चादर / जगदीश कश्यप

Gadya Kosh से
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जब मेरी आँख खुली तो मैंने अपने दोगले मित्र को पास खड़े पाया । मुझे जागता पा उसने गिलास के पानी में ग्लूकोस घोलकर दिया । चुपचाप मैं पी गया, पर मेरे हृदय में रक्त के बजाय क्रोध का संचार होने लगा । आँखों में ख़ून तैर आया— ‘तुम बुजदिल हो । मुझे यहाँ क्यों लाए ?’

‘शश्श्श!’ उसने उँगली होंठ पर रखकर धीरे-से कहा— ‘बोलो नहीं, चुपचाप पड़े रहो ।’

मैं अपने इस मित्र को मज़दूरों का नेता मानने के लिए शुरू से ही तैयार न था । काम चलाऊ भाषा में वह मिल-मालिक का चमचा था । और मुझ जैसे ईमानदार नेता को अपनी जानिब खींचने की असफल कोशिश कर चुका था ।

ईमानदार आदमी पर आरोप लगाना ज़्यादा आसान होता है । यही हुआ । स्टोर इंचार्ज होने के नाते मुझ पर आरोप लगाया गया कि मैंने चालीस किलो तांबा ग़ायब करवाया था । लिहाजा मेरी नौकरी ख़त्म ।

‘अब तुम कैसे हो ?’ उसने यह बात कहते ही मुस्कराहट-भरा मुखौटा ओढ़ लिया । मेरे कुछ न बोलने पर उसने धीरे से कहा— ‘देख लिया न मज़दूरों को । किसने तुम्हारा साथ दिया ? सारा काम बाख़ूबी चल रहा है इस मिल का ।’

इस पर मैं कुछ नहीं बोला तो वह कह उठा— ‘सुनो, मैं तुम्हें एक ऐसा हलका काम दिलवा दूँगा, जिसमें कुछ भी मेहनत नहीं करनी होगी । रुपये भी पूरे पंद्रह सौ महीना मिलेंगे । मज़े की बात तो यह है कि तुम एक-एक मज़दूर से अपने अपमान का बदला भी ले सकते हो ।’ यह कहते ही उसने मुझे एक चादर दिखाई जो अभी तक उसके जिस्म के चारों ओर लिपटी हुई थी ।

‘मेरा काम बस इतना ही है कि मैं रात के समय यह चादर किसी मज़दूर को ओढ़ा देता हूँ और मज़े से पंद्रह सौ रुपये माहवार पीट लेता हूँ ।’

‘चादर ओढ़ाना तो पुण्य का काम है ?’

‘यही तो तुम्हें समझाना चाहता था । पर तुम अब तक समझे ही नहीं ।’

उसी रात को मैं मित्र द्वारा दी गई चादर को लेकर अपने किसी मज़दूर भाई की झोपड़ी में घुसा और उसकी पत्नी से बोला की वह उस चादर को अपने सोते हुए पति पर डाल दे । उसकी पत्नी ने ऐसा ही किया क्योंकि वह जानती थी कि मेरे द्वारा दी गई चादर भाग्यवाले को ही मिलेगी ।’

उस मज़दूर की पत्नी ने सुबह जब अपने पति के ऊपर से चादर हटानी चाही तो भय से चीख़ पड़ी । चादर का रंग सुर्ख़ पड़ चुका था । उसका पति अब भी गहरी नींद में सोया था । पति का चेहरा देखकर वह गश खाते-खाते बची । गालों की हड्डियाँ शंकु के समान उभर आई थीं । आँखें धँस गई थीं । पेट की पसलियाँ खाल को फाड़कर बाहर आना चाहती थीं । जब उसे जगाया गया तो मज़दूर ने बताया कि उसके पैरों में जान नहीं रही थी । शायद वह किसी बीमारी द्वारा जकड़ लिया गया था ।

वह औरत दौड़ी-दौड़ी मेरे पास आई और वह चादर मुझपर फेंक, गाली बकती हुई चली गई ।

अब मुझे चादर को किसी दूसरे मज़दूर के लिए इस्तेमाल करना था ।