चन्द्रप्रकाश द्विवेदी से परिचर्चा / दीप्ति गुप्ता
सदियों से समाज और मनुष्य अन्योन्याश्रित रहे हैं यानी व्यक्ति से समाज का और समाज से व्यक्ति अस्तित्व रहा है. समाज की हर इकाई - मनुष्य, जीव-जंतु , विविध संस्थाएं, उनके क्रिया-कलाप, गतिविधियां, उनकी उन्नति, अवनति, विकास ह्रास – सब कुछ समाज को परोक्ष और अपरोक्ष रूप से प्रभावित करता है. एक किशोर के भरे बाजार में एकाएक गोली चला देने से सारा शहर, सारा देश हिल जाता है. सारा समाज सकते में आ जाता है. इसी तरह क्रिकेट मैच में देश का गौरव बढाने वाले सचिन द्वारा शतक बनाए जाने पर पूरे देश में खुशी की लहर दौड जाती है. ये सब समाज और मनुष्य के प्रगाढ़ संबंध के प्रमाण हैं - उदाहरण है. मतलब कि एक व्यक्ति हो या व्यक्तियों का समूह हो, कोई राजनीतिक या सामाजिक संगठन हो – उसकी अच्छी- बुरी गतिविधियां ‘समाजिक व्यवस्था’ को गहरे प्रभावित करती हैं, समाज में खलबली मचा देती हैं. इसी सन्दर्भ में फिल्म संस्थान (इंडस्ट्री) समाज से जुडी एक ऎसी महत्वपूएँ इकाई है जो समाज पर तरह-तरह से असर डालती है, विविध स्तरों पे समाज को तोडती है जोडती है इस प्रकार उसके विकास और ह्रास में विविध स्तरों पे एक निश्चित अपरिहार्य भूमिका निबाहती है. इन तथ्यों को मद्दे नज़र रखते हुए आपसे पहला सवाल है –
१) दीप्ति - सामाजिक दायित्व को आप किस तरह व्याख्यायित करेगे ?
चंद्रप्रकाश द्विवेदी - समाज के उत्कर्ष , मनुष्य के उन्नयन में व्यक्ति की सार्थक भूमिका मेरी दृष्टि में सामाजिक दायित्व है
२) दीप्ति - क्या आपकी नज़र में फिल्मों का सामाजिक दायित्व है?
चंद्रप्रकाश द्विवेदी - सामाजिक दायित्व है, पर दुर्भाग्य से फिल्मों में व्यक्ति का सामाजिक दायित्व प्रासंगिक नहीं रह गया.फिल्मे अब विशुद्ध व्यवसाय है और फिल्मों का व्याकरण बाज़ार के द्वारा संचालित होता है .फ़िल्में कहानी या निबंध लिखने जितनी सस्ती नहीं होती.जब फिमें बनाना कहानी लेख या निबंध लिखने जितना कम खर्चीला माध्यम हो जायेगा तब फ़िल्मकार सही अर्थों में सामाजिक दायित्व के बारे में विचार करना शुरू करेगा
३) दीप्ति - क्या फिल्म निर्माता और निर्देशक सच्चाई और इमानदारी के साथ अपने ‘सामाजिक दायित्व’ का निर्वाह कर रहें हैं ? चंद्रप्रकाश द्विवेदी - वर्तमान में फिल्मों का उद्देश्य मनोरंजन है .इसलिए वह मनोरंजन के प्रति इमानदार होने की कोशिश कर रहा है.कभी कभार यदि कोई सामाजिक कही जा सकने वाली फिल्म आ भी जाती है तो वह अपवाद है और वहां भी सामाजिक सरोकार दुय्यम है
४) दीप्ति - यदि कर रहे हैं तो उन फिल्मों के बारे बताइए, जिन्होंने समाज को सही दिशा देने में अपना दायित्व बखूबी निभाया है.
चंद्रप्रकाश द्विवेदी - राज कुमार हिरानी की तीन फिमें और श्याम बेनेगल की पिछली दो फ़िल्में इस श्रेणी में रखी जा सकती हैं
५) दीप्ति - पिछले कुछ वर्षों से निर्माता और निर्देशक सामाजिक सन्देश से रहित, उद्देश्यविहीन व ‘यथार्थ के घिसे-पिटे सांचे में ढली’ फ़िल्में दर्शकों को दे रहें हैं तो इसका कारण और निदान – दोंनो के बारे में आपका क्या कहना है ?
चंद्रप्रकाश द्विवेदी - कला बोध का ह्रास , दर्शकों की अभीरुची में पतन , कला बोध के विकास के प्रशिक्षण का अभाव,चलताऊ रवैया , बाज़ार का दबाव,अति साधारण फिमों और अभिनेताओ को बाज़ार , दर्शक और मीडिया का समर्थन . कारन और भी है .निदान जल्दी दीखाई नहीं पड़ रहा . शायद स्तर और गिरेगा ६) दीप्ति - क्या निदेशन-कला कि यह खूबी नहीं होनी चाहिए कि यथार्थ जैसा कि हम सब जानते हैं – हमेशा से नंगा, कलुष और निकृष्ट होता है, - उसके कुपरिणामों को दर्शित कर, आदर्श रूप – जो हमेशा से उदात्त, स्वच्छ और उजला होता है – उसका सन्देश दर्शकों को, समाज को दे ?
चंद्रप्रकाश द्विवेदी - यह लम्बे विवाद का विषय है प्रश्न है क्या फिमें वृत्तियों का पोषण करें या उन्हें परिवर्तित करें संस्कारित करें.परिवर्तन से सिनेमा ने इनकार कर दिया है