चिंतन रो कलात्मक रूप / रामस्वरूप किसान / कथेसर

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मुखपृष्ठ  » पत्रिकाओं की सूची  » पत्रिका: कथेसर  » अंक: अक्टूबर-दिसम्बर 2012  

साहित्य कांईं है? इण बाबत ई आपां नैं कीं न कीं बात करणी चाइजै। अठै म्हैं 'कीं न कीं’ सबद इण वास्तै काम में लियो है कै म्हनैं अजे तांई आपणी भाषा में कोई सांवठो साहित्यिक निबंध निजर नीं आयो। अर न ई इण विसै पर पेटा-भराई वाळी कोई चरचा सुणन-पढण नैं मिली। जद कै हिन्दी अर बीजी भारतीय भाषावां में साहित्य तत्त्व अर साहित्य समालोचना माथै जबरा निबंध पढण नैं मिलै। जियां कै बांग्ला मांय रवीन्द्रनाथ टैगोर रा इण विसै माथै निबंध दुनिया रै पाठकां नैं आप कानी खींचै। अै निबंध टैगोर रै ऊंडै मौलिक चिंतन री साख भरै। आं रै जरियै टैगोर दुनिया नैं भौत कीं देवतो दीखै। ओ देवणो ई साहित्य रो अंतिम ध्येय है। आ देवण री ताकत अबोट चिंतन मांय ई हुवै। वैज्ञानिक भाषा में अबोट चिंतन नैं अन्वेषण कैयो जा सकै। क्यूंकै जको रोल विज्ञान रै खेतर में नुवीं खोज रो है बो ई सागी रोल साहित्य रै खेतर में मौलिक चिंतन रो है। जिण भांत नुवीं खोज (अन्वेषण) अेक वैज्ञानिक उपलब्धि है, उणीं भांत मौलिक चिंतन ई अेक साहित्यिक उपलब्धि है। अर जिण भांत वैज्ञानिक उपलब्धि री अेक महताऊ सामाजिक उपयोगिता है, उणीं भांत मौलिक चिंतन ई समाज सारू कम उपयोगी नीं है।

साहित्य जैड़ो विराट, विस्तृत अर व्यापक विसै किणीं भांत री परिभाषा में नीं समा सकै। बियां ई म्हारी निजर में तो अजे तांई साहित्य री कोई धातुगत या शास्त्रीय परिभाषा कोनी आई। हां, इण बहुआयामी विसै री व्याख्या करी जा सकै। अर आ व्याख्या ई जे मौलिक चिंतन नै आधार मान’र करी जावै तो साहित्य रै ध्येय रो सांगोपांग खुलासो हो सकै। अर सांच ई आ है कै दर्शनशास्त्र साहित्य रो फगत अेक तत्त्व नीं होय’र उणरी रीढ है। रचनाकार जे दार्शनिक नीं है तो बो दुनिया नैं हळकै मनोरंजन अर सूचनावां रै सिवाय कांईं दे सकै? पण म्हारै विचार सूं तो हर कला रूप रो आधार दर्शन है। साहित्य, संगीत, पेंटिंग, नृत्य अर वास्तुकला मांय चिंतन पैली चीज है। साहित्य, चिंतन रो कलात्मक रूप ईज तो है।

अठै म्हैं साहित्य रै दोनूं रूपां (गद्य अर पद्य) अर बां री आखी विधावां रै प्रतीक रूप में जे 'बात’ सबद रो प्रयोग करूं तो साहित्य अैड़ी कीमिया, रसात्मक-कलात्मक बातां रो निरंतर प्रवाह है जको दुनिया री मानसिक खुराक रै रूप में कागदापर उतर’र सुरक्षित होवतो रैवै। बात तो आदमी हर पल करै। सोयां पछै सपनै में ई। पण आं मांय कागदां चढण वाळी कित्तीक बात हुवै? घणकरी’क खतम हुज्यै। हवा में रुळज्यै। जकी बच ज्यावै, बो साहित्य है। साहित्य कदे नास नीं हुवै। अमर रो नांव साहित्य।

अब थोड़ी बात पत्रिका बाबत। पत्रिका रो ओ चौथो अंक हेताळुवां रै हाथां सूंपतां म्हनैं भौत हरख हुवै। अर सै सूं घणो हरख पत्रिका पेटै लेखकां-पाठकां रै जुड़ाव अर बां री सरधा पर हुवै। लेखक अर पाठक मित्रां! भौत-भौत धन्यवाद अर साधुवाद आपनैं। आप ईज 'कथेसर’ री ताकत हो। आपरा तो अेक-अेक कागद ई सांवठी रचना है। म्हैं आं नैं फगत कागद नीं मानूं। अै 'कथेसर’ री क्रेडिट अर संपादक रा ऊर्जा-स्रोत है। आं रो सिलसिलो नीं टूटै अैड़ी आस करूं।

म्हैं इण पत्रिका रै जरियै अेक कहाणी-आंदोलन खड़्यो करणो चावूं। इण सारू आप कहाणीकारां रै रचनात्मक सैयोग री भौत दरकार है।

लारलै तीन अंकां में कहाणी पेटै 'कथेसर’ री खास उपलब्धि आ है कै रूपसिंह राजपुरी जेड़ै हास्य अर मंचीय कवि सूं पैली बार कहाणी लिखवाय’र कहाणी-मैदान में उतार दियो। इणी भांत मदनगोपाल लढा, नवनीत पांडे, पेंटर भोजराज सोलंकी, उम्मेद धानिया, श्रीभगवान सैनी अर रीना मेनारिया आपरी सांवठी कहाणियां साथै 'कथेसर’ में प्रवेस कर्यो है। आं नुवैं कहाणीकारां मांय भौत संभावनावां है। आं सूं 'कथेसर’ नै घणी उम्मीद है। अर स्थापित कथाकारां री तो कांईं बात। बी.एल. माली 'अशांत’, श्याम जांगिड़, प्रमोद कुमार शर्मा, प्रहलाद श्रीमाली, पुष्पलता कश्यप अर दिनेश पंचाल नैं छाप’र पत्रिका घणो गुमेज करै।

जै राजस्थान, जै राजस्थानी।

-रामस्वरूप किसान