चालाक कौए की सत्य कथा / इन्द्रजीत कौर
एक काफी प्रसिद्ध कहानी है कि एक कौए को प्यास लगी। आस-पास पानी का नामो निशान नहीं था। उसका गला सूखा जा रहा था। अचानक उसे एक घड़ा दिखायी दिया जिसमें बहुत कम पानी था। उसकी चोंच उस पानी तक पहुँचने में असमर्थ थी। कहानी में कौए को काफी चालाक माना गया है अत: इस अद्भुत गुण के कारण उसने एक उपाय सोचा। आस-पास गिरे हुए जो कंकड़-पत्थर थे, उसे घड़े में डालकर पानी का स्तर ऊँचा कर दिया। पानी पीकर उसने अपनी चालाकी से प्यास बुझायी। इस सन्देश के साथ कहानी का अन्त यहीं हो जाता है कि विपत्ति में भी हमें सोंच समझकर काम लेना चाहिए।
दरअसल दोस्तों, यह कहानी भी इतिहास से निकाली गयी कुछ घटनाओं व फोटो की तरह काँट-छाँट कर प्रस्तुत की गयी है। साजिशन बचपन से पचपन वर्षों तक यह सुनाया जा रहा है। सच्चार्इ तो यह है कि इस कहानी से पहले भी एक कहानी है और बाद में भी। मैं डरते हुए वह खुलासित करना चाहती हूँ कि कौए की कंकड़- पत्थर, बालू, मिट्टी व पानी जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर बहुत दिनों से नजर थी। वह सभी को अपने कब्जे में लेना चाहता था। लावारिस पड़ा घड़ा दरअसल उसका अपना ही था जोकि थोड़े पानी के साथ कहानी में दिखाया गया है। वह घड़े मे सारी चीजें रख लेना चाहता था। बालू खनन, पत्थरों का व्यापार, मिनरल वाटर सभी में उसकी रूचि थी। समाज में प्रतिष्ठा बनी रहे, इसकी भी चिन्ता थी। हाँ, कौआ चालाक था, यह कहानी में सही बताया गया है पर उसकी चोंच छोटी थी, वह सही नहीं है। उसके पास अनेक साइज के चोंच पड़े थे। उसने कंकड़, पत्थर व बालू पानी में उसका स्तर ऊँचा करने के लिए नहीं डाला। वह रिजर्व में रखे लम्बी साइज की चोंच से काम चला सकता था पर वह संसाधनों को कब्जियाना चाहता था। प्रकृति को कब्ज हो जाय, इसकी परवाह नहीं थी उसे।
इस अद्भुत गुण से सिर्फ उसकी ही प्यास नहीं बुझी जो महानुभव इस मुद्दे पर चुप थे उनके भी गले तर गये। हाँ, प्यास के बुझने-बुझाने तक ही कहानी खत्म नहीं हुर्इ। बाद में हुआ यह कि उसे कर्इ बार प्यास लगी, कर्इ घड़े भरते रहे। आज हालत यह है कि उसे देखकर कर्इ कौए कतार में आ गये हैं। इसे रोकने हेतु दुर्गामय शक्ति आ भी जाती है तो चीलों के चारों तरफ से घेरने के कारण उसे खुद ही कौए विरोधी ऑपरेशन पर से शोक होने लगता है। फलत: कौए और उनकी प्यास दिन दूनी रात सोलहगुनी रफ्तार से बढ़ती जा रही है। काश वो समझ पाते कि उनकी आँख, मन व गले की प्यास जिससे बुझ रही है वह प्रकृति की आँखों के आँसू व बदन का खून है जो उनकी चोंचों की चोटों से निकल रहा है। अत: सिद्ध होता है कि प्यासा कौआ, घड़े का थोड़ा पानी, आस-पास के कंकड़, पत्थर व अन्त में सन्देश आदि सभी एक स्वार्थी कौए की सुनियोजित कहानी का सम्पादित अंश है। यह तो बहुवचन में बदलती एक अन्तहीन कहानी है।