चीफ दि बास / राजा सिंह
आपने कभी सेवानिवृत्त का ऐसा विदाई समारोह देखा है, जिसमें सेवानिवृत्त अधिकरी के सम्मान में उसके अधीनस्थ रहे किसी भी कर्मचारी ने उसकी प्रसंसा में दो शब्द न कहे हों? उनकी कर्मनिष्ठा, कर्तव्यनिष्ठा और व्यवहार की प्रशंसा न की गई हो? औपचारिकता वश भी कोई कुछ भी बोलने के लिये खड़ा न हुआ हो। लगातार अनुरोध किये जाने के बाद भी सबने अनिच्छुकता प्रदर्शित की। जो उनके समय के मौंन मुखर विरोधी रहे थे, उन्होनंे उस दिन न आना ही बंेहतर समझा। कुछ उस दिन आफिस आये भी तो कोई न कोई बहाना बना कर खिसक गये थे। रह गये थे गिने-चुने दस-बारह लोग, जिसमें केन्द्रीय कार्यालय से आये विशिष्ट अतिथि, पद भार ग्रहण कर चुके मुख्य अधिकारी। जिनकी उपस्थिति के कारण ही अत्यधिक भीरू कर्मचारी या औपचारिकता का हर-हाल में निभाने वाले कर्मचारी-अधिकारी। परन्तु उनमें कोई उत्साह नजर नहीं आ रहा था। सिर्फ़ बेमन से बोझ समझ कर सम्मिलित थे। निम्न वर्ग का कर्मचारी ज़रूर पूर्ण रूप से उपस्थिति था, परन्तु मजबूरीवश बगैर उसके विदाई समारोह का आयोजन सम्भव न हो पाना और नये चीफ साहब की नजरों में उनके प्रति ग़लत धारणा को जन्म देने वाला हो जाता। परन्तु उनमें एक अर्न्तनिहित खुशी भी थी कि आज के दिन उससे छुटकारा हो रहा था। आज का दिन उनका मुक्ति-दिवस था जिसकी प्रतीक्षा वे जाने कब से कर रहे थे।
सबसे ज़्यादा ताज्जुब इस बात का था, जो तथाकथित सेनानी साहब की प्रसंसक थे वे भी कुछ भी बोलने को तैयार नहींे हो रहे थंे। शायद वे दिल से उसके समर्थक नहीं रहे होंगे। उसके कोपभाजन से बचने के कारण ही और अतिरिक्त लाभ की सम्भावनाओं के कारण, उसके प्रसंशक रहे होंगे। अब से परिस्थितियाँ बदल रही थी और उनकी खिचाई होने की जबरदस्त आशंका थी। वे भी उससे प्रसन्न नहीं थे, गाहे-बगाहे वे इसका इन्तजार भी करते रहते थे, परन्तु थे उसके समर्थक और प्रसंसक। अब उन्हें नये को साधना था। पता नहीं नये का दृष्टिकोण कैसा हो?
सेनानी साहब कुछ अनमने से लग रहे थे। उनकी पत्नी और बच्चों को आमंत्रित नहीं किया गया था। वे इस कार्यक्रम मेें आने को उत्सुक थे। उन्हें अपनी लघुता का अहसास हो रहा था। आखिर में उनसे नहीं रहा गया और उन्होने कह दिया। नये चीफ ने तुरन्त अफसोस जाहिर करते हुये, सुखराम को उन्हें लाने के लिए भेज दिया।
कार्यक्रम प्रारम्भ होने से पहले ही सेनानी साहब के परिवार के इन्तजार में रूक गया था। स्टाफ की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। उसे जल्दी थी इस कार्यक्रम को शीघ्र निपटाने की। फिर भी इन्तजार को प्रमुखता प्रदान की जा रही थी। उनके कार्यकाल की कुछेक घटनाओं के दृश्य स्मरण हो रहे थे।
... आज आफिस में सफाई कर्मचारी नहीं आया था। चारों तरफ गंदगी फैली हुई थी। सभी लोग परेशान दिख रहे थे। आज कैसे कार्य प्रारम्भ किया जाये। सभी कुछ गंदा-सा था। टेबुल्स, चेयर्स, कम्प्यूटर्स और प्रिंटर्स। बैठना क्या खड़े होना मुश्किल था। अक्सर रमेश जब छुट्टी पर जाता था तो अपनी जगह अपने किसी बन्धु' वान्धव को औजी ड्यूटी सौंप जाता था। ऐसी ही अरेंजमेंट उसका और चीफ साहब के बीच। स्टाफ जब काम करने को आता था तो सब चाक-चौबन्ध मिलता था, कार्य करने के लिए. सब आपस में गोल-बन्द थे कैसे कार्य किया जाये।
" चलकर, सब लोग सेनानी साहब से बात क्यों नहीं करते? 'मेहरोत्रा ने तेज होकर कहा। रस्तोगी ने मिस कॉल को आँख मारी। वे दोनों चुप रहे। मगर बनर्जी ने हामी भरी' हां' , ये ठीक रहेगा। मेरी तो यह समझ मेें नहीं आ रहा है कि चीफ ने रमेश को निकाल क्यों दिया। वह कर्मचारी यूनियन का कुछ नेता भी था।
' क्या! क्यों, ऐसा क्यों? सबके स्वर एक साथ गुजे. मगर दुर्रानी दबे-दबे स्वर में बोला।
'एक-आध महीने से वह प्रतिदिन की मजदूरी अस्सी रूपये से एक सौ रूपये करने को कह रहा था और चीफ उसे मना कर रहा था, कह रहा था कि इतने ही बहुत हैं। उसने आकर मुझसे भी अनुरोध किया था, सहायता करने को। मैंने भी सिफारिश की थी। परन्तु वे कहॉ मानने वाले थे। कहने लगे कि पचास रूपये में सैकड़ों मारे-मारे फिरते हैं। काम भी ढंग से नहीं करता।'
रमेश सारे परिसर, आफिस और कमरों के साथ-साथ टेबुल-चेयर्स कम्प्यूटर्स आदि को भी चमका कर रखता था। उस पर इतवार और छुट्टी कें दिनों का पैसा मिलता नहीं था। सुबह सात बजे से आकर दस बजे तक सफाई और उसके बाद खाना खाने घर जाता था और फिर लौटकर चपरासी की ड्यूटी भी अंजाम देता था। ऐसा ही चीफ साहब का आदेश था।
तब तक तीसरे खण्ड से और स्टाफ उतर कर आ गया था। उसमें त्रिपाठी ने राज खोला 'मैं बताता हूॅ। रमेश ने ड्यूटी नहीं छोड़ी है, बल्कि उसे निकाला गया है।'
'क्या! सब उसकी तरफ उत्सुकता से देखने लगे।' उसने चीफ साहब के घर की सफाई करने से इन्कार कर दिया था। उसने चीफ से कहा था कि उसे आफिस की सफाई करने की दिहाड़ी मिलती है। इसलिए उसे निकाला गया है। 'बनर्जी के चेहरे पर मुस्कराहट तैर गई, उसे इस बात का इल्म था।' बुड्ढा, रूपये बढ़ा क्यों नहीं देता। अन्य सभी कार्यालयों में एक सौ रूपये से कम का भुगतान नहीं होता है और उनका कारपेट एरिया भी कम होता है और सफाई कर्मचारी सिर्फ़ सफाई का काम करते हैं ये नहीं कि बाद में चपरासी का भी काम करे। एक चपरासी की दैनिक मजदूरी भी बचाता है। ' सिंघल तेजी से बिफरा। वह आफिस के चार्जेस डील करता था।
'कर्मचारी का शोषण है।' बनर्जी फिर बोला।
'उसकी जेब से तो जाता नहींे है, फिर भी गरीब आदमी का खुन चूसता है।' मिस कौल वास्तविकता जानकर द्रवित हुई. मॅुह ही मुॅह में बड़बड़ाकर उसने असंतोष प्रगट किया।
'यह तो सरासर ग़लत है।' रस्तोगी के मॅुह से आखिर में निकल गया। फिर अपने ही कहे वाक्यों पर वह खुद सहम गया। साधारणतया वह चीफ के विषय में बोलता नहीं था, परन्तु सुनता था बड़े रस लेकर।
उपर की चख-चख नीचे पहॅुच गई थी और चीफ कब आकर उनके पीछे खड़ा हो गया था, किसी का भी ध्यान नहीं गया था। सब भौचक होकर उसकी ओर देखने लगे थे।
'काम क्यों नहीं हो रहा है?' पंचायत क्यों लगी है? ' उसने मुखातिब होते डंपटा। सब चुप रहे थे। मगर सबकी निगाहें, एक साथ फर्श टेबुल-चेयर्स पर बिखरी गंदगी पर घूम गई.
