चुनावी चर्चा- पी.एम.से... / प्रमोद यादव
कभी-कभी सोचता हूँ कि क्या दुनिया की सारी बीबियाँ भी कुछ एक मामलों में मेरी बीबी जैसी होती हैं-... . सीरियल बाज ... मूवी बाज... .यानी.टोटल टी.वी.बाज... जहाँ काम से निपटे तो बुद्धू-बख्से में अटके... भूलकर भी न कभी अख़बार तके... ना न्यूज चैनल में भटके ... .मेरी तो ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं , पर जिनकी होती है, उनमें भी यह लक्षण होता है... वैसे आजकल जो आ रहीं, वे ‘अपडेट’ रहने के प्रयास में न चाहते हुए भी ये सब करती हैं... ये अलग बात है कि अखबार देर रात या कभी-कभी दूसरे-तीसरे दिन पढ़ती हैं... पर पढ़ती जरुर हैं... और रात को न्यूज चैनल्स भी पतिदेव के बगल में बैठ झेलती हैं... दूसरा कोई ऑप्शन भी नहीं होता... ज्यादा पढ़-लिख लेने का दंड शिष्टता keके तौर पर तो भोगना ही है ...
खैर छोडिये... .मैं ‘अपनी’ पे आता हूँ... छोटे कस्बे से है इसलिए कुछ बड़ा सोचने का वह सोचती ही नहीं... शादी के पहले से टी.वी.का शगल था... आज भी है... सारे टी.वी सीरियल्स के नाम उसे मूंहजुबानी याद... . नए-नए हीरो-हीरोइनों को यूं पहचानती है जैसे उसके कस्बे से हो... मूवी देखने बैठती है तो चेहरे का उतार-चढ़ाव देखते ही बनता है... ‘कभी ख़ुशी कभी गम’ जैसे हो जाती है... कई बार उसे कहा कि इतने सारे सीरियल्स की जानकारी रखती हो तो थोड़ी बहुत दुनिया जहान की भी रखो पर पढने-लिखने से तो दूर का भी रिश्ता नहीं इसलिए अखबार भला कैसे पढ़े? इसलिए जब भी उसे न्यूज चैनल देखने कहा, उसने हमेशा रट्टू तोते की तरह कहा -
‘इसकी क्या जरुरत? आप तो हो मेरे न्यूज चैनल... कुछ घटता है तो बता ही देते हो... फिर मेरे समय बरबाद करने का क्या औचित्य?’
आज फिर मैंने समझाया – ‘सो तो ठीक है... देश-विदेश में कुछ ख़ास घटता है तो सुना देता हूँ... पर क्या कभी तुम्हारी इच्छा नहीं हुई कि तुम कोई धांसू न्यूज पहले सुनाकर मुझे सरप्राइज दो... ’
‘होती तो है पर ऐसा कुछ घटे तब ना... हाँ... सीरियल्स में एक से एक ताबड़तोड़ घटनाएं घटती है... किसी-किसी सीरियल में तो दो-तीन एपिसोड के बाद पति ही बदल जाता है... कभी दादाजी बदल जाते हैं... ये सब सुनाती हूँ तो आप ‘बदल’ जाते हैं... खर्राटे भरने लगते हैं... ’ उसने शिकायत के स्वर में कहा.
‘ऐसा नहीं है सीमू ... आज के दौर में हर एक को -औरत हो या मर्द, बच्चे हो या बूढ़े... सबको देश-विदेश की... चलो विदेश न सही... अपने देश... प्रदेश... शहर की ताजा जानकारी तो रखनी ही चाहिए... ’ मैंने सलाह दी.
‘इससे क्या होगा जी? मुझे कौन से इंटरव्यू देने या नौकरी करनी है... पास-पड़ोस की जानकारी कामवाली बाई बिना पूछे दे जाती है... शहर का सारा हाल बगल वाली सरला बता देती है... और बाकी का ठेका तो आपके पास है... फिर मैं क्यूँ नीरस न्यूज चैनल देख माथा-पच्ची करूँ? मैं तो आज तक नहीं समझ सकी कि उसमें आँख गडाए रहने से आपको क्या मिलता है? ‘
‘जानकारी मिलती है भागवान ... समय के साथ चलना है तो नालेज का अपडेट होना आवश्यक है... क्या तुम्हें मालुम भी है कि इन दिनों देश में लोक सभा चुनाव हो रहे? ‘मैंने हडकाया.
