चरित्र भूमिकाएं : सितारों के जंगल में जुगनू / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :03 जून 2015
सितारों को छींक आने पर मीडिया उनके प्रशंसकों में शीतलहर बरपा देते हैं और चरित्र कलाकार प्राय: सुर्खियों से बाहर ही रखे जाते है। राम चरित तो घर-घर गाया जाता है, लक्ष्मण प्राय: उपेक्षित रहे हैं। भला हो मैिथलीशरण गुप्त का जिन्होंने लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला को केंद्र में रखकर 'साकेत' की रचना की। कृष्ण गाथा में सुदामा पर शायद ही कुछ लिखा गया हो। महात्मा गौतम बुद्ध पर लिखा गया परंतु उनकी पत्नी यशोधरा पर गुप्तजी ने ही लिखा है। इस तरह के अनेक उदाहरण यह सिद्ध करते है कि छोटी भूमिकाएं प्राय: उपेक्षित रही हैं। हमारी अपनी परंपरा के अनुसार चरित्र कलाकारों में भी श्रेष्ठि वर्ग है तो एक मध्यम वर्ग है और दलित भी रहे हैं। वर्ग विभाजन हर क्षेत्र में हमेशा रहा है। आजादी की जंग में गांधी व साथियों तथा सुभाषचंद्र बोस, भगत सिंह व साथियों का नाम आदर से लिया जाता है परंतु अनेक आम, बेनाम भी शहीद हुए हैं। लिखे इतिहास के परे भी एक इतिहास है।
बहरहाल, जोया अख्तर की 5 जून को प्रदर्शित होने वाली 'दिल धड़कने दो' में प्रिंयका चोपड़ा और रनवीर सिंह की मां की भूमिका शैफाली शाह ने की है। ज्ञातव्य है कि कुछ वर्ष पूर्व शैफाली ने टेलीविजन पर अनेक सीरियलों में नायिका की भूमिकाएं अभिनीत की थीं और वे छोटे परदे की सुपर सितारा रहीं हैं। उस दौर में उदात्त विचारों की होने के कारण उन्हें सितारा होने का दम्भ नहीं था, वे केवल अपने कलाकार स्वरूप को निखारना चाहती थीं, इसी कारण मात्र बाइस वर्ष की वय में 'हस्तियां' में उन्होंने सोलह वर्ष की कन्या की मां की भूमिका अदा की, इसलिए आज अपने से लगभग 15 वर्ष छोटी प्रियंका चोपड़ा की मां की भूमिका करने में उन्हें संकोच नहीं हुआ। अभिनय जिनके लिए जीवन है, उन्हें किस की मां बनना है, किसकी बेटी बनना है, इस पर एतराज नहीं होता। रंगमंच की परंपरा है कि कलाकार विभिन्न नाटकों में विभिन्न भूमिकाएं करते हैं। कुछ वर्ष मुंबई के पृथ्वी थियेटर्स में जोहरा सहगल ने एक प्रस्तुति के बाद अपने गुरु पृथ्वीराज कपूर को आदरांजलि के तौर पर 'किसान' का एक दृश्य अपनी बहन अजरा के साथ अभिनीत करके दिखाया। कई दशक पूर्व वे 'किसान' को पृथ्वीराज के साथ अभिनीत कर चुकीं थीं। शैफाली एक महान अभिनय परंपरा की नुमाइंदा है। इस परंपरा में राजकपूर और देव आनंद की फिल्मों में छोटी भूमिकाओं में रशीद खान ने कमाल किया है। डेविड भी स्मरणीय भूमिकाओं में आए। वे शायद नादिरा के अतिरिक्त एकमात्र जीव थे, जिन्होंने भारतीय सिनेमा में लंबी पारी खेली। इफ्तिखार ने इंस्पेक्टर की भूमिकाएं इतनी बार कीं कि छुट्िटयों में भी घर पर इंस्पेक्टर की पोशाक पहन लिया करते थे। चरित्र भूमिकाओं में टाइप हो जाने का खतरा हमेशा होता है परंतु इस टाइप होने के कारण कई चरित्र अभिनेताओं को सारी उम्र काम मिलता रहा। 'संगम' में राजेंद्र कुमार और वैजयंतीमाला जैसे सितारों को राज कपूर ने घंटों बैठाए रखा, क्योंकि नौकर की भूमिका करने वाला सुंदर नहीं आ पाया था। सुंदर को एस्टेब्लिश करने के लिए कोई दृश्य नहीं रचना पड़ता था। नाना पलसीकर कमाल का चरित्र अभिनेता था और 'प्रेम पर्वत' नामक फिल्म में उन्होंने उम्रदराज ठरकी बूढ़े नायक की भूमिका की थी, जिसमें खय्याम साहब ने मधुर गीत रचे थे।
एक दौर में नंदा छोटी बहन की भूमिकाओं में टाइप कास्ट हो गई थीं परंतु उन्होंने यश चोपड़ा के निर्देशन में बनी 'इत्तफाक' के सीढ़ियों से उतरने के साधारण से दिखने वाले एक ही शॉट में चलने मात्र से ऐसा दिखा दिया मानो वे कत्ल करके आई हैं। इसी तरह फरीदा जलाल ने भी कुछ फिल्मों में नायिका अभिनीत की परंतु वे हमेशा अपनी चरित्र भूमिकाओं के लिए याद की जाएंगी, चाहे वह 'बॉबी' की पगली अमीरजादी हो या 'मजबूर' में नायक की अपाहिज बहन हो। शैफाली जिस परंपरा की कलाकार है, उस परंपरा के लोग प्रसिद्ध नायक-नायिका की नाक के नीचे से दृश्य चुरा लेते हैं। एक अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म में शैफाली शाह ने नर्स की छोटी भूमिका में अविस्मरणीय काम किया। शैफाली के बारे में सबसे अधिक कमाल की बात यह है कि उसके पास स्वतंत्र सोच है। उसके पास साफ सोचने वाला दिमाग है और यही बात उसे अन्य कलाकारों से अलग करती है। इस विचारों के रेजिमेंटेशन के कालखंड में निजी स्वतंत्रविचार शैली रखना असाधारण है।