चमकती दमकती है यह ट्विंकल खन्ना / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
चमकती दमकती है यह ट्विंकल खन्ना
प्रकाशन तिथि :01 अगस्त 2017


अक्षय कुमार धन संचय और पूंजी निवेश के बड़े जानकार हैं और उनके पास योग्य सलाहकार भी हैं। उनकी पत्नी ट्विंकल खन्ना, डिम्पल और राजेश खन्ना की सुपुत्री हैं। वे 'फनी बोन्स' के नाम से नियमित कॉलम भी लिखती हैं और इस तरह अक्षय कुमार के परिवार पर लक्ष्मी और सरस्वती दोनों की ही कृपा है। कुछ दशक पूर्व मिड डे नामक दोपहरिया अखबार में बेहराम कॉन्ट्रेक्टर 'इजी चेयर' नामक कॉलम 'बिज़ी बी' के छद्‌म नाम से लिखते थे और अखबार की लोकप्रियता के आधार माने जाते थे। उनका अपने प्रकाशक खालिद अंसारी से कुछ मतान्तर हुआ तो उन्होंने 'मिड-डे' छोड़ दिया और अपना दोपहरिया अखबार 'आफ्टरनून' के नाम से प्रारंभ किया। उधर, मिड-डे को कुछ क्षति पहुंची, इधर 'आफ्टरनून' सफल नहीं हुआ। इस तरह एक सफल टीम के विभाजन से सभी को हानि हुई। हम देश विभाजन के दर्द से अभी तक पूरी तरह मुक्त नहीं हुए हैं अौर देश की सीमा के भीतर ही सामाजिक विभाजन की कुछ दीवारें सतह के नीचे से ऊपर आने के लिए बेकरार-सी नज़र आ रही हैं, जो हुक्मरान के 'बांटो और शासन' करो का नतीजा है। बांटने और शासन करने की कुटिल नीति अंग्रेजों की खोपड़ी से निकला शस्त्र था। मौजूदा शासक दल के पितृ संगठन ने कभी स्वतंत्रता संग्राम में भाग नहीं लिया था। वे हमेशा तहेदिल से उनके साथ थे।

इतिहास को उनके दृष्टिकोण से लिखवाने की ज़िद का एक कारण यह भी है कि उन्हें कुछ 'कलंकित पृष्ठ' फाड़ना है। इसी उपक्रम में हल्दीघाटी के युद्ध के विजेता का नाम भी बदलने की बचकानी कोशिश जारी है। इसी इतिहास बोध की कमी के कारण उनकी गृहनीति और विदेश नीति इस कदर असफल हुई है कि चीन ने श्रीलंका के समुद्री किनारे खरीद लिए हैं और हमारे सारे पड़ोसियों पर उसका प्रभाव है। हम पूरी तरह अलग-थलग हो गए हैं। पाकिस्तान में अमेरिकी सैनिक मौजूद हैं तो अब उन्होंने चीन को भी आमंत्रण के पीले चावल भेज दिए हैं। पाकिस्तान के परावलंबी (पैरासाइट) होने की नीति ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा। वहां के अवाम के अभाव और दर्द की कल्पना हम नहीं कर सकते परंतु अब हम उन जैसे होते जा रहे हैं। बहरहाल ट्विंकल खन्ना के पास हास्य का जबर्दस्त माद्‌दा है और भाषा पर अधिकार भी है। आश्चर्य है कि अभी तक उनके पति अक्षय कुमार ने उनसे हास्य फिल्म की पटकथा लिखने का आग्रह नहीं किया। अंग्रेजी भाषा में लिखने वाले हिंदुस्तानी लोग पीजी वुडहाउस के प्रभाव से बच नहीं पाते परंतु ट्विंकल खन्ना ने अपना स्वतंत्र रास्ता बनाया है। उनके अकाउंटेंट को जीएसटी का मकड़जाल समझ में नहीं आ रहा है। इतना ही नहीं वह उसको अच्छा और सरल समझने की भूल भी कर रहा है। व्यापारी भी इसे मनमाने ढंग से परिभा‌षित कर रहे हैं। सरकार के सनकीपन का खामियाजा अवाम भुगत रहा है। अवाम की सहनशक्ति उस समुद्र से भी अधिक गहरी है, जिस पर चीन अपना कब्जा कर रहा है। यह संभव है कि अगला युद्ध पानी की सतह पर या उसकी गहराइयों में पानी के लिए ही लड़ा जाए। यह भी संभव है कि इस तरह के असंभव से लगने वाले युद्ध के पश्चात ही फिल्मकार शेखर कपूर 'पानी' नामक फिल्म बनाए, जिसकी धमकी वे विगत तीन दशकों से दे रहे हैं। शेखर कपूर को फिल्म उद्योग की झटके खाने की क्षमता पर यकीन करना चाहिए। सिने उद्योग ने 'ट्यूबलाइट' और 'जग्गा जासूस' के भूकंपों को भी सह लिया है।

