चुलबुल पांडे में पारिवारिक 'प्रेम' / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

{GKGlobal}}

चुलबुल पांडे में पारिवारिक 'प्रेम'
प्रकाशन तिथि : 21 दिसम्बर 2012


सलमान खान की ताजा फिल्म 'दबंग-2' इस मायने में सच्चा भाग-2 है कि भाग-१ का नायक तथा उसका परिवार मौजूदा कड़ी में भी मौजूद हैं और इस बार उनके स्वभाव में परिवर्तन भी हुआ है। मसलन पिता विनोद खन्ना अब पुत्र सलमान से खफा नहीं हैं, वरन उन्हें उसकी चिंता है। छोटा भाई आज भी आलसी और दिशाहीन है तथा 'जंगल में शेर' की एक सरल पहेली का हल खोजने में उसे बहुत समय लगता है और खोजने पर उसका रुख कुछ उस वैज्ञानिक की तरह है, जो हल मिलते ही नंग-धड़ंग दौड़ता है। इसमें वह नंग-धडंग़ नहीं है, वरन अपने भाई को आधी रात को जगाकर हल बताता है। इस तरह की मासूमियत, नायक का सनकीपन और खलनायकों का पागलपन फिल्म में मौजूद है।

यह महज एक्शन फिल्म नहीं है। इसमें दांपत्य सुख, पात्रों की परस्पर चुहलबाजी और कानपुर का बांकपन भी शामिल है। मकान की छत पर आधी रात को नायक अपने पिता से पूछता है कि वह उसकी मां से कब और कैसे मिला था। पिता थोड़ा-सा परेशान है, परंतु उसके मन में गुदगुदी हो रही है और अपनी प्रेमकथा सत्रह वर्षीय युवा के संकोच के साथ बयान करता है। पुत्र सुनते हुए भी नींद का नाटक करता है। एक दृश्य में पुत्र पिता से कहता है कि स्वप्न में उसकी मां अपने पति को मारने के लिए दौड़ी, परंतु लाठी पुत्र की पीठ पर पड़ी। भावुकता की लहर देखिए कि पिता कहता है कि जो पुत्र पहले उनसे नफरत करता था, अब सपने में भी उसे पिटता नहीं देख सकता। पिता-पुत्र के सारे दृश्य मौलिक और मजेदार हैं और उनमें वही रंग और ख्याल नजर आता है, जो यथार्थ जीवन में सलमान और उनके पिता सलीम के बीच है। इसी तरह देवर-भाभी की नोक-झोंक भी मजेदार है। दांपत्य रस से सराबोर यह फिल्म सूरज बडज़ात्या की पारिवारिकता का स्पर्श लिए है, परंतु निर्देशक अरबाज एक पल के लिए भी यह नहीं भूले हैं कि आज सलमान खान के प्रशंसक उनसे नवरसों की उम्मीद करते हैं, इसलिए इसमें जबर्दस्त एक्शन भी है और एक्शन में सलमान मार्का हास्य का पुट भी है। इस फिल्म में नायक का सीनियर भी एक मजेदार अफसर है, जो अपने जीवन में सामाजिक न्याय के लिए नहीं लड़ पाने की कायरता को छुपाने के लिए सारा समय मुफ्त का खाना खाता रहता है। यह सरकारी मुफ्तखोरी पर व्यंग्य भी है। अरबाज खान का रुझान सामाजिक आक्रोश की प्रकाश झा नुमा फिल्म बनाने का नहीं है, परंतु उन्होंने कुछ सूक्ष्म सार्थक संकेत प्रस्तुत किए हैं।

भाग-1 की प्रेमकथा भाग-2 में भी जारी है और यह रेखांकित करती है कि शादी प्रेम का फुलस्टॉप नहीं है, वरन एक कोमा मात्र है। विवाहित प्रेम रस से पगी इस फिल्म में रोमांस का नया रूप सामने आया है। अरबाज ने इस प्रेम-प्रसंग को भी अधिक खुलेपन से बचाकर पारिवारिक मर्यादा रेखा के भीतर ही रखा है।

चुलबुल पांडे अब ऐसा ब्रांड बन गया है कि रोजमर्रा की बातचीत में दबंग होना एक विशेषण बन गया है। इंस्पेक्टर चुलबुल पांडे में रॉबिन हुड का रंग शामिल किया गया है और रोजमर्रा के जीवन में मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए चुलबुल कुछ प्रतिशत माल अपने लिए रखता है, परंतु शेष पूरा धन उसके सामाजिक चैरिटी फंड में जाता है। यह रिश्वत को न्यायसंगत बताने का प्रयास नहीं है, परंतु इसे इस संदर्भ में देखना होगा कि यथार्थ जीवन में सलमान खान का ट्रस्ट बहुत काम करता है और अब ट्रस्ट की आय बढ़ाने के लिए अनेक योजनाओं पर विचार चल रहा है। चुलबुल पांडे गुंडों की पिटाई में भी बहुत क्रूर नहीं है और इसे भी गुदगुदी का दूसरा रूप मानता है। चुलबुल पांडे से पापी खौफ खाते हैं, परंतु वह अपनी पत्नी की तिरछी निगाह से घबराता है और साजिद-वाजिद ने 'नैना दगाबाज' में भाग-1 के माधुर्य को कायम रखते हुए कुछ नया भी किया है। इसमें मुन्नी मात्र एक ठुमका लगाने आती है, परंतु आइटम करीना कपूर ने किया है, क्योंकि मुन्नी अर्थात मलाइका अरबाज की बीवी हैं, अत: सलमान उनके निकट नहीं जा सकते और इस मर्यादा का भी ध्यान रखा गया है।

सलमान के कुछ अपने जीवन मूल्य हैं। वह परदे पर चुंबन पसंद नहीं करते और गाल पर हल्की-सी पप्पी उनके पूरे शरीर में सिरन पैदा करती है।

सारांश यह कि चुलबुल पांडे कॉमिक्स के पात्रों की तरह निर्मल आनंद की रचना करता है। दरअसल भारतीय सिनेमा का यह सौंवा वर्ष है और इस उम्र में भी उसमें बचपन कायम है, दर्शकों में सितारों के लिए पागलपन जारी है और इस उद्योग के अर्थशास्त्र में भी सनकीपन बना हुआ है। अरबाज खान की फिल्म में बचपन, पागलपन और सनकीपन सब कुछ है तथा यह दो सौ करोड़ का आंकड़ा पार कर सकती है। यह गुजश्ता सौ वर्षों के आधारभूत तत्वों के जश्न की फिल्म है, जिसे फॉर्मूला भी कहते हैं।