे जलजले में। हे माते, बाढ़ की बर्बादी को रोकवा दें माँ, एक बार बाढ़ रुक गयी, खेती-बाड़ी न सही हमलोग अपनी जमीन-जायदाद बेचकर यही राजधानी में छोटा-मोटा घर-बार जमा लेंगे, पार्टी की सेवा में लगे रहेंगे। बाढ नहीं रुकेगी तो जमीन का कौन दाम देगा भला। चन्दर का मन अधीर हो उठा है, जुनियर चपरासी को पानी लाने का संकेत किया, ट्रे से दो गिलास पानी उठाकर गटागट पी गया, मन की बैचेनी कम हुई, पर दिमाग में बाढ़ बढ़ती जा रही है; विशिष्ट कक्ष की ओर चल दिया, बाढ़ की समस्या को बाहर लाने। ...... तो राजनीतिक विश्लेषकों की राय में नई सरकार की प्रथम पाँच प्राथमिकताएँ होगी- भ्रष्टाचार पर वार, कृषि-क्षेत्र में कायापलट, आम लोगों के लिए सुलभ आवास, बेरोजगारों के लिए रोजगार और सरकारी अस्पतालों में गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सेवा। वजह साफ है कि.... चैलन एक सौ दो के न्यूज़ ने चन्दर का जैसे चैन ही छीन लिया; इसमे भी बाढ़ नियंत्रण कोई प्राथमिकता नहीं बतायी जा रही है। पानी पिलाने के बहाने जग उठाया, बाथरुम के पर्दे की आड़ में आधा जग पानी अन्दर गटक गया। पानी से पेट थुल-थुला गया, उसे लगा कही उसका पेट ही पानी में न बह जाय। बाढ़ नियंत्रण को पाँच प्राथमिकताओं में शामिल होने की अकुलाहट बढ़ती गई उसके अन्दर। हाथ में जग-गिलास थामे कोर-कमेटी कक्ष में दाखिल हुआ। गोल मेज की वी.आई.पी. कुर्सियाँ लगभग भर चुकी हैं। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष यानि भावी मुख्यमंत्री की ऊँची कुर्सी ही खाली है। इसका मतलब, कोर- कमेटी की बैठक कभी भी शुरु हो सकती है। सभी वी.आई.पी. के सामने मिनरल वाटर की बोतल उसके जुनियरों ने पहले ही सजा दी थी, सो पानी का जग और गिलास किनारे के टेबुल में धीरे से रख दिया। अध्यक्ष- आसन के सामने दिवाल पर लगे स्क्रीन ने उसका ध्यान आकर्षित किया। बेआवाज स्क्रीन पर न्यूज़ दौड़ रही थी....सरकार की प्राथमिकताएँ होनी चाहिए...फिर स्क्रीन पर चकाचौंध शब्द टपकने लगे, जैसे आसमान से ओलावृष्टि हो रही हो....(1) अपराध-मुक्त प्रदेश (2) भ्रष्टाचार–मुक्त प्रदेश (3) विदयुत सम्पन्न प्रदेश (4) किसानों का प्रदेश(5) बाढ़-मुक्त प्रदेश (6) तेज रफ्तार वाली सड़कों का प्रदेश (7) रोजगार सम्पन्न प्रदेश (8) उद्योग समृध्द प्रदेश (9) झोपड़ी मुक्त प्रदेश (10) तकनीकी शिक्षा सम्पन्न प्रदेश...पाँचवे क्रम पर ‘बाढ़ मुक्त प्रदेश’ टपकते ही चन्दर के मुँह से निकला–जय माते-जय माते। चन्दर के बुदाबुदाने से वी.आय.पी. की मुद्रा क्षण भर के लिए भंग हुई, वह सावधान हो गया। उधर स्क्रीन पर प्रार्थमिकताएँ पाँच से बढकर दस, फिर उससे भी आगे बढ़ने लगी है। वह असमंजस में पड़ गया, कहीं ‘बाढ़’ पाँच प्राथमिकताओं से आउट न हो जाय। वह कोर-कक्ष के कम्प्युटर-रुम की ओर मुड़ गया। कम्प्युटर वाले राजा बाबु से उसकी अच्छी बनती है, आखिर सरकार की प्राथमिकता वाला पेपर वही तो तैयार कर रहा होगा। ‘‘कैसे हैं चन्दर चाचा, आज तो पानी की अच्छी खपत होगी; ध्यान रखियेगा इतना भी न पिला दीजिएगा कि कल शपथ-ग्रहण मैदान में ही बाढ़ आ जाय’’ राजा ने मजाक किया, पर बेवक्त मजाक से चन्दर के चेहरे पर हँसी का अंकुर भी न फुटा, बल्कि ‘बाढ़’ शब्द से उसके चेहरे पर चिन्ता की लकीरें और टेड़ी हो गई।