चर्खा भयंकर है / लफ़्टंट पिगसन की डायरी / बेढब बनारसी
जब से मैंने गांधी महोदय के सबन्ध में सुना, मेरी इच्छा प्रबल हुई कि इन्हें देखता। इनके सम्बन्ध में और जानकारी की इच्छा भी हुई। शहर में जाकर मैं इनके सम्बन्ध में पुस्तकें भी खरीदता था और उन्हें लाकर चोरी-चोरी पढ़ता था और छिपाकर रखता था, क्योंकि यदि उन पुस्तकों को कोई देख लेता या पता चल जाता कि मैं गांधी के सम्बन्ध में पढ़ रहा हूँ तो मेरा कोर्ट मार्शल होना निश्चित था। दो ही सप्ताह हुए कि मैंने किसी पत्र में पढ़ा था कि कुछ स्कूली विद्यार्थी सड़क पर जा रहे थे। उन्होंने चिल्लाकर कह दिया कि महात्मा गांधी की जय। यह सब बालक पकड़ लिये गये और उनको छः-छः महीने की सजा दी गयी।
अपने देश के हिन्दी जाननेवाले पाठकों की जानकारी के लिये बताऊँ कि गांधी को भारत में महात्मा गांधी कहते हैं। सब भारतवासी नहीं। अंग्रेज लोग तथा वह भारतवासी जो इंग्लैंड न जाकर भी अंग्रेजी बोलने के अभ्यस्त हो गये हैं उन्हें मिस्टर कहा करते हैं। मुसलमान लोग भी उन्हें महात्मा नहीं कहते। महात्मा का अर्थ हिन्दी में है बड़ी आत्मा इसलिये वे उन्हें महात्मा कहते हैं, जो लोग इन्हें बड़ा मानते हैं। जो लोग उनसे अपने को बड़ा समझते हैं वह महात्मा नहीं कहते। जय का अर्थ है जीतना, इसलिये यह कह देना कि महात्मा गांधी जीते, बहुत बड़ा अपराध है क्योंकि इसका उल्टा अर्थ यह होगा कि ब्रिटेन हार जाये।
मैंने महात्मा या मिस्टर गांधी के सम्बन्ध में कई पुस्तकें पढ़ डालीं। कुछ तो भारतीय विद्वानों की लिखी थीं, कुछ यूरोपियन लोगों की।
इन पुस्तकों में दो विचित्र बातें देखने में आयीं। एक तो यह कि इनका भोजन 6 पैसे प्रतिदिन में होता है। 6 पैसे बराबर होते हैं डेढ़ पेनी के। इसी में जलपान, चाय, लंच और डिनर सब। फिर भी लोग कहते हैं कि भारतवासियों की आमदनी कम है। जिस देश में डेढ़-डेढ़ पेनी में दिन-भर का सब भोज हो जाये, वह देश बहुत बड़ा धनी होगा। यों तो भारतवर्ष धनी देश है, यह हम भी मानते हैं; क्योंकि यहाँ सरकारी कर्मचारियों को वेतन बहुत अधिक दिया जाता है। यहाँ जितना प्रान्तीय गवर्नरों को वेतन दिया जाता है उतना ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री को भी नहीं और गवर्नर जनरल का तो उनके दूने से भी अधिक है। यह तो धनी देश ही कर सकता है। फिर भी मुझे यह ध्यान न था कि यह इतना धनी होगा और यहाँ सब वस्तुयें इतनी सस्ती होंगी।
दूसरी बात जो मैंने पढ़ी वह यह कि यह दिन-भर चर्खा चलाया करते हैं और जो जाता है उससे कहते हैं कि चर्खा चलाओ। इसमें कुछ-न-कुछ रहस्य अवश्य है। यह शिकायत है कि महात्मा गांधी कहते हैं कि हम चर्खे द्वारा भारत को स्वतन्त्र कर लेंगे। इसका रहस्य क्या है? यह देश पुराने लोगों के जादुओं से भरा है। हो न हो, इसमें कोई जादू हो। चर्खे से स्वराज्य का अर्थ कुछ और हो ही नहीं सकता।
