चुन्नी / सत्या शर्मा 'कीर्ति'
सीमा जो मात्र 14 साल की रही थी, बैठ कर सिल रही है अपनी इज्जत की चुन्नी को आशुओं की धागा और बेबसी की सुई से।
कल ही लौटी ही बुआ के घर से। वहाँ जाते वक्त सुरमयी-सी कौमार्य को ओढ़कर गई थी। पर आते वक्त सब कुछ बिखर गया था।
बड़े मान से बुआ ने बुलाया था प्रसव के दिन नजदीक आ रहे थे। बुआ फिर से माँ बनने बाली थी, पहले से वह इक प्यारी-सी तीन साल की बिटिया की माँ थी।
वहाँ वह हँसती खिलखिलाती बुआ का सारा काम करती, फूफा जी भी बात-बेबात उसे प्यार करते रहते।
सीमा खुश हो जाती पिता तुल्य वात्सल्य से भरा प्यार। पर कभी-कभी चौंक जाती पापा तो ऐसे प्यार नहीं करते। ऐसे नहीं "" छूते।
धीरे–धीरे हँसी खोने लगी, उदासी की परत चढ़ने लगी उसकी मासूमियत पर।
बुआ पूछती क्या हुआ मन नहीं लग रहा है देखो फूफा जी कितना मानते हैं जाओ साथ में कहीं घूम के आ जाओ.
पर सीमा बुआ को कभी उस 'मरदाना प्यार' के बारे में नहीं बता पाई.
कभी–कभी सोचती चीख-चीख कर बता दे सब को, पर बुआ की गृहस्थी का क्या जो फिर एक और बेटी माँ बन लोगों के ताने झेल रही है।
कौन उठाएगा बुआ और उनके दोनों बेटियों का बोझ।
माँ तो खूब अनाथ बुआ को देखना नहीं चाहती।
और वह बहुत शिद्दत से सिलने लगती है अपनी फटी चुन्नी।