'घर में एक दिन सफाई नहीं होती है तो क्या खाना पीना सब छोड़ देते हो? छोटा-मोटा तो खुद भी कर सकते हो। चलिए काम शुरू करिये। बहाना चाहिए काम न करने का।' चीफ विकृत मॅुह बनाकर बोला।
'उसे अंदाजा था, काम रूकने का। उसने अस्थाई चपरासी सुरेश बाबू को पटा लिया था। पचास रूपये प्रतिदिन के हिसाब से तब तक कोई सफाई कर्मचारी नहीं आ जाता। उसने भी स्पष्ट कह दिया था' साहब, लैट्रीन-बाथरूम की सफाई नहीं करूंगा। उसे पचास रूपये अतिरिक्त आमदनी प्रतिदिन की हो रही थी। डेढ़ सौ चपरासी के काम के और पचास सफाई के और टाइम उतना ही देना है। सुरेश ने आकर उल्टी सीधी झाड़ू लगाई और टेबुल-चेयर्स पर हाथ फेरा। सफाई पूरी चौकस और ऐसे ही स्टाफ काम पर जुट गया। चीफ की अकड़ रह गई और अधीनस्थ कर्मचारी को नसीहत मिल गई उसकी बात न मानने का। चीफ शेर की मानिंद गर्वोन्नत था।
...चीफ शिकार करने निकला था। उसके चलने पर कोई पद्चाप सुनाई नहीं पड़ती थी कोई आहट नहीं होती थी। जैसे कोई तेन्दुआ हो। शिकार को आभाष नहीं हो पाता था कि वह कब से निशाने पर है। उसके शिकार ज्यादातर सेक्सन के मैनेजर हुआ करते थे। वह घात लगा कर दरवाजे के पीछे खड़ा है। शिकार की सारी बातें, हंसी, शिकायतें, चर्चायें नोट करता हुआ अचानक नमुदार हो जाता था और तल के मैंनेजर सहित सारे स्टाफ को हतप्रभ कर देता था। मुख्तया उसका उद्देश्य जासूसी करना होता था। वह नोट करता था किे उस तल के स्टाफ, उसके विषय में क्या सोचते है, क्या कहते हैं, उसके प्रति क्या विचार हैं? काम को परखना कम रहता था। रंगे हाथ पकड़ना फिर एक्सन लेना। उसे अच्छी तरह पता था कि उसका स्टाफ उसके विषय में अच्छी राय नहीं रखता है। इस ढंग से वह-वह अपने मुखर विरोधियों को रंगे हांथ पकड़कर उन्हें अपमानित, प्रताणित और लांक्षित करता रहता था। उसको हरदम यह आशंका रहती थी कि स्टाफ यथेष्ट काम नहीं करता है। वह हर कार्य-तल का निरीक्षण, अवलोकन और गतिशीलता की सतत्, सघन और गहन परीक्षा लेता रहता था और निरन्तर दबाव की राजनीति इस्तेमाल करता रहता था। बिरला ही उसके शब्द-वाणों से बच पाता था और कोई भी दिन रिक्त नहीं जाने देता था।
तृतीय तल पर पेंशन के खाते खोले जाते थे। उसने बाहर से ही तड़ लिया था कि बातचीत हो रही है। हालांकि सब काम भी करते जा रहे थे। परन्तु वह काम को हरदम उपेक्षित करता था बात क्यों हो रही थी? वह एकदम से घुसा। जिन्होने देख लिया, वह सम्मान से खड़े हो गये थें मैनेजर रह गया। उसे आभाष नहीं हो पाया था, उसके प्रवेश करने का।
'मिस्टर भाऱद्वाज आपको तमीज नहीं है। वह गुर्राया। वह हड़बड़ा कर उठा और अभिवादन किया। परन्तु तब तक उसका बड़बडाना, डपटना और धमकाना शुरू हो चुका था।' आपके यहॉ कामचोरी होती है। कोई काम नहीं होता हैं पेंडिंग बढती जाती है। आपका क्या कंट्रोल है। यहॉं, सिर्फ़ हंसी-मसखरी होती रहती है।
'नहीं, साहब काम तो सब नियम-कायदे से और अच्छे ढंग से हो रहे हैं। एक-आध दिन की पेंडिंग के अलावा कुछ नहीं है।' उसने स्पष्टीकरण दिया।
'एक-आध दिन की भी पेंडिंग क्यों? सब नष्ट करके रख दिया, जब से तुम्हें यहॉ का इंचार्ज बनाया है।' पहले सरीन साहब थे उनके समय में सब अपटूडेट रहता थां। प्रतिदिन सारा काम निपटाकर ही जाते थे। आप हैं काम खतम हो या ना हो। रात के आठ बजे नहीं कि आपका झोला तैयार है, घर जाने के लिए.
