चमक-दमक के पीछे दीमक / जयप्रकाश चौकसे
चमक-दमक के पीछे दीमक
प्रकाशन तिथि : 28 जनवरी 2012
अक्षय कुमार और अनुष्का शर्मा अभिनीत 'पटियाला हाउस' के पूंजी निवेशक को इस वक्त लागत पर पच्चीस प्रतिशत का घाटा उठाकर फिल्म का प्रदर्शन करना पड़ रहा है क्योंकि अक्षय कुमार की विगत कुछ फिल्में बॉक्स ऑफिस पर असफल रहीं। इस फिल्म में अक्षय कुमार को अपना मेहनताना मिल रहा है और घाटा पूंजी निवेशक को हो रहा है।
कुछ वर्ष पूर्व अक्षय कुमार ने यह रणनीति बनाई थी कि वह अपना पूरा पारिश्रमिक लेकर साठ या सत्तर शूटिंग दिनों में फिल्म पूरी कर देंगे। इस तरह केंद्र फिल्म की गुणवत्ता से हटाकर आर्थिक समीकरण पर टिका दिया गया है और नतीजा सबके सामने है। फिल्में न तो बजट से शासित की जा सकती हैं और न ही शूटिंग रेलवे टाइम टेबल के हिसाब से चल सकती है क्योंकि यह सृजन का क्षेत्र है। दरअसल फिल्मों में मुनाफा काम की गुणवत्ता का बाय-प्रोडक्ट होना चाहिए, न कि लाभ के अनुरूप समझौता करके फिल्म बनाना चाहिए।
बॉलीवुड में अक्षय कुमार ने स्वयं को खान सितारों से ऊपर उठाने के लिए सूझ-बूझ भरी जोड़-तोड़ से काम किया और अपनी सफल फिल्मों के मामूली मुनाफे को भी अधिक मुनाफे वाली फिल्मों की तरह बाजार में जमकर प्रचारित किया। उन्होंने फिल्म मंडी में अपनी नकली मांग का वातावरण बनाया और गलत रणनीति के कारण आज के दौर में उनका शेयर फिल्मी बाजार में चारों खाने चित पड़ा है। यही काम कुछ कारोबारी घरानों ने किया और भव्य फिल्मों के नाम पर अपने शेयर को ऊंचा उठा दिया। उन्होंने शेयरधारकों को भ्रमित करने के लिए लगातार यह प्रचारित किया कि वितरण लागत की वसूली (अमॉरटाइजेशन) चालीस फीसदी है और अगले चार वर्ष में साठ प्रतिशत, जबकि वितरण की सच्चाई यह है कि पहले तीन महीनों के बाद चलन से लौटे प्रिंटों को गोदाम में रखने पर गोदाम का भाड़ा भी नहीं निकलता।
भारत की अर्थव्यवस्था में भी नकली मांग और काल्पनिक लाभ के फुगावे पर सफलता की नौटंकी रची जाती है। सरकारी तंत्र के रख-रखाव का खर्च इतना अधिक है कि वही लाभ का बड़ा अंश लील जाता है। काल्पनिक आय-व्यय ब्यौरे के आधार के प्रगति का माया संसार रचा जाता है। आम आदमी को पता ही नहीं कि वह कितने क्षेत्रों में और कैसे ठगा जा रहा है।