चाणक्य और चन्द्रगुप्त / हरिनारायण सिंह 'हरि'
मंत्रिमंडल से निकाल दिये जाने के पश्चात् चाणक्य प्रतिशोध की ज्वाला में जलता हुआ राजमार्ग से गुजर रहा था। अपनी गाड़ी को उस दिन वह स्वयं ही 'ड्राइव' कर रहा था। एक उसकी विचार-गति में व्यवधान आया। उसे ऐसा लगा कि पास में कहीं खतरनाक ढंग से मारपीट हो रही है। उत्सुकतावश उसने अपनी गाड़ी उसी ओर मोड़ दी। निकट जाने पर उसने देखा, संभ्रांत घरानों के बालकों जैसे कपड़े पहने, किन्तु गले ताबीज और माथे पर लाल चंदन-चंदन धारण किये कुछ लड़के आपस में धींगा मुश्ती कर रहे हैं। वे कुर्सियों से एक-दूसरे को मारने का अभिनय भी कर रहे थे। कुछ दूर हटकर एक कुर्सी पर असहाय-सा बैठा एक लड़का उन लोगों से शांत हो जाने की अपील कर रहा था, किन्तु उसकी आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज सी होकर रह रह जा रही थी।
चाणक्य ने बड़ी मुश्किल से उनलोगों को जैसे-तैसे शांत किया। पूछने पर पता चला कि यह विधानसभा का सत्र चल रहा था। चाणक्य ने उन चन्द्रगुप्तों में से कुछ को अपनी गाड़ी पर बैठाया और चल पड़ा 'महानंद' के किले की ओर।