चिड़िया / सुकेश साहनी

Gadya Kosh से
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कमरे में गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था। वह अपने दिल की धड़कन को मानो पूरे शरीर से सुन रहा था। एक के बाद एक हादसों ने उसे तोड़कर रख दिया था। जीवन में रोशनी की कोई किरण न देख वह दिन-रात उसी के बारे में सोचता रहता था और आज वह साक्षात् उसके सामने खड़ी थी।

उसकी सम्मोहित करने वाली नजरें उसे अपनी ओर खींच रही थी। उत्तेजना के मारे उसका पूरा शरीर थरथरा रहा था। वह उसे गले लगाने ही वाला था कि हल्की फड़फड़ाहट से उसका ध्यान भंग हो गया।

न जाने कहाँ से एक गौरैया कमरे में घुस आई थी और दीवार घड़ी पर बैठी उसे ताक रही थी। कमरे के सभी खिड़की दरवाज़े उसने अच्छी तरह बंद कर रखे थे। फिर?

उसका ध्यान बचपन के दिनों की तरफ चला गया, उन दिनों अक्सर वह चिड़िया को घर में बंद कर लेता था, उड़ा-उड़ाकर थका देता था, जब चिड़िया बिल्कुल पस्त हो उड़ने में असमर्थ हो जाती थी, तो वह उसे बहुत प्यार से हाथ में लेकर दाना-पानी देने की कोशिश करता था। बेहद डरी, हाँफती चिड़िया अपने सामने रखी खाने-पीने की चीजों की ओर देखती भी नहीं थी। एक बार माँ ने उसे रंगे हाथों पकड़ लिया था और प्यार से समझाया था। उस दिन से उसने यह खेल बंद कर दिया था।

उसे लगा पहले कैसे भी चिड़िया को कमरे से बाहर निकालना होगा; अन्यथा वह भूखी प्यासी मर जाएगी। उसने मच्छरदानी के बाँस से रोशनदान को खोल दिया और चिड़िया को बाहर निकालने की कोशिश करने लगा; लेकिन चिड़िया रोशनदान से विपरीत दिशा में उड़कर उसकी माँ की माला- चढ़ी फोटो पर जा बैठी।

उसकी स्मृतियों में पिता कहीं नहीं थे, अलबत्ता माँ से जुड़ी बहुत सी यादें थीं, पर जब से वह उसकी जिंदगी में आई थी, वह उनसे कटने लगा था। चिड़िया की वजह से न चाहते भी उसकी नजरें माँ से मिलीं और उसके भीतर कुछ पिघलने लगा।

पंखे के नीचे से वह उसे बुला रही थी, पर अब उसकी आवाज बहुत दूर से आती मालूम दे रही थी।

माँ घरों में बरतन सफाई का काम करती थी और चाहती थी कि उसका बेटा बड़ा आदमी बने। उसे याद आया कि घर में इतने पैसे नहीं बचते थे कि माँ और वह पाँव में चप्पल भी पहने सकें। एक बार जब उसके पैर में काँच लग गया था तो माँ कितनी दुखी हो गई थी और उसी दिन उसके लिए हवाई चप्पल ले आई थी। सोचते हुए उसकी आँखें नम हो आईं।

फोटो पर बैठी चिड़िया अभी भी टुकुर-टुकुर उसे ताके जा रही थी।

‘कैसे भी चिड़िया को मुक्त करना होगा’ सोचते हुए उसने कमरे की एक मात्र खिड़की को भी खोल दिया। चिड़िया फोटो से उड़कर टाँड़ पर रक्खे संदूक पर जा बैठी।

हारकर उसने कमरे का दरवाजा खोल दिया ताकि चिड़िया आराम से बाहर उड़ जाए। दरवाजा खोलते ही उसकी आँखें चौंधिया गईं। उसके ठीक सामने सूरज चमक रहा था। वह सूरज की रोशनी में नहा गया। उसे लगा जैसे वह गहरी नींद से जागा हो। मिचमिचाती आँखों से उसने भीतर देखा-वह कहीं नहीं थी, उसके स्थान पर पंखे से फाँसी का फंदा लगी नायलान की रस्सी लटक रही थी, नीचे वही स्टूल पड़ा था, जिसपर चढ़कर वह उसे गले लगाने वाला था।

और चिड़िया......?

वह अब भी घर में थी।

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