‘अब इतना भी ‘वो ‘मत समझो हमें... जब टिकट की खिड़की खुली और टिकट बंट रहे थे तब से पता है हमें... ’
‘वो कैसे? ‘मैंने पूछा.
‘सरला बताई थी कि उसके देवर के ससुर के बड़े भाई टिकट लेने दिल्ली गए पर सारे टिकट बिक गए इसलिए नहीं मिली... ब्लैक में खरीदने की भी कोशिश की पर हासिल न कर पाए ... ’
‘तो फिर क्या वे निर्दलीय खड़े हुए? ‘मैंने पूछा.’
‘नहीं... .बैठ गए... ’ उसने बड़ी सादगी से कहा.
‘अच्छा चलो... देखते हैं... चुनाव के विषय में तुम क्या जानकारी रखती हो... चुनावी चर्चा करते हैं... .प्रश्नोत्तरी खेलते हैं... मैं सवाल पूछता हूँ, तुम उत्तर देना... ’
‘हाँ... हाँ... पूछो... अंतराक्छरी- प्रश्नोत्तरी में कभी नहीं हारी ... आपको निराश नहीं करुँगी... पूछो... ’ वह एकदम तैयार हो गयी.
‘सबसे पहले “मतदान” के विषय में बताओ... ’
‘यह बिलकुल गऊदान की तरह होता है... गऊदान में पंडित-ब्राह्मण पैसा बनाते( ऐंठते) हैं... मतदान में नेता-मंत्री ... ’ उसने तपाक से उत्तर दिया.
‘आदर्श आचार संहिता के विषय में क्या जानती हो? ‘
‘पूरे चुनाव अवधि में इसका ( आदर्श और संहिता का ) “अचार” डाल दिया जाता है ... कोई कितनी भी शिकायत करे... कुछ नहीं होता... चुनाव आयोग “ तारीख पे तारीख “ की तरह बस नोटिस पे नोटिस ही जारी करती है... कभी प्रत्याशी को तो कभी पार्टी को... ’
‘घोषणा-पत्र क्या होता है? ‘
‘आगामी पांच सालों के पचासों कार्यक्रम का खाका ... जिसे गिनाकर गिनती के ही काम करने का (झूठा) वादा करते हैं... . ‘
‘एक्जिट पोल जानती हो? ‘मैंने कठिन-सा सवाल किया.
‘चुनाव के पहले सारे दलों के पोल खोलने की क्रिया को एक्जिट पोल कहते हैं.इसे टी.वी.वाले सम्पादित करते हैं... ‘उसने बेबाक उत्तर दिया.
‘चुनाव में नेता एक दूसरे पर निशाना क्यों साधते हैं? ‘
‘नौसिखिये जो ठहरे... अचूक निशानेबाज होते तो अब तक आधे से ज्यादा नेता स्वर्गीय होते और देश में बड़ी सुखद शान्ति होती... ’
‘चुनाव के दिनों में “जुबानी जंग” किस तरह का होता है? ‘
‘उसी तरह का- जैसे- “ अब मारा तो मारा ... अब मार के देख “ जैसा... .’
‘ नेता रोड शो क्यों करते है? ‘
‘यह बताने के लिए कि एक न एक दिन आपको भी रोड में ला देंगे... बस... हमें वोट कर सहयोग करते रहें... ’
‘दल-बदल कौन करता है? ‘
‘वह नेता जिसमें बल की ( आत्मबल की ) अचानक कमी हो जाती है... .या जिसे बलपूर्वक पार्टी से निकाल दिया जाता है... ’
‘अब आखिर में चलते-चलते वाला एक प्रश्न ... तुम अगर देश का पी.एम. बनी तो सबसे पहले क्या करोगी? ‘
‘सारे न्यूज चैनल्स बंद करवा दूंगी... इसे लेकर हमेशा आप मेरा मजाक उड़ाते हैं... ’ उसने बड़ी ही नाराजगी से कहा.
‘तौबा... तौबा... ऐसा मत करना यार... मैं तुम्हारी तरह एक भी सीरियल नहीं झेल पाऊंगा... रीयली कह रहा हूँ... अपना फरमान वापस लो और मेरा नाश्ता लगा दो ... आफिस को देरी हो रही... और जाते-जाते टी.वी. “आन” करती जाओ... ... थोडा न्यूज देख लूँ ... हमारे भावी पी.एम.साहब अभी कहाँ रोड शो कर रहे... ’
मेरा इतना कहना भर था कि गुस्से से पैर पटकते मेरी पी.एम संसद में ( किचन में )चली गई...