या तो यह इसलिये है कि अंग्रेज लोग समझें कि यह तो केवल चर्खा चल रहा है और धीरे-धीरे चुपके-चुपके गोला-बारूद की तैयारी होती है। या चर्खे में किसी प्रकार का यन्त्र हो। क्योंकि जब आकाश में रस्सी फेंकर यहाँ के जादूगर चढ़ सकते हैं और बिना साँस लिये घंटों बैठ सकते हैं और आग पर चल सकते हैं, बिना जूता पहने! तब इन लोगों के लिये सब सम्भव है। मैं तो अपने देशवासियों को चेतावनी देता हूँ कि चर्खे में कोई न कोई रहस्य अवश्य है। सी.आई.डी. विभाग को अपने अन्तर्गत एक विशेष विभाग खोलकर इसी की खोज में लग जाना चाहिये। मैं सर ओलिवर लाज, डॉक्टर टामसन, प्रोफेसर हक्सले तथा रायल सोसायटी के सब सदस्यों से निवेदन करूँगा कि सब काम छोड़कर इसी की ओर ध्यान दें और बतायें कि क्या बात है, क्योंकि एक साम्राज्य के जीवन-मरण का प्रश्न है।
यदि इन लोगों की खोज से कुछ भी सन्देह चर्खे के सम्बन्ध में प्रकट हो और यह पता चले कि चर्खा वास्तव में देखने में साधारण-सी वस्तु है, किन्तु सचमुच भयानक अस्त्र है तो भारत सरकार को ऐसा कोई विधान बनाना चाहिये कि जो चर्खा चलायेगा और जो दुकानदार चर्खा बेचेगा, उसे काले पानी की सजा दी जाये और जो बढ़ई चर्खा बनाये उसका हाथ काट लिया जाये।
लोग मुझ पर हँसेंगे। बात यह है कि यूरोपवाले जड़वादी हो गये हैं, उन्हें इन बातों पर विश्वास होना कठिन है। भारतवाले यन्त्र और मन्त्र का बड़ा प्रयोग करते हैं। सुना है कि भारत में एक पुस्तक है वेद। यहाँ ऐसी कथा प्रचलित है कि एक बार ईश्वर ने सृष्टि के काम से छुट्टी ली। बहुत थक गये थे। छुट्टी में उनका मन नहीं लगा। बस उन्होंने एक पुस्तक लिख डाली। वह पुस्तक लिये हवाई जहाज पर कहीं जा रहे थे कि पामीर के पठार पर वह पुस्तक गिर पड़ी। वहाँ एक आदमी के हाथ वह पुस्तक लगी, वह लेकर पंजाब चला गया।
वह पुस्तक गिरी तो 'बद' से आवाज हुई, इसी से 'बद' माने यहाँ संस्कृत भाषा में कहना या बोलना हुआ और वह पुस्तक सब बातें कहती है, बताती है, इससे इसका नाम वेद हो गया और जो सज्जन लाये, उनके नाम का पता नहीं लगता। पुराना एक खपड़ा मिला है उस पर उनका हस्ताक्षर है, केवल 'आर.एन.'। इसी से उनके वंशज अपने को आर्यन कहने लगे। यह सब कथा यहाँ हमें एक पंडितजी से ज्ञात हुई, जो महामहोपाध्याय हैं, अर्थात् भारत सरकार ने जिसे विद्वान मान लिया है।
हाँ, तो कहा जाता है कि उक्त पुस्तक में संसार की सब विद्यायें, जिनके बारे में लोग पता लगा चुके हैं या जो लगायेंगे, लिखी हुई हैं। इसी पुस्तक की एक प्रति यहाँ से एक जर्मन उठा ले गया। वहाँ एक समिति बनी और उसका अध्ययन आरम्भ हुआ। उसमें हवाई जहाज के सब पुर्जों का नाम मिला। फिर क्या था, पुस्तक को देख-देख जर्मनों ने हवाई जहाज बना लिया।
सम्भव है, चर्खा भी इसी प्रकार का यन्त्र हो। अभी उसकी विशेषता हम लोगों पर प्रकट नहीं हुई है। महात्मा गांधी ने सब जान लिया हो, कौन जाने, इसलिये उनसे सतर्क हो जाना ही बुद्धिमानी है।
इन सब विचारों ने तथा बातों ने महात्मा गांधी को देखने की अभिलाषा और तीव्र कर दी। सोचा कि छुट्टी लेकर उनके पास चला जाऊँ, अपनी आँखों से देखूँ कि उनके सम्बन्ध में जो लिखा या कहा जाता है, ठीक है या गप। परन्तु यह भी सुना कि उनके पास सी.आई.डी. तथा समाचारपत्रों के प्रतिनिधि चौबीस घंटे बैठे रहते हैं। इसलिये दूसरे ही दिन सब जगह मेरे जाने का पता लग जायेगा। वह मेरे लिये ठीक न होगा। इन्हीं विचारों में मैं था कि यकायक पत्र में पढ़ा कि महात्मा गांधी कानपुर आ रहे हैं। यह तो मनमाँगी मुराद मिली। कुआँ स्वयं प्यासे के पास आ गया।