चींटियाँ / हेमन्त शेष

Gadya Kosh से
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चीटियाँ मृत्यु तक सर्वशक्तिमान हैं. भूमि पर स्थित हर चीज़ तक उनकी पहुँच है .वे मनुष्य की क्षुद्र और नश्वर दुनिया के बहुत से तथ्य जानती हैं. अपनी सूक्ष्म नाकों से भी वे चीनी और चावल के दानों की उपस्थिति सूँघ सकती हैं, हर बार उन्हें मेज़ के नीचे फैले अन्न-कणों का सुराग लग ही जाता है, हर बार वहाँ से चीटियों को अपने घर का सबसे छोटा रास्ता मालूम होता है. वे व्यस्ततापूर्वक उस पर चल पड़ती हैं और कभी पलट कर नहीं देखती. न वे प्रतीक्षा करती हैं न पूछताछ. वे पत्र-पत्रिकाओं में अपना भविष्यफल कभी नहीं देखतीं. सफ़र कर निकलने के लिए उन्हें हजामत का सामान नहीं ज़माना पड़ता. उन्हें अपने साहसिक अभियानों की ख़बर अख़बारों में छपवाने में भी कोई दिलचस्पी नहीं होती. चीटियों के जीवन पर फ़िल्में बनायी जाती हैं. विज्ञानसम्मत भाषण दिये जाते हैं दिलचस्प नाटक उन पर लिखे जाते हैं पर वे कभी उन्हें देखनी नहीं आतीं.

उन्हें यह बात पता होती है कि जुलाई का महीना जून के बाद आता है. तब उन्हें साँस लेने तक की फुरसत नहीं मिलती. बरसात की ऋतु से पहले ही अपने बच्चों के लिए वे बिलों को राशन से अटा देती हैं. अपने से कई गुना मज़बूत और बड़ी चीजों को अत्यधिक छोटे मुँहों से गन्तव्य तक खींच कर ले आने की कला में निष्णात होने के बावजूद वे गर्व में भर कर फूले नहीं जातीं और पुरानी शक्लों में ही बनी रहती हैं.

हवाई जहाज़ों की खिड़कियों से बेशक चीटियाँ दिखलायी नहीं देतीं पर उस वक़्त भी वे नन्हे अन्न कणों की तरह पूरी पृथ्वी पर फैली होती हैं.... और सबसे बड़ी बात तो यह कि चीटियों को अपनी पूरी प्रगतिशीलता और काव्यात्मकता के बावजूद कभी कवि होने की ग़लतफ़हमी नहीं होती...