चांद की सैर / अनीता चमोली 'अनु'
टीटू तितली रोती ही जा रही थी। एक ही बात कह रही थी-”मुझे चांद चाहिए।” सब उसे समझा रहे थे। लेकिन वो थी कि किसी की बात सुन ही नहीं रही थी। मम्मी शाम को लौटी तो सारा किस्सा सुनकर मुस्कराने लगी। टीटू को गले लगाती हुई उसकी मम्मी बोली-”हमारी प्यारी टीटू इतनी सी बात पर रो रही है। लेकिन शाम तो होने दो। चांद तो रात होने पर ही आसमान में आएगा। तब हम अपनी टीटू को चांद दिला देंगे।”
यह सुनकर टीटू हंसने लगी और खेलने लगी। टीटू के पापा ने कहा-”टीटू की मम्मी अभी तो तुमने टीटू को बहला-फुसला कर चुप करा दिया है। लेकिन रात होने पर वो फिर चांद मांगने लगी तो! तब क्या करोगी?”
टीटू की मम्मी रसोई में जाती हुई बोली-”रात आने तो दो। मैं टीटू को मना लूंगी।”
रात हुई तो टीटू जोर से चिल्लाई-”मम्मी ! देखो चांद निकल आया है। मुझे चांद चाहिए। मुझे चांद चाहिए।”
मम्मी ने टीटू को समझाया-”ठीक है। लेकिन जैसे हमारी टीटू दूध पीती है। खाना खाती है। रात को अपनी मम्मी से कहानी सुनती है, वैसे चांद भी तो दूध पियेगा। खाना खाएगा और अपनी मम्मी से कहानी सुनेगा। जब कहानी सुनते-सुनते चांद सो जाएगा। तब मैं अपनी टीटू के लिए चांद को मांग कर ले आऊंगी। आओ। चलो खाना खा लो फिर दूध पी लो। फिर मम्मी से कहानी सुन लो। इतना तो करो।”
टीटू मान गई। खाना खाकर, दूध पीकर टीटू बोली-”मम्मी अब जल्दी मुझे कहानी सुना दो। फिर मुझे चांद ला दो।”
मम्मी ने मुस्कराते हुए कहा-”चांद भी अपनी मम्मी से कहानी सुन रहा होगा। लेकिन ऐसे थोड़े, बिस्तर पर लेट कर। चलो तुम भी बिस्तर पर लेट जाओ। मैं जल्दी से काम निबटा कर अपनी टीटू को कहानी सुनाऊंगी। वो भी चांद की ही।”
“अहा ! तब तो बड़ा मज़ा आएगा।” यह कहकर टीटू बिस्तर पर जाकर लेट गई। थोड़ी देर बाद उसकी मम्मी ने उसे कहानी सुनानी शुरू कर दी।
मम्मी बोली-”एक चांद था। वह आकाश में रहता था। हमारी धरती से दो लाख चालीस हजार मील दूर। एक मील में डेढ़ किलोमीटर होते हैं। चांद बहुत बड़ा था। पर सूरज से बड़ा नहीं था। सूरज तो बहुत बड़ा होता है। सूरज हमारी धरती से बहुत दूर है। चांद हमारी धरती से बहुत दूर नहीं है। यही कारण है कि चांद और सूरज हमको बराबर से लगते हैं। लेकिन सूरज इतना बड़ा है कि उसमें पांच सौ लाख चांद समा जाएं।”
“बाप रे! सूरज इतना बड़ा है! मम्मी मुझे तो चांद की रोशनी सूरज की रोशनी से ज्यादा अच्छी लगती है। आपको?”
मम्मी ने बताया-”मुझे तो सूरज की रोशनी ज्यादा अच्छी लगती है। चांद की अपनी रोशनी नहीं है। वह तो सूरज की ही रोशनी से चमकता है। हमारी धरती की भी अपनी रोशनी नहीं है। हमारी धरती में भी रात को अंधेरा हो जाता है। सुबह होते ही जैसे हमारी धरती चमकने लगती है उसी तरह चांद भी चमकता है लेकिन सूरज की ही रोशनी से। समझी।”
“अच्छा ! समझ गई। लेकिन मम्मी। फिर दादी जी क्यों कह रही थी कि चांद में एक बुढ़िया रहती है। मुझे भी चांद में बुढ़िया दिखाई दी थी। वो बुढ़िया वहां कैसे पहुंची?”
मम्मी ने बताया-”बताती हूँ। चांद पर बहुत बड़े-बड़े गड्ढे हैं। वह बहुत गहरे हैं। चांद पर विशालकाय पहाड़ भी हैं। सूरज की रोशनी कहीं पड़ती है और कहीं नहीं। इसी वजह से चांद में कुछ छाया तस्वीर बना देती हैं। चांद के पहाड़ चमकते हैं। जो हिस्सा काला और धुंधला दिखाई देता है वह चांद के मैदान और गहरी घाटियां हैं।”
“अच्छा। अब मुझे चांद लाकर कब दोगी?” टीटू ने पूछा।
मम्मी ने कहा-”पहले चांद की कहानी तो सुन लो। चांद में भी दिन और रात होते हैं। लेकिन चांद की एक रात हमारे कई दिनों के बराबर होता है। और हां वहां दिन में इतनी गर्मी पड़ती है कि मेरे पंख जलकर खाक हो जाएंगे। चांद में इतनी गर्मी पड़ती है कि मैं उबल जाऊंगी। रात में इतनी सर्दी पड़ती है कि मैं आइसक्रीम की तरह जम जाऊंगी और मेरे पंख भी जम जाएंगे। फिर मैं उड़ ही नहीं पाऊंगी।”
“सच्ची मम्मी !” टीटू ने पूछा।
मम्मी ने टीटू के सिर पर हाथ रखकर कहा-”अपनी जान से भी प्यारी टीटू की कसम। मैं सच कह रही हूं। ये सब तो किताबों में भी लिखा है। वैज्ञानिकों ने इसका पता भी लगाया है। यही नहीं यदि मैं किसी तरह चांद पर पहुंच भी गई तो मेरा वजन छह गुना कम हो जाएगा। मैं सोच रही हूं कि अपनी टीटू के लिए इतना भारी चांद कैसे उठा कर लाऊंगी। तुम ही बताओ?”
टीटू अपनी मम्मी से चिपट गई। आंखे बंद करती हुई बोली-”मुझे चांद नहीं चाहिए। मुझे मेरी मम्मी चाहिए। आप मुझे छोड़कर कहीं नहीं जाओगी।”
मम्मी ने कहा-”ठीक है। मैं अपनी प्यारी टीटू को छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी। अब मैं अपनी प्यारी टीटू को लोरी सुनाती हूं। वो भी चंदामामा वाली। चंदामामा दौड़ के आना। दूध कटोरा भर कर लाना। उसे प्यार से मुझे पिलाना। फिर लौट के न जाना।”
टीटू लोरी सुनते सुनते सो गई। फिर टीटू ने कभी भी चांद लाने की जिद नहीं की।