'साहब, उनके समय ज़्यादा पेंडिंग रहती थी॥ अब तो स्थिति काफी सुधरी है और सब अपडेट है।' रवि किशन अधिकारी ने स्थिति सुधारने की कोशिश की।
'आप चुप रहें। मैं मैनेजर से बात कर रहा हॅू, तुम्हें बोलने की क्या ज़रूरत है? ज़रा भी मैनर्स नहीं है। ...और आप त्रिपाठी क्या कर रहे हैं? दिन भर नेतागिरी ही करते रहोगे। कुछ काम भी करोगे? जब देखों सबसे आपकी मिला भेंटी ही चला करती है, आपकी।' ...और फिर एक-एक करके सारे-सारे स्टाफ...आठ'-दस आदमियों के सेंक्सन की धज्जियॉं उड़ाते हुये, विजय पताका फहराई. उनके गुस्से का शिकार सभी होते हैं और सबको घायल करता हुआ वह द्वितीय तल की ओर खिसक गया था।
द्वितीय तल में पेंशन रिवीजन का कार्य होता था। उस तल को पहले से ही अंदाजा हो चुका था। सांप सरसराता हुआ जब उॅपर गुजरा था, तभी उन्हें सूॅघता हुआ गया था। वहाँ खामोंशी का परचम लहरा रहा था। फाइलों के पन्ने और की बोर्ड में चलती हुई अंगुलियों के अलावा कोई ध्वनि नहीं आ रही थी। फिर भी उसने बाहर से आश्वस्त हो जाना चाहा कि काम चल रहा है कि नहीं।
'क्या हो रहा है,' उसने एक कुर्सी खींची और अपने को बैठाया और फंुफकारा। सब जानबूझ के अनभिग्न बने बैठे थे, एक साथ हरकत में आये।
'गुड, आफटर नून सर।' ' सब एक साथ मिमियायें। परन्तु उसके प्रश्न का उत्तर नदारत था।
'यहॉ, क्या चल रहा है? उसने अपने शब्दों को कठोरता से सिक्त किया। छ-सात के स्टाफ ने आश्चर्य का अनुभव किया, परन्तु बोला सिर्फ़ मैंनेजर अमजद अली,' रिवीजन सेक्सन में रिवीजन का ही काम होता है और वही सब कर रहे है, और क्या हो सकता है? '
'काम होता तो इतना पेंडिग होता? सबसे ज़्यादा खराब सेक्सन यही है। सबसे ज़्यादा शिकायतें इसी सेक्सन की हैं। सारे के सारे एैश करते रहते हो। पन्द्रह-बीस दिनों पीछे रहते हो।' मैं कुछ कहता नहीं ंतो परवाह नहीं है। काम इतना लेट लतीफ क्यों चलता है? जब लिख कर पूंछुगॉं तो जबाब देते नहीं बनेगा। '
'साहब, पहले से काफी सुधार है और काम भी तीव्र गति से हो रहा हैं अब रिवीजन का काम ज़रा तकनीकि ज़्यादा है, समय लगता है, सही फिगर निकालने में।'
'मुझे सिखाते हो, जैसे मुझे कुछ पता ही नहीे है? मि0 भारद्याज कितना अच्छा ये सेक्सन चलाते थे। दो-तीन दिन में सब निपटा देते थे। तुम्हारा सेक्सन धीमी गति के समाचार की तरह काम करता हैं मि0 अली आपको अपने सेक्सन में कोई कंट्रोल नहीं है। कौंन काम कर रहा है, कौंन खाली बैठा है, कुछ पता है, आपको? कुछ नहीं सब मटियामेट करके रख दिया है।'
'सर, भारद्वाज जी के जमाने में ज़्यादा पेडिंग था। आप रिकार्ड देख लीजियेगा।' बाबू योगेश ने संशोधन करना चाहा।
'आप चुप रहे। आप ही सबसे ज़्यादा कामचोर है। हमें सब पता है, कौंन काम करता है और कौंन नहीं। अभी आपको चिट्ठी पकड़ाता हॅू' वह गरजा। योगेश सकपकाया और चुप हो गया। चीफ यह कहकर उठा और निकल पड़ा अगले अभियान की तरफ, योगेश को संशय की स्थिति में छोड़कर।
अब तक प्रथम तल वाले समझ चुके थे कि बारी उनकी आने वाली है। इस तल पर सरकारी समाशोधन एवं सिस्टम संचालन जो आपस में एक दूसरे के पूरक थे, का कार्य होता था। मैंनेजर रजत सिंह चुस्त-दुरूस्त, तेज। यहॉ लम्बित प्रकरण नहीं ंके बराबर थे। परन्तु यहॉ पर गुप्त चार्चायें, आलोचना-प्रत्यालोचना और चीफ सेनानी की छीछालेदारी करने का केन्द्र। हर समय कार्य से व्यस्त केन्द्र परन्तु विश्लेषण का साझा मंच। इस सेक्सन से करीब-करीब सारे सेक्सन वाले जानकारियाँ एवं रिपोर्ट हासिल करते रहते थे, इसलिए सभी सेक्सन वालों का यहॉ आना लगा रहता था।
इस तल तक आते-आते चीफ भेड़िया का रूप अख्तियार कर चुका था। वह किसी को जल्दी दबोचने के फिराक में था, परन्तु उसे कोई मुद्दा मिल नहीं रहा था। सारा तल पहले ही सावधान की मुद्रा में आ चुका था। यहॉ बेमतलब शिकार करना खतरे से खाली नहीं था। इस केन्द्र की कार्यक्षमता को प्रभावित करने वाला, शाखाओं और प्रधान केन्द से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में निरन्तर सम्पर्क में ंरहने वाला सेक्सन। इस कार्यालय के कार्य की रीढ़।
भेड़िया दरवाजे पर खड़ा-खड़ा शिकार की तलाश कर रहा था। किस मेमने को दबोचा जा सकता है? वह असमंजस में था। अचानक उसके मुंह से चिरपरिचित जुमला निकला, 'क्या हो रहा है?' ...सारा सेक्सन प्रतिक्रियाहीन था। रजत कसमसाया परन्तु शान्त ही रहा। चीफ को अपनी उपेक्षा बरदास्त नहीं हुई. वह सेक्सन में दाखिल हुआ। अपने दॉत और नाखून और तेज किये।
'मैं, आप से ही पूछ रहा हूॅ मिस्टर सिंह।' कुछेक स्टाफ हड़बड़ाकर उठे और स्वागत मुद्रा में उसे आमंत्रित किया। परन्तु वह और भीतर नहीं आया और न ही बैठने का आफर स्वीकार किया। वह वैसे ही रजत को क्रोधित हो घूरता रहा।
' आपको पता नहीं कि यहॉ क्या काम होता है? रजत नंे बगैर गर्दन को जुम्बिस दिये जवाब दिया।
' तुम नहीं सुधरोगें तुम्हारा ईलाज करना पड़ेगा। वह पैर पकटता हुआ दॉत पीसता हुआ धड़धडाता नीचे की तरफ तेजी से उतरा।
थोड़ी देर बाद इन्टरकाम पर चीफ का फोन आया।
'नीचे आइये।' रजत समझ गया कि कुछ होने वाला है।
चीफ के चेम्बर में ही डिप्टी चीफ सरदार अवतार सिंह बैठे थे और आफिस आर्डर खुला पड़ा था। रजत को बैठने के लिये भी नहीं कहा गयाँ चीफ एकदम गम्भीर था। उसने कोई निर्णय किया था, परन्तु उसे असली जामा पहनने में कुछ हिचक-सा रहा था। इसलिये आफिस आर्डर में कुछ लिखा-सा दिख नहीं रहा था। आफिस आर्डर डिप्टी चीफ सरदार के पास था और उसकी कलम खुली हुई थी। फिर वही बोला, 'साहब ने निर्णय किया है कि आपको सरकारी समाशोधन विभाग से हटाकर गोदाम का इंचार्ज बना दिया जाये।' वह समझ गया था कि उसे धमकाया जा रहा है। ं इस केन्द्र में यह माना जाता था कि गोदाम की पोस्टिग होना काला पानी में जाना है। असिटैन्ट मैनेजर के अन्डर में एक क्लर्क, एक चपरासी और तीन या चार वर्कर थे। जो मुख्य आफिस परिसर संे काफी दूर स्थिति था। जहॉ धूल गंदगी एकाकीपन और नीरस वातावरण का साम्राज्य था। '
'और, आपकी जगह सरीन साहब को प्रथम तल का प्रबन्धक बना देते है।' यह बात चीफ ने जोड़ी।
'ठीक है जैसा आपका आदेश।' उसने लापरवाही प्रदर्शित की। ...मगर एक शर्त है। मैं वापस पुनः प्रथम तल का इन्चार्ज नहीं बनूॅंगा उसने अपनी शर्त थोपी.