‘‘राजा बाबू, इस वक्त मजाक छोड़िये, यह तो बताइये सरकार की पाँच प्राथमिकताओं में बाढ़-नियंत्रण है कि नहीं’’ चन्दर ने कम्प्यूटर स्क्रीन पर नजरें गढ़ा दी, जैसे कम्प्यूटर में ‘बाढ़’ ढूँढना चाह रहा हो। ‘‘अरे चाचा, क्यों परेशान हो रहे हैं, मुझे पता है आपकी कई एकड़ जमीन पानी के नीचे दबा पड़ा है, अब तो अपनी सरकार बन गयी है, आपकी सारी जमीनें पानी से छानकर हथेली में रख दी जायेगी, जाइये मस्त होकर पानी पिलाइये, बाढ़ से मुक्ति पाँच प्राथमिकताओं में शामिल है’’— आज तो राजा में भी राजनीतिक-रंग चढ़ा हुआ लग रहा है। उसे पता है, राजा डींग नही मारता कभी, सो अब उसकी छटपटाहट दूर हो पाई है; लगा, सरकार के पाँच-प्रमुख घोड़े की लगाम खूँटे से बाँध दी गयी है। उसे इतनी तसल्ली हुई, कि कम्प्यूटर रूम में रखे मिनरल वाटर के कार्टून से पानी का बोतल निकाला, कोर-कक्ष की ओर जाते हुए कॉरीडोर में पूरा बोतल कंठ में उड़ेल लिया....हे माते, आज चाहे मेरे पेट के अन्दर बाढ़ आ जाय, पर मेरे इलाके में बाढ़ को ऐसा नाथ दो माते कि कभी भूलकर भी हमारे गाँव की तरफ न मुँह कर पाये। कोर-कक्ष की लाल-बत्ती ऑन हो चुकी है। इसका मतलब है पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और हमारे साहेब कोर-कमेटी की बैठक में बिराजमान हो चुक हैं। उसकी धडकनें तेज हो गयी है.....हे माते, बाढ़ को ‘पाँच’ से बाहर मत कर देना। कहीं कोर-कमेटी ने बाढ़ को पाँच में शामिल नहीं किया तो? उसके चेहरे पर पसीने की बूँदे बनने लगी है। कोर-कमेटी का निर्णय जानने की बेताबी बढ़ती जा रही है उसके अन्दर। अरे, अब तो उसका पूरा शरीर पसीने से तर-बतर हुआ जा रहा है। पार्टी प्रवक्ता के प्रेस-कॉन्फ्रेंस और फिर टी.भी. में पाँच प्राथमिकता वाले न्यूज़ की प्रतिक्षा करने का धैर्य नहीं रहा उसके अन्दर। वह कोर- कक्ष के अन्दर दाखिल होगा, लाल बत्ती के बावजूद; आखिर वह वर्षो से जल-सेवा दे रहा है पार्टी को, उसका हक बनता है कोर-कक्ष में पदचाप-रहित होकर पानी-बोतल लेकर जाने का। अब वह हाथ में पानी की कई छोटी बोतलें लेकर कोर-कक्ष में चहलकदमी करने लगा है......पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीच वाली कुर्सी में है, अपने साहेब उसके बगल में, उतनी ही ऊँची कुर्सी में। अध्यक्ष महोदय गम्भीर होकर पार्टी पदाधिकारियों को हिदायत दे रहे हैं....... “...है। पार्टी कार्यकर्ताओं की जीत है, जनता की जीत है। इस जीत के साथ ही हमारे सामने चुनौति ही चुनौति है। आप सब अच्छी तरह जानते हैं, सबसे बड़ी चुनौति क्या है....” चन्दर की साँस तेज हो गयी, साँस धीमी करने के गरज से पर्दे की ओट में पूरे एक बोतल पानी कंठ में डाल दिया...हे माते!बाढ़ की समस्या को एक-दो-तीन-चार ना सही, पांचवी प्राथमिकता पर जरूर रखना।...अध्यक्ष महोदय का अदालती स्वर जारी है- ‘‘....समझे, आज से ठीक पाँच साल बाद हमें फिर से चुनाव का सामना करना है, उस चुनाव में जीत हासिल कर पुन: सत्ता में आना सबसे बड़ी समस्या है और इसलिए हमारी पहली प्राथमिकता है, हमें सबसे पहले इसी प्राथमिकता पर फोकस करना होगा...और आज से ही फोकस करना होगा,हमारी पहली-दूसरी-तीसरी-चौथी और पाँचवी प्राथमिकता है आगामी चुनाव में जीत दुहराना... कोर कमेटी की बैठक आज इसी परिप्रेक्ष्य में बुलाई गई है....चन्दर को लगा, किसी ने आसमान में छेद कर दिया है, पूरे कोर-कक्ष में बाढ़ का पानी बढ़ा जा रहा है, फिर तो उसकी लाश इसी कोर-कक्ष में सड़ती रहेगी। वह छत की ओर भागा, चारो दिशाओं में नज़र दौड़ाया......देश-दुनिया, घर-बार, सड़क-चौराहे लोग-बाग सब नदारद। चारो तरफ सिर्फ बाढ़ ही बाढ़! उसे लगा बाढ़ का पानी छत के ऊपर से बहने लगा है। तेजी से हाँफने लगा है वह। उसे जोर की प्यास लगने लगी है। उसके हाथ में पानी की एक मात्र बोतल है। चाहे जितनी प्यास लग जाय, वह बोतल नहीं खोलेगा; अभी पाँच साल का कठिन सफर बाकी है। उसकी निगाहें कही दूर कुछ ढूँढ रही हैं; शायद एक छोटी सी डोंगी, जिसमें समस्याओं की गठरी को लादकर पाँच-साला सफर पर रवाना कर सके।