चुनरी में लागा दाग बताऊं कैसे? / जयप्रकाश चौकसे

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चुनरी में लागा दाग बताऊं कैसे?
प्रकाशन तिथि : 02 सितम्बर 2019


कृषि सबसे पुराना व्यवसाय माना जाता है। चिकित्सा का क्षेत्र सबसे परोपकारी माना जाता है, परंतु नारी शरीर के सौदे को हमेशा नफरत की निगाह से देखा गया है। यही काम पुरुष भी करते हैं। उन्हें जिगोलो कहा जाता है। नाइट क्लब में निर्वस्त्र पुरुष नाचते हैं, जिन्हें फुल मोंटी कहा जाता है। मार्लन ब्रैंडो जैसे महान अभिनेता ने 'लास्ट चार्ली इन टेंगो' फिल्म में फुल मोंटी पात्र अभिनीत किया था। जापान में पुरुषों का मनोरंजन करने वाली महिला को गोहिशा कहा जाता है। समुराई की तरह गोहिशा परंपरा पुरानी है और उसके अपने आदर्श रहे हैं। सामंतवादी दौर में शिफाखाना के साथ ही तवायफखाना भी खूब पनपा। दक्षिण भारत में स्वतंत्रता के पूर्व एक फिल्म बनी थी, जिसका कथासार यूं था कि एक तवायफ के कोठे पर केवल अत्यधिक धनी लोगों को ही आने दिया जाता था। नज़दीक ही रहने वाले धोबी की बड़ी इच्छा थी कि वह भी वहां जाए। कोठे की सेविकाएं धोबी के पास कपड़े देने आतीं और वह उनसे पूछता कि कितनी स्वर्ण मुद्रा लाने पर उसे कोठे में आने दिया जाएगा। वह बड़ी मासूमियत से सेविकाओं को बताता था कि उसने कितनी स्वर्ण मुद्राएं बचाई हैं। यह उनके रोज का शगल था। कुछ दिन बाद धोबी ने सेविकाओं को बताया कि अब उसने बचत करना बंद कर दिया है, क्योंकि वह वेश्या उसके सपनों में आने लगी है। अत: अब बचत की आवश्यकता ही नहीं रही। सेविकाओं ने यह बात वेश्या को बता दी।

वेश्या ने राजा के दरबार में अर्जी लगा दी कि धोबी से उसे उसका 'मेहनताना' दिलाया जाए, क्योंकि वह स्वप्न में उसके साथ अंतरंगता के क्षण बिताता है। राजा बड़े असमंजस में था, क्योंकि वह वेश्या उन्हें भी पसंद थी। रानी ने राजा की दुविधा को समझ लिया। वर्ष में एक बार रानी को फैसला सुनाने का अधिकार था। उस दिन रानी ने अपने अधिकार का उपयोग किया। अपने दरबार में एक बड़ा आईना मंगवाया और आईने के सामने हजार स्वर्ण मुद्राएं रख दीं। वेश्या से कहा कि वह आईने में स्वर्ण मुद्राओं की छवि ले सकती है, क्योंकि स्वप्न में अंतरंगता भी इसी तरह थी। हैराल्ड रॉबिन्स का उपन्यास '79 पार्क एवेन्यू' तवायफ के विषय में लिखा गया था। इसी उपन्यास की प्रेरणा से रानी मुखर्जी अभिनीत 'लागा चुनरी में दाग' नामक फिल्म बनाई थी। इसी तरह की फिल्मी भारतीय चुनरी अमेरिका में बनी हुई लगती है।

शम्मी कपूर ने 'इरमा ला डूस' से प्रेरित जीनत अमान और संजीव कुमार अभिनीत 'मनोरंजन' बनाई थी। इसके चटपटे संवाद अबरार अल्वी ने लिखे थे। यह एकमात्र फिल्म है, जिसमें तवायफ को तवायफ होने पर गर्व है। जब उसका प्रेमी मेहनत मशक्कत से रोजी-रोटी कमाना चाहता है। तब वह कहती है कि क्या तवायफों के मोहल्ले में उसकी बदनामी करवाओगे कि वह एक अदद मर्द नहीं पाल पाई। ज्ञातव्य है कि 'इर्मा ला डूज' 1961-62 में बनी थी और शम्मी कपूर की मनोरंजन उसके एक दशक बाद बनी है परंतु शांताराम ने 'आदमी' नामक फिल्म 1941 में बनाई थी जो एक पुलिस कांस्टेबल और तवायफ की प्रेम कथा थी। वे दोनों बिना किसी की परवाह किए शादी कर लेते हैं। शांताराम को देवदास का पात्र पसंद नहीं था कि प्रेम में असफल होने पर एक प्रेमी शराबी हो जाता है और कोठेवाली के घर रहने लगता है। इस दृष्टिकोण के खिलाफ उन्होंने 'आदमी' बनाई थी।

बाबूराम इशारा की फिल्म 'चेतना' में उन्होंने रेहाना सुल्तान को प्रस्तुत किया था। इसी फिल्म के एक दृश्य में नादिरा का एक संवाद था,'मैं तुम्हारा आने वाला कल हूं और तुम मेरा बीता हुआ कल हो'। ज्ञातव्य है कि रेहाना अभी-अभी इस इस पेशे में आई है जबकि नादिरा सेवानिवृत्त तवायफ है। रेहाना सुल्तान और संजीव कुमार के साथ महान उपन्यासकार राजेंद्र सिंह बेदी ने 'दस्तक' नामक फिल्म बनाई थी। फिल्म में साधारण-सा वेतन पाने वाला एक व्यक्ति तवायफों के मोहल्ले में घर किराए पर लेता है। कई ग्राहक इस तथ्य से अनजान हैं और वे उसके घर पर दस्तक देते हैं। यह एक अत्यंत मौलिक कथा थी।

'देवदास' से प्रेरित 11 फिल्में बनी हैं। एक संस्करण में चंद्रमुखी पारो से कहती है कि उसने देवदास से पारो के बारे में इतना सुना है कि वह स्वयं पारो से प्रेम करने लगी है। एक देश की अधिकतम आय उसकी तवायफों के कारण होती है। विदेशों से पर्यटक अय्याशी के लिए वहां आते हैं। वहां की सरकार तवायफों की सेहत का भरपूर ध्यान रखती है।