चीन में 'दंगल' की सफलता / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :03 जुलाई 2017
चीन में आमिर खान की 'दंगल' सफलता का कीर्तिमान बना रही है और कुछ लोगों का अनुमान है कि एक चीनी बालिका को केंद्र में रखकर बनाई गई सलमान अभिनीत 'ट्यूबलाइट' भी चीन में पसंद की जा सकती है। हम यह नहीं भूल सकते कि निखिल अाडवाणी की फिल्म 'चांदनी चौक टू चाइना' घोर असफल फिल्म रही है। स्पष्ट है कि पात्र के भौगोलिक स्थान या देशों के बीच के संबंध बॉक्स ऑफिस पर असर नहीं डालते। 'दंगल' की सफलता का आधार उसका मनोरंजक फिल्म होना है। चीन के बॉक्स ऑफिस आंकड़ों की आधारशिला है उस देश में पैंसठ हजार सिनेमाघर होना, जबकि हमारे देश में एकल सिनेमाघरों की संख्या निरंतर घट रही है। उन्हें बचाने के लिए प्रांतीय सरकारों को आदेश जारी करने चाहिए कि टिकट के दाम से दस रुपए सिनेमा मालिक अपने सिनेमाघर के रखरखाव के लिए रख ले। यह रकम दर्शक की जेब से जा रही है और सरकार पर कोई आर्थिक भार नहीं है। इसी बाबत छत्तीसगढ़ सरकार से प्रार्थना की गई है और आशा है कि वे अपने प्रांत में एकल सिनेमाघर की घटती संख्या देखते हुए यह कदम उठाएंगे। एेसी ही प्रार्थना मध्यप्रदेश और राजस्थान की सरकारों से भी की जा रही है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को शराबबंदी से समय मिलेगा तो वे इस पर विचार करेंगे। संसद के जलसाघर में कोई और मनोरंजक कार्यक्रम चल रहा है और शो आधी रात के बाद भी चलेगा गोयाकि वे शशि कपूर की 'उत्सव' के गीत की तर्ज पर काम कर रहे हैं कि 'रात शुरू होती है आधी रात को, बेला महका रे महका आधी रात को।' बेला न कहें तो कह सकते हैं रजनीगंधा और कुमुदनी अत: रजनीगंधा महकेगी संसद में। अगर संसद के अनेक अधिवेशन रात में आयोजित किए जाएं तो सांसदों की नींद उड़ जाएगी। संभवत: मयखाने भी अपने कद्रदां खो दें। क्या गुड्स एवं सर्विस टैक्स का प्रभाव वेश्यालयों पर भी पड़ेगा? यह भी सर्विस ही तो है। राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के कुछ वर्ष पूर्व फिल्मकार शांतारामजी ने फिल्म बनाई थी, 'डॉक्टर कोटनीस की अमर कहानी।' यह एक सच्ची घटना से प्रेरित फिल्म थी। भारतीय डॉक्टर कोटनीस ने जापान से पिटे चीन में बीमारों की सेवा की थी और वहां उन्होंने एक चीनी महिला से प्रेम भी किया और उससे विवाह भी किया था। इस महान फिल्म का क्लाइमैक्स अनोखा था। डॉ. कोटनीस बिना थके रात-दिन बीमारों की सेवा करते हुए दिवंगत हुए और मृत्यु के समय उन्होंने अपनी पत्नी से भारत जाकर अपने परिवार में शामिल होने की बात की। डॉ. कोटनीस के निधन के बाद उनकी चीनी पत्नी भारत आती है। उसके आगमन से डॉक्टर कोटनीस के घर तक की यात्रा के दृश्यों में पार्श्व में डॉक्टर कोटनीस की कही गईं बातें ध्वनिपट्ट पर गूंजती हैं कि स्टेशन से तांगा लेना, तांगा मूल बाजार से गुजरता हुआ, फलां रोज की बायीं ओर वह स्कूल है, जहां डॉक्टर साहब बचपन में पढ़े थे। आगे जाकर दायें मुड़ना है और गली के अंतिम मकान पर कोटनीस की मां विधवा बहू के स्वागत के लिए आरती लिए हुए खड़ी मिलेंगी। इस भावना प्रधान दृश्य पर दर्शक अश्रु बहाते थे।
इसी तरह प्रयोगधर्मी फिल्मकार शांताराम की एक अन्य फिल्म में दृश्यावली अदालत के बाहरी भाग की है परंतु ध्वनिपट्ट पर जज की आवाज गूंज रही है। शांताराम ने 1921 में फिल्म जगत में सेट बनाने वाले एक मिस्त्री के रूप में कार्य प्रारंभ किया था और 1927 में अपनी पहली फिल्म 'उदयकाल' निर्देशित की थी।
चीन द्वारा भारत पर किए गए आक्रमण की पृष्ठभूमि पर चेतन आनंद ने पंजाब की सरकार से पूंजी लेकर 'हकीकत' नामक फिल्म का निर्माण किया था। यह एेसी युद्ध फिल्म थी जिसमें पिटी हुई सेना रीट्रीट (वापसी) कर रही है। रीट्रीट को इसी फिल्म के एक गीत में अलग ढंग से कैफी आजमी ने प्रस्तुत किया। दृश्य है पत्नी से विदा लेकर सैनिक लाम पर जा रहा है। गीत की पंक्तियां हैं, 'मैं यह सोचकर चला था कि वह मुझको आवाज देकर वापस बुला लेगी, न उसने ही रोका, न टोका मुझे, न ही वापस बुलाया और मैं जुदा हो गया।' अब देश में जुदाई नाना रूपों में सामने आएगी। जीएसटी के कारण बिके माल का आधा ही बताया जाएगा और कालेधन की भव्य वापसी होगी।
यह संभव है कि चीन भारत से अधिक फिल्में आयात करें परंतु यह नज़रअंदाज नहीं कर सकते कि चीन भारतीय फिल्मों से कमाई का मात्र बीस प्रतिशत धन भारतीय निरमाता को देता है गोयाकि हमारी फिल्में उनके पैंसठ हजार सिनेमाघरों को सक्रिय रखेंगी और हमें मात्र बीस प्रतिशत मिलेगा। चीन ने शोषण के अपने तरीके इजाद किए हैं। राज कपूर की 'आवारा' प्रथम भारतीय फिल्म थी, जो चीन में दिखाई गई परंतु उस समय बीस प्रतिशत का नियम नहीं था।