चीन की महत्वाकांक्षा का आवारा घोड़ा / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 06 सितम्बर 2018
समय के पृष्ठ पर लिखी इबारतें त्वरित गति से अदृश्य हो जाती हैं और सबसे बड़ी चुनौती यही है कि इन इबारतों को हम पढ़ लें। परिवर्तन का डस्टर समय के ब्लैक बोर्ड पर लिखी बातों को शीघ्र ही मिटा देता है। अच्छा पाठक ब्लैक बोर्ड पर मिटाए गए अक्षरों की धुंधली-सी छायाओं को भी पढ़ लेता है। मौजूदा वक़्त में लिखने वालों की संख्या अधिक हो गई है और पढ़ने वाले घटते जा रहे हैं। चीन साम्यवादी अनुशासन व परिश्रम से उत्पाद बढ़ा रहा है और सबसे अधिक निर्यात करने वाला देश बन गया है। पश्चिम के देश पर्यावरण के विषय में चिंता करते हैं और अपने को बचाने के लिए इस्पात, सीमेंट इत्यादि अनेक वस्तुओं को बनाने का ठेका चीन को दे रहे हैं। चीन में फैक्ट्रियों की चिमनियां धुंआ उगल रही हैं और प्रदूषित वातावरण चीनी अवाम के जीवन में धीमे-धीमे प्रभाव डालने वाले जहर का काम कर रहा है। चीन के नेता उत्पादन और लाभ बढ़ाने की होड़ में लगे हैं। अपने आवाम के कमजोर होते फेफड़ों से जानकर अंजान बने हुए हैं। अगर पश्चिम के देश अपने वातावरण को दूषित होने से बचाने के लिए चीन में धुंआ उगलती चिमनियों की संख्या बढ़ा रहे हैं तो वे इस बात को नज़रअंदाज कर रहे हैं कि उनके अपने व्यापारिक संगठनों में चीन का पूंजी निवेश दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है। गोयाकि चीन के आवाम की सांस में धुंआ भरते-भरते उनके व्यापार जगत की गर्दन पर चीनी शिकंजा कसता जा रहा है। इस तरह दोनों ही पक्ष बहुत कुछ खोते जा रहे हैं। दोनों ही पक्ष अपनी अपनी गहरी चालों से मंत्रमुग्ध हैं और बेचारी पृथ्वी अपने अस्तित्व के खतरे में पड़ जाने के कारण खून के आंसू बहा रही है। इस सारी जद्दोजहद में पृथ्वी कष्ट से कराह रही है। शोरगुल इतना अधिक है कि पृथ्वी की कराह को सुना नहीं जा रहा है। मीडिया शोरगुल करके खुश है। खबरों का व्यापार खूब पनप रहा है और बढ़ते हुए व्यापार की खबरें प्रकाशित करके मीडिया प्रसन्न हुआ जा रहा है। खबरों के स्वामित्व के अधिकार का मामला कमजोर कॉपीराइट कानून के कारण उलझ गया है। खबरों की उठाईगिरी का व्यवसाय पनप रहा है। मामला कुछ ऐसा है कि खोजी पत्रकार को उसके द्वारा लाई गई खबर ही समानार्थी शब्दों में रचकर उसे ही परोसी जा रही है और वह चटखारे लेकर उसे भकोस भी रहा है। चीन के हुक्मरान सिनेमा के महत्व को जानते हैं। उन्होंने अपने देश में 45,000 सिनेमाघर रचे हैं। हमारे देश के 8000 सिनेमाघरों में वही चमक दिखाई पड़ रही है, जो बुझते हुए दियों की लौ में देखी जाती है। तेल की अंतिम बूंद सबसे अधिक रोशनी देती है परंतु दरअसल यह अंधकार के आने की सूचना होती है। अंधकार के पदचाप ध्वनिहीन होते हैं जैसे भूत-प्रेत चल रहे हों। चीन का प्रस्ताव है कि राज कपूर की 'आवारा' को पुनः तीन भाषाओं चीनी, हिंदुस्तानी व रूसी भाषाअों में बनाया जाए। इस संस्करण में पृथ्वीराज कपूर अभिनीत जज रघुनाथ की भूमिका ऋषि कपूर अभिनीत करें और राज की भूमिका युवा रणवीर कपूर करें। कोई चीनी कलाकार केएन सिंह द्वारा अभिनीत जग्गा की भूमिका अभिनीत करें। फिल्म में रामायण का रूपक है। जज रघुनाथ है और उनके द्वारा निष्कासित पत्नी सीता है। जग्गा रावण है इस आशय का गीत भी है। शंकर-जयकिशन व शैलेंद्र-हसरत की टीम का विकल्प नहीं मिल रहा है। बहरहाल, चीन की इस सिनेमाई पहल का भेद गहरा है परंतु बात जरा-सी यह है कि चीन में प्रदर्शित विदेशी फिल्म की कमाई का मात्र 15% ही उसके निर्माता को मिलता है और 25% कमाई चीन के फिल्म उद्योग के विकास के लिए रखी जाती है। पश्चिम के देशों और चीन के बीच कोई युद्ध नहीं लड़ा जाएगा। आणविक शस्त्रों ने इस तरह शांति स्थापित की है कि अब युद्ध का अर्थ है सामूहिक आत्महत्या। वर्तमान में बाजार ही युद्धभूमि है और बाजार में सस्ता चीनी माल धड़ल्ले से बिक रहा है। चीन में बने माल का उपयोग नहीं करने पर ही उसकी शक्ति घट सकती है और उस घोड़े को लगाम लगाई जा सकती है।