चुनावी घोषणा-पत्र की तरह रची फिल्म / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 14 जून 2018
रजनीकांत अभिनीत 'काला' का प्रदर्शन हो चुका है और रजनी लहर ने सिनेमाघरों में उन्मादी भीड़ जुटा दी है। रजनीकांत राजनीति में प्रवेश करने का इरादा जाहिर कर चुके हैं और इस फिल्म का इस्तेमाल उन्होंने अपने घोषणा-पत्र की तरह किया है। आर्य बनाम द्रविड़ सदियों पुराना संग्राम है जो अहिंसा द्वारा लड़ा जा रहा है। गरम तवे पर रोटी के फूलने से भी कम समय लगता है अहिंसा को हिंसा में बदलने के लिए। हर व्यक्ति उस ज्वालामुखी की तरह है जो अभी सुशुप्त अवस्था में है। तमाम बारुदखानों पर हमने माचिस को पहरेदार नियुक्त किया है। राजनीति के क्षेत्र में दक्षिण भारत से बाहुबली कभी भी अवतरित हो सकता है। इतने दशकों में केवल नरसिंहराव ही प्रधानमंत्री रहे हैं और उनके वित्त मंत्री मनमोहन सिंह आर्थिक उदारवाद के प्रणेता हुए हैं परन्तु वर्तमान में वह महज नारा बनकर रह गया है।
दक्षिण भारत में फिल्म सितारों के प्रशंसक संगठित हैं और अवाम के भलाई के काम करते हैं। सितारे उन्हीं के माध्यम से नेक कार्य करते हैं। यह कम आश्चर्य की बात नहीं है कि मराठी भाषी परिवार में जन्मे रजनीकांत दक्षिण भारत में देवता की तरह पूजे जाते हैं। फिल्म उद्योग की निर्णायक शक्ति बॉक्स ऑफिस है। रजनीकांत शहंशाह की हैसियत रखते हैं। उनके निवास स्थान के बाहर एक भीड़ हमेशा जुटी होती है और समय-समय पर रजनीकांत दर्शन देते हैं। उनकी फिल्म '2.0' के प्रदर्शन का दिन अभी तक तय नहीं है। यह संभव है कि उनका सक्रिय राजनीति में प्रवेेेश और फिल्म का प्रदर्शन साथ हो। शायद इसी कारण अमित शाह ने अपनी मुंबई यात्रा में लता मंगेशकर से भेंट करना चाही परन्तु उनकी सेहत उन्हें किसी से मिलने की इजाजत नहीं देती। अमित शाह माधुरी से अवश्य मिले। अगले आम चुनाव के घाट पर सितारे भी चंदन घिसते नजर आएंगे। दक्षिण में जीवित सितारों के मंदिर बनाए जाते हैं। दक्षिण में रावण पूजने वालों की संख्या कम नहीं है परन्तु उसे राम के शत्रु की तरह नहीं पूजा जाता, वरन् उसके ज्ञान और विज्ञान प्रयोग के कारण पूजा जाता है।
अमेरिका में अभी तक रंगभेद पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ और इसी तरह दक्षिण भारत में उसकी अदृश्य लहर हमेशा प्रवाहित रहती है। आगामी राजनीतिक कुंभ में ममता बनर्जी, मायावती और सोनिया गांधी फिल्म 'वीरे दी वेडिंग' की सहेलियों की तरह मिलकर नया हंगामा बरपा सकती हैं।
रजनीकांत वर्ष में एक बार किसी ऐसे देश की यात्रा करते हैं जहां उन्हें अवाम नहीं पहचानता है। उनके पास एक छोटा सा बैग होता है। वे केवल अपना टूथ-ब्रश लेकर भी यात्रा कर सकते हैं। एक बार ऐसे ही वे लास वेगास के किसी कसिनो में पहुंच गए। मुकद्दर के इस सिकन्दर ने वहां भी धन कमाया जिसे यूं ही अनजान लोगों को देकर वे अज्ञात ठिकाने की ओर बढ़ गए। इस तरह एक माह वे सूफी दरवेश की तरह होते हैं। उनकी बेटी सौंदर्या ने एक फिल्म बनाई जिसमें मुंबई के पूंजी निवेशक को घाटा हुआ। अनुबंध में ऐसी कोई शर्त नहीं थी कि घाटा सौंदर्या देंगी परन्तु रजनीकांत ने घाटे की पूरी रकम लौटा दी। दक्षिण फिल्म उद्योग में रजनीकांत उस संविधान की तरह हैं जिसकी शपथ ली जाती है।
कुछ दिन पूर्व ही घोषणा हुई है कि रजनीकांत अपनी राजनीति को दक्षिण तक ही सीमित रखेंगे। उन्हें अखिल भारतीय नेतृत्व की चाह नहीं है। नेतृत्व का नशा अलग ही होता है। इसलिए कहा नहीं जा सकता कि वे सीमित क्षेत्र में ही सक्रिय रहेंगे। उनके प्रतिद्वंद्वी रहे कमल हासन के राजनीतिक में प्रवेश की घोषणा पर उन्हें बधाई देने वाले प्रथम व्यक्ति रजनीकांत थे। कमल हासन ने 'हे राम' नामक राजनीतिक फिल्म बनाई थी परन्तु वह असफल रही। बलदेवराज चोपड़ा की फिल्म 'इत्तेफाक' के पहले ही दृश्य में नंदा सीढ़ियों से उतरकर नीचे आती है और जाने कैसे दर्शक को अहसास होता है मानो वह कत्ल करके आ रही है। फिल्म के अंत में यह राज खुलता है कि उसने कत्ल किया था। यह फिल्म दोबारा भी बनाई गई परन्तु पहले वाला जादू नहीं जगा पाई। कभी-कभी वे विदेशी फिल्म के नाम को भी जस का तस अनुदित कर देते थे जैसे 'ब्लॉजम्स इन द डस्ट' जो 'धूल के फूल' के नाम से बनाई गई थी।
बहरहाल रजनीकांत आने वाले समय में निर्णायक राजनीतिक हस्ती साबित हो सकते हैं और दिल्ली से संचालित चुनाव मशीनरी में भारी तोड़-फोड़ कर सकते हैं। वे जिस दल का साथ देंगे, उसका विरोधी दल एस.एस. राजामौली और उनके बाहुबली प्रभास से निवेदन कर सकता है। मुंबई के एक निर्माता प्रभास के पास गए थे। उसने इतना पारिश्रमिक मांगा कि वे भाग आए। कहा जाता है कि बाद में प्रभास ने कहा कि उन्हें निर्माता की बनाई फिल्में नापसंद थीं। फिल्म उद्योग में कभी खुशी कभी गम मिलता है। उस निर्माता का नाम बूझो तो जानें? एक बड़ा संकेत दिया जा चुका है।