चरित्रहीन / सुषमा गुप्ता

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

“तो तुम मानती हो उन दोनों लड़कों का कत्ल तुमने किया?”

“हाँ सर।”

“वजह?”

“वजह मैं बता चुकी हूँ सर।”

“पर तुम्हारी मेडिकल रिपोर्ट कहती है कि बलात्कार हुआ ही नहीं।”

“तो सर मुझे रुकना चाहिए था बलात्कार होने तक और फिर उनका कत्ल करना चाहिए। तब बाइज्जत बरी कर देते आप?” “सर बकवास कर रही है। चरित्रहीन लड़की है यह। मैं साबित कर सकता हूँ।” अभियोजन पक्ष का वकील चिल्लाया।

“सर बलात्कार हो जाए या होने से रह जाए, दोनों ही परिस्थितियों के बाद हमारा समाज विचित्र सी नज़रों से उम्र भर लड़की का चरित्र अवलोकन करता है। उस वीभत्स हाथापाई में मेरे हाथ हसिया लग गया और मैंने गरदन काट दी दोनों की और इस बात का मुझे रत्ती भर भी रंज नहीं। ऐसी किसी भी घटना के बाद हमारे समाज में औरत की कोई इज्ज़त नहीं। वह या तो दया का पात्र बन जाती है या शोषण का। हाँ कैंडल मार्च जरूर निकलता मेरे पक्ष में, अगर बलात्कार के बाद बर्बरता से मुझे मार दिया जाता। पर सर मैं ऐसे मरना चाहूँगी। निडर और स्वाभिमानी,” मोना ने गर्व से कहा।

“यह गलत सोच है तुम्हारी। कानून से तुम्हें पूरा इंसाफ मिलता,” जज साहब दहाड़े।

मोना ज़ोर से हँसी “सर स्कूल ड्रेस में थे दोनों। अठारह के तो यक़ीनन नहीं थे। बलात्कार कर भी लेते, तब भी आप रिहा कर देने थे। पर समाज को ऐसे जानवरनुमा जवानों की ज़रूरत नहीं, सो मैंने खुद ही रिहा कर दिए दोनों हमेशा के लिए। निर्भया वाले केस में वह सत्रह साल का लड़का सबसे बड़ा हैवान था फिर भी बाकी सब को सजा मिली पर वह तो बॉडीबिल्डिंग करता घूमता है। यही है आपके कानून का इंसाफ़!”

जज साहब का सिर झुक गया। मोना की एक-एक बात से सहमत होते हुए भी कानूनी दायरों में बँधे जज के हाथों ने मन में टीस लिये उसे उम्र कैद की सज़ा लिख दी।

-0-