चन्दर / रंजना वर्मा

Gadya Kosh से
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बात बहुत पुरानी है। तब मगध देश में नंद वंश के राजा घनानंद का राज्य था। वह बहुत विलासी था। हमेशा वह अपने ऐशो-आराम में ही डूबा रहता था। प्रजा के दुख सुख की वह कभी परवाह नहीं करता था और प्रजा पर तरह-तरह के अत्याचार किया करता था।

प्रजा उसके अत्याचारों से दुखी थी लेकिन राजा का विरोध करने की उसमें हिम्मत नहीं थी।

एक बार राजा घनानंद अपने राज्य के एक गरीब लकड़हारे की सुंदर कन्या पर मोहित हो गया। उसने अपने सैनिकों को भेजकर उसे पकड़ मंगवाया। लकड़हारे की लड़की का नाम था मुरा था। वह बहुत सुंदर किंतु निर्धन थी। उसने राजा से स्वयं को छोड़ देने के लिए बहुत विनती की लेकिन राजा को उस पर तनिक भी दया न आयी। उस ने जबरदस्ती मुरा से विवाह कर लिया। धीरे-धीरे मुरा भी राजा की इच्छा के अनुसार रहने लगी।

राजा घनानंद कुछ दिनों तक उसके प्रेम में डूबा रहा परंतु शीघ्र ही वह उससे ऊब गया। वह फिर अपनी बुरी आदतों और शराब में डूब गया। इसी बीच उसने एक अन्य सुंदरी को देखा और उस से जबरदस्ती विवाह कर लिया। नयी रानी के लिए उसने मुरा को महल से निकाल दिया और वह महल नई रानी को दे दिया।

मुरा उस समय गर्भवती थी राजा के इस अपमान से बहुत वह बहुत दुखी हुई. वह एक रात चुपचाप तक्षशिला चली गई और वहीं छिपकर रहने लगी। गांव वालों ने उसे दुखी और असहाय जान कर उसके लिए एक झोपड़ी बना दी। मुरा गांव के लोगों के घर छोटे-मोटे काम करके उसी झोपड़ी में रहकर अपना जीवन बिताने लगी।

वहीं रह कर कुछ समय बाद उसने एक अत्यंत सुंदर बच्चे को जन्म दिया। उसकी सुंदरता के कारण गांव वालों ने उसका नाम रखा-चंदर।

मुरा के साथ उसका बच्चा भी अनेक दुख झेलता हुआ उसकी गरीबी में पलने लगा। धीरे-धीरे वह आठ वर्ष का हो गया। माँ ने बचपन में ही उसे तीर तलवार चलाना सिखा दिया।

मुरा जब काम करने गांव वालों के घर जाती तब चंदर अपना छोटा-सा बाँस का धनुष और तीखे नुकीले तीरों के साथ पास के जंगल में चला जाता। शाम होने तक वह एकाध छोटा शिकार मार कर घर लौटता। उसके शिकारों को देखकर मुरा उसे शाबाशी देती।

वह कहती-

"मेरा बेटा बहुत बहादुर है लेकिन जिस दिन तू शेर मार कर ले आएगा उस दिन तुझे सच्चा बहादुर समझूंगी।"

दिन भर जंगल में भटकने के कारण चंदर की पशुओं से अच्छी मित्रता हो गई थी। वह निडर हो कर उनके बीच घूमता रहता। हिंसक पशुओं से वह सावधान रहता और अहिंसक जानवरों के साथ सुरक्षित स्थानों पर खेला करता। मोर उसे बहुत अच्छे लगते थे इसलिए वह सारे दिन मोरों के पीछे दौड़ता फिरता।

एक बार की बात है। चंदर अपने प्यारे मोरों के साथ खेल रहा था। मोर मस्ती में अपने पंखों को फैलाकर झूम-झूम कर नाच रहे थे और वह एक हिरण के बच्चे को गोद में लिये हरी घास पर बैठकर उनका नाच देख रहा था।