'क्यों, चीफ जब चाहें, जहॉं चाहे किसी की भी ड्यूटी कहीं भी लगा सकते है ये चीफ का अधिकार है इसमें आप कैसे चैलेन्ज कर सकते है। मना करने का मतलब अनुशासन-हीनता मानी जायेगी।' सरदार साहब ने उक्ति दी।
'मुझसे पहले सरीन साहब ही समाशोधन विभाग के इंचार्ज थे। कितनी फाइलें कितने मामले और ढेर सारा सरकारी समाशोधन पेन्डिग था तभी आपने मुझे वहॉं भेजा था।' कितनी मुश्किल और मेहनत से उसे निपटाकर एकदम क्लीन और बैलेन्स किया। फिर सारा मेस हो जायेगा। उसने अपना असंतोष प्रगट किया।
' तुम झूठ बोलते हो। कोई पेन्डिग नहीं था। वह बहुत अच्छा चला रहे थे। तुमने सब गड़बड़ की है चीफ लगभग चीखता हुआ बोला।
'जब मैं उस सीट को गड़बड़ कर देता हॅू। पेन्डिग कर देता हॅू। वहॉं के लिये नकारा हॅू तो दोबारा वापस उसी सीट पर क्यों भेजोगें? चीफ ढीला पड़ गया वह लोमड़ी में तबदील हो रहा था। उसने उसे सीट आफर की और अटैन्डन्ट कांे चाय-पानी लाने का हुक्म दिया।'
'देखों, सिंह गोदाम में बड़ी गड़बड़ चल रही है। गोदाम का काम सब अस्त व्यथ्त हो गया है।' आप जाकर उसे दुरस्त कर दों। अपको वापस प्रथम तल का इंचार्ज बनाकर बुला लेगें। उसने सलाह और अनुरोध का मिश्रण कर के उसकी सहमति लेनी चाही।
'मगर वह स्थान असिंटेट मैनेजर का है। आप मैनेजर की वहॉं नियुक्ति करेगें? यह उचित रहेगा? खैर आप सोच लीजिएगा। हेड आफिस सेन्ट्रल आफिस से कोई बड़ा अधिकारी आ गया तो उससे क्या कहेगे ं? मुझे कोई एतराज नहीं है।' उसने उसकी प्रशासनिक क्षमता पर चोट की। वह कुछ पल सोचता रहा फिर उसने अपने आप को वापस किया ओर जो बात उसके दिल-दिमाग को सालती रहती थी वह जुबान पर आ गयी।
'आप के काम से कोई शिकायत नहीं है। आपका इक्सीलेंट वर्क्स है। परन्तु आप ने प्रथम तल को कान्फ्रेंस तल बना रखा है, वह ग़लत है।' हर जगह का स्टाफ, प्रथम तल में आता है और दुनिया भर की पंचायत होती रहती है। अपने काम का खुद नुकसान करता है और न ही प्रथम तल वाले को करने देता है। इससे सबका कार्य प्रभावित होता है और कार्यशील वातावरण दूषित होता है। चीफ ढीला पड़ चुका था।
'ऐसा कुछ नहीं है, साहब।' आप बेवजह शंका करते है। अगर ऐसा होता तो हमारे तल का सारा काम अपटूडेट क्यों रहता। '
'ऐसा ही है, क्योंकि चर्चा, परिचर्चा का केन्द्र बिन्दु मैं और मेरी बुराइयॉं ही है। वहीं होती रहती है और सब लोग मजे लेकर हसंते है।' हर समय वहॉं मेरा मजाक उड़ाया जाता है। '
'एकदम ग़लत है। ये सिंर्फ आपका भ्रम है, सर। ऐसा कुछ भी नहीं है सर।' उसने जोर देकर उसकी धारणा निर्मूल सिंद्ध करने की कोशिश की।
'अच्छा! कल क्या हो रहा था, दीपक चौरसिया नहीं कह रहा था,' यह बुड्ढा बहुत बदमाश है। साला कमीशन खाता है, हर परचेज पर और दिखाता हेै अपने को बहुत ईमानदार। 'एक मैनेजर और इंचार्ज के नाते आपको उसे रोकना और टोकना चाहिए था। परन्तु आप सब लोग हंस रहे थे और उसकी बात का यकीन कर रहे थे।'
'नहीं, साहब ऐसी कोई बात नहीं हुई है। मैंने तो नहीं सुना। सुना होता तो ज़रूर रोकता।' उसने अपनी सफाई दी।
'मैंनें अपने कानों से सुना हैै। मैं दरवाजे के पीछे खड़ा सब सुन रहा था और आप सब प्रसन्न हो रहे थे।'
'तो आपकों आकर तुरन्त एक्सन लेना चाहिये।' अगर आपके ही विरूद्ध कुछ कहा जा रहा था और आप ही सुन रहे थे, तो आप से ज्यादा, कौन सक्षम है, उसके विरूद्ध कार्यवाही करने को। '
थोड़ी देर शान्ति छायी रही। चाय आ चुकी थी। तीनों लोग चाय पी रहे थे। उसी बीच उसने कहा, 'उसे तो मैं देख लॅूगा, परन्तु आप सिर्फ़ काम पर ध्यान दीजियेगा।' हमारी निंदा और परनिंदा से बचियेगा और ऐसा वातावरण भी मत सृजित करियेगा या प्रेरित करियेगा। ऐसी शिकायत अब सुनने में नहीं आनी चाहिये। वरना ठीक नहीं होगा। ' उसने फिर चेतावनी ठोक दी थी।
अगले दिन दीपक चौरसिया को वहॉं से रूखसत कर दिया गया, उसे दूसरे दूरदराज शहर में ट्रांसफर कर दिया गया था। वह हक्का बक्का रह गया था। चीफ ने अपने स्तर से बात करके हेड-आफिस से स्थानान्तरण आदेश फैक्स से मंगवा लिए थे। दीपक रो पड़ा था। उसे अहसास भी नहीं हो पाया था कि उसे किस बात की सजा मिली है? उस बात का कहीं कोई जिक्र नहीं था। उसका स्थानान्तरण प्रशासनिक आधार पर किया गया था।
भूतल पर जहॉं चीफ खुद बैठता था, उसका सचिवालय था। इस्टैबलिसमेंट, स्टाफ मैटर, शिकायतें और पत्राचार आदि डील होता था। करीब-करीब आठ नौ का स्टाफ और उनका इचार्ज डिप्टी चीफ सरदार जी. सारा का सारा स्टाफ, उसकी दृष्टि के दायरे में थे। उन पर उनका सतत निरीक्षण होता रहता था और पॉंच-दस मिनट के अन्दर उनकी पेशी होती रहती थी। इस तल पर हरदम मरघट की खामोशी फैली रहती थी, आती थी आवाज तो चीफ के चैम्बर से ही। चीफ का रवैया यहॉं पर बाज की तरह था और सारा स्टाफ कपोत था, उसमें सरदार जी भी शामिल थें। ये ऐसे कपोत थे, जो उसकी हर बात के प्रसंसक थे, स्वभाव वश या मजबूरी वश। यहॉं हरेक के हिस्से काम कम था, परन्तु शो ज़्यादा होता था कि जैसे सब काम के बोझ से दबे जा रहे हैं। चीफ उनमें से एक-दो को काफी काबिल मानता था। उनमें एक था डिप्टी चीफ सरदार जी जो अंग्रेज़ी के माहिर थे यानी कि कामचोर नं0 2. परन्तु कामचोर नं0 1 एक यानी कि चीफ खुद उसकी सलाह लेता तो ज़रूर था परन्तु ज्यादातर सलाह वह दर किनार कर दिया करता था। वह कामचोर नं0 3 पर ज़्यादा निर्भर करता था। वह था इस संस्थान का सबसे पुराना अधिकारी बनर्जी जो यूनियन का नेता भी था और कमोवेश हर सीट पर कार्य कर चुका था। इन सबका नामकरण संस्थान की महिला स्टाफ ने कर रखा था और सभी स्टाफ दैनिक बोलचाल में धड़ल्ले से उसका उपयोग करते थे। भूतल में चीफ सहित दस का स्टाफ था, उसमें पॉंच महिलाऐं थी। एक शादी शुदा चार बैचलर। यहॉं