चलती का नाम गाड़ी, बढ़ती का नाम दाढ़ी / जयप्रकाश चौकसे

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चलती का नाम गाड़ी, बढ़ती का नाम दाढ़ी
प्रकाशन तिथि :09 अक्तूबर 2017


आजकल युवा वर्ग दाढ़ी रखने लगा है परंतु वे उसे लंबी नहीं होने देते और न ही वह बेहतरतीब होती है वरन् उसे बड़े सलीके से सजाया-संवारा जाता है और वह कभी दो या तीन दिन से अधिक की नहीं होती। बाजार इतना सजग है कि उसने इसी तरह के शेवर बना लिए हैं,जो उसे कुछ दिन पुरानी होने का आभास दे, जबकि उसका इस्तेमाल रोज किया जा रहा है। क्रिकेट खिलाड़ी कोहली हों या सितारे रनवीर सिंह हों, सभी अपने को क्लीन शेव नहीं दिखने देते। यह बेतरतीबी बड़े जतन से रची जाती है। इसी तरह घुटने के पास से फटी जीन्स भी फैशन का परचम बन गई है। गरीब व्यक्ति लाचारी के कारण फटे हुए कपड़े पहनता है, जबकि साधन संपन्न वर्ग का युवा इस पर इतराता है। भले ही संदर्भ सही नहीं है परंतु याद आती है साहिर लुधियानवी की पंक्तियां, 'एक अमीर शहंशाह ने लेकर सहारा अपनी दौलत का मजाक बनाया है हम गरीबों की मोहब्बत का' इसका इशारा ताजमहल की ओर है।

यह कहना कठिन है कि क्या दाढ़ी का संबंध मर्दानगी की बहुप्रचारित परंतु मिथ्या परिभाषा से है कि मर्द की दाढ़ी होनी चाहिए, मूंछें होनी चाहिए जैसाकि अमिताभ बच्चन अभिनीत 'शराबी' का प्रसंग है जिसमें उनका संवाद है 'मुंछें हों तो नत्थूलाल की।' कहीं ऐसा तो नहीं कि स्त्रियों की दाढ़ी नहीं होती, इसलिए दाढ़ी को मर्दानगी का प्रतीक मान लिया गया है। कुछ बूढ़ी महिलाओं को दाढ़ी आ जाती है तो क्या इसे उनकी मर्दानगी का दौर मानें? यह कहना तो कठिन है कि स्त्रियां क्या पसंद करती हैं परंतु नापसंदगी का कभी इजहार भी उन्होंने नहीं किया। यह बात अलग है कि उनकी पसंद या नापसंद को कभी महत्व ही नहीं दिया गया। उनकी खामोशी को उनकी रजामंदी मान लिया गया है अौर उनकी चीख प्राय: गले में ही घुटकर रह जाती है। इस प्रयास में गाल पर आई लाली को खूबसूरती मान लिया जाता है। थप्पड़ों से भी गाल लाल हो जाते हैं। फिल्म 'दबंग' में नायिका का संवाद है, 'थप्पड़ से डर नहीं लगता सा'ब प्यार से लगता है।' दरअसल, 'मैं तुमसे प्यार करता हूं' कहकर प्यार की अफीम औरत को चटाई जाती है कि वह कभी अपना अधिकार न मांग बैठे।

मधुबाला, अशोक कुमार और किशोर कुमार अभिनीत, 'चलती का नाम गाड़ी' सर्वकालिक महान हास्य फिल्म है, जिसमें सचिनदेव बर्मन और मजरूह सुल्तानपुरी ने गजब का माधुर्य रचा था। उसका एक गीत है, 'एक लड़की भीगी भागी सी, सोती रातों में जागी सी' जिसने युवा वर्ग को 'वेट ड्रीम्स' दिए और रातों को जगाए रखा। सपनों के सौदागर इस सिलसिले को बनाए रखते हैं। अपनी इसी फिल्म की सफलता के नशे में किशोर कुमार ने कुछ वर्ष पश्चात फिल्म बनाई 'बढ़ती का नाम दाढ़ी।' आज का युवा वर्ग जैसे समानांतर संसार में ट्वीट करता है वैसे किशोर कुमार फिल्में रचते थे। किशोर कुमार ने अपनी सनकीपन की छवि बड़ी चतुराई से गढ़ी थी। दरअसल, यह सनकीपन उन्होंने अपनी निजता की रक्षा के लिए अपनाया था। उन्होंने अपने इर्द-गिर्द चमचों का समूह पनपने नहीं दिया। कामयाब लोग को प्राय: उनके चाटुकार हानि पहुंचाते हैं। मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु स्वयं मनुष्य ही है और वह प्राय: भीतरी दुविधाओं का शिकार होता है।

दाढ़ी मूंछ का आना हार्मोन पर निर्भर करता है। कुछ लोगों के सीने पर घने बाल आते हैं और अजब-गजब बात यह है कि गंजे व्यक्ति के सीने पर घने बाल आ जाते हैं।

ऊपर वाला बड़ा हंसोढ़ है, वह गंजे के सीने पर घने बाल दे देता है। हमारा एक लोकप्रिय सितारा दो दशक से विग (नकली बाल) पहन रहा है, जिसे लंदन के एक विशेषज्ञ ने बनाया है। सितारा सोते समय ही अपनी विग उतारता है। उसने परदे पर अभिनय सफलता का इतिहास रचा है और परदे के परे 'बाकी इतिहास' सघन रहस्य है।

सितारे के अालोचक भी यह स्वीकार करते हैं कि वह नट सम्राट है। अभिनय करने वाले मेकअप करते हैं। मेकअप के लिए प्रयुक्त सामग्री में चूने का अंश भी होता है, जो चमड़ी के छिद्रों से रिसकर आत्मा तक पहुंच जाता है। हर तरह की दीवार पर दाग मिटाने को 'व्हाइट वाशिंग' यूं ही नहीं कहते।

बहरहाल, शरीर में विद्यमान लिम्बिक सिस्टम डोपामाइन नामक हार्मोन प्रवाहित करता है,जो प्रेम प्रक्रिया को सक्रिय करता है। इसी तरह गंजेपन का कारण भी शरीर में हार्मोन का असंतुलन है। बहरहाल, दाढ़ी को लेकर कहावतें भी रची गई हैं, जिनमें से एक है, 'चोर की दाढ़ी में तिनका।'