अचानक हल्की-सी सरसराहट की आवाज हुई. चंदर ने सतर्क होकर उधर देखा। सामने झाड़ी के पीछे से एक शेर उस झपटने ही वाला था। चंदर ने फुर्ती से हिरण के बच्चे को एक ओर धकेला और स्वयं दूसरी ओर लुढ़क गया।

उसी समय शेर ने उस पर छलांग लगा दी। तब तक चंदन धनुष उठा कर उसे अपने तीखे वालों से घायल कर चुका था। किंतु कहाँ जंगल का राजा शेर और कहाँ आठ वर्ष का बालक चंदर। शेर घायल होने के कारण बहुत क्रोधित हो उठा। वह पूरी शक्ति से उस पर झपट पड़ा। चंदर भी अपने प्राणों की परवाह न करते हुए उस से भिड़ गया। शेर ने उसे बुरी तरह घायल कर दिया लेकिन फिर भी वह बार-बार उठकर उस से भिड़ जाता।

उसी समय किसी ने जहरीला बाण मार कर शेर को मार डाला। चंद्र शेर से अलग हो गया। उसका पूरा शरीर खून से लथपथ हो रहा था। सामने एक दुबले-पतले ब्राह्मण को देखकर वह बोला-

"आपने उसे बाण क्यों मारा? मैं तो आज उसे इन हाथों से ही मार डालता।"

चंदर की उत्साह भरी बातें सुनकर उसके घायल शरीर को देखते हुए ब्राह्मण ने कहा-

"तुम्हारी इस वीरता से मैं बहुत प्रसन्न हूँ। इसी बहादुरी, उत्साह और साहस के कारण तुम एक दिन वीरों के सम्राट बनोगे। बच्चे! तुम्हारा पिता कौन है? किसके पुत्र हो तुम?"

चंदर ने उसे अपनी माता का नाम बताते हुए उत्तर दिया-

"पिता का नाम मैं नहीं जानता। मेरी माता का नाम मुरा है। वही मेरी माता और पिता दोनों हैं।"

ब्राम्हण चंदर को साथ लेकर उसकी माँ के पास पहुंचा। उसके शरीर से रक्त बहता देखकर मुरा ने व्याकुल होकर पूछा-

"मेरे बच्चे! क्या हुआ तुम्हें?"

"यह तो कुछ भी नहीं हुआ देवी! तुम्हारा पुत्र आज शेर से भिड़ गया था। इस निहत्थे बच्चे की वीरता से मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ।" ब्राम्हण बोला।

"आप कौन हैं भाई?" मुरा ने पूछा।

"मेरा नाम विष्णुगुप्त है। मैं चणक ग्राम का रहने वाला ब्राह्मण हूँ किंतु जंगली जानवरों से अपनी रक्षा के लिए धनुष साथ रखता हूँ।" ब्राह्मण ने बताया।

उसने बड़े प्रेम से चंदर के बालों में हाथ फिराते हुए उसे आशीर्वाद दिया-

"यह बच्चा अपने छोटे से शरीर में असीम शक्ति और साहस छुपाए हुए है। जैसे प्रथमा के चंद्रमा में उसकी सोलह कलाएँ छिपी रहती हैं। आज से इसका नाम चंद्रगुप्त होगा। मोरों से अधिक प्रेम करने के कारण यह मौर्य कहलाएगा। मैं इसके चक्रवर्ती होने की भविष्यवाणी करता हूँ। यह मगध के नंद वंश का नाश करके मौर्य वंश की स्थापना करेगा।"

रानी मुरा ने श्रद्धा पूर्वक उसे प्रणाम किया। उसकी आंखें खुशी से चमकने लगी। वह बोली-

"आपका आशीर्वाद सत्य हो ब्राम्हण देवता!"

बड़ा होकर यही बालक चंद्रगुप्त मौर्य के नाम से प्रसिद्ध हुआ और उसने नंद वंश का नाश करके मौर्य वंश की स्थापना की।