चपड़ी मौसी / मनोहर चमोली 'मनु'
बहुत पुरानी बात है। जंगल का राजा शेर बिल्ली पर बहुत भरोसा करता था। बिल्ली चपड़ी मौसी के नाम से मशहूर थी। चपड़ी मौसी शेर की सलाहकार भी थी। शेर के दरबार में चूंचूं चूहा भी था। वह शेर का मंत्राी था। चूंचूं बुद्धिमान था। संकट में चूंचूं ही शेर के काम आता। चपड़ी मौसी बहानेबाज थी। बीमारी का बहाना लेती। एक दिन शेर ने बिल्ली से कहा,”चपड़ी मौसी। जब-जब हम मुसीबत में होते हैं, चूहा ही हमें उबार लेता है।” यह सुनकर बिल्ली जल-भुन गई। मौका देखकर बिल्ली चूहे से बोली,”पिद्दी भर के छोकरे। कसम खाती हूॅ। एक दिन तूझे नोंच-नोंच खा जाउफंगी।” चूहा मुस्कराया। प्यार से बोला,”मधुर वाणी दगाबाज की निशानी है। एक दिन शेर जान जाएगा कि तुम धेखेबाज हो। मैं भी कसम खाता हूँ। एक न एक दिन तुम्हारी पोल खोल कर रख दूंगा।” बिल्ली तैश में आ गई। पंजा दिखाते हुए बोली,”ऐसा कभी नहीं होगा। मैं शेर की मौसी हूँ। समझे।”
एक दिन की बात है। दरबार सजा था। शेर बोला,”प्रजा में लोकप्रिय होने का सरल उपाय क्या है?” चूहे को इसी अवसर की तलाश थी। वह उठ खड़ा हुआ बोला,”महाराज। महाभोज दे दीजिए। शाकाहारी भोज। ऐसा भोज, जो सापफ-सुथरा हो। चपड़ी मौसी बताएंगी कि ऐसा भोज क्या हो सकता है।” बिल्ली को कुछ सूझा ही नहीं। उसका सिर घूम गया। वह सिरदर्द का बहाना बनाने लगी। शेर ने नाराज होते हुए कहा,”चपड़ी मौसी। तुम कैसी सलाहकार हो। आज तक तुमने एक भी सलाह नहीं दी है।” तभी चूहा बोला,”महाराज। दूध् ही ऐसा भोज हो सकता है। जो शाकाहारी माना जा सकता है। दूध् बड़ी कढ़ाई में जमा करवाया जाए। दूध् की दही जमवाई जाए। लेकिन दूध् की सुरक्षा भी बड़ी जिम्मेदारी है। मुझे तो चपड़ी मौसी पर भरोसा है। दूध् की सुरक्षा की जिम्मेदारी चपड़ी मौसी को ही दी जाए।”
शेर खुश होते हुए बोला,”वाह! अच्छा सुझाव है। हमारा आदेश है कि मौसी ही विशालकाय कढ़ाई में दूध् जमा करवाएगी। तीन दिन बाद दही समूची प्रजा को परोसी जाएगी। विशाल शाकाहारी भोज की घोषणा करवा दो।” दूध जमा होने लगा। बिल्ली के घर में भीड़ लग गई। कुछ ही घंटों में विशालकाय कढ़ाई दूध् से लबालब भर गई। बिल्ली ने कढ़ाई के पास अपना सिरहाना लगा दिया। लालची और चटोरी बिल्ली हैरान थी। वह मन ही मन बोली,”मैंने ऐसा ताज़ा और गाढ़ा दूध् कभी नहीं पिया। थोड़ा सा दूध् चपड़ लेती हूँ। किसी को क्या पता चलेगा।”
बिल्ली ने कढ़ाई में मुंह डाला। वह थोड़ा दूध् पी गई। दूध स्वादिष्ट था। थोड़ी ही देर बाद बिल्ली का जी पिफर ललचाया। उसने थोड़ा दूध् और पी लिया। दोपहर, शाम और रात को उठ-उठ कर बिल्ली चपड़-चपड़ कर थोड़ा-थोड़ा दूध् पीती रही। बिल्ली को नींद नहीं आई। सुबह उठते ही उसने पिफर दूध् पी लिया। बिल्ली की जीभ में दूध् का स्वाद चढ़ चुका था। बिल्ली का जब भी मन करता वो थोड़ा-थोड़ा दूध् चपड़ लेती। तीन दिन बीत गए। बिल्ली को दरबार में बुलाया गया। शेर ने पूछा,”मौसी। दूध् सही-सलामत है?” बिल्ली हड़बड़ाते हुए बोली,”जी हाँ। मैं पल भर के लिए भी कहीं नहीं गई।” चूहा मुस्कराया। उसने पूछा,”चपड़ी मौसी। क्या दही जम गई?” बिल्ली सकपका गई। कुछ नहीं बोल पाई। शेर दरबारियों के साथ बिल्ली के घर जा पहुंचा। कुत्ते ने कड़ाई में कड़छी डाली। दूध् का दही जमा ही नहीं था। चूहा तपाक से बोला,”महाराज। दूध् से छेड़खानी की गई है। लगता है, चपड़ी मौसी दूध् ही चपड़ती रही। दही जमता कैसे। अब भोज का क्या होगा? प्रजा तो पंगत लगाकर बैठ गई है।” शेर दहाड़ते हुए बोला,”भोज तो पिफर भी हो जाएगा। पहले मैं इस चपड़ी को चपड़ता हूँ।” इससे पहले कि शेर बिल्ली पर झपटता, वो नो दो ग्यारह हो गई। बिल्ली पेड़ पर चढ़ गई। कहते हैं, तभी से शेर बिल्ली से नपफरत करने लगा है। बिल्ली भी चूहे को देखकर उस पर टूट पड़ती है।