चलत मुसाफिर मोह लिया रे, पिंजरे वाली मुनिया / जयप्रकाश चौकसे

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चलत मुसाफिर मोह लिया रे, पिंजरे वाली मुनिया
प्रकाशन तिथि :27 दिसम्बर 2014


आज सलमान खान अपने जीवन के पचासवें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं जिनमें से अट्ठाइस वर्ष फिल्म जगत में बिताए हैं। आज उनकी पहली हिट 'मैंने प्यार किया' को पच्चीस वर्ष हो गए हैं आैर उसी के फिल्मकार सूरज बड़जात्या के साथ वे 'राम रतन धन पायो' कर रहे हैं जो अगली दीवाली पर प्रदर्शित होगी। इसके साथ ही स्वयं की निर्माण संस्था के लिए 'एक था टाइगर' के निर्देशक कबीर खान 'बजरंगी भाई जान' बना रहे हैं जो ईद पर प्रदर्शित होगी। अगला वर्ष उनके लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण वर्ष है क्योंकि इस वर्ष उनके दोनों अदालती मुकदमों पर निर्णय संभव है आैर उनका भव्य दस माला भवन भी बन जाएगा जिसकी पांच मंजिलों की आय उनके ट्रस्ट को जाएगी ताकि लंबे समय तक सहायता कार्य जारी रह सके आैर इसी काम को अपनी विरासत की तरह गढ़ रहे हैं। उन्हें इसकी कोई फिक्र नहीं कि उनकी फिल्में भविष्य में संभवत: भुला दी जाए परंतु सहायतार्थ बनाए ट्रस्ट की विरासत लंबे समय तक कायम रहेगी। वे जानते है कि अब तक उनके खाते में दिलीप कुमार की 'गंगा जमुना', राजकपूर की 'आवारा', देव आनंद की 'गाइड', अमिताभ बच्चन की 'दीवार' या आमिर खान की 'लगान' की तरह कोई कालजयी फिल्म नहीं है परंतु उनकी तरह का जन साधारण की सहायता करने वाला ट्रस्ट भी किसी के पास नहीं है। हर व्यक्ति अपनी अभिरुचियों आैर स्वाभाविक रुझान के अनुरूप समय की फिसलन भरी रेत पर अपने पदचिह्न बनाने का प्रयास करता है। नित परिवर्तन की निर्मम लहरें अपनी एक सनक में कुछ पदचिह्न मिटा देती है, परंतु लहर की वापसी के बाद मिटे पदचिह्न की खाली जगह कोई एक निशान रह जाता है जो बहुत कुछ बहुत समय तक कहता है। यह खेल कब से जारी है। इसीलिए प्रयास की असल सार्थकता उसके किए जाने मात्र में है आैर परिणाम का कोई अर्थ नहीं रह जाता।

व्यवसाय की एक अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ने 2014 में सलमान खान की आय 244 करोड़ रुपए की आंकी है जो उनके समकालीन सितारों से अधिक है परंतु स्वयं सलमान खान कभी आंकड़ों की फिक्र नहीं करते, गणित में वे बचपन से कमजोर रहे हैं। किसी भी छात्र का किसी विषय में कमजोर होने का अर्थ है कि उस विषय के शिक्षक ने विषय को मनोरंजक आैर आकर्षक नहीं बनाया है। बहरहाल स्कूल के एक शिक्षक सलमान को बहुत प्रताड़ित करते थे परंतु उनके सेवा निवृत होने पर उनके किसी प्रिय छात्र ने उनकी मदद नहीं कि और सबसे अधिक प्रताड़ित सलमान खान ने की। विगत एक वर्ष में सलमान खान बहुत बदले हैं, अब वे पहले की तरह वाचाल नहीं वरन् खामोश रहते हैं। यह संभव है कि वे खुद के निकट जाने का प्रयास कर रहे हों क्योंकि सितारे प्राय: चापलूसों के कारण स्वयं से वार्तालाप नहीं कर पाते आैर खामोशी की संप्रेषण शक्ति को नहीं जानते। अब वे अपने काम के प्रति ज्यादा सजग हैं। कॉफी, सिगरेट आैर शराब छोड़ने के कारण चेहरे पर एक ताजगी है आैर उम्र के खूंख्वार पंजे का कोई निशान नहीं है गोयाकि यह टाइगर अपने हमजाद अदृश्य टाइगर के पंजों से बच रहा है आैर जंग मजेदार होती जा रही है। नजदीकी लोग भी इस द्वंद को नहीं देख पाते। जब कोई फिल्म सितारा अपने समकालीन प्रतिद्वन्दियों के साथ छाया-युद्ध से अपने को बचा लेता है तब उसकी पूरी ऊर्जा आैर चेतन उसे भीतरी जंग में सहायता करती है।

बहरहाल जीवन में लगभग आधी सदी का सफर आंकड़े की दृष्टि से भी यात्रा का महत्वपूर्ण मुकाम है। क्या कोई भी मुसाफिर इस सराय को महज एक रात का ठिकाना या आबोदाना मात्र मान सकता है? सफर में चिलचिलाती धूप से परेशान व्यक्ति दरख्त के साये में आराम करता है परंतु मंजिल पर पहुंचकर उसे यह लग सकता है कि वे घने हरे दरख्त नहीं मिले होते तो वह मंजिल पर बहुत पहले पहुंच जाता। यात्रा में हर सराय, मुसाफिर खाना आैर दरख्त के मायने मंजिल पर पहुंच कर बदल जाते हैं गोयाकि कोई सराय, कोई दरख्त अपनी जगह जड़ आैर स्थिर नहीं रह पाता, वह मुसाफिर के साथ सामान की तरह चलता रहता है। स्थिर आैर चलायमान के अर्थ बदल जाते हैं। यह मुमकिन है कि बंजारा सलमान खान यात्रा के इस मकाम पर शिद्दत से महसूस करे कि हमसफर की सख्त जरूरत है। सूरज सामने हो तो परछाई पीछे होती है, सूरज पीठ पर हो तो परछाई आगे चलती है, इसीलिए हमसफर जरूरी है। शायद सलमान खान भी यही सोच रहा है?