चाह / प्रभात चतुर्वेदी
वह सुबह कुछ ऐसा रीतापन लेकर आई थी कि वह अपने आसपास के वातावरण से एकदम अजनबी हो गया था। सुबह के कोई पांच बजे होंगे। वे लोग अभी अभी यहां से गए थे। सड़क के अन्तिम सिरे पर जो धूल का गुबार सा दिख रहा था शायद उन के ऑटो की वजह से था।
उस गाड़ी के रवाना होते ही वह एकटक उसी दिशा में देखता रह गया था। यद्यपि उन का जाना दो दिन पहले ही तय हो गया था किन्तु उनके ऑटो घर से निकलते ही मन में न जाने क्या उबल उबल आया था।
भाई साहब ने ही जल्दी रवाना होने की इच्छा जाहिर की थी। सुबह ठंडक में ट्रेन से निकल जाएंगे वरना ग्यारह बजे बाद तो गर्मी हालत खराब कर देगी। उसने कुछ कहना चाहा था पर फिर न जाने क्या सोच चुप रह गया था।
पिछले छः माह से जिन स्वप्नों को अपने मन में बुनता चला आया था वे एकदम खिड़की से फेंकी गई कांच की बोतल की तरह चटख गए थे। एक गहराते सूनेपन ने उसे इस तरह दबोच लिया था जैसे कोई बाज झपट्टा मार कर किसी छोटे पक्षी को पकड़ लेता है।
उन लोगों के जाने के कुछ क्षणों के भीतर ही न जाने किस आवेग में वह चप्पल घसीटता-सा उसी दिशा में पैदल चल पड़ा था। चांद की अन्तिम किरण दम तोड़ रही थी। अचानक आया ताजा हवा का झोंका भी मन के तनाव को कम नहीं कर पाया था। वह तेज कदमों से बढ़ता चला जा रहा था और विचारों का एक झंझावात उसे झिंझोड़ रहा था।
मनोज जब छ महीने पहले इस वीरान से षहर में नौकरी के लिये इंटव्यू देने के लिये आया तो रेल्वे स्टेशन से बाहर निकलने पर पहली नजर में उसे कुछ ज्यादा अच्छा नहीं लगा था। भाई साहब पहले से ही यहां थे। उन्ही ने इस नौकरी के बारे में उसे बताया था।
सुबह अंधेरे ही उसकी ट्रेन पहुची थी। भाई साहब के घर का दरवाजा उस ने खोला था। एक सुंदर-सी अपरिचित लड़की को अचानक सामने देख वह अचकचा सा गया था। लगा शायद किसी गलत घर का दरवाजा खटखटा दिया है। तभी भाई साहब की आवाज गूंजी “कौन”? मनोज के चेहरे पर संकोच और आश्वस्ति के आते जाते भावों को देख अणिमा फिक्क से हंस पड़ी थी। उस के अनार के दानों जैसे सजीले दांतों की चमक से अचानक मन में ऐसी हिलोर सी लगी जैसे झूले पर जोर की पींग भर कर खूब ऊंचे जाकर नीचे आने पर अनुभव होता है। भाभी मंजन करती हुई दालान में निकल आई थीं। भाभी ने उनके पांव छूने के बाद आशीवार्दों की झड़ी लगा दी थी जिसके थमने के बाद ही उन्होने उसकी जिज्ञासा भरी नजर पर गौर किया था। तब भाभी ने बताया कि अणिमा उनकी बुआ की लड़की है और एम.एस.सी. पास करने के बाद कंप्यूटर का कोई कोर्स करने यहां आ गई है। तब तक अणिमा चाय बना कर ले आई थी। चाय का प्याला पकड़ते समय यकायक उसके हाथ का स्पर्श अच्छा ही लगा था और वह उसे एकटक देखता रह गया था। अणिमा के चेहरे पर अरूणिमा छा गई थी और वह उसे प्याला थमा कर लगभग दौड़ती-सी वापस चली गई थी। भाभी ने भांपने के अंदाज़ में अचानक कहा था ’ क्यों लाला पसन्द है?’ मनोज इस प्रश्न के लिये बिलकुल तैयार नहीं था। अकबका कर बोला ’हां भाभी ! नहीं भाभी !! ’ भाभी खिलखिला कर हंस दी थीं।
थोड़ी देर बाद जब वह तैयार होकर इंटरव्यू के लिये निकलने लगा तब अणिमा सामने आ गई थी और मुस्करा कर कहा ’ बेस्ट आफ लक ’। मनोज धन्यवाद देकर बढ़ गया लेकिन रास्ते भर उसी के बारे में सोचता रहा था। साक्षात्कार में सफलता के बाद उल्लसित मन से वापस घर पहुंचने पर फिर उसी ने यह कह कर स्वागत किया था कि दीदी पड़ौस में गई हैं। पूछने पर जब उसने बताया कि नौकरी मिल गई है तब अणिमा के चेहरे पर आन्तरिक खुशी की झलक नजर आने से वह भी मन ही मन खुश हो गया था। अणिमा फ्रिज से निकाल कर एक प्लेट में मिठाई रख कर ले आई। उसने आग्रह कर एक टुकड़ा अपने हाथ से ही अणिमा को खिला दिया था। उसके फिर शर्म से लाल होने पर वह मुग्ध होकर देखता रह गया था।
