चिड़ियाँ / रश्मि

Gadya Kosh से
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खुले आसमान में चिडियों का एक झुंड इठला रहा था। मस्ती में उड़ान भरती चिडियों के मन में उमंगें थीं कि 'मैं उस आसमान को छुऊँगी' 'मैं उधर उड़ान भरुंगी' 'मैं इन्द्रधनुष में रंग भरुंगी'।

तभी उन नादानों की नज़र धरती पर गयी और उनका कलेजा बैठ गया। कुछ बहेलिये तीर लगाकर निशाना साधे थे। कोई शिकारी जाल बिछाकर दाने डाल रहा था. कहीं सोने के पिंजरे सजे थे जिनमे कई तरह कई लुभावनी चीजें थीं।

सहसा चिडियों को अहसास हुआ कि उनके पंख कतरे जा चुके हैं। अब आसमान खाली है, कोई चिडिया कुलांचे नहीं भर रही.......