चरित्र / सुरेश सौरभ
वे सबसे अधिक विश्व में पढ़ने का रिकॉर्ड बना रहे थे। उनकी पत्नी का फोन आया बोलीं-आज रात सौ घंटे हो रहे हैं और अब उन्हें पढ़ने के लिए क्लासिकल बुक्स चाहिए. मैं शहर के बुक्स स्टॉलों पर ढूंढ-ढ़ूंढ कर परेशान हो चुकीं हूँ। हमें जो चाहिए वह किताबें मिल नहीं पा रहीं हैं। मैं बहुत परेशान हो चुकीं हूँ। क्या आप अपनी कुछ किताबें हमें देने की कृपा करेंगें।
मैंने उनकीं विनम्रता को शिरोधार्य करते हुए कहा-यह तो हमारे लिए, हमारे शहर के लिए, सौभाग्य की बात होगी। मैं किताबें लेकर थोड़ी देर बाद आ रहा हूँ और साथ में अपने दो मित्रो को भी बुला रहा हूँ, वह भी अपनी सभी किताबें आपको भेंट कर देंगे। तब वे बोलीं-यह तो बड़ी अच्छी बात होगी। मैं किताब पढ़वाने के बाद आप लोगों को वापिस कर दूंगी। कल दोपहर तक उनका 120 घंटे पढ़ने का, विश्व रिकॉर्ड हो जाएगा और कल आप चाहे तो शाम तक किताबें हम से ले लीजिएगा।
मैं वहाँ पहुंचा, जहाँ उनके पति रिकार्ड बनाने के लिए मंच पर बैठे किताबें बांच रहे थे। सामने कैमरे और मुट्ठी भर श्रोता उनकीं निगहबानी कर रहे थे। उनकीं पत्नी से दुआ सलाम हुई. परिचय हुआ उन्होंने हम लोगों से किताबें लेकर रिकॉर्ड बनाने वाले अपने महापुरुष के साथ हमारे चित्र खिंचवाए. हम लोग आह्लादित हुए.
फिर हम खुशी-खुशी अपनी-अपनी किताबें देकर वापस चलें आए.
खबर छपी कि फलाने ने 120 घंटे विश्व में पढ़ने का रिकॉर्ड बना लिया, तमाम अधिकारी उनके साथ खींसे नीपोरते हुए अखबारों में प्रकट हुए.
मेरे मित्र एक शाम उनके घर पहुंचे और बोले-मैडम जी आपने मुझसे उस रिकॉर्ड के लिए किताबें लीं थीं। क्या वह किताबें वापिस करेंगी। आपने वापस करने को कहा था। उन्होंने उदासीन भाव से कहा-हाँ हाँ वापस कर देंगे। मुझे भी ज़्यादा किताबों से इंटरेस्ट नहीं है। जहां-तहाँ हजारों पड़ी होंगी। अब देखनीं पड़ेगी। कभी फुरसत से आओ तो आप की किताबें खोजें। उनका रुखा जवाब सुनकर लंबी उबासी लेते हुए मेरे मित्र बोले, " जब मिल जाएँ तो फोन कर देना। वे उल्टे पैर लौट पड़े, तभी उनके सामने कबाड़ी वाला जाता दिखाई पड़ा, उसके ठेले पर तमाम किताबें बेतरतीब पड़ी थीं। वह चिल्लाता जा रहा था, कबाड़ी वाले, कबाड़ी वाले। ठेले पर पड़ी तमाम किताबें देखते हुए वे आगे बढ़ रहे थे और अब उनके मन की हलचल बढ़ने लगी... और हृदय की गति धौकनी की मानिंद तेज होती जा रही थी।