वह नौकरी पर जाने लगा था। धीरे धीरे अणिमा की झिझक कम होने लगी थी। उसकी अनुपस्थिति में कमरे को ठीक ठाक करने का दायित्व अपने आप ओढ़ लेने पर उसने धन्यवाद देना चाहा था पर वह सिर्फ मुस्कराकर चली गई थी।
एक छुट्टी के दिन भाभी ने कहा ’ लाला ! मेरी तबियत ठीक नहीं है। अणिमा को कुछ मैचिंग के कपड़े चाहिये। क्या तुम उसे अपने साथ ले जा सकते हो?’ उस ने स्वीकार में सिर हिलाया ही था कि अणिमा का चेहरा खिल उठा। बाजार से कपड़े ले लेने के बाद उसने स्कूटर बाग की तरफ मोड़ दिया था अणिमा ने कहा भी कि घर जल्दी पहुंचना है पर उसने कहा कि कोई बात नहीं, भाभी गुस्सा नहीं होंगी। दोनों आइसक्रीम के कप हाथ में लेकर पार्क में एक बेंच पर चुपचाप बैठ गए थे। थोड़ी देर बाद उसीने मौन तोड़ा था ‘ कुछ बात नहीं करोगी ‘। अणिमा अचकचा कर बोली थी ‘ क्या बात करें ‘। उसने कहा ‘ कुछ भी। कुछ अपने बारे में बताओ ‘। कुछ क्षणों की चुप्पी के बाद अणिमा ने कहा ‘ अपने बारे में बताने को विषेश कुछ नहीं है। पिता की गरीबी की वजह से ननिहाल वालों ने ही पढ़ाया लिखाया। एम.एस.सी. करने के बाद यहां कंप्यूटर पाठ्यक्रम के लिये दीदी के पास आ गई ताकि अच्छी नौकरी मिल सके। ‘ उस का सपाट लहजा भी मन की कुंठा को न छिपा सका था। उस के मन में हमदर्दी के कई भाव आए और गए पर वह कुछ बोल नहीं पाया। उस दिन से अणिमा के साथ आत्मीयता बढ़ती चली गई। शायद भाभी को भी इस का आभास होने लगा था और वह उन दोनों को साथ निकलने के और मौके देने लगीं।
एक दिन जब वह अपने कमरे में लेटा था और अणिमा उसके लिये चाय का प्याला लेकर आई और पूछा ‘ क्या बात है?‘ उसने कहा कि यूंही जरा सिर में दर्द है। अणिमा सिरहाने बैठ कर सिर दबाने लगी थी। उसने एक बार उसे रोकना भी चाहा पर वह मानी नहीं। थोड़ी देर बाद उसने अणिमा के दोनों हाथ पकड़ कर कहा था ‘ तुम इतनी अच्छी क्यों लगती हो?‘ अणिमा मुस्कराती हुई धीरे से हाथ छुड़ाकर भागी। एक पल दरवाजे के पास रूक कर उसने कहा था ’ आप तो ! ’
मनोज ने मन ही मन योजना बनाना शुरू कर दिया कि नौकरी एक साल पूरा होते ही पक्की हो जाएगी तभी वह भाभी से अणिमा के बारे में बात करेगा। पर ऐसा हो नहीं पाया। एक दिन ऑफिस से घर लौटते ही भाभी ने खबर सुनाई थी। मनोज अवाक उनका मुंह देखता रह गया था।
भाभी ने कहा था ‘आज बुआजी का फोन आया था। उनकी ननद का देवर प्रवीण अमरीका में पढ़ कर वहीं नौकरी करने लगा है। आजकल हिंदुस्तान आया हुआ है। उसीने बुआजी से कहा कि अणिमा उसे अच्छी लगती है। वह उसे शादी कर साथ ले जाना चाहता है। अणिमा के तो भाग जाग गए। हम लोग शुक्रवार को इसे साथ लेकर वहीं जा रहे हैं।‘ लगा कोई विशाल बरगद उस के सिर पर आ गिरा हो। उसने भाभी से कुछ कहना चाहा पर मुंह एकदम सूख गया था और वह अपने होठों पर जबान फेरता हुआ चुपचाप खड़ा रह गया था। मुंह से कोई शब्द ही नहीं निकले। अपने शरीर को खींचता-सा कमरे में चला गया था और कटे वृक्ष की तरह बिस्तर पर गिर पड़ा था। अणिमा के कमरे में आते ही वह उठ कर बैठ गया था। एक नजर उस के भावहीन चेहरे पर डाल कर उसे बधाई दी। अणिमा ने कहा और अपना क्या हुआ? आपने तो दीदी से कुछ भी नहीं कहा। अगर आप नहीं बोलोगे तो फिर ............. ?
