चिड़िया वाला / सरस्वती माथुर
"आंटी जी - आंटी जी परिंदें ख़रीद लीजिये
ना। "श्यामा बरामदे में बैठी स्वेटर बुन रही थी, तभी काॅलोनी के बच्चों की टोली धींगामस्ती करती हुयी उनके घर की तरफ़ आयी और श्यामा से आग्रह करने लगी -
"कौनसे परिंदें।"स्वेटर बुनना छोड़ वो उनसे बातें करने लगी।
तभी चिड़ियां बेचने वाला उसके सामने आ कर कहने लगा---"पचास की दो दे दूँगा मेमसाहिब,इन्हें आज ही पकड़ा है।"
चिड़िया बेचने वाले ने जैसे ही कठोर उँगलियों से पिंजरों पर हाथ फेरा!पंछी सहमें से स्वर में ज़ोर ज़ोर से चीं चीं करते गोल गोल पिंजरें पर फड़फड़ाते हुअे घूमने लगे।
"इन्हें जाल फेंक कर पकड़ते हो?"
"जी मेमसाहिब पहले वन विभाग में काम करता था पर नौकरी से निकाल दिया तब से कर रहा हूँ पंछी बेचने का काम!वनों के बाहर दाना डालता हूँ तो तोते और रंगीन पंछी आ जाते हैं।"
पिंजरों के आसपास आलथी - पालथी मार कर बैठे बच्चे पंछियों को पुचकारते हुअे उनसे संवाद कर रहे थे।श्यामा का मन भर आता है! भावुक हो वह एक दर्जन पंछी ख़रीद लेती है, उन्हें पुचकारने के बाद बच्चों को कहती है -"इन्हें पिंजरों खोल कर उड़ा दो।"
बच्चे एक स्वर में चिल्लाते हुअे उन्हें एक के बाद एक आकाश में छोड़ देते हैं।
चिड़िया वाला मुस्कुरा कर विदा लेता है।बच्चे शोर मचाते हुअे वापस खेलने भाग जाते हैं।श्यामा भावुक सी आसमान की तरफ़ देखती है, जहाँ गोल गोल चक्कर लगाते हुअे पंछी उन्मुक्त उड़ रहे हैं।