की महिलाऐं दहशत में रहती थी कि कब बुड्ढा बिगड़ जाये और यहॉं से हटा दे। चीफ ने हर तल पर दो-तीन लड़कियॉं पोस्ट कर रखी थी, जो काम कम अपने घर परिवार और मित्रो के विषय में ज़्यादा चितिंत रहती थी। कुछेक स्टाफ के काम एवं व्यवहार की जासूसी का काम भी अंजाम देती थी। जासूसी काम की, चीफ को सूचना कैंटीन ब्वाय और सूखराम वखूबी दिया करते थे। परन्तु फिर भी सभी का झुकाव स्टाफ के प्रति ज़्यादा चीफ के प्रति कम था। चीफ का मुख्य आकर्षण यही महिला वर्ग था। वह लेडीज से बड़े सलीके और प्यार से पेश आता था। बड़े धीरे से बोलता था। मुश्किल से ही उन्हें डॉटता था और तुरन्त उनकी प्रशंसा करने लगता था। उनके उॅपर नकेल वह सम्बन्धित इंचार्ज के माध्यम से रखने की कोशिश करता था। उन्हें हर तरह की छूट वह देता था और तोहमत इंचार्ज पर लगा देता था। अक्सर वह इंचार्ज को बुलाकर कहता था 'आप लोगों ने लड़कियों को काफी छूट दे रखी है। काम करती नहीं है, हर समय चख-चख या मोबाइल पर बातें। वह देर से आती है और जल्दी चली जाती हैं। आप लोग कोई कंट्रोल लगाते नहीं है। मैं आपके विरूद्ध एक्शन लूूंगा।'
'यार, सरीन मेरा इन्क्रीमेन्ट अभी तक नहीं लगा?' रजत ने शिकायत की।
'चीफ साहब से मिलो।'
'मगर चीफ ने स्वीकृत कर दिया है।'
'स्वीकृत कर दिया है, मगर लगाने को मना किया है।'
'मुॅंह जबानी मना किया है।'
'मैं अभी जाकर कहता हॅू कि वे आप से कहें।' वह चीफ के चेम्बर में पहुॅंचता हैै। वह उसकी तरफ कोई तवोज्जोह नहीं देता है। चीफ से उसे देख लिया था सरीन से बात करते। वह काफी देर तक खड़ा रहता है, परन्तु चीफ, डिप्टी चीफ और बनर्जी बातों में मशगूल थे।
'सर, मेरा इन्क्रीमेन्ट क्यों नहीं लगा।' उसकी शिकायत में तेजी और जोर था। बनर्जी सरदार जी और चीफ ने एक साथ उसकी तरफ ध्यान दिया।
'सैक्सन तो कर दिया था अब तक लग गया होगा।'
ं 'अभी तक नहीं लगा है, तीन महीने हो गये है।'
'सरीन से बात करो।'
'उन्ही से बात कर के आया हॅू। उन्होने ही आपके पास भेजा है।'
'अच्छा जाइये अपना काम करिये जाकर।' मैं अभी सरीन को डॉटता हॅू कि आपका इन्क्रीमेन्ट क्यों नहीं लगाया। '
'मैं उसे बुलाकर लाता हॅू।'
'नहीं कोई ज़रूरत नहीं है। मैं कह दूॅंगा। इन्क्रीमेन्ट लग जायेगा।' मगर रजत सिंह, सरीन को उसके सामने पेश कर देता है।
'आपने बुलाया, सर।'
'हॉं भाई वार्षिक वृद्धि क्यों नहीं लगाई अब तक।'
'सर आपने मना किया था।'
'मैंने मना किया था।' झूठ बोलते हो। मैं लिखित में सैक्सन कर चुका हॅू। अभी तुम्हें मैमो देता हॅू। इतने दिनों से काम को रोके रखने का। आज अभी इनका इन्क्रीमेंट लग जाना चाहिए. समझे, वरना। ...जाइये सिंह साहब आपका काम आज हो जायेगा। अपने सेक्सन का काम देखिये जाकर। ' सिंह चला जाता हैं और चीफ सरीन पर पिल पड़ता है।
'यह कहने की क्या ज़रूरत थी कि मैंने मना किया है। आफिस की सेक्रेसी आउट करते हों। आप इस सीट के काबिल नहीं हो। अभी तुमको सन्ट करता हॅू। सरदार जी, आफिस आर्डर बनाइये, सरीन को गोदाम का चार्ज दे दिया जाये।' वह डर कर कांपने लगा था। उसे धूल और ठंडक से एलर्जी थीं। वह दमे का मरीज थां। वह माफी मांगने लगा था। उसने हांथ जोड़कर पैर पकड़कर माफी मांगी। बनर्जी और सरदार उसे समझााने लगे, 'आपको चीफ का नाम नहीं लेना चाहिए था। अपनी कोई मजबूरी बतानी चाहिए. रजत सिंह से साहब नाराज रहते हैं। इसी तरह उसे नसीहत मिलेगी। परेशान होगा तब उसे समझ में आयेगा।'
'और सूनो सरीन! उसका इन्क्रीमेंट अभी लगा मत देना।' चीफ ने फिर आदेश पारित कर दिया।
लंच रूम का वातावरण काफी गहमा-गहमी एवं शोर गुल भरा रहता था। हालांकि उसमें भी चीफ की बुराइयों एवं डर का भूत घूमा करता था। चीफ और डिप्टी चीफ तथा कुछेक एकदम पास का स्टाफ, घर जाकर लंच करते थे। ज्यादातर लड़कियॉं अपना अलग ग्रुप बनाकर अलग लंच करती थी और कुछेक स्टाफ भी अपनी सीट पर ही लंच कर लिया करते थे। लंच रूम मुख्य बिल्डिंग से कुछ अलग था, गोदाम के पास, इसलिए लोग बेरोकटोक रहते थे और खाते रहते थे बेखौफ। परन्तु कभी-कभी चीफ घर नहीं जाता था और अपना लंच अपने चैम्बर में कर लिया करता था, साथ में बनर्जी एवं सरदार को भी रोक लेताा था, साथ में लंच करने के लिए. उस समय लंच रूम में भी खतरा मडराने लगता था, क्योंकि वह वहॉं भी कभी प्रगट हो जाता था कि सब व्यवस्था ठीक है, के बहाने।
अभी कुछ दिनों पूर्व कैन्टीन ब्वाय पंकज छोडकर चला गया था। बड़े ही हंसमुख स्वभाव का लड़का था। सबकी सेवा में तत्पर। चाय और पानी की कमी, कभी महसूस नहीं होने दी। अच्छा खासा पढ़ा लिखा था इण्टर पास। यहॉ पर सौ रू0 प्रतिदिन पर चल रहा था उसे चीफ साहब अपने घर कपड़े और बरतन साफ करने को, किसी न किसी बहाने भेजने लगे। थोड़े दिनों तो वह बरदाश्त करता रहा, परन्तु जब यह प्रतिदिन का मामला हो गया तो उसने विद्रोह कर दिया। उसने घर के काम के, अलग से पैसों की मॉंग कर दी। नतीजा उसे अपनी अस्थाई नौकरी से हाथ धोना पड़ा। कारण वह ढ़ग से काम नहीं करता था और कहा नहीं मानता था। लंच रूम का वह आजकल हाट टापिक था।
'अच्छा हुआ जो पंकज यहॉं से चला गया। अभी तो बाहर जाकर वह कुछ बन जायेगा, वरना यहॉं रह कर उसका क्या बनना था, त्रिपाठी बोला।'
'भाई, यहॉं रहना है तो बेगार तो करनी पड़ेगी। आखिर टैम्परेरी हो वरना बाहर का रास्ता नापों। सिंघल ने व्यंगोक्ति की।'
अरे! भाइयों सुना आपने, एक दो दिन पहले मिस्टर प्रतिरोध रजत साहब भी बेगारी में धरे गये थे। ' मिस कौल ने अनहद धोषणा की।
'कैसे, कैसे?' ...सब उसके पास जुड़ने लगे थे। मिस कौल ने सबको रजत की जरफ मुखातिब कर दिया था। रजत ने बताया, चीफ ने उससे पूॅंछा 'आप बाइक से क्यों आते हो? कार से क्यों नहीं आते हो?'