वह झेंपता हुआ बोला था ’ मुझ पर तो बिजली-सी गिरी , मैं कुछ कह ही नहीं पाया। अभी बात करता हूं ’ कह कर भाभी के पास गया। भाई साहब भी वहीं बैठे थे। उस ने कहा ’ भाभी प्लीज अणिमा की शादी रूकवा दो। वह मुझे पसन्द है।’ भाई साहब चौंक कर उसकी तरफ देखने लगे थे। भाभी ने कहा ’पहले तो मैंने भी ऐसा ही सोचा था। पर अब उसके लिये इतना अच्छा रिश्ता आया है, लड़का विदेश में है अच्छी कमाई है। बुआजी को कैसे कहूं? वो मानेंगी भी नहीं। ’ उसने कहा ’ पर अणिमा की मर्जी ? वो भी मुझे पसन्द करती है। ’ भाभी ने यह कह कर बात खतम कर दी थी कि इतनी-सी लड़की में अपना भला बुरा समझने की क्या तमीज है? उसका चेहरा अपमान से काला पड़ गया और वह कुछ और कहे बगैर उठ कर चला आया था। भाई साहब ने भी भाभी को कुछ समझाने की कोशिश की थी पर बेकार। अगले दो तीन दिन वह अणिमा से आंख चुराता रहा था। अणिमा ने एक दो बार बात करने की कोशिश भी की पर अचानक भाभी के वहां पहुंच जाने से बात नहीं हो पाई। भाभी भी शायद उस पर नजर रख रहीं थीं। आज रात वह बिलकुल सो नहीं पाया था। भाभी भी शायद यात्रा की तैयारी कर रहीं थीं। देर रात जब घर में सन्नाटा सा हो गया , कमरे में आहट हुई। उसने चौंक कर मुंह दरवाजे की तरफ घुमाया। अणिमा के हाथ में एक चिट्ठी थी जिसे उसने तकिये के पास रख दिया। उसने अणिमा का हाथ पकड़ने की कोशिश की पर हाथ कलाई की चूड़ियों पर गया और चूड़िया टूट कर हाथ में गड़ गई। अणिमा रूकी नहीं। उसने चिट्ठी देखी तो उसमें सिर्फ इतना लिखा था कि ‘ हमें भूल जाना।’ रात भर वह चिट्ठी हाथ में लिये बैठा रह गया था। उसकी समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या करे। हाथ में चूड़ी टूटने से लगी चोट की तरफ भी उसका ध्यान नहीं गया।
वह तेजी से चलता जा रहा था और अणिमा की आवाज जैसे उस के कानों में बार बार गूंज रही थी “ अगर आप नहीं बोलोगे तो फिर...? “
चलते चलते मनोज के विचारों में स्थिरता आने लगी थी। शायद अणिमा को हमेशा के लिये खो देने के विचार के कारण ही वह निश्चय कर पाया कि मैं खुद जा कर अणिमा की मां से सीधे बात करूंगा। उन्हे बताउंगा कि हम दोनों एक दूसरे को चाहते हैं। अणिमा मेरे अलावा किसी के साथ सुखी नहीं रह पाएगी। वो जरूर मान जाएंगी। अगर वो नहीं मानी तो उस लड़के से भी बात करूंगा। मन में उम्मीद जागने लगी। दूर क्षितिज में सूरज का लाल गोला आसमान में आभा बिखेरने लगा।