'मासूम' शेखर कपूर को कोई यह याद दिला दे कि विगत 105 वर्षों से यह उद्योग असफलता की गिज़ा पर ही जिंदा है। इस लंबे इतिहास में किसी भी वर्ष सफलता का प्रतिशत 20 से अधिक नहीं रहा। एक 'बजरंगी भाईजान' की कोयल कूकने से ही हमें बसंत के आगमन का भ्रम हो जाता है। असफलता को गिज़ा बनाना वैसा ही है जैसे हम कहें कि 'भूख ने हमें बड़े प्यार से पाला है।' भूख से हमारा सदियों का साथ है और उसे हमसे बेहतर कोई नहीं साध सकता।

ट्विंकल खन्ना ने एक कुत्ता, चार बिल्लियां और एक कछुआ पाला है। कुत्ते और बिल्ली एक-दूसरे के दुश्मन होते हैं लेकिन, ट्विंकल के घाट पर दोनों पानी पीते हैं। ऐसा ही दुश्मन-दोस्त का नज़ारा पंकज राग के घर पर देखा है, जिनकी शोधपरक किताब 'धुनों की यात्रा' भारतीय फल्म संगीत पर सबसे अधिक रुचिकर और विश्वसनीय किताब है। पंकज राग उच्च श्रेणी के सरकारी अफसर रहे हैं परंतु अपनी जमात के अन्य लोगों की तरह हुक्म चलाने और आंकड़ों से न खेलते हुए फिल्म संगीत के माधुर्य में डूबे रहे और इस क्षेत्र में ऐतिहासिक महत्व के ग्रंथ की रचना करने में सफल हुए।

ट्विंकल खन्ना और बॉबी देओल को प्रस्तुत करने वाली फिल्म 'बरसात' का निर्देशन राजकुमार संतोषी ने किया था। ट्विंकल ने कुछ फिल्मों में अभिनय किया जैसे शाहरुख खान अभिनीत 'बादशाह।' उन्होंने शीघ्र ही यह महसूस कर लिया कि अभिनय क्षेत्र उनके लिए नहीं है। उन्होंने यह जान लिया कि सितारे के पास अपना कुछ ज्यादा नहीं है। वह निर्देशक के इशारे पर थिरकता है। उसके कपड़े कोई तय करता है, स्टाइल कोई और तय करता है। ट्विंकल की स्वतंत्र विचार प्रणाली इस खाके में समा नहीं सकती थी। दरअसल, अधिकांश लोग सारी उम्र अनचाहे काम करते हुए अपनी ऊर्जा का अपव्यय करते हैं। मनपसंद काम करने या पाने को हमने ईश्वर की इच्छा पर छोड़ दिया है। इस तरह मनुष्य का दायरा और कद घटता गया है।

ट्विंकल खन्ना ने नेताओं द्वारा शब्दों के साथ खिलवाड़ का भी मखौल बनाया है। इस तरह के खेल को ज्ञान का पर्याय बनाया गया है। शब्द जीवित व्यक्ति की तरह होते हैं और उन्हें सम्मान देना चाहिए। लेख के टाइटल में शब्दों से खिलवाड़ उनके प्रति आदरांजलि है। उन्होंने यह भी संकेत दिया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित इस ढंग से किया गया है कि उसे पहनाई बेड़ियां नज़र नहीं आतीं। स्मरण आती हैं निदा फाज़ली की पंक्तियां, 'यह जीवन शोरभरा सन्नाटा, जंजीरों की लंबाई तक है तेरा सारा सैरसपाटा।'