'टू व्हीलर में सुविधा रहती है भीड़ भाड़ वाले इलाके में और जाम से निकालने में।' उसने वास्तविकता से अवगत् कराया।
'अच्छा लगता है कि मैनेजर रैंक का आदमी कार से न आये? कार से आया करो।' चीफ ने शान पर चढ़ाया।
'नहीं, परहेज नहीं है। कभी ज़रूरत होती है तो कार से भी आता हॅू। बैसे भी आ जाता हॅू फार दि चेंज।'
'ठीक है, कल आप कार से आयेगें। अरे! भाई संगठन के हेड के नाते हमें बेरीफाय भी करना होता है कि पेट्रोल का बिल जो आप हर माह, कार का ले रहे है, उसका उपयोग हो रहा है कि नहीं।' सियार ने अपना दॉंव चला था।
'अच्छा, कल कार से ही आ जाता हॅॅू।' यह कह कर रजत उठा।
'बैठो, बैठो, ...कुछ देर भूमिका के लिए समय लिया गया।' कल कार से तो आ ही रहे हो, ऐसा करो मेरा बेटा मुम्बई से आ रहा है, उसे स्टेशन से पिकअप कर लेना। मेरे बेटे का मोबाइल नं0 ले लो और मैं तुम्हारा नंम्बर उसे दे दूॅंगा, उसे लोकेट करने में सुविधा रहेगी। आफिस आने के समय ही ट्रेन आती है। देर-सबेर हो सकती है। उसे रिसीव कर के ही आना। यहॉं की चिन्ता मत करना।
'ठीक है साहब ऐसा ही होगा।' रजत ने स्वीकृत दी।
'एक काम और उधर से आ ही रहे हो, सक्सेना साहब उधर ही रहते है, आपकी तरफ कहीं, उन्हें भी लेते आना। उनके पास मेरे गमले खरीद कर रखे हुये है, उन्हें भी लेते आना।' सक्सेना साहब से मैं कह दूॅंगा।
और फिर ऐसा ही करना पड़ा। सक्सेना के घर गया। गमलों को कार में लादा, उसकांे साथ लिया। सक्सेना ने बताया 'ये पॉंच गमले वह उसे गिफ्ट में दे रहा है। एक बार शेखी बघारते हुये कह दिया कि उसके पास हर वैराइटी के फूल है। गमले इतने ज़्यादा हो गये है कि रखने की जगह नहीं है। तभी से बुड्डा पीछे पड़ा है मेरे गमले-मेरे गमले, कब दे रहे हो। अब गले पड़ा डोल तो बजाना ही पडेगा।' ट्रेन काफी लेट थी मैं और सक्सेना को काफी बोरियत झेलनी पड़ी, बड़ी मुश्किल से साहबजादे मिले उन्हें रिसीव कर के, उन्हें और चीफ के गमलों को उनके घर छोड़ा तक आफिस आया और भाई मिसेस सेनानी ने एक गिलास पानी को भी नहीं पूंछा।
' अरे! बड़ा नालायक हैं, बल्कि कहो घूर्त है। हरदम नये को फॅंसाता है। आपके साथ तो कुछ नहीं। मेरी तो नई कार आयी थी। , कुछेक दिनों उसे जोत डाला। कभी इस मंदिर चलो, कभी सत्संग आश्रम जाना है। यहॉं रोक दो, यहॉं कुछ काम कर लेते हैं। अपना और मिसेस सेनानी ने मुझे ड्राइवर बना दिया और मेरी कार को मुफ्त की टैक्सी. एक बार तो एक गली में घुसवां दी और मेरी गाड़ी ठुक गई. बड़ी मुश्किल से उस गली से निकल पायी जब कार मैकेनिक को बुलवाया। गली में चीफ का कोई रिस्तेदार रहता था उससे मिलना था। तक से तौबा कर ली है जब तक ये बंदा रहेगा, कार आफिस नहीं लाना है। चटर्जी ने अपनी दास्तां बयाँ की।
भारद्वाज ने कहा, मुझे तो गाड़ी चलानी नहीं आती, तो मैंने ड्राइवर रखा था। आफिस कार से आता था। ड्राइवर रूका रहता था वापस जाने तक। चीफ ने भॅंप लिया और उसने मेरी गाड़ी और ड्राइवर को अपने कब्जे में कर लिया। पहली बार फर्जी अनुमति ली, उसके बाद जैसे गाड़ी और ड्राइवर उसी के है और पेट्रोल मेरा था। चीफ और उसकी पत्नी मार्केटिंग कम विण्डो मार्केटिंग में मशगूल हो गये। आखिर में गाड़ी और ड्राइवर घर रख दिये चीफ से कह दिया ड्राइवर भाग गया है और आफिस आने के लिये बस आटो और टैंम्पों की शरण में आ गया हॅू।
कोई कार मालिक बचा है उसके कार शोषण से, वे अपना हाथ उठायें। वे-ईनाम के हकदार हैं। ' त्रिपाठी ने घोंषणा की और सब खिलखिलाकर हंस उठें।
' अच्छा ये बताइये कितने टू-व्हीलर वाले उसके कब्जे में है और कितने आजाद हो चुके है? लड़कियो को छोड़कर सभी ने अपने हाथ उठा दिये।
'भइया सब उसके डर से कार घर में रखकर, टू-व्हीलर या आटों-टैम्पों-बस की शरण में आ गये हैं।' भगवान, चीफ का डर सबको बनाये रखे,। इस तरह से सबकी जबरदस्ती की बचत करवा रहा है। जो भविष्य में उन्हीं के काम आयेगा। वक्त पर पैसा ही काम आता है। योगेश ने साधु-संत का प्रवचन दिया।
'हर दूसरे-तीसरे मेरा स्कूटर उसके आदेश का पालन करता है। आफिस के समय अकेले ले जाता है और बाद में ड्राइवर के साथ। कई जगह की सैर हो जाती है, जो इलाके जानता नहीं था उनकी भलीं-भाति पहचान हो गई है। क्या करे इतना बड़ा अधिकारी गिड़गिड़ाहट कम आदेश से कहता है, तो कोई कैसे मना कर सकता है।' दानिश ने मायूसी प्रगट की।
'साले, को गिरा दो। प्रताप चिल्लाया।' आइन्दा से नहीं कहेगा।
'क्या ये सम्भव है? दानिश बोला।'
'क्यों, नहीं पहले मेरी बाइक पर आफिस से घर जाते समय उॅंचक कर बैठ जाता था।' यहॉं चलना है वहॉं चलना। इधर छोड़ देना, उधर छोड़ देना। नाक में दम कर रखा था। इतना भारी-भरकम शरीर, लगता था, बाइक अपने आगे ंके पैर उठा देगा। एक बार संयोग से हम दोनों गिर पड़े। उसे चोट आ गई कहता फिरता था, प्रताप ने जान-बूझ कर गिरा दिया कि उसे न ले जाना पड़े। कहता था एक्शन लुंगा। किस बात का एक्शन? परन्तु उसके बाद अब मेरे किसी भी वाहन में नहीं बैठता है।
" परन्तु उसका मुफ्तखोरी का अभियान बदस्तूर जारी है। 'कल्पना ने फिकरा कसा।' कोई न कोई लिहाज में फॅंस ही जाता है। इतने सीनियर चीफ को कौन मना करें। '
'अरे! भाई कुछ चमचे ऐसे भी है जो उसे खुद आफर करते है।' ...'कुछ तो हर तरह की हैल्प कर के अपने को धन्य समझते हैं।' ...
'भइया, दुनिया ऐसे वीरों से खाली नहीं हैं। ...'
'मगर, उसके पास भी तो कार स्कूटर सब है। उसका उपयोग क्यों नहीं करता सिंघल ने खीजते हुये कहा।'
'ये सारी चीजें पेट्रोल-डीजल से चलती है न?' उसके पैसा खर्च होगा कि नहीं। जब मुफ्त में साधन और ड्राइवर की सेवा उपलब्ध है, तो अपने प्रभाव का उपयोग क्यों न कोई करें। दुर्रानी, जो अब तक बातों का आनन्द ले रहा था अनायास ही बोल उठा।
'अरे! छोड़ों, ये जब यह नया ज्वाइन किया था, मैंने अपना गैस सिलैन्डर दे दिया था जब तक इसे यहॉं से इशू न हो जाये पटठा पैसे देने तो दूर, कहता है कि तुम्हारा सिलेन्डर खाली था।' अहसान भी गया पानी में। मेहरोत्रा बड़बडाया।
'मगर इज्जत नहीं है।' सुख राम ने अफसोस जनक मुद्रा में अभिवक्ति की।
'इज्जत को मारो गोली, पैसा तो बचता है। पैसा काम आता है कि इज्जत?' कल्पना बोली। सब हो-हो कर के हंस पड़े जैसे चुटकुले सुनाये जा रहे हों।
'आज सेनानी साहब डाक सेक्शन के दौरे पर है। डाक विभाग बगल वाली बिल्डिंग में है जिसका रास्ता भीतर से भी है और बाहर से भी।' एक अधिकारी, एक लड़का और तीन लड़कियाँ, कुल मिला कर पॉंच व्यक्ति थे। डाक विभाग का दौरा तब तक नहीं होता था जब तक वहॉं का स्टाफ चला नहीं जाता था। अलबत्ता अधिकारी ज़रूर हत्थे चढ़ जाता था। वास्तव में डॉंट खाने के लिये वहीं अधिकृत था। वह टेबुल, हर दराज अलमारी की गहन तलाशी लेता है। सभी चीजें उलट पलट कर देखीं जाती है और अधिकारी कमलेश आहूजा से पूॅंछ-ताछ जारी है। चिल्लाना, हड़काना, डटपटना चलता रहता है। सब गड़बड है कहा जाता है और अन्त में वह कमी ढूढ लेता है। समय से डाक सम्बन्घित विभाग में नहीं पहुॅंची और देर से डिस्पैच, धमकी, गुस्सा, क्रोध और हंगामा जारी है।
'आने दो कल, सबको देखता हॅू। कामचोरी की हद है। सब को यहॉं से हटाता हॅू। जब इन्चार्ज ही काम नहीं करता तो स्टाफ क्या करेगा। कमलेश भी सबके साथ चला जाता है, कहता है कि काम समाप्त हो गया। बड़े-बड़े अधिकारी बैठे है अपना गायब। हद है बेशर्मी की, कोई जवाब देना भी नहीं है।' वह चिल्लाकर हॉफ जाता है और अपनी सीट पर आकर बैठ जाता है।
अगले दिन सब कुछ सामान्य-सा ही था। कमलेश सर, चीफ के पास बैठे है और कोई बवाल नहीं हो रहा था। उधर डिस्पैच सेक्शन में लड़कियों की चहचहाट गूंज रही है। उनसे भी दो शब्द नहीं कहे गये ना ही कमलेश साहब ने कुछ ऐशी नाराजगी की बात बताईं। ऐसा कुछ भी घटित नहीं हुआ जिसकी आशंका लोग प्रगट कर रहे थे।
परन्तु आज दिन था, नम्बर दो का, यानी डिप्टी चीफ सरदार जी. पता नहीं किस बात पर वह शिकार हो गये थे।
'आप कुछ देखते भालते नहीं हैं सब कुछ मुझे ही करना है? आप का क्या रोल है? क्या प्रशासन है? सारा प्रशासन आपको देखना चाहिए था। सारे विभाग, सेक्सन, कामचोरी, काहिली के शिकार हैं और आप भी उनके साथ मिलकर हंसी ठठ्ठा करते फिरते हैं। ...स्टाफ विंग भी आप नहीं देख सकते, तो करेंगे क्या? खाली सारा दिन अखबार पढ़तें रहते हैं या इण्टरनेट देखते हैं। यही काम है आापका?'
" सरदार साहब, चुपचाप खड़े सुन रहे हैं और यस सर...यस सर ...देख रहा हॅूं। जैसा आप चाहते है। वैसा ही हो रहा है। ...आप बेफ्रिक रहें। ...
चीफ ने सरदार साहब को आदेश दिया, 'जाइय, े गोदाम का निरीक्षण करके आइये।' क्या गड़बड़ चल रहा है, मुझे आकर खबर करियें उसी के अनुरूप कार्यवाही निर्धारित करते है। ' सरदार साहब भुनभुनाते हुये गोदाम को चल पड़ते है। वह भी गोदाम जाने से परहेज करते है। एक तो वहॉं का वातावरण उन्हें रास नहीं आता है दूसरे वहॉं का इन्चार्ज नीरज अवस्थी। उसको वहॉं जबरदस्ती पोस्ट कर दिया था खुन्नस निकालने की बजह से। वह बी0टेक0 था और एक आई0टी0 कम्पनी से रिजाइन कर के करीब दो साल पहले ज्वाइन किया था। वह पहले सिस्टम रूम में था। काफी इन्टेलीजेन्ट था वह। उसके समय सिस्टम में कोई समस्या नहीं आती थी। पहले वह चीफ साहब का प्रिय था उसके बहनोई डाक्टर थे और पास की कालोनी में उनका बंगला था और वहीं पर वह प्रेक्टिस करते थे। चीफ हर इतवार और छुट्टियों मंे उनके पास पहुॅंच जाता था, कभी-कभी सपत्नीक। नीरज ने चीफ का परिचय उनसे करवा दिया था। फिर चीफ उसने पूरी तरह चिपक गया था। फिर धीरे-धीरे वह चीफ से कटने लगे क्योंकि चीफ न केवल उनसे मुफ्त सलाह और दवाइयॉं लेता था वरन उसकी प्रेक्टिस पर भी बोझ बनते जा रहा था। साले-बहनोई में भी खटास पैदा हो गई थीं डाक्टर ने चीफ का ईलाज मुफ्त करना बंद कर दिया था। चीफ इसकी वजह नीरज को समझता था और प्रतिक्रियावश चीफ ने उसे गोदाम में शिफ्ट कर दिया था। गोदाम में उसकी पढ़ाई और उपयोगिता का दुरपयोग हो रहा था। इस कारण वह हर समय पीठ पीछे चीफ को गरियाता रहता था। चीफ के पास यह बात छन कर आती रहती थी, परन्तु वह कोई एक्शन नहीं ले पाता था।
सरदार जी नीरज से वस्तुस्थिति की जानकारी ले रहे थे। फाइलें काफी बाहर निकल पड़ी थी और यथास्थान अलमारियों एवं रैक में नहीं लगीं थी। परन्तु यथास्थान व्यवस्थित करने का काम जारी था। एक तरह से सरदार जी संतुष्ट लग रहे थे। तब तक चीफ का इन्टरकाम आ गया। नीरज बात करने लगा था। शायद चीफ इण्टरकाम पर उसे फटकार रहे थे। उसका गुस्से, क्रोध और अपमान से मुॅंह बन-बिगड़ रहा था। चीफ की आवाजें इण्टरकाम से फाड़ कर बाहर निकलने लगीं थी। ...कामचोरी, हरामखोरी और बदमाशी वहॉं चल रही है। ...ना फाइलें आ रही है और ना जा रही है। शराबखोरी चलती है...वहॉं पर । नीरज ने थोड़ी देर सुना फिर कहा, 'सब काम हो रहा है, आपको कुछ आता भी है।' यह कहकर उसने जल्दी से रिसीवर वहीं टेबुल पर रख दिया। क्योंकि वह जानता था कि चीफ अपनी ओर नान-स्टाप बड़बड़ाता जायेगा। ं उसको न सुनना ही बेहतर है। फिर उसका ध्यान उधर से हट गया और वह सरदार जी की तरफ मुखातिब हो गया।
'बुड्ढा, पगला गया है क्या? खुद तो कुछ करता नहीं एक नम्बर का कामचोर और हरामखेर है साथ में घूसखोर भी। इसके दो-चार हाथ लगें तो अभी इसका पागलपन ठीक हो जाये।'
'ऐसा नहीं कहते हैं। आखिर वह हमारा चीफ है।' वह दबे ओर शंकित स्वर में बोला।
'ऐसा चीफ गया तेल लेने।' उसने व्यंग्य और उपेक्षा से कहा। सरदार ने वहाँ से उठ जाना ही ठीक समझा। वह किसी तरह के विवाद से अपने को बचाना चाहता था।
जब सरदार साहब चले गये, तब उसकी निगाह रिसीवर पर पड़ी, उसने उसे उठा कर क्रैडल पर रख दिया और रिलैक्स होने के लिए कुर्सी पर पसर गया।
अभी कुछ ही समय बीता था कि सुखराम आया और उसने साहब के बुलाने की जानकारी दी। वह समझ गया कि चुगली हो गयी है। वह गुस्से में आ गया था। बर्दास्त करने का माद्दा उसमें नहीें था गुस्से में उसे कुछ भी समझ में नहीं आता था। 'आज फैसला कर ही लेते है।' वह बड़बडाता हुआ सुखराम के साथ चल पड़ा।
चीफ के चैम्बर में चीफ, डिप्टी, बनर्जी और सरीन मातमी मुद्रा में बैठे थे चीफ मगर तमतमाया हुआ था।
'क्या बोल रहे थे मेरे विरूद्ध।' वह गरजा अपनी अधिकतम ताकत के साथ, उत्तेजना में वह अकड़ा।
'कुछ नहीं, मैंने ंक्या बोला नीरज ने आश्चर्य प्रदर्शित किया।'
'मैंने सब इण्टरकाम पर सुना है और बनर्जी दादा और सरीन साहब को भी सुनवाया है और सामने आपको कहते सरदार साहब ने सुना है।' ...तुमने कहा है कि मैं पागल हॅू, कामचोर हॅू, मेरे दो चार हाथ लगाने चाहिये...यह सब गवाही देंगें। ' उसने सबकी तरफ ईशारा किया। उसे अनुशासन हीनता, गालीगलौज और बद्तमीजी करने के आरोप वाला ज्ञापन रिसीव करवाया गया और तुरन्त उत्तर देने को कहा गया।
वह होशों हवास खो बैठा था वह चीफ के बिछाये जाल में फॅस गया था वह अपनी सीट पर नहीं गया था। वहॉं से सीधा वह माडल शाप गया और एक क्वाटर लगा कर सीधे चीफ के चैम्बर में घुस गया। वहॉं पर चारों अभी तक बैठे विचार-विमर्श में लीन थें।
'ये, देखों, कामचोरांें, हरामखोरों की पंचायत हो रही है। दिन भर ये प्लान बनाते रहते है कि कामकाजी स्टाफ को किस तरह परेशान किया जाये और प्रताड़ित किया जायें। ये साले काम करने वालों का खून चूसते है। ये चीफ बना फिरता है, आता-जाता ढेला भर नहीं है। अरे इसे चीफ किसने बना दिया।' अवस्थी जो मुॅंह में आये, बोलता चला जा रहा था, नान-स्टाप। 'अभी इसकी चीफगीरी निकालता हॅू।' और वह चीफ की तरफ लपका। सब कुर्सी से उठकर इधर-उधर छितर गये वह चीफ की गरदन पकड़ने को उद्धृत हो रहा था। बनर्जी उसे सम्भालं कर बाहर ले गया। चीफ भय और अपमान से गीदड़ बन गया था उसके मुॅंह से कोई बोल नहीं निकल रहा था। गला चोक हो गया था। इतनी लम्बी नौकरी के अन्तिम सोपान में इस तरह की परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा। उसके लिए अकल्पनीय था। वह इसी तरह स्टाफ को पीड़ित, प्रताड़ित, दंडित कर और अपमानित करके नियंत्रक की नजरों में एक कुशल सख्त प्रशासक की छवि बना रखी थी। वह सन्न रह गया और सर पकड़कर वहीं कुर्सी पर ढेर हो गया।
'क्या करते हो नीरज नौकरी देना है क्या?' बनर्जी ने उसे सख्ती से डॉंटा।
'ये मेरी नौकरी लेगा! मैं इसकी जान ले लूंगा, निकलने दे इसे बाहर, आज निपटारा हो जायेगा।' फिर बनर्जी उसे समझाकर, अलग ले जाकर गोदाम में उसकी सीट की तरफ ले गया और उसे घन्टों समझाता रहा और उसे हर तरह से आश्वस्त कर के, वह वापस चीफ के पास आ गया। वहॉं उसने चीफ से अलग से मंत्रणा की और एक सम्मानजनक हल तलाशने की कवायद हुयी। हर तरह हर दृष्टिकोण से चीफ को समझाया गया। चीफ राजी हो गया और उसी दिन शाम को नीरज अवस्थी ने अपने कृत्य के लिए चीफ से हाथ जोड़कर पैर पकड़कर माफी मॉंगी और इसके एवज में अनुशासनहीनता का ज्ञापन सबकी सहमति से फाड़ा गया।
'इस तरह से इस घटना का पटाक्षेप तो हो गया, परन्तु चीफ के भीतर आग सुलग रही थी। वह बदला लेना चाहता था, इस तरह से कि उसमें ऑचं न आये।' अगले हफ्ते नीरज अवस्थी के आडर रॉंची सेल के आ गये थें और उसे तुरन्त रिलीव